आलोक शर्मा की 66 कविताएं
बंट गये जगत में बन्धु किन्तु, न बंटा रक्त का सार कभी! अलग हुआ चौका चूल्हा, ना पृथक हुआ है प्यार कभी!
पारिवारिक बंटवारा एक अनुग्रह
बंट गये जगत में बन्धु किन्तु, न बंटा रक्त का सार कभी!
अलग हुआ चौका चूल्हा, ना पृथक हुआ है प्यार कभी!
भौतिक पदार्थ तो बंट जाते हैं, घर आंगन खिड़की चादर,
पर ध्यान रहे, ना बंटने पाये, बचपन का संसार कभी!
वह "पुनीत" बंटवारा है, जो बांट ले एक एक दानों को
सम्पत्ति का "बंटवारा" हो, बिनु चोट लगे सम्मानों को!
धन के मद में, "बन्द आंख" से, ध्यान रहे रहे गलती ना हो!
मां के समक्ष, कही बांट न देना, पापा के अरमानों को!
बीबी बच्चे "अलग" थे पहले, केवल सोच बांटनी है!
एक वृक्ष की जुड़ी डालियां, मिलकर हमें काटनी हैं!
बस इतना ही "अन्तर" होता, घर में चले दिवारों से!
एक अमावस में सोता, औ एक की रात चांदनी है!
अब कहो दीपिका देश सुने
ऐसा कुछ भी नहीं देश में, गलत कोई परिवेश चुने!
जैसी जिसकी इच्छा हो, वह भोजन भ्रमण और भेष चुने!
कम कपड़ों में विश्व घूमकर, देश द्रोह तक उतर गयी!
और "आजादी" कितनी चाहिए, कहो दीपिका देश सुने!
चंद-चवन्नी "शोहरत" में, तू भूल गयी अपनेपन को!
आजादी की "परिभाषा, कल से दोगी दंगेपन को!
टुकड़ा "टुकड़ा गैंग" ख्याति, तुझको चाहे जितना दे-दे!
धिक्कार रहा है देश तेरे, गन्दे अभिनय नंगेपन को!
वेलेंटाइन नहीं मधुमास
मैं 'रोज' नहीं दे सकता प्रिय, निशिदिन खिलता मुरझाता है!
"प्रपोज" भी क्या तुझको करना, जहां प्यार स्वयं लुट जाता है!
"चॉकलेट डे" एक दिवस, गोरे कंजूस मनाते हैं!
हम तो दिल से हैं अमीर, बच्चों को रोज खिलाते हैं!
'टेडी बीयर' इक पुतला है प्रिय, जिसमें जान नहीं होता!
और चन्द पलों के 'हगडे' से कोई प्यार जवान नहीं होता!
हर साल नए को किस करना, हर बार न प्रॉमिस आता है!
भारत का, बस इक चुम्बन, सातों जन्मों का नाता है!
जो "राधा-कृष्ण" उपासक हैं, वो अमर-प्रेम को गाते हैं!
हम "वेलेंटाइन" नहीं "प्रिये", हर-दिन मधुमास मनाते हैं!
कउन रोग ई आइल काका
कउन रोग ई आइल काका,
सब कुछ छूटि गइल!
इक्को लोटा दिखे भोर ना,
दिखे सड़क के टहरल,
ना जालिन वैद्या घर भउजी,
ना सुनलीं हम कंहरल!
मास बितल बोतल टॉनिक,
ना इक्को घुटि गइल,
कउन रोग ई आइल काका,
सब कुछ छूटि गइल!
सुनलीं बड़का शहर के सगरी,
बन्द पार्क अउ माल,
होटल क्लब आ ढाबा वाला,
मुर्गा टंगरी, दाल,
चउमिन, पिज्जा बरगर वाली
पंगति टूटि गइल,
कउन रोग ई आइल काका,
सब कुछ छूटि गइल!
ना कहि चोरी ना सीनाजोरी
ना केहु आज बा दादा,
एक छींक में डरे ई दुनिया,
राजा रंक से ज्यादा!
एक बुराई सौ अइबन के,
आइल लूटि गइल,
कउन रोग ई आइल काका,
सब कुछ छूटि गइल!
का मितवा! अब्बो ना मनबे
कलिहें खइले रोल पुलिस के,
आजु सुबहियें चाटा,
का मितवा! अब्बो ना मनबे,
करबे सैर सपाटा!
रोज भिनहिये से संझा तक,
कहां ते जाले घर से,
जन-जन जहां लुकाइल बाटे,
काल कहर के डर से!
ई मनमानी फेरि दी पानी,
कइसे भरबे घाटा,
का मितवा! अब्बो ना मनबे,
करबे सैर सपाटा!
कब्बो बान्हि सिलिंडर पीछे,
कब्बो दवा के पुर्जी,
झूठे ते भरमावत बाड़े,
हाथ में लेके सब्जी!
जान बचइबे तब्बे खइबे,
लउकी, कटहर, भांटा,
का मितवा! अब्बो ना मनबे,
करबे सैर सपाटा!
ग्यानी दुनिया ग्यान के मद में,
कइलस काल के खोज,
भूलि गइल जग नियम धरम,
आ कइसन होला भोज!
खाये लगलें सांप, छछुंनर,
गादुल, चुइटी, मांटा,
का मितवा! अब्बो ना मनबे,
करबे सैर सपाटा!
घास के रोटी राणा खइलें,
खाले नून आ चावल,
लेकिन भयवा निम्मन नइखे,
कुकुरे नियर धावल,
देख जगत में मउत कइसन,
पसरल बा सन्नाटा,
का मितवा! अब्बो ना मनबे,
करबे सैर सपाटा!
फ़ेसबुकिया बालम एक हास्य
सखीं बालम प्यार के शूल भए,
फ़ेसबुकिया मद में झूल गए,
दस लाइक और कमेंट्स मिला,
सीना ताने और फूल गए!
बोला मुझसे देखो रानी,
FB पर साख़ हमारी है!
मित्रों से बोला मरती है,
जो लड़की अभी कुवांरी है!
हर वक्त हाथ में फोन लिए,
पत्नी बच्चों को भूल गए,
दस लाइक और कमेंट्स मिला,
सीना ताने, और फूल गए!
मैं कैसे कहूं सुनो बालम
जामुन सा रंग तुम्हारा है!
तेरे चटक रंग के दांतों से
सरसों का फूल भी हारा है!
मेरे पापा की थी, वह गलती,
जो आये तुम्हें क़बूल गए,
दस लाइक और कमेंट्स मिला
सीना ताने, और फूल गए!
मैं हुस्न परी फंस गयी जाल में,
क्या क्या तुझे बताऊं मैं!
कैसे कट रहे हैं दिन मेरे,
यह किसको व्यथा सुनाऊं मैं!
सौंदर्य के मेरे मधुवन में,
तुम कांटों भरे बबूल भए!
दस लाइक और कमेंट्स मिला,
सीना ताने, और फूल गए!
तुम बनो नहीं अब धर्मेंदर,
कहना यह बहुत जरूरी है!
सुंदर लिखना बन्दर मुख को,
यह FB की मजबूरी है!
फ़ेसबुकिया रिश्तों के चक्कर में,
कितने रिश्ते मूल गये,
दस लाइक और कमेंट्स मिला,
सीना ताने, और फूल गए!
कहां गइलीं बाबूजी?
(पितृपक्ष में पिताजी को समर्पित)
अंखियन से बहे लोर,
केतना छुपाईं,
कहां गइलीं बाबूजी हम,
कइसे भुलाईं!
रउआं आसीस से मोर,
जनमे जवानी,
हईं कलमकार मोर,
लिखलीं कहानी!
बाप कथानक बेटा,
कामा, बिंदु, पाई,
कहां गइलीं बाबूजी हम,
कइसे भुलाईं!
नान्हें से देखले रहलीं
राति राति आवल
काम-धाम, खेती-बारी
नून-तेल, धावल!
जिम्मा पहाड़ अइसन,
हरपल उठाईं,
कहां गइलीं बाबूजी हम,
कइसे भुलाईं!
दीदी के बिआह रहे,
हमनी के पढ़ाई,
जऱ, जोरू अउरी,
जमीन के लड़ाई!
उलझन हजार रउआ,
झट सुलझाईं,
कहां गइलीं बाबूजी हम,
कइसे भुलाईं!
ऊपर भगवान नीचे,
बाप बनि अइलीं,
रउआ से बड़ कवनो,
त्यागी नाहीं पवलीं!
सृष्टि के मूल फिरू,
धरती पे आईं,
कहां गइलीं बाबूजी हम,
कइसे भुलाईं!
काम नाहीं डिग्री पवलीं
मन भरि पढ़वलें बाबूजी,
खेत बारी बेचि के
काम नाहीं डिग्री पवलीं,
राखब सहेजि के!
डिग्री में छूपल बाटे,
घर के मजबूरी,
माई के भूख प्यास,
दादा के मजूरी!
दुख के हिसाब हे-ई,
सुख चैन तेजिके,
काम नाहीं डिग्री पवलीं,
राखब सहेजि के!
येही में एक से बा,
इंटर के पढ़ाई,
बीटेक में दादा कहलें
गोयड़ा बिकाई!
