कैसा होता है अघोरी बाबाओं का जीवन और क्या हैं मान्यताएं, यहां पढ़ें...

आज भी किसी को नहीं पता कि आखिर अघोरी बनने की प्रथा कब, कैसे और किसने शुरू की थी। बावजूद इसके जनधाराणाओं में अधिकतर लोगों का मानना है कि दुनिया के सबसे पहले अघोरी बाबा किनाराम थे। वह सारी दुनिया की मोह-माया को छोड़कर अघोरी बन गये थे। कहते हैं, इसी कारण वह 150 सालों तक जिए थे।

Update: 2019-02-20 10:55 GMT

एलएन सिंह

प्रयागराज: भारत की धरती पर रहस्यों की कमी नहीं है। संत महात्माओं से लेकर अनेक ऐसे रहस्य हैं, जिनके बारे में आम जनों की उत्सुकता बनी ही रहती है। इसी कड़ी में लंबी-लंबी जटाओं वाले अघोरी बाबाओं की रहस्यमय दुनिया को जानने समझने की दिलचस्पी स्वाभाविक ही उत्पन्न होती है। माना जाता है कि इन अघोरी बाबाओं से बड़ा भगवान शिव का कोई दूजा भक्त नहीं होता।

कई लोग तो इन्हें शिव का प्रारुप ही मान लेते हैं। उनका मानना है कि अघोरी बाबा के मुंह से निकली बात किसी के भी जीवन को बदल सकती है। ऐसे में सवाल यह है कि कुरुप और रौद्र दिखने वाले यह लोग हैं तो यह जानने के लिए इन्हें जरा नजदीक से जानने की कोशिश करते हैं।

यूं तो सब कुछ त्याग कर भगवान की खोज में जाने की रीत बहुत पुरानी मानी जाती है, लेकिन अघोरी बाबाओं की बाहर आयी कहानी 18वीं सदी में बाहर आयी मानी जाती है। तभी दुनिया ने अघोरियों के बारे में जाना था।

आज भी किसी को नहीं पता कि आखिर अघोरी बनने की प्रथा कब, कैसे और किसने शुरू की थी। बावजूद इसके जनधाराणाओं में अधिकतर लोगों का मानना है कि दुनिया के सबसे पहले अघोरी बाबा किनाराम थे। वह सारी दुनिया की मोह-माया को छोड़कर अघोरी बन गये थे।

कहते हैं, इसी कारण वह 150 सालों तक जिए थे।

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अघोरी बनाना नहीं है आसान

अघोरी बाबाओं के बारे में कहा जाता है कि वह भगवान शिव के पक्के भक्त होते हैं। उनके ही बताए रास्तों पर चलते हैं। यहां तक की उनकी विशेष पूजा करते हैं। वह शिव की भक्ति में कुछ इस तरह लीन हो जाते हैं कि खुद को समाज से एकदम अलग कर लेते हैं. उनका मानना होता है कि इससे वह अपने शिव के नज़दीक पहुंच जाते हैं।

एक अघोरी बनना कतई आसान नहीं होता है। सिर्फ पुरानी जिंदगी को त्याग देना ही एक अघोरी के लिए काफी नहीं होता। उन्हें एक नई जिंदगी को अपनाना पड़ता है। कई सारे नई रीति-रिवाजों को पूरा करना पड़ता है। इंसान का मांस खाना इन्हीं रिवाजों का एक हिस्सा माना जाता है। अघोरियों के लिए यह बात कहीं जाती है कि वह इंसानों का मांस खाते हैं, लेकिन यह पूरा सच नहीं है।

अघोरी हर समय ही इंसान का मांस नहीं खाते हैं। ऐसा वह सिर्फ़ अपने रिवाज़ को पूरा करने के लिए ही करते हैं। पूरे चांद की रात अघोरी अपनी इस प्रथा को पूरा करते हैं. वह सिर्फ मरे हुए इंसान का ही मांस खाते हैं। जब लाश जल जाती है, या जब कोई लाश गंगा नदी से तैर कर आती है, तो वह उसको अपना भोजन बनाते हैं।

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तंत्र सिद्धि के लिए मुर्दों का इस्तेमाल

तीन तरह की साधनाएं करते हैं। शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना। शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पैर है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है।

5 साल से कम उम्र के बच्चे, सांप काटने से मरे हुए लोगों, आत्महत्या किए लोगों का शव जलाया नहीं जाता बल्कि दफनाया या गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है। पानी में प्रवाहित ये शव डूबने के बाद हल्के होकर पानी में तैरने लगते हैं। अक्सर अघोरी तांत्रिक इन्हीं शवों को पानी से ढूंढ़कर निकालते और अपनी तंत्र सिद्धि के लिए प्रयोग करते हैं। अघोरी अक्सर श्मशानों में ही अपनी कुटिया बनाते हैं। जहां एक छोटी सी धूनी जलती रहती है।

हठधर्मिता है अघोरियों की पहचान

जानवरों में वो सिर्फ कुत्ते पालना पसंद करते हैं। उनके साथ उनके शिष्य रहते हैं, जो उनकी सेवा करते हैं। अघोरी अपनी बात के बहुत पक्के होते हैं, वे अगर किसी से कोई बात कह दें तो उसे पूरा करते हैं। अघोरियों के बारे में कई बातें प्रसिद्ध हैं जैसे कि वे बहुत ही हठी होते हैं, अगर किसी बात पर अड़ जाएं तो उसे पूरा किए बगैर नहीं छोड़ते। गुस्सा हो जाएं तो किसी भी हद तक जा सकते हैं। अधिकतर अघोरियों की आंखें लाल होती हैं, जैसे वो बहुत गुस्सा हो, लेकिन उनका मन उतना ही शांत भी होता है। काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी गले में धातु की बनी नरमुंड की माला पहनते हैं।

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