Air Force Day: शौर्य का पर्याय भारतीय वायुसेना

Air Force Day: भारतीय वायु सेना के शौर्य़ पर हम भारतीय नागरिक जितना चाहें गर्व कर सकते हैं। देश 8 अक्टूबर को वायुसेना दिवस के रूप में मनाता है। जिस दिन सन 1932 में भारतीय वायुसेना की स्थापना हुई थी। तब तो अंग्रेजी हुकूमत के दिनों में इसे रायल इंडियन एयफोर्स कहा जाता था।

Written By :  RK Sinha
Update:2023-10-08 09:08 IST

वायुसेना दिवस: शौर्य का पर्याय भारतीय वायुसेना: Photo- Social Media

Air Force Day: भारतीय वायु सेना के शौर्य़ पर हम भारतीय नागरिक जितना चाहें गर्व कर सकते हैं। देश 8 अक्टूबर को वायुसेना दिवस के रूप में मनाता है। जिस दिन सन 1932 में भारतीय वायुसेना की स्थापना हुई थी। तब तो अंग्रेजी हुकूमत के दिनों में इसे रायल इंडियन एयफोर्स कहा जाता था। भारतीय वायु सेना के कार्यों और देश की मजबूत सुरक्षा के लिए वायु सेना के योगदान को हमेशा याद रखा ही जाना चाहिए। भारतीय वायुसेना की शक्ति सारे देश और देशवासियों को आश्वस्त करती रहती है। जब भी दुश्मन ने भारत पर हमला किया तो वायुसेना ने सेना के बाकी अंगों के साथ मिलकर शत्रु की गर्दन में ऐसा अंगूठा डाला है जिससे उसकी जान निकल गई है ।

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भारतीय वायु सेना का गौरवमयी इतिहास

भारतीय वायु सेना के गौरवमयी इतिहास से सारा देश परिचित है। अगर बात 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से शुरू करें तो फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों की याद आना स्वाभाविक है। वे उस वक्त राजधानी के रेस कोर्स स्थित एयर फोर्स स्टेशन में ही रहते थे, जब 1971 की जंग छिड़ी थी। वे भारत की जंग में विजय के नायकों में से थे। उस जंग के लिए 14 दिसम्बर 1971 का दिन खास था। उस दिन फ्लाइंग ऑफिसर सेखों ने पाकिस्तान के दो लड़ाकू सेबर जेट विमानों को ध्वस्त कर दिया था। उन्हें उस जंग में अदम्य साहस के लिए मरणोप्रांत परमवीर चक्र से नवाजा गया था।

फ्लाइंग अफसर निर्मलजीत सिंह सेखों का जन्म पंजाब के लुधियाना जिले में 1946 में हुआ था। 1967 में बतौर पायलट वायुसेना में शामिल हुए। 1971 में पाकिस्तानी वायु सेना ने जब श्रीनगर हवाई अड्डे पर हमला किया तब सेखों ने एक जेट से चार पाकिस्तानी सेबर जेट का मुकाबला कर दो को नेस्तानाबूद कर भारत की जीत सुनिश्चित कर दी थी। उसी दौरान मात्र 26 वर्ष की उम्र में वीरगति को प्राप्त हुए। जिन्होंने अपनी शादी का जश्न‍ मनाने के लिए मैदान-ए-जंग को चुना।

भारतीय वायु सेना और 1971 की जंग

यदि भारत ने 1971 की जंग में पाकिस्तान की कमर तोड़ डाली थी, तो इसका कहीं न कहीं श्रेय एयर चीफ मार्शल इदरीस हसन लतीफ को भी जाता है। वे 1971 के युद्ध के दौरान एयर वाइस मार्शल के पद पर थे। वे जंग के समय शत्रु से लोहा लेने की रणनीति बनाने के अहम कार्य को अंजाम दे रहे थे। लतीफ लड़ाकू विमानों के उड़ान भरने, युद्ध की प्रगति तथा यूनिटों की आवश्यकताओं पर भी नजर रख रहे थे। लतीफ शिलांग स्थित पूर्वी सेक्टर में थे जब पाकिस्तान ने हथियार डाले थे। दिल्ली कैंट में उस महान योद्धा के नाम पर एक सड़क भी है