लेकिन बयाना लेबें,
शहर पढ़े भेजिके,
काम नाहीं डिग्री पवलीं,
राखब सहेजि के!
दादा सोचलें पढ़त बा,
मोर नाती कमाई,
दादी के कथा,
हमके भागवत सुनाई!
करब बिआह येकर,
बिनु हम दहेज के,
काम नाहीं डिग्री पवलीं,
राखब साहेजि के!
सिविल सर्विस नाहीं इच्छा,
रहल रोजगार के,
काम चल माई दादा,
घर परिवार के!
कइसे पढ़ाईब बेटा,
कवन खेत बेचिके,
काम नाहीं डिग्री पवलीं,
राखब सहेजि के!
कवनो सरकार होई,
इहे बा कहानी,
पढ़ल लिखल बूढ़ भइलें,
घूस में जवानी!
साठ साल सपना देखिहें,
ऑफिस कुर्सी मेज के,
काम नाहीं डिग्री पवलीं,
राखब सहेज़ि के!
शुभप्रभात
सुबह ऐसे जगो कि, सूर्य को
आभास हो जाये,
कड़कती दोपहर संग शाम, भी
कुछ खास हो जाये!
थकोना गोधूलि में तुम, बढ़ो तम
चीरकर ऐसे,
अमावस भी रहे तो चांद, तेरे
पास हो जाये
अगर जग में बड़ी मंजिल, कोई
इंसान है पाता,
न समझो वह बड़ा होकर ही मां
के गर्भ में आता!
बड़ी होती है उसकी सोच, ऊंचे
हौसले दिल में,
बढ़ाकर पग सही अपना, वही
एवरेस्ट चढ़ जाता!
कपल चैलेंज अकेलुआ मरद
आइल बाई कपल चैलेंज,
फोटो एगो चाहीं,
तलाक बाटे कोर्ट में,
हम कवन मुंह देखाईं
भइल जब बिआह तई,
रहे नाहीं खेलि हो,
नाहीं ते मेहरी संघे,
कईले रहती मेल हो!
बाति-बाति में बिगड़ल नाहीं,
रहत मोर सगाई,
तलाक बाटे कोर्ट में,
हम कवन मुंह देखाईं!
जनिहें का माई भउजी,
हमरा दरद के,
सभा में सिंगार होले,
मेहरी मरद के!
सबका में टुन-फुन होला,
देला सब सुलझाई,
तलाक बाटे कोर्ट में,
हम कवन मुंह देखाईं!
जेतना संघाती बाने,
एको ना समझवलें,
अलग-अलग मेहरी के,
हमके चढ़वलें!
आजु उहे अपने जोड़ी संग,
लिहलें रास रचाई,
तलाक बाटे कोर्ट में,
हम कवन मुंह देखाईं!
येहि फोन से कानाफूसी,
येही से झगड़ा भईल,
कोर्ट कचहरी छुट्टी छुट्टा,
मेहरी मोर नइहर गईल!
आजु इहे चैलेंज देखा के,
दिहलस खूब रोआई,
तलाक बाटे कोर्ट में,
हम कवन मुंह देखाईं!
मरद अउरी मेहरी के,
जिनगी ह एक हो,
छोट-मोट कहासुनी,
होइहें अनेक हो!
एमे जोते तीसरा आइल,
होई... जग हंसाई...
तलाक बाटे कोर्ट में,
हम कवन मुंह देखाईं!
इहे फोन मिलावे इकदिन,
इहे फोन लड़ावे,
आजु इहे जोड़ी देखलाक़े,
जियरा के ललचावे,
पहिले आगि लगाके फिरू,
ई पानी लेके धाई...
तलाक बाटे कोर्ट में
हम कवन मुंह देखाईं!
मुझे छोड़ जाना
आज-आ, तुझे प्यार कर लूं,
कल भले, मुझे छोड़ जाना!
है सुबह जाना तुम्हें तो,
भोर पर अधिकार तेरा
आ-वो क्षण हम याद करलें,
जब हुआ था प्यार मेरा!
एक कल दो दिल जुड़े जिन्हें,
कल तुम्हें है तोड़ जाना!
आज-आ, तुझे प्यार कर लूं,
कल भले, मुझे छोड़ जाना!
आंख ने देखे नयन,
मुख पंकजों ने मुस्कुराया,
चाहतों ने दी निमंत्रण,
मैं तुम्हारे पास आया!
बढ़ गए चारो कदम,
वो अंक में बेजोड़ आना!
आज-आ, तुझे प्यार कर लूं,
कल भले, मुझे छोड़ जाना!
चिट्ठियों का जमाना
चिट्ठियां चलती थी जब,
पोस्ट मैन का इंतजार था!
हर-इक महबूब का,
अपना कोई दिलदार था!!
खो गया वह डाकिया,
उन चिट्ठियों के प्यार का!
ऐसा समय अब आ चुका है,
फेसबुक बाज़ार का!!
मेरे प्रिय-तम मेरे हम-दम,
मेरे बबु-आ मेरे दादा,
बहुत ब्याकुल मेरा मन है,
शहर से गांव तूं आ-जा!!
खो गये ये शब्द, वो ख़त,
पता सहित मेरे यार का!
ऐसा समय अब आ चुका है,
फेसबुक बाजार का!!
कुछऊ नइखे
धरम पंथ उ जाति नइखे,
घोर घनेरी राति नइखे!
मानव जिये मानव खातिर,
अइसन कवनो बाति नइखे!!
घरे रामायण गीता नइखे,
चोटी, गजरा, फीता नइखे!
राम कहीं ना बंचले जग में,
यही कारन केहु सीता नइखे!!
सालिक ग्राम उ देवता नइखे,
हरदी वाला नेवता नइखे!
खउलत दूध उतारे दुलहिन,
चउका में उ सेवता नइखे!!
एक जगह परिवार नइखे,
बड़का घर दुआर नइखे!
लेन-देन में बाति न बिगड़े,
अइसन कहीं उधार नइखे!!
बाबा के उ खादी नइखे
घर में बुढ़िया दादी नइखे
जवन सवाद बानर न जाने,
सब्जी में उ आदी नइखे!
मुनुओ के घर गांती नइखे,
मंगरु अइसन नाती नइखे!
घूमि-घूमि तेतरी बचवाये,
प्रियतम के उ पाती नइखे!!
सासु से कवनो डर नइखे,
बिना दहेज के वर नइखे!
भसुर जहां न गारी सूने,
अइसन कवनो घर नइखे!!
कालानमक का चाउर नइखे,
कवनो गीति अब बाउर नइखे!
जायीं रहीं अनाथालय में,
रउरे घर अब राउर नइखे!!
हर जुआठा फार नइखे,
पहिले नियर कुदार नइखे!
चूल्हा खातिर चइला फारे,
टांगी में उ धार नइखे!!
टटिहर घर में टाटी नइखे,
कोरो, छप्पर बाती नइखे!
दुअरा पर गोहरा, भउरी,
उ भंटा चोखा बाटी नइखे!!
घर में पतुकी नदिया नइखे
डोकिया कठवत मचिया नइखे
दादा सूति दवाई मांगे,
दुअरा अइसन खटिया नइखे!!
ढिलही ककही जुआं नइखे
ढील हेरे बदे, फुआ नइखे!
रसरी गगरा झम-झम बाजे,
गांव में कवनो कुआं नइखे!!
पुलवामा के दो साल नमन
हुए शहीद, लाल भारत के मातृ कोख को छला गया,
एक कमीना घुसकर घर में, रक्षाबंधन जला गया!
जब मना रहे थे 'वैलेंटाइन', सारे जोड़े दुनिया के!
तो चालीस सिंदूर पुलवामा में, भारत से ही चला गया!
गम को पीयें शान से जीयें
सच या झूठे, जो हैं रूठे, आओ मिलें व याद करें,
एक-एक पल हो, चहल-पहल, यह ईश्वर से फरियाद करें!
सीमित सांस, कब बने ग्रास, प्रिय आओ इसे आबाद करें,
कल को किसने देखा है, जो आज को हम बर्बाद करें!!
विनम्र श्रद्धांजलि साहित्य सम्राट नीरज जी को
क्या हुआ इस नूर को,
काव्य कोहिनूर को!
व्यक्तित्व के विराट को,
साहित्य के सम्राट को!
रो रहीं है आँख सबकी, ढूंढ़ रही बाट को,
लूट गया जहां मेरा, क्यों मेरे वो पल गए?
कारवां यही पे है, और तुम निकल गए!
आत्मा हो शांत तेरी, तूं रहे वहां चैन से!
पर धरा पे देख ले, हम सभी बेचैन से!
सूर्य अस्त ज्यों हुआ, चांद भी है सो गया!
स्वप्न सारे मर गये, अरमान सबका खो गया!
सब गीत तेरे गा रहे,
हर शब्द से बुला रहे!
ऐसी क्या ख़ता हुई, जो तुम नहीं हो आ रहे!
ना तनिक यकीन है, जो इस कदर बदल गए,
कारवां यही पे है, और तुम निकल गए!
