बहुत ही भयानक! तीन हजार लोगों की सामूहिक कब्रगाह लखनऊ में

Ajab Gajab: लखनऊ (Lucknow) में एक ऐसी जगह है जहां एक-दो नहीं तीन हजार लोगों की एक साथ घायल होने, भूख, प्यास और आग में जलने से मौत हुई थी। वहां कंकालों के ढेर के सिवाय कुछ नहीं था।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Update:2022-06-15 16:56 IST

अभिशप्त आत्माओं की कहानियां: Photo - Social Media

Ajab Gajab: आपने भुतही कहानियां तो बहुत सुनी होंगी। अभिशप्त आत्माओं की कहानियां (tales of cursed souls) भी पढ़ने में आती रहती हैं। लेकिन आज मैं आपको एक सच्ची घटना बताने जा रहा हूं। लखनऊ (Lucknow) में एक ऐसी जगह है जहां एक दो नहीं तीन हजार लोगों की एक साथ घायल होने, भूख, प्यास और आग में जलने से मौत हुई थी। और 86 दिन बाद यानी लगभग तीन महीने बाद जब लोग वहां पहुंचे तो लाशों के ढेर के सिवाय कुछ नहीं था, इसमें महिलाएं, बच्चे, सैनिक और अंग्रेज अफसर भी शामिल थे।

इस भयानक घटना के बाद भयभीत लोगों ने उस तरफ जाना बंद कर दिया। जो जाता था चिल्लाता हुआ भागता था। समय गुजरने के साथ मशहूर हो गया इस स्थान पर जिन्नों की बस्ती है। आज भी रात के वक्त इस स्थान पर किसी को रुकने की इजाजत नहीं है। आज ये स्थान ऐतिहासिक (Historic Site) रूप से दर्शनीय स्थल है लेकिन अंधेरा होते ही यहां तैनात गार्ड इस पूरे क्षेत्र को खाली करा देते हैं। यहां करीब आठ सौ कब्रें भी हैं जो वातावरण को भयावह बनाती हैं। यहां के खंडहर आज भी बोलते प्रतीत होते हैं।

रेजीडेंसी लखनऊ: Photo - Social Media

हम आप को ले चलते हैं अनसुने इतिहास के पन्नों की ओर-

लखनऊ में 30 जून 1857 से सैनिक विद्रोह (Military Revolt from 1857) का आरंभ हो गया और लखनऊ के साथ ही अवध के दूसरे इलाकों में भी इसकी शुरुआत होने लगी। चिनहट में विद्रोही सैनिकों से मिली शिकस्त के बाद अंग्रेज सैनिकों और उनके परिवार के लोगों ने रेजीडेंसी (residency) में शरण ली थी। कई दूसरे क्षेत्रों के अंग्रेज भी यहां आकर छिप गए थे, लेकिन विद्रोही सैनिकों ने वहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ा और बड़ी संख्या में वहां पहुंचकर उसे रेजीडेंसी को घेर लिया और जमकर गोलीबारी की।

एक और दो जुलाई को जमकर हमले हुए। रेजीडेंसी करीब 86 दिनों तक क्रांतिकारियों की घेरेबंदी में रही। विद्रोही सैनिकों के हमलों में अवध के चीफ कमिश्नर हेनरी लॉरेन्स (Chief Commissioner of Oudh Henry Lawrence) की मौत हो गई।

रेजीडेंसी लखनऊ: Photo - Social Media

2994 लोगों की मौत एक साथ 

राजकीय अभिलेखागार के अभिलेखों के अनुसार, '30 जून 1857 को चिनहट की हार के एक दिन बाद अंग्रेजों ने प्राणरक्षा हेतु रेजीडेंसी में शरण ली। इनमें 130 अफसर, 700 देशी सिपाही, 150 गैर सैनिक, 237 महिलाएं, 260 बच्चे, 50 स्कूली छात्र, 727 यूरोपियन एवं देशी असैनिक, इस प्रकार कुल मिलाकर 2994 लोग थे।

क्रांतिकारियों ने रेजीडेंसी को घेर लिया था। क्रांतिकारियों द्वारा की गई गोलीबारी में हेनरी लॉरेन्स मारा गया। 30 जून से 25 सितंबर तक 86 दिन घेराबंदी चलती रही। 25 सितंबर को हैवलॉक और आउटरम रेजीडेंसी तक पहुंचे परंतु अन्तत: सर कॉलिन कैम्पबेल ने 25 नवंबर 1857 को रेजीडेंसी में घिरे अंग्रेजों को मुक्त कराया।' जब रेजीडेंसी को मुक्त कराया गया तो हालात अत्यंत भयानक थे। वहां कंकालों के ढेर के सिवाय कुछ नहीं था।

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