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एयर चीफ मार्शल इदरीस हसन लतीफ का देश के पहले गणतंत्र दिवस से एक अलग और खास संबंध रहा। दरअसल उन्हीं के नेतृत्व में उस गणतंत्र दिवस पर फ्लाईपास्ट हुआ था जिसे देखकर देश मंत्रमुग्ध हो गया था। देश ने पहले कभी लड़ाकू विमानों को अपने सामने कलाबाजियां खाते नहीं देखा था। लतीफ तब स्क्कवाड्रन लीडर थे। वे और उनके साथ हॉक्स टैम्पेस्ट लड़ाकू विमान उड़ा रहे थे। तब लड़ाकू विमानों ने वायुसेना के अंबाला स्टेशन से उड़ान भरी थी। लतीफ ने 1948 और 1965 की जंगों में भी सक्रिय रूप से भाग लिया था। लतीफ के एयर फोर्स चीफ के पद पर रहते हुए वायु सेना का बड़े स्तर पर आधुनिकीकरण हुआ। उन्होंने जगुआर लड़ाकू विमान की खरीद करने के लिए सरकार को मनाया था।

वायुसेना दिवस

वायुसेना दिवस के अवसर पर भारतीय वायुसेना के पहले एयर चीफ मार्शल सुब्रतो मुखर्जी का स्मरण करना भी आवश्यक है। उनको फादर ऑफ द इंडियन एयर फोर्स कहा जाता है। सुब्रतो मुखर्जी के पिता सतीश चंद्र मुखर्जी आईसीएस अफसर थे। सुब्रत मुखर्जी 1932 में वायुसेना में शामिल हुए। उन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान भाग लिया। भारत की आजादी के बाद वे भारतीय वायुसेना के आधुनिकीरण में अहम रोल अदा किया। वे एक जाबांज पायलट थे। एयर चीफ मार्शल सुब्रतो मुखर्जी का 8 नवंबर 1960 को टोक्यो में खाना खाते समय निधन हो गया था। उनके शव को दिल्ली लाया गया और पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। उसके बाद ही उनके नाम पर आज का सुब्रतो पार्क बना। यहां पर एयऱफोर्स से जुड़े विभिन्न स्कूल, दफ्तर और आवास हैं। उनके जीवनकाल में ही राजधानी में एयरफोर्स स्कूल 1955 में खुल गया था। इसका उदघाटन भी एयर चीफ मार्शल सुब्रत मुखर्जी ने ही किया था। इस स्कूल को खोलने का मकसद यह था ताकि एयर फोर्स से जुड़े लोगों के बच्चों को उच्चस्तरीय शिक्षा उनके घरों के पास ही मिल जाए।

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इस तरह, भारतीय वायुसेना के लिए 23 अकबर रोड का भी अत्यंत खास स्थान है। भारतीय वायुसेना के एयर चीफ मार्शल राजधानी के 23 अकबर रोड के बंगले में रहते हैं। देश की स्वंतत्रता से पहले ही 23 अकबर रोड को वायुसेना प्रमुख का आवास बना दिया गया था। इसमें अंतिम रायल इंडियन एयर फोर्स के एयर वाइस मार्शल मेरिडिथ थामस भी रहे थे। 23 अकबर रोड को एयऱ फोर्स हाउस भी कहते हैं। इस लुटियन बंगले में सन 1947 के बाद अर्जन सिंह, सुब्रतो मुखर्जी, इदरीस हसन लतीफ, पीसी लाल, एनएके ब्राउन जैसे वायुसेना के प्रमुखों का निवास स्थान रहा । अर्जन सिंह बताते थे कि वे एयरफोर्स हाउस में पहली मर्तबा जनवरी,1945 को गए थे। वे दूसरे विश्व युद्ध से लौटे थे। वे तब इस बंगले में एयर वाइस मार्शल मेरिडिथ थामस से मुलाकात करने के लिए गए थे। अर्जन सिंह इसमें 1964 से 1969 तक रहे। वे इस दौरान भारतीय वायुसेना के प्रमुख थे।

एयरफोर्स हाउस

एयरफोर्स हाउस में वायुसेना प्रमुख हर साल 8 अक्तबर को वायु सेना दिवस पर एक कार्यक्रम आयोजित होता है। जिसमें देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री वगैरह भाग लेते हैं। एयर हाउस में ही रहने का सौभाग्य 1971 की जंग के एक नायक एयर चीफ मार्शल पीसी लाल को भी मिला। दूसरे विश्वयुद्ध से लेकर 1971 की जंग को पीसी लाल ने देखा था। वर्ष 1969 में वायुसेना प्रमुख का दायित्व संभालने के बाद उन्होंने वायुसेना को भविष्य के युद्ध के लिए तैयार करने पर ध्यान लगाया औऱ इसका फायदा 1971 के युद्ध में मिला। उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया। कारगिल युद्ध और अनेक कठिन अवसरों पर भारतीय वायुसेना ने उल्लेखनीय कार्य करके देशवासियों का दिल जीता है। वायु सेना दिवस पर देश के जाँबाज वायु सैनिकों को सलाम !

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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