व्हाट्सएप और फेसबुक ग्रुपों द्वारा सदस्यों को अपील
यदि हंसना है जीवन भर, तो मेरे ग्रुप में आओ तुम,
किसी एडमिन को msg कर, पहले नाम लिखाओ तुम!
फिर बतलाओ कहां से आये? कहां तुम्हारा धाम है?
ससुराल में कितनी साली हैं, औ उनका क्या-क्या नाम है!
हो पत्नी से पीड़ित अगर, उनका भी नाम बताओ तुम,
यदि हंसना है जीवन भर, तो मेरे ग्रुप में आओ तुम!
समूह में जैसे आओगे, कुछ पोस्ट पढ़ाया जायेगा,
पति होता कितना निरीह यह दृश्य दिखाया जायेगा!
आने पर ही जान सकोगे, कैसे? ये पति रहते हैं,
इनका भाग्य बली है या, तुझसे ज्यादा ये सहते हैं!
बस एक बार हिम्मत से प्रिय, सारी व्यथा बताओ तुम,
यदि हंसना है जीवन भर, तो मेरे ग्रुप में आओ तुम!
सच बोलो झाड़ू पोछा संग कपड़ा भी धोया तुमने,
बीबी जब भी गयी मायके, क्या? छुपकर रोया तुमने!
या बीबी के जाने पर, दिन भर हंस कर गाना गाया,
बड़की आंख पड़ोसन के घर, जा-जा कर खाना खाया!
दर्द सभी का एक है प्यारे, कुछ भी नहीं छुपाओ तुम,
यदि हंसना है जीवन भर, तो मेरे ग्रुप में आओ तुम!
यदि "उदार--उन्मुक्त" भाव से, दर्द हमें बतलाओगे,
हर पीड़ा से ''पीड़ित-विज्ञ" और शोधक ही यहां पाओगे!
एक मिनट में बतला देंगे, कैसे तुझको जीना है,
पत्नी को जो "भड़काया", वह साथी कौन कमीना है!
छोड़ो! मन की सारी चिंता, "खुशियाँ" खूब मनाओ तुम,
यदि हंसना है "जीवन भर" तो मेरे ग्रुप में आओ तुम!
अद्भुत आश्चर्य
एतराज इसपर है नहीं, कि कुल हमारा ऊंच है,
रक्त में है "विद्वता" और, हर-जगह मेरी पूछ है!
पर कुछ "मठाधीशों" को देखा, तो मुझे ऐसा लगा,
जिस महल में रह रहे हम, छत ही उसका फूस है!
यह भी सच है! इस धरा पर, भट्ट ही "विद्वान" हैं,
आर्यभट्ट "चाणक्य" औ, गुरु "बाण' की संतान हैं!
पर समझ पाया नहीं कि, विद्वता हुई मौन क्यों?
जो आज! इस वंशज के, सारे रहनुमा नादान हैं!
किसने इनको चुन लिया? कैसे ये कुल नेता बने,
अतीत की "मण्डी" लगा, "वर्तमान" विक्रेता बने!
जब वंशजों ने देखली, "अभिनय" में तेरे स्वार्थ है,
तो जिंदगी की फ़िल्म में, वो खुद के अभिनेता बने!
रणबांकुरों का दर्द क्या है, इसको पहले जान लो,
कुछ नहीं बिगड़ा है अब भी, बात मेरी मान लो!
इक समय था जब अकेले शोर तुमने कर लिया,
यह काल की है गर्जना, अब वक्त को पहचान लो!
बीजेपी सरकार को समर्पित
आओ! बैठ समीक्षा कर ले, फूलपुर की हार से,
उन्नीस में भी नहीं बचोगे, इस गलती की मार से!
यदि इच्छा है पुनः बैठना, मोदी जी सिंघासन पर,
कुछ शख्त फैसले जल्दी ले-लो, दिल्ली के दरबार से!
सच है! जनता "पीड़ा" में थी, "राजनीति" उत्पात से,
थी उम्मीद मोदी से सबको बुलवाया गुजरात से!
लगभग सारे राज्य देश के, "बीजेपी" को थमा दिया,
बन्द नोट और GST को भी, जनता ने पचा लिया!
कड़ा नियम ही दे सकता है, "मुक्ति "भ्रष्टाचार" से!
कुछ शख्त फैसले जल्दी ले-लो, दिल्ली के दरबार से!
पाक के गीदड़ चिढ़ा रहे हैं, हिंदुस्तानी शेरों को!
रोक नहीं पाये क्यूँ? अब-तक, पत्थर बाज छूछेरों को!
हिन्द की ताकत क्या समझेंगें, कुत्ते मीठी बोली से,
पाकिस्तानी धोखे का अब, दो जबाब तुम गोली से!
सेना को बस लिंक करो तुम पापी पाक आधार से,
कुछ शख्त फैसले जल्दी ले-लो, दिल्ली के दरबार से!
इसी तरह सीमा पर हर-दिन, ड्रेगन आंख दिखाता है,
भारत के पैसे से प्रति-दिन, एटम बम बनाता है!
कह दो उससे भारत जिसदिन, अपने पे आ जायेगा,
साम्राज्य तुम्हारा अर्थजगत का बाप-बाप चिल्लाएगा!
तोड़ो नाता इस "चोट्टे" का, भारत के "व्यापार" से,
कुछ शख्त फैसले जल्दी ले-लो, दिल्ली के दरबार से!
निन्यानवे वर्ष पूर्व देश ने, "रौलेट एक्ट" भगाया था,
एससी-एसटी एक्ट उसी के, दूजे रूप में आया था!
सर्वोच्च अदालत ने देखा तो, उसने यह निर्देश दिया,
मिले सजा केवल दोषी को, इतना सुंदर आदेश किया!
ऐसा बिल क्यों लाओगे, जन-न्याय "विरुद्ध विचार से,
कि हत्या हो दो वर्गों की, किसी "वोट-बैंक" तलवार से!
तेरी जगह पे होता कोई, तो मैं ना इसको लिखता,
सत्तर साल बाप ने सह-ली, बेटा भी कुछ दिन सहता!
पर जनता के मन में तूने, दीपक नया जलाया है,
विश्व मंच पर आज हिन्द का, झण्डा भी लहराया है!
झुका हुआ है विश्व, आज तेरी ताकत व व्यवहार से,
समस्त "राष्ट्र की चाहत" है, वो जुड़े "हिन्द बाजार" से!
देश हमारा "द्वितीय बार", किसी "राष्ट्रपूत" को पाया है,
सवा अरब वंशज के संग, अंतर्मन से "हर्षाया" है!
पहली बार किसी "पीएम" ने, परिभाषा दी जीने का,
दुनिया को ताकत दिखला दी, छप्पन इंची सीने का!
CM प्रदेश के जुड़े रहें, बस जनता के सरोकार से,
चौबीस में भी तुम्हीं रहोगे, बिना किसी टकरार के!
स्वरचित भाव
तुम मुझको मिल गए प्रिये, इससे अच्छी क्या बात है,
जैसे मुझको आभास हुआ, कि जीवन मेरे साथ है!
है लाख दुआ! तेरी ईश्वर, सिंदूर सहित मुझे राम मिले,
जैसे राधा की चाहत को, मीरा के घनश्याम मिले!
है शब्द नहीं जो व्यक्त करूं, उर में क्या-क्या जज्बात है,
तुम मुझको मिल गए प्रिये, इससे अच्छी क्या बात है!
अद्भुत सूरज डूब गया
अनमोल "धरोहर" भारत का, कोई आया, आके लूट गया,
इक राजनीति के "धवल-तेज" का अद्भुत सूरज डूब गया!
जब जन्म लिया होगा "अविनाशी" धरती माँ छुई होगी,
तब "देव-लोक' से भी फूलों की, "वर्षा" खूब हुई होगी!
बोल उठा होगा आकाश, नभमण्डल की ताक़त पाकर,
लहराया होगा सागर भी "पैगम्बर" की आहट पाकर,
जाने ऐसी क्या ख़ता हुई, कुछ बोलो ना क्यूं? रूठ गया,
यूं राजनीति के "धवल-तेज" का, अद्भुत सूरज डूब गया!
अटल सत्य बन, आया था जो, राजा बन क्या खूब गया,
इक राजनीति के "धवल-तेज" का अद्भुत सूरज डूब गया!
उसने खुद कह दिया वह शिवाला न था
क्या? घनेरी "क़हर" तूने डाला न था!
जिंदगी में कहीं, जब उजाला न था!
लड़ रहे जाम थे महफ़िलों में तेरे,
मेरी किस्मत का कोई भी प्याला न था!
तेरे कहने पे बोतल उठा ली मगर,
"पी" लिया था "रक़ीबों" ने, हाला न था!
हो के महफ़िल से मायूस घर ज्यों चला,
गिर गया, पर किसी ने सम्भाला न था!
मां थी अब तक जगी, भूख भी थी जवां,
पर रसोई में कोई निवाला न था!
"गर्दिशें" "गुरबतों" से ही लड़ती रहीं,
ऐ खुदा ऐसी रहमत क्या डाला न था!
वक्त तूं ही बता क्या से क्या क्यों हुआ,
ये गजब जिसने की, क्या ग़जाला न था!
पूजता रह गया उम्र भर मैं जिसे,
उसने खुद कह दिया वो शिवाला न था!
