नई दिल्ली : पर्यावरण संरक्षण को लेकर मिथिला के लोग आदिकाल से ही काफी जागरूक रहे हैं। पर्यावरण के प्रति यहां के लोगों में बहुत ही ममत्व है। यहां के लोग पेड़-पौधों की पूजा करते हैं। पेड़ काटना तो बहुत ही दूर की बात है।
मनुष्य का जीवन प्रकृति पर निर्भर करता है। अत: उसके अस्तित्व के लिए प्रकृति का परिवेश अनिवार्य है। मिथिला में कई पर्व-त्योहार ऐसे हैं, जिसमें पेड़ों की पूजा की जाती है और उसके संरक्षण के लिए कई कार्यक्रम किए जाते हैं।
जूड़ शीतल : इस त्योहार के अवसर पर वृक्ष की जड़ में पानी डालकर उसे सिंचित किया जाता है और लोग गीत-नाद गाते हैं। साथ ही अपने शरीर पर मिट्टी का लेप लगाते हैं, जिसे आजकल शहरों में 'मड थेरेपी' के नाम से जाना जाता है।
बटवृक्ष की पूजा : मिथिलांचल की महिलाएं बटवृक्ष की पूजा करती हैं। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन व्रत रखकर बटवृक्ष के नीचे सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करने से पति की आयु लंबी होती है और संतान-सुख प्राप्त होता है।
मान्यता है कि इसी दिन सावित्री ने यमराज के फंदे से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। इस दौरान सत्यवान का मृत शरीर बटवृक्ष के नीचे पड़ा था और सावित्री ने रक्षा की जिम्मेवारी इसी बटवृक्ष को दी थी। इसीलिए बटवृक्ष की पूजा की जाती है।
मिथिला में पीपल के पेड़ की पूजा की जाती है। पीपल के पेड़ की पूजा का वैज्ञानिक आधार भी है। पीपल हमेशा ऑक्सीजन छोड़ता है जो मानव जाति के कल्याण के लिए जरूरी है। पीपल की पूजा के लिए विशेष गीत भी है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में स्वयं कहते हैं- मैं पेड़ों में पीपल हूं।
मिथिला का कोई भी घर ऐसा नहीं होगा, जहां तुलसी का पौधा न हो। तुलसी भी दिन-रात ऑक्सीजन ही देती है। साथ ही तुलसी औषधीय पौधा है। कई दवाओं में तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है। मिथिला में तुलसी पूजन एवं सेवन दैनिक क्रिया का हिस्सा है।
मिथिला के लोग इतने धर्मिक होते है कि पेड़-पौधों को काटने की क्रिया को भी पाप-पुण्य से जोड़कर देखते हैं। तुलसी में नित्य पानी डालना एक धार्मिक क्रिया बन गया है। तुलसी पूजन के दौरान मिहिलाएं गीत गाती हैं। प्रत्येक शाम तुलसी के समक्ष दीप जलाकर संध्या वंदन की परंपरा है।