5 लाख खर्च करने पर भी नहीं मिली मदद, ऐसे लिख दी 3 हजार पन्ने की रामचरितमानस
इसका वजन 150 किलोग्राम है। शरद रामचरितमानस को अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर को भेंट करना चाहते हैं। करीब 48 साल की उम्र के शरद माथुर आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं।
जयपुर: जयपुर के रहने वाले कलाकार शरद माथुर ने 3000 पेज की हस्तलिखित रामचरितमानस लिखी है। इसे 21 खंडों में तैयार किया गया है। मानस लिखने के लिए माथुर ने ऑइल पेंट और ब्रश का इस्तेमाल किया।
इसका वजन 150 किलोग्राम है। शरद रामचरितमानस को अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर को भेंट करना चाहते हैं। करीब 48 साल की उम्र के शरद माथुर आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं।
सुंदरकांड का पाठ करते है और बच्चों को संगीत सिखाते हैं। सुंदरकांड की आरती और बच्चों से मिलने वाली फीस से गुजारा होता है और कुछ मकान के किराए की आय होती है।
पांच लाख रुपये खर्च करने पर भी नहीं मिली मदद
रामचरितमानस तैयार करने में उन्होंने करीब पांच लाख रुपये खर्च कर दिए, लेकिन भगवान राम के इस काम को पूरा करने के लिए उन्होंने किसी से कोई आर्थिक सहयोग नहीं लिया।
शरद बताते है कि दिक्कतें तो आईं, लेकिन भगवान की कृपा कुछ ऐसी रही कि काम कभी रुका नहीं। व्यवस्था बैठती रही और आखिर यह यज्ञ पूरा हो गया।
शरद बताते हैं, ‘‘मानस को 2013 में लिखना शुरू किया था। सबसे पहले बड़े-बड़े अक्षरों में सुंदर काण्ड लिखा। क्योंकि कई लोगों को छोटे-छोटे अक्षरों में लिखा हुआ पढ़ने में दिक्कत होती है।
मैंने रोज दो पेज औसतन लिखा। इसमें मुझे करीब 3 से 5 घंटे तक लग जाते थे। यह सिलसिला 6 साल तक चलता रहा। मेरी इच्छा है कि जब राम मंदिर बने तो वहां हाथ से लिखी हुई रामचरितमानस रखी हो।’’
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सारे पेज लेमिनेट कराए
संगीत की शिक्षा देने वाले शरद बताते हैं, ‘‘मानस के 100 से 200 पेज पहले नष्ट हो चुके थे, इसलिए सारे पेज लेमिनेट कराए। संगीत की शिक्षा देने से जो कमाई होती है, उससे घर का गुजारा चलता है। समाज से किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं मिलती। नैतिक बल जरूर मिलता है। मुझे इसी की जरूरत ज्यादा थी।’’
इस तरह लिखी रामचरितमानस
उन्होंने बताया कि सुंदरकांड का पाठ करते हुए ही कई बार यह लगता था कि अक्षर कुछ बड़े होने चाहिए, ताकि जिनकी नजर कमजोर है, वो भी इसे आसानी से पढ़ सकें। बस इतने से विचार के साथ सुंदरकांड लिखना शुरू किया।
सुंदरकांड पूरा हो गया तो आत्मविश्वास बढ़ गया और फिर एक-एक कर रामचरितमानस के सभी कांड लिख डाले। लाल रंग के ऑयल पेंट और ब्रश की मदद से एक से सवा इंच आकार के अक्षरों में इसे लिखा है।
वो बताते हैं कि एक पेज लिखने में करीब तीन से चार घंटे का समय लगता था। बाकी समय अपने काम को देता था। परिवार में मां, पत्नी पूनम और दो बच्चे शुभम व साहिल हैं। उनका भी पूरा सहयोग मिला।
मैं लिखता था और पत्नी व बच्चे इसका बाॅर्डर बनाने और लैमिनेशन का काम करते थे।
रामचरितमान के बाद अब उनका आत्मविश्वास इतना बढ़ गया है कि उन्होंने इसी तरह गीता का लेखन शुरू कर दिया है। इसके दो पेज लिख भी दिए हैं। वो गीता के सभी श्लोक और इनका हिंदी अर्थ लिख रहे हैं।
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इन परेशानियों का करना पड़ा था सामना
शरद ने बताया कि चूंकि आकार बड़ा था, इसलिए इसकी जिल्दसाजी कराना मुश्किल हो गया। हर कांड की अलग जल्दसाजी होनी थी। जिल्दसाजी के लिए मैंने लकड़ी की पतली प्लाई तैयार कराई। करीब 170 मीटर कपड़ा तैयार कराया।
इस पर भगवान राम का चित्र और पूरा डिजाइन छपवाया। लेकिन इसकी जिल्दसाजी करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। मैंने जयपुर में छोटे-बडे सभी बाइंडरों से संपर्क किया, लेकिन मेहनत का काम था, इसलिए किसी ने हामी नहीं भरी, जबकि मैं इसके दोगुने पैसे देने को भी तैयार था।
इसी बीच, किसी ने सांगानेर में ही रहने वाले मुबारक अली का नाम बताया। मैंने संपर्क किया, उन्हें काम बताया तो पहले तो उन्होंने मना कर दिया, बोले कि समय नहीं है। मैं वापस आ गया, करीब दो घंटे बाद उन्हीं का फोन आया और काम के लिए तैयार हो गए।
जिस काम के लिए मैं हजार रुपये तक देने को तैयार था, उन्होंने और उनके साथी सुनील कुमावत ने सिर्फ साढ़े तीन सौ रुपये में कर दिया।
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