चलो प्यार की एक ज्योति जलाएं
बहुत दिन तक भटके अंधेरे में हम सब, नहीं तेल दीपक और बाती बनाए,
सोलह को यूपी में संगम है प्यारे,चलो प्यार की एक ज्योति जलाएं,
समझ में नहीं आजतक आ सका ये, कि कौशल वो प्रज्ञा, वो मेधा कहां है!
गणितशास्त्र, ज्योतिष के ज्ञानी हमारे, जो गोरी को मारा वो योद्धा कहां है?
हम वेदों के ज्ञानी, और कवियों के वंशज, कलम छोड़कर सब कहा खो गए हैं?
युवा दिग्भ्रमित और अग्रज भी चुप है, अंधेरे में हम बेखबर सो गए हैं!
करो कुछ जतन, औ जवानी जगाओं,जो सोये हैं उनको हम मिलके जगाएं,
सोलह को यूपी में संगम है प्यारे, चलो प्यार की एक ज्योति जलाएं,
दीपावली की अनंत शुभकामनाएं
कर-बद्ध प्रार्थना है सबसे, पूछे हम अपने राम से!
लोभ, मोह, मद, मान को तजि, कैसे छूटे तुम काम से!
तुलसी रामचरित मानस के, पुरुषोत्तम श्री राम प्रभु!
प्रथम दीप, तुम प्रज्ज्वलित कर दो प्रभुवर अपने नाम से!
यह मानस पावन गीता है, जिसने मुझको सन्देश दिया,
छोड़ महल, वन को जाओ, यदि दसरथ ने आदेश किया!
न खण्डित हो, कुल-मर्यादा, ऐसा कुछ हम ध्यान करें,
बिनु भेद किये, हर "देवी माँ" के इच्छा का सम्मान करें!
भरत-लक्ष्मण बन-कर-हम, नित शरण गहे भगवान के,
प्रथम दीप, तुम प्रज्ज्वलित कर दो, प्रभुवर अपने नाम से!
भारतीय राजनीति और चाय
हुआ विचार बन्द नोट, और जीएसटी से आय पर,
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, चर्चा कर ली गाय पर!
जहां कहीं भी "रिश्ता" था, सबने सबका उद्धार किया,
पर चाय बेचने वाले ने, सब्सिडी ना दी चाय पर!
चाय-चौक औ राजनीति का, रिश्ता बहुत पुराना है,
जीत-हार की चर्चा का, यह सबसे बड़ा ठिकाना है!
नित्य सुबह ही आ जाते हैं, लेकर यह उद्देश्य बड़ा,
किसकी हार सुनिश्चित है, किसका है जना देश बड़ा!
हैं! अच्छा असर डालते रहते, राजनीति व्यवसाय पर,
पर चाय बेचने वाले ने, सब्सिडी ना दी चाय पर!
इन चाय बेचने वालों की इक दारुण भरी कहानी है,
सबकी स्थित बदल गयी पर इनकी वही पुरानी है!
भठ्ठी-प्याले, संग बच्चे थे, था इनपर कोई ध्यान नहीं,
जब शीर्षमान पर बेटा है, क्यों अब इनको सम्मान नहीं!
सबके दिन अच्छे हैं फिर भी, ग्रहण इनकी आय पर,
क्यों चाय बेचने वाले ने, सब्सिडी ना दी चाय पर!
इस महापेय के विक्रेता, कम कीमत पर ही मरते हैं,
अठ्ठारह घण्टे प्रति-दिन सबकी, सेवा करते रहते है!
अस्सी प्रतिशत, देश के वोटर, यदि इनसे से हैं जुड़े हुए,
तो लोकतन्त्र में ऐसे सेवक, गलियों में क्यों पड़े हुए!
मौन हुयी क्यों? राजनीति, इस दर्द, वेदना, हाय पर,
कि चाय बेचने वाले ने, सब्सिडी ना दी चाय पर!
सब चाय बेचने वाले यह, कह सकते है अधिकार से,
अद्भुत "पीएम" देश को दी, इक छोटे से परिवार से!
जब बेटा संघर्ष झेलकर, इक मुकाम पा जाता है,
घर, परिवार, गोत्र, राष्ट्र को दिल से पुनः सजाता है!
सभी केतली वालों का, मत-एक हुआ इस राय पर,
कि चाय बेचने वाले ने, सब्सिडी ना दी चाय पर!
नशा नाश का इक जहर है पुराना
ना कोई कमी थी, न था कुछ अधूरा,
विधाता ने सब कुछ दिया पूरा-पूरा!
था घर में मैं मां-बाप का सबसे प्यारा,
शिक्षक और बच्चों में भी था दुलारा!
समय से था सोना, समय से ही उठना,
मित्रों के संग खूब पढ़ना-समझना!
सभी को पता था कि बेटा हमारा,
कलेक्टर बनेगा ये आंखों का तारा!
मगर क्या करूं, इक घड़ी ऐसी आई,
कि धीरे-धीरे अब हुई कम पढ़ाई!
कुछ गन्दे से बच्चों के चक्कर में पड़के,
नशे की ही दुनिया में चाहत समायी!
हुए वो जुदा, जो थे पढ़ने में माहिर,
बचे साथ मेरे कुछ अनपढ़ औ जाहिल,
लगे पान, बीड़ी और गुटखा खिलाने!
खुद के ही पैसे से बीयर पिलाने,
मोबाइल पर गाना व पिक्चर दिखाए,
हुई शाम जब-जब तो दारु पिलाये!
बच्चों और शिक्षक ने मुझको समझाया,
हुआ फेल कक्षा में नम्बर दिखाया!
मगर मेरे ऊपर नहीं कुछ असर था,
न मां-बाप का न जमाने का डर था!
जिस गांव व जिस नगर में था जाता,
सारा शहर बस नशेड़ी बताता!
चोरी भी कर के अब पीने लगा था,
नशे की ही दुनिया में जीने लगा था!
न कोई सगा था न था कोई अपना,
कहां किसका लूटूं यही बस था सपना!
नशे में बना इस कदर मैं लफंगा,
वे-मतलब लड़ाई बे-मतलब का पंगा!
कोई मुझको चोट्टा, सनक्कड़ बताया,
गली के सब बच्चों ने कंकड़ चलाया!
ना भोजन मिला न समय से ही पानी,
मिला बस बुढ़ापा न देखी जवानी!
अंतिम समय में हुआ संग कुछ ऐसे,
कोई बम फूटा हो उदर में ही जैसे!
बेहोशी की हालत में बे-सुध पड़ा था,
खुली आंख तो इक चिकित्सक खड़ा था!
किया कुछ जतन उसने जीवन बचाया,
बड़ी बामुशक्कत मैं घर लौट आया!
मगर देर तब तक बहुत हो चुका था,
जीवन सजाने से मैं खुद चुका था!
जो बच्चे पढ़े थे बने सब ऑफिसर,
गाड़ी औ बंगला रहे साथ नौकर!
इधर मेरा जीवन हुआ बेसहारा,
नमक तेल का भी नहीं है गुजारा!
कहीं कुछ मिला तो बच्चे हैं खाते,
नहीं कुछ मिला तो हैं, भूखे सो जाते!
मिला दर्द कितना है तुमको बताना,
पढ़ाई से अच्छा न कोई खजाना!
कभी भी गलत साथ में तुम न आना,
नशा नाश है ये सभी को बताना!
बताना कवि आलोक जी थे लोग आये,
नशे की बुराई से परिचित कराये!
समझ आ गया अब नहीं है भुलाना,
नशा मौत का इक ज़हर है पुराना!
पूछ रहा मेरा संविधान
सत्तर साल बिता दी हमने, पूछ रहा मेरा संविधान,
संशोधन मुझमें करना है, या बदलेगा तेरा ईमान!
झांसी की रानी पूछ रही, अरे पूछ रहे राणा प्रताप
हल्दी-घाटी का "चेतक" भी, आतुर है करने को हिसाब
आतंकी पाक के पालोगे या सेना को दोगे कमान!
संशोधन मुझ में करना है या बदलेगा तेरा ईमान!
कोई चांद को ना छूले
तुम जा रही हो 'सजके', इक डर सता रहा है,
कोई चांद को ना छू-ले, मधुमास आ रहा है!
तेरी चाहतों में, बादल "मदहोश" हो रहे हैं,
कलियों के बीच भंवरे, अब होश खो रहे हैं!
तेरे "हुस्न" का ये मौसम, हमको डरा रहा है,
कोई चांद को ना छू-ले, मधुमास आ रहा है!
तुम्हीं ने जमाने की दी वेवफाई
नजाकत से पैरों को जो चूमती थी,
उन्हीं शांत लहरों ने, कश्ती डुबाई!
कलाई पकड़कर के खींचा उसी ने,
जिन्हें प्यार से हमने अंगुली थमाई!
थी "पूर्णिमा", दर-पे मेला था मेरे,
अब कोई नहीं जब,अमावस है आयी!
बिना पूछे "चद्दर" उठा ले गए वो,
जिन्हें 'पूस' में हमने दी थी रजाई!
मुझे याद है, वो भटकते थे दर-दर,
गर्दिश व गुरबत में जीवन बितायी!
मोहर्रम में जिनके मैं आंसू सम्भाला,
मेरी "कब्र" पर "ईद" उसने मनाई!
शिकायत न जगसे, न तुझसे है ऐ-रब
नहीं दे रहे, "जख़्म" मेरे "दुहाई!
तुम्ही ने जहां को, वफ़ा दे दिया है,
तुम्हीं ने ज़माने को, दी वेवफाई!
आज मेरी शादी की 19वीं सालगिरह है
इक चुटकी सिंदूर ने जिस दिन, अपनी रश्म निभाई यूं,
सलवार सूट चंचलता तजि, साड़ी में हुई पराई तूं!
अंश-कोंख को भूल गई, भाई संग बहन का ध्यान कहां,
तू छोड़-चली उस माटी को, था खुशियों का अरमान जहां!
सबकुछ छोड़ा सब भूल गयी, यदि केवल मुझको पाने में!
है दुआ कभी कुछ कम ना हो, खुशियों के तेरे खजाने में!
हे! गणेश! शिव-उमा सहित, देवी, दुर्गा, हे! मुरलीधर,
हे पूर्वज! अग्रज, अभिभावक, है बड़ी कृपा तेरी मुझ पर!
हे मेरे पक्ष के अनुज मित्र, सविता की सब सखियां प्यारी,
पंडित, नाऊ, डोली-कहार, जिसने सजवा दी फुलवारी!
तारीख 23 अप्रैल, ही था, जिस दिन दोनों के प्यार खिले,
दे दुआ! आज "23" ही है, हर-जनम मुझे यह यार मिले!
प्रभु की उदारता
कब देवकी ने कहा था, बेटा
कोंख मेरा उजियार करो,
नहीं कहा था "पूतना" ने,
प्रभु तुम मेरा "उद्धार" करो!
स्वयं गये गोकुल "गिरिधर"
औ तान सुनाई वंशी की!
कहां कहा था राधा ने, कि
आओ 'मोहन' प्यार करो!
मतदान हेतु एक पत्नी का निवेदन
जिस धरा ने हमको पाला है, उस माता का कुछ ध्यान करें,
मनुहार मेरा स्वीकार करो, प्रिय आओ मिल मतदान करें!
परदेश हो तुम मुझे विरह नहीं, चिंता है प्रियतम माटी की,
सवा अरब जनमानस के संग, गिरि-कानन नदी-घाटी की!
हो लोकतन्त्र मजबूत मेरा, हम सब इसको बलवान करें!
मनुहार मेरा स्वीकार करो, पिय आओ मिल मतदान करें!
यह हो अपना निज महापर्व, कितने बेटों ने जान दिए,
हम डटे रहे हक पाने को, भारत माता की शान लिए!
सबसे बड़ा "लोकतन्त्र" इस दुनिया का हम पाये हैं,
हर जाति-धर्म बन्धुत्व भाव लिए, दिल से इसे सजाये हैं!
कर्तव्य सभी का है पुनीत, जन-जन इसका सम्मान करें,
मनुहार मेरा स्वीकार करो, पिय आओ मिल मतदान करें!
संकल्प करो, ऐसा प्रियतम, हमें हर-इक घर को जाना है,
मतदान हमारी ताकत है, यह जन-जन को बतलाना है!
हैं असमर्थ या असहाय, जन जो बुजुर्ग चल पाने में,
हर युवा बने उनकी ताकत, मतबूथ तक निश्चित लाने में!
मानव सेवा और राष्ट्रधर्म का, अद्भुत कृत्य महान करें!
मनुहार मेरा स्वीकार करो, प्रिय आओ मिल मतदान करें!
मतदान जागरूकता महराजगंज
व्यर्थ न हो, मत छूट न जाये, मत-जन ऐसा व्यहार करें!
आओ प्यारे हमसब मिलकर, लोकतन्त्र को प्यार करें!
भले पंक्ति हो कितनी लम्बी, एक-एक मत को खड़ा करें!
आओ प्यारे हमसब मिलकर, लोकतन्त्र को बड़ा करें!
कितना राष्ट्र-प्रेम है हम में, सबकी बड़ी परीक्षा है!
शत्-प्रतिशत मतदान करा दो, लोकतन्त्र की इच्छा है!
नकारात्मक व्यक्ति सोच को, राष्ट्र-प्रेम से नष्ट करें!
आओ प्यारे लोकतन्त्र का, पावन मार्ग प्रसस्थ करें!
शत्-प्रतिशत मतदान हो मेरा, ऐसा सुबह विहान करें!
आओ प्यारे महराजगंज का, लक्ष्य विजय यशगान करें!
जो उन्नीस को मतदान किया
अधिकार की केवल बात करे, कर्तव्यों का जिसे ज्ञान नहीं,
धनवान उसे दुनिया कह ले, पर हो सकता विद्वान नही!
कैसे? परिवार व बच्चों का, करेगा पोषण नियमित वो!
जो "पांच वरस" में एक बार भी, करता हो मतदान नहीं!
सच्चा वही "सिपाही" है, जिसने ध्वज का सम्मान किया,
संसद से "सीमा" तक जिसने, "भारत" मेरा महान किया!
आन, बान और "शान हमारा", लोकतन्त्र यह कहता है,
मुझपर अधिकार उसीका है, जो "उन्नीस" को मतदान किया!
हमें वोट डालने जाना
सबने यह "संकल्प" लिया है, सबको यही बताना है!
मतदान "दिवस"है "उन्नीस को", हमें वोट डालने जाना है!
जिस पावन धरती मां ने, हम सबको जन्म दिया है,
जिसका खाकर अन्न सुधासम, नीर समीर पीया है!
स्वर्णिम सुबह, अमन की रातें, जिसने सुंदर शाम दिया,
शासन की ताकत देकर, हमें जग में ऊंचा नाम दिया!
उस लोकतन्त्र का कर्ज है, मुझपर जिसको हमें चुकाना है!
मतदान "दिवस" है "उन्नीस" को, हमें वोट डालने जाना है!
जिंदगी
जब वक्त आ गया तो, ये फैसले बड़ा की,
राजा रहे या दानी, श्मशान पर खड़ा की!
टूटे हृदय में इसने, हिम्मत भी भर दिया था,
फाड़कर के आंचल, पत्नी से कर लिया था!
बेटे के "मौत" पर भी, न बाप को डिगाया,
ये जिंदगी है 'साहब', इंसा समझ न पाया!
अश्क ने कुछ कहा
चाहतों ने ही, जीवन को धोखा दिया,
कुछ सजाने को टहनी, कटी डालियां!
चांदनी "चांद" का ही, "सितमगर बनी,
था अन्धेरा और उसपे, चढ़ी बदलियां!
दर्द "तन्हाई" में,आ रहा था "पथिक",
वेदना" की वहीं पर,चली "आंधियां!
आह, के बज्म में,अश्क ने कुछ कहा,
तालियों के "गमो" पर, बजी तालियां!
जिंदगी मैंने चखीईई
सच बताऊं रीइइ सखीईई,
जिंदगी मैंने चखीईई!
शान्त था जब बचपना,
हर कोई अपना बना!
गोद से उस गोद तक,
या झूलती थी पालना!
फिर पैर मेरे बंध गये,
जब पांव धरती पर रखीईई!
सच बताऊं रीइइ सखीईई
जिंदगी मैंने चखीईई!
उम्र की दहलीज पर,
जीवन ने जैसे पग बढाए!
कुछ ने मुझको प्यार दी,
कुछ नैन कातिल भी गड़ाये!
रूप कितने हैं मनुज के,
बन पथिक पल-पल लखीईई!
सच बताऊं रीइइ सखीईई,
जिंदगी मैंने चखीईई!
झूठे सपनों से प्यार हो गया
सच का पूर्ण समर्पण ले, झूठे सपनों से प्यार हो गया!
पतझड़ जैसे मधुमास हो गया, भंवरे को विश्वास हो गया!
डालीपर ना बैठा देखा, कली से उसको आस हो गया!
यही "नादानी" शायद, "सूखे जीवन" पर अंगार हो गया,
सच का पूर्ण समर्पण ले, झूठे सपनों से प्यार हो गया!
घायल मिली मुस्कुराती हुई
अश्क! नयनों से "मोती, गिराती हुई,
दर्द दुनिया का "दिल में, दबाती हुई!
नजरों से, "नजरें", "बचा" कर के वो,
जगमें, चेहरों से चेहरा, छुपाकर के वो,
नयन धरती पर, सीधे "गड़ाती" हुई,
एक "घायल" मिली, मुस्कुराती हुई!
ऐसा बिलकुल नहीं, कि वो नादान थी,
गम उठाया था जो, उससे "अंजान" थी!
ये भरोसा, था इकदिन, सम्भल जायेगा,
आज पत्थर है कल वो, पिघल जायेगा!
डोर "रिश्ते" का "शायद", निभाती हुई,
एक "घायल" मिली, "मुस्कुराती" हुई!
मैंने पूछा, हुआ क्या, ये जग से कहो,
न्याय देगी, ये "दुनिया", न आगे सहो!
पर जमाने ने ही, उसको दी थी सजा,
वो नारी थी, उसको था, सबकुछ पता!
खुद को "दोषी, उसे सच, बताती हुई,
एक "घायल" मिली, "मुस्कुराती" हुई!
मुल्क मेरा निरपेक्ष रहे
सच बोलो इस मनोयोग से, झूठ के ही परिपेक्ष्य रहे,
पुण्य करो पर "ध्यान" रहे, कि पाप उसी सापेक्ष रहे!
जाति-लिंग व धर्म-पंथ पर, ही होगा मतदान यहां,
कानून चाहिये मजहब का,पर मुल्क मेरा निरपेक्ष रहे!
जीवित्पुत्रिका व्रत पर पुत्रों को_बधाई
खिला रहे उसका मधुवन, आंगन पूनम का चांद रहे,
मुझको कोई "कष्ट" नहीं, बस उसको इतना याद रहे!
जीवित्पुत्रिका व्रत वाली, इक दुखिया मां ने कहा प्रभु!
"वृद्धा-आश्रम" से बोल रही हूं, पुत्र मेरा आबाद रहे!
शारदीय नवरात्रि की हार्दिक बधाई
इतनी शक्ति, मुझे दे मां, "कर्तव्य बोध" को जान सकूं,
खुद जीवन में "इंसान बनूं", इंसानों को पहचान सकूं!
जान सकूं, उस ममता को, जिसने मुझको संसार दिया,
अमृत पान करा कर जिसने, जीवन को आधार दिया!
उस "जन्मदात्री" का पहले, मैं पूजन व सम्मान करूं,
खुद जीवन में "इंसान" बनूं, इंसानों को पहचान सकूं!
वही शक्ति, मुझको दे मां, नृप जनक ने जिसको पाई थी,
कन्या पूजन के निमित्त, धरती से "सुता" उगाई थी!
ऐसा "कोख" हमें देना, जिसमें कन्या की रक्षा हो,
आंगन में वह खेल सके, जीवन की पूर्ण सुरक्षा हो!
है महापाप! भ्रूण की हत्या, जग में इसको मैं जान सकूं,
खुद जीवन में "इंसान" बनूं, इंसानों को पहचान सकूं!
कुछ और अगर देना है "माँ", तो मानस व गीता दे-दे,
लक्ष्मण जैसे भाई के संग, घर में इक सीता दे-दे!
जहां "सुमित्रा", "कैकेयी" में, भेद न कोई होता हो,
राम से पहले लखन जहां पर, कौशल्या का बेटा हो!
प्रभु "श्रीराम" के आदर्शों को, मैं भी दिल से मान सकूं!
खुद जीवन में "इंसान" बनूं, इंसानों को पहचान सकूं!
इतनी शक्ति, मुझे दे मां, "कर्तब्य बोध" को जान सकूं,
खुद जीवन में "इंसान" बनूं, इंसानों को पहचान सकूं!
चांद की चाहत हो बेटी
चांद की चाहत हो बेटी, या परी मेरे प्यार की,
हर घड़ी तुझे देखता हूं, पर तरस दीदार की!
एक ही मुस्कान तेरी हर ख़ुशी की आस है,
हो गया वह धन्य, बेटी आज जिसके पास है!
वृषभानु की तनया कहूं, या कीर्ति की जान हो,
कोंख से आयी भले तू, सृष्टि की पहचान हो!
तू मेरी दुनिया है लाडो, है ख़ुशी परिवार की,
हर घड़ी तुझे देखता हूं, पर तरस दीदार की!
पुत्र की चाहत भले हो, कोख तुझसे धन्य है,
बिनु सुता के दान के, कोई दान ना अनुमन्य है!
दान में नृप जनक ने दी, थी सिया श्रीराम को,
शायद तुम्हारी कीमतों का था पता भगवान को!
देव-मानव तक नहीं, आधार तूं संसार की,
हर घड़ी तुझे देखता हूं, पर तरस दीदार की!
जन्म तेरा मां, बहन, पत्नी का इक प्रतिमान है,
संस्कारों से सजी, तू प्यार व सम्मान है!
शक्ति, बुद्धि, ज्ञान, यश, ऐश्वर्य की देवी हो तुम,
आंख में आंसू लिए, बलिदान की वेदी हो तुम!
कौन पापी था, जो हत्या भ्रूण की शुरुआत की,
हर घड़ी तुझे देखता हूं, पर तरस दीदार की!
यदि समय रहते इस दुनिया ने तुम्हें समझा नहीं,
ना हुआ सम्मान और यदि भ्रूण की रक्षा नहीं!
तो बेटियां विलुप्त होंगी, जन्म के अधिकार से,
और ना मिलेगा कोख कोई, पुत्र को संसार में!
हो सके तो रोक ले, लीला मनुज संघार की,
हर घड़ी तुझे देखता हूं, पर तरस दीदार की!
चांद की चाहत हो बेटी, या परी मेरे प्यार की,
हर घड़ी तुझे देखता हूं, पर तरस दीदार की!
सत्य
नाच रहा है वन में "कागा" इसको प्रिय ना "मोर कहो,
धुंधली हुई घटाओं को तुम बादल ना "घनघोर कहो!"
भूख मिटाने के निमित्त, यदि निर्धन ने कुछ "गलती की'',
तो राष्ट्र-धर्म के बड़े डकैतों, को पहले तुम "चोर कहो!"
युवा शक्ति है अद्भुत ताकत
युवा शक्ति है अद्भुत ताकत, भारत मां की शान हो तुम,
राष्ट्रवंश के हे! नव किसलय हम सबके सम्मान हो तुम!
बाघ स्वयं की रक्षा कर ले, पशु योनि में आता है,
गिरि कानन जो भ्रमण करे, वह नवकुंजल कहलाता है!
बन जाओ सिंह "भवानी" के, गीता और कुरान हो तुम,
राष्ट्रवंश के हे नव किसलय हम सबके सम्मान हों तुम!
धर्मपन्थ और भेदभाव, बंटवारों का निर्धारण है,
जो नहीं समझ पाये अबतक वह पूर्वाग्रह का कारण है!
जाति बनी है कर्मों पर सुकर्मों की पहचान हो तुम,
राष्ट्रवंश के हे नव किसलय, हम सबके सम्मान हो तुम!
जिस पथपर तेरा कदम बढ़ा कुछ कांटे निश्चित आएंगे,
युवाशक्ति के बलपर हम भारत को पुनः सजायेंगे,
गुप्तवंश का युग आएगा चाणक्य रक्त औज्ञान हो तुम,
राष्ट्रवंश के हे! नव किसलय हम सबके सम्मान हो तुम!
मुट्ठी-भर ही भारत-वासी, धन-वैभव को पाये हैं,
प्रेमचन्द का चादर सिल-कर बाकी काम चलाये हैं!
कर्म करो कुछ अद्भुत ऐसा, नवयुग के अभियान हो तुम,
राष्ट्रवंश के हे नव किसलय हम सबके सम्मान हो तुम!
बोले आज विपक्ष मगर, कल निश्चित चुप हो जायेगा,
घर-घर में खुशियां होंगी जब, हर चेहरा मुस्कायेगा!
इनका स्वर भी बोल उठेगा पुत्र बहुत महान हो तुम,
राष्ट्रवंश के हे नव किसलय हम सबके सम्मान हो तुम!
कोई ज्ञान बता दे गीता का
जो रिश्तों को मार दिया हो, उस लालच ने जीता क्या?
तृष्ना ने तो हरण करा दी, जनक नंदिनी सीता का!
कौरव का वध करके भी, पांडव गद्दी पर ना बैठे!
फिर कुरुक्षेत्र ने क्या पाया, कोई ज्ञान बता गीता का!
महाराष्ट्र हरियाणा चुनाव परिणाम
वोट मिले "सरकार" बने, यह सारे दल की चाहत है,
पांच "साल" फिर पता नहीं, कि जनता कितनी आहत हैं!
"महाराष्ट्र" व "हरियाणा" ने, मिलकर है सन्देश दिया!
यह जीत-हार की राह नहीं, बस बीजेपी को राहत है!
पटना बाढ़ की दुर्दशा
होती नहीं "दुर्दशा" यदि,"शासन" संज्ञान लिया होता!
बस नाली और "निकासी" पर ही, निगम ध्यान दिया होता,
सर यह "नदियों" का प्रलय नहीं, बरसात का केवल पानी है!
"लीटर" में भी ना दिखता, प्रशासन काम दिया होता!
लोग कह रहे हैं नववर्ष आ रहा है!
इक साल जिंदगी का जीवन से जा रहा है,
और लोग कह रहे हैं, नव-वर्ष आ रहा है!
किस बात की ख़ुशी है, किस बात की बधाई,
पंचांग बरस के बदले, हैं कलेंडर की बड़ाई!
निज सभ्यता पर अपने, पाश्चात्य छा रहा है,
और लोग कह रहे हैं, नव-वर्ष आ रहा है!
ना पर्व है हमारा, ना हर्ष का समय है,
हम क्यूं इसे मनाएं, चिंतन का यह विषय है!
जिनको बताया हमने, जीवन के उत्सव सारे,
अब वो बदल रहे हैं, त्योहार ही हमारे!
कोहिनूर का लुटेरा, कोयला दिखा रहा है,
और लोग कह रहे हैं, नववर्ष आ रहा है!
था चैत का महीना, मुझे जन्म जब मिला था,
मां-बाप के सहारे, अंगुली पकड़ चला था!
वो गोंद का सिंहासन कन्धे की थी सवारी,
जो नींद को बुलाये लोरी बहुत थी प्यारी!
पर आज सबका बेटा नौकर खिला रहा है,
और लोग कह रहे हैं, नव-वर्ष आ रहा है!
उसे मोम ने ही मारा कहता था जिसको माई,
डिअर "ब्रदर" के चलते, है दूर मेरा भाई!
पिता को पहले डैडी, फिर डैड ने खदेड़ा,
प्रियतम की थी जो पत्नी, हसबैंड ने है छेड़ा!
सिंदूर का "सिंघोरा" अब, कोर्ट जा रहा है,
और लोग कह रहे हैं, नव-वर्ष आ रहा है!
मैं भी अलग नहीं हूं, पर दर्द जी रहा हूं,
जो भांग घुल गयी है, उसे मैं भी पी रहा हूं!
कवि कर रहा निवेदन, हम साथ मिलकर आएं,
होली, दिवाली, राखी, संग, पूर्णिमा मनाएं!
आएगा "चैत एकम्", फागुन जब जा रहा है!
बोलेंगे साथ मिल कर, नव-वर्ष आ रहा है!
कसम चांदनी की न ये पूछना तुम
अगर प्यार खोया मिल जाये तुझको, कभी याद करना न बीती कहानी!
जो "यादों" में तुमने बिताए हैं लम्हे, उन्हीं पे लुटाना ये तपती जवानी!
तेरा "चाँद" बचकर है, ग्रहण से आया, हुई है मेहरबान तुझ पर भवानी,
कसम चांदनी की न ये पूछना तुम, अमावस में छुपकर कहां थी तू रानी!
नववर्ष बधाई
भले शोर ना चइता का हो,
ना फाल्गुन में हो फगुआई!
सावन, कजरी के संग रोए,
चाहे बन्द, छंद, चौपाई!
एकम, द्विज और पूर्णिमा,
अंग्रेजों ने छीन लिया!
दे गये हमको एक जनवरी,
आओ दें नववर्ष बधाई!
आज नहीं तो कल
देश जलाने वालों से यदि,
हिन्द "हमारा" हारेगा,
साथ दे-रहा जो कोई भी,
राष्ट्र विरोधी नारे का!
संसद के कुछ गुंडे सुन लें,
तीनों की है खैर नहीं,
आज नहीं तो कल उनको,
इतिहास पटककर मारेगा!
बेटी का बाप
बेटी का पिता होना ही, उस आदमी को राजा "बना देता है!"
शादी खोजने निकलिए, तो समाज उसका बाजा "बजा देता है!"
रिवाजों में बंधी इस परम्परा, का निर्वहन क्या "पाप है!"
जिस नृप को ग्राहक समझते हो, एक राजकुमारी "का बाप है!"
अन्य राजाओं की भांति, यह दाता युद्ध नहीं "करता है!"
धन दौलत और लक्ष्मी से, तेरी झोपड़ी ही "भरता है!"
उसके बाद भी दशरथ बने लोग, लालच में ही "मरते हैं!"
जनक के मुकुट सम्मान पर, ही हजारों सवाल "करते हैं!"
लगता है उनका बेटा खून पसीने और मेहनत की "कमाई है!"
और मेरी बेटी किसी झील नहर या तालाब से "आई है!"
ऐसे में आज के सिया का जन्म, इक पाप बन "जाता है!"
उम्रभर तड़पता है इक सम्राट, जब बेटी का बाप "बन जाता है!"
भ्रूण-हत्या नहीं रुकी तो ये दहेज के लोभी "कहां जायेंगे!"
धनुष नहीं शिव उठा कर भी, ये राम कोई सीता "नहीं पाएंगे!"
दोहरा चरित्र एक
कथनी और करनी का अंतर, कहीं-कहीं अच्छा है मित्र,
चोरी करना "पाप बड़ा", यह कोई चोर दिखाये चित्र!
छुपकर शराब पीने वाला यदि, करे बुराई हाला की!
फिर कहां? बुरा होगा इस जग में, मानव का दोहरा चरित्र!
एकल चरित्र "जन-का" होता, तंत्र काम न आता है,
लिए कमंडल फ़टी लंगोटी, मंत्र शाम तक गाता है!
ऐसे विचार वाले "मुश्किल की", दो रोटी बस पाते हैं!
दोहरा चरित्र अपनाकर "प्रहरी, प्रजातन्त्र खा जाता है!
जो कहा किया था शेखर ने, हम सब जिस पर नाज किये,
गांधी, मंगल और "भगतसिंह", भले देश आजाद किये!
लेकिन इन"राष्ट्र सपूतों" ने, शिवा मौत के क्या पाया?
दोहरे चरित्र वाले देखो, सत्तर सालों तक राज किये!
कथनी करनी में फर्क करो, वरना वीजन खो सकते हो!
बड़े-बड़े "होटल", महलों को, देख-देख रो सकते हो!
एकल चरित्र से फुटपातों पर, नींद नहीं तुझे आयेगी,
दोहरे चरित्र से संसद के, अधिवेशन में सो सकते हो!
भ्रूण हत्या के वक्त बेटी की आवाज
कैसे कहूं? तुझे जननी, जब जन्म नहीं तुझसे पाई,
कोई मादा, भले हो "नागिन", गर्भपात ना करवाई!
तुम मार रही, इस वक्त कोख को, भ्रूण में सोच रही हूं मैं,
कि एक अभागन, कोख नहीं इक डायन के मुख में आई!
मैं दिल्ली हूं
मैं दिल्ली हूं, "पूछ रही" हूं,
कब तक मुझे जलाओगे?
क्या यही देश की रीत रही है,
जो कुछ मुझ पर बीत रही है!
गंगा जमुनी की तहजिबें,
क्या बालू की भीत रही हैं?
शर्म करो दोहरा चरित्र ले,
क्या चेहरा दिखलाओगे?
मैं दिल्ली हूं पूछ रही हूं,
कब तक मुझे जलाओगे?
मुझे दर्द नहीं है छालों का,
या उतर गईं उन खालों का!
अक्सर सितम सही हूं मैं तो,
शाही नीच दलालों का!
दुःख है आग बुझाने में कब,
अपना नाम लिखाओगे?
मैं दिल्ली हूं पूछ रही हूं,
कब तक मुझे जलाओगे?
अब तो मुगलों का ताज नहीं है,
कोई फिरंगी राज नहीं है!
करे आक्रमण इज्जत लूटे,
ऐसी स्थिति आज नहीं है!
तुमको भी मैं विदा करूंगी,
नहीं यहां टिक पाओगे,
मैं दिल्ली हूं पूछ रही हूं,
कब तक मुझे जलाओगे?
जग में नर है
दुनिया से क्यों उसको डर है,
नारी है तभी, जग में नर है!
अंश कोख में आई जैसे
सूक्ष्म रूप वह पाई जैसे
जाने क्यों, भयभीत हो गयी,
मां ने लिया दवाई जैसे!
भ्रूण हत्या से अंश डर गई,
क्या बेटी होना इक जर है!
दुनिया से क्यों उसको डर है,
नारी है तभी, जग में नर है!
जन्म हुआ बेटी बन आयी
सारे घर ने लिया जम्हाई!
चेहरे ऐसे लटक गये
जैसे गादुल को नींद हो आई
नहीं खुशी क्यों मानव मन में,
आंखों में बस आंसू भर है!
दुनिया से क्यों उसको डर है,
नारी है तभी, जग में नर है!
बेटी का अधिकार अलग क्यों,
नारी के प्रति प्यार अलग क्यों?
आयी है जो सृष्टि चलाने,
उस पर कुदृष्टि, संसार अलग क्यों?
जिसने योद्धा वीर दिया हो,
कांप रही वह क्यों थर-थर है?
दुनिया से क्यों उसको डर है,
नारी है तभी, जग में नर है!
जग में नारी को आने दो,
हक है उसका उसे पाने दो!
सीता का सम्मान करो,
उसे शिव का धनुष उठाने दो!
उससे है संसार की शोभा,
उससे ही सुंदर घर है!
दुनिया से क्यों उसको डर है,
नारी है तभी, जग में नर है!
ना करो मजाक कोरोना से
खबर मृत्यु के दहशत की है, विश्व के हरइक कोना से!
फेसबुकिये ना खेल करें, ना करें, मजाक कोरोना से!
अबत क पकड़ नहीं बन पाई, इस यायावर दानव पर,
मौत कहर बन टूट पड़ा है, विश्व, धरा व मानव पर!
बहुत भयावह स्थित आयी, ऐसा हुआ न हाल कभी,
मंदिर, मस्जिद, ट्रेन, हवाई, बन्द हाट व मॉल सभी!
छोटा हो या बड़ा देश, इसने सबको ललकार दिया,
सागर, धरती से अम्बर तक, लम्बा पांव पसार दिया!
बचा हुआ भू-भाग डरा है, उसकी कल क्या बारी है?
अर्थ जगत हिल गया विश्व का, ऐसी यह महामारी है!
केवल बचाव इक है उपाय, बस हिम्मत से ही हारेगा,
साफ, सफाई, धर्म, कर्म का, प्रहरी इसको मारेगा!
सरकारों ने कमर कसा, स्वास्थ विभाग है साथ खड़ा,
भागेगा निश्चित महारोग, यह भले आज है पास अड़ा!
मानव धर्म बड़ा है जग में, इसकी कठिन परीक्षा दें,
FB और व्हाट्सप पर प्रिय, ना उल्टी सीधी शिक्षा दें!
एक बीमारी, सौ-सौ नुस्खे, करो पोस्ट ना ग्रुप से,
नहीं रोग यह अच्छा होगा, दारू, कीचड़ सूप से!
नीम हकीम इलाज नहीं है, जादू, मंतर, टोना से,
फेसबुकिये ना खेल करें, ना करें, मजाक कोरोना से!
जनता कर्फ्यू का महत्व
हम स्वयं, समाज, राष्ट्रहित में, मानें पीएम उपदेश को,
मरे कोरोना, नाश हो इसका, स्वच्छ करें परिवेश को!
राष्ट्र नियम के पालन में, घर से ना निकलें 22 को,
पूरा दिन जनता कर्फ्यू का, करें समर्पित देश को!
पीएम का जनता कर्फ्यू, कोई ऐसे नहीं अकारण है,
जाने, समझे, विश्वास करें, इसका वैज्ञानिक कारण है!
12 घंटे में मर जाता है, अपनी जगह पर कोरोना
14 घंटे हम रहें घरों में, सबसे बड़ा निवारण है!
जनता कर्फ्यू और मेरा दिन
अक्सर! व्यग्र रहा जीवन,
कुछ लम्हों को मैं ख़ास लिखा!
किस-2 पल ने खुशियां दी,
औ किसने किया उदास लिखा?
घर, रहकर जनता कर्फ्यू में,
किया समीक्षा रिश्तों की,
फिर हर्षित मन, चिंतित विवेक ने,
जीवन का इतिहास लिखा!
भोर कर्म से निवृत्ति "प्रथम",
मैं जननी से मुलाकात किया!
मां से कम, जो जन्म दिया,
उस कोख से लम्बी बात किया!
जैसे मैंने पूछा उससे,
तेरे दूध ने क्या-क्या गलती की?
दो हाथ मेरे सिर पर आये,
और आंखों ने बरसात किया!
बच्चों से फिर मिला जिन्हें,
मैं समय नहीं दे पाया था,
बहुत देर तक सुना उन्हें,
जो अब तक ना सुन पाया था!
बेटी-बाप के, लगे ठहाके,
मां-बेटे की बातों पर,
पिता धर्म का शायद पालन,
पहली बार निभाया था!
फिर मां, पत्नी, बच्चे मिलकर,
आये सब पूजा घर में,
किया वंदना, भगे कोरोना,
फंसे न कोई जर में!
हे महादेव, "हे महाकाल शिव",
जग की रक्षा करो प्रभु,
वरना स्थित बिगड़ रही है,
रोग, शोक व डर में!
'सेनिटाइज हुआ" फर्श फिर,
उस पर दरी बिछाया,
दो-तीन तरह के चोखे-चावल,
दाल व पापड़ आया!
बैठ धरा पर, एक साथ सब,
लिये लुफ्त भोजन का,
मां ने बहुत खिलाया था,
मैं, मां को, आज खिलाया!
आया अपने कमरे में,
कुछ मनन, पाठ औ याद किया,
कुछ अति विशिष्ट को किया नमन,
जिसने आशीष व साथ दिया!
5 बजे फिर शंख थाल के,
ध्वनि से गूंजा गृह पूरा,
ईश्वर से फिर हाथ जोड़,
जनजीवन का फरियाद किया!
अद्भुत रहा "मार्च बाइस",
जो इतने अनुभव पाला था,
दिनभर तुलसी, दिनभर काढ़ा,
हर हाथों में प्याला था,
पहली छुट्टी पहला दिन,
अपना घर अपनों का प्यार,
नहीं दिखा था जीवन में,
शायद मुझको, ऐसा इतवार!
सारी दुनिया नेक हो गयी
सारी दुनिया नेक हो गयी,
देख काल के, रूप को...
टूट गयी सीमा सरहद की,
छूट गये सारे बंधन,
छोटा हो या बड़ा देश जब,
दिखा उसे वैश्विक क्रंदन!
कोई देश न महाशक्ति,
न कोई निर्बल, अर्थ हीन
सब के सब, 'स्तब्ध-चकित' औ,
अंदर से हैं, दीन-हीन!
कहां गयी आतंकी सेना,
हाफिज और मोटार सभी!
कुदरत की बस एक मिसाइल,
झेल रहे हैं, मार सभी!
ढूढ़ रहे हैं चाल कोई,
जो मारे, प्रलय तुरुप को,
सारी दुनिया नेक हो गयी,
देख काल के, रूप को...
ना कोई ब्राह्मण, ना कोइ शूद्र,
ना कोइ छुपा, आदेश है,
छुआछूत का डर सब में,
यह विधि का, अध्यादेश है!
कल तक थी अपनों की चिंता
उनका ऐसा हाल है!
पूरा का, अब पूरा ही दिन,
गैर हितों का, ख्याल है!
धर्म, सभ्यता, लोक-लाज,
जो लाख सिखाये नहीं सिखा,
होटल, पार्क, बार, क्लबों में,
आज वो जोड़ा, नहीं दिखा!
जितना रंक डरा है उतना,
डरा दिया है, भूप को!
सारी दुनिया नेक हो गयी,
देख काल के, रूप को...
सारे दल हैं एक हो गए,
जो जीता, जो हारा है,
मरे कोरोना, नाश हो इसका,
एक ही सबका नारा है!
हर प्रदेश, सारी सरकारें,
सभी विभाग मुस्तैद हुए,
संदिग्ध विधायक, सांसद, मंत्री
स्वयं घरों में, कैद हुए!
आज लोक को, तंत्र की चाहत,
तंत्र को चाहत, लोक की,
निष्पक्ष मीडिया, काम कर रही,
सही सूचना, रोग की!
दिखा एकता सभी बजाये,
थाली, पल्टा, सूप को,
सारी दुनिया नेक हो गयी,
देख काल के, रूप को...
पक्षी हुए आजाद
बहुत "कहर" मानव ने ढाहा, नहीं सुना फरियाद,
लिया फ़ैसला वक्त ने शायद, बहुत दिनों के बाद!
उड़ता एक, कबूतर बोला, डालपर बैठे तोते से,
कैद हुआ "इंसान" आज, हम पछी हुए आजाद!
कोरोना, घर में पिया आराम करीं
लाख बोलावे केहू, न जाईं,
कहीं सुबह ना, शाम करीं!
आइल बा, ई कूफुति,कोरोना,
घर में पिया, आराम करीं!
ऊठीं ना अब, भोर भइल,
बोलीं हम चाय बनाई!
जबले मुंह हम धोवत बानी,
चूल्हा, आप जराईं!
दासा पर पत्ती बा अउरी,
सिकहर पर बा दूध!
चीनी डारिके, अंवटी बालम,
पिअल जाय "द्विइ घूट"!
अब्बे छोटकी, जाग-जाई ते,
नाहक जिया हराम करीं!
आइल बा, इ कूफुति,कोरोना,
घर में पिया, आराम करीं!
जाने काहें मन बनल बा,
रहीं रउआं साथे!
चलीं न दू गो कपड़ा बांटे,
फिंचि लीं हाथे-हाथे!
आईं तब निश्चिंत हो बइठीं,
खाना हम पकाइब!
मन करी ते,सब्जी काटिके,
चउका में, ले आइब!
समय बा सगरी, सीखि लीं मुरहा,
जाने कहिया, काम करी!
आइल बा, इ कूफुति, कोरोना,
घर में पिया, आराम करीं!
दुअरा ग्वाला टेर लगावें,
"दे-दीं" हमके, बल्टी!
गाड़ी आइल, कूड़ा उठाईं,
कइले आईं पल्टी!
देखब बड़का, "रोअत बा,
तनि जाईं ना, सहला दीं!
मन करे ते, कलिहें नियर,
लइकन के, नहला दीं!
सारा सेवा लाल, भरी मोर,
पढ़िके जहिया नाम करी!
आइल बा, इ कूफुति,कोरोना,
घर में पिया, आराम करीं!
लाईं दियना, हम 'जरा-दी',
भइल सांझ के, बारी,
सारा दिन करते रहि गइलीं,
मूड़ भइल-बा, भारी!
काटीं सब्जी, "हम खाना बनाईं",
दे-दीं, हमके लवना,
पानी लेके, आइब हम,
तनि जाईं करीं बिछौना!
अरे बड़ी जोर से, डांर पिराला,
पकड़ीं बन्हिया, बाम धरीं,
आइल बा, इ कूफुति, कोरोना,
घर में पिया,आराम करीं!
सबसे प्यारा गांव हमारा
'बड़ा जुल्म, कर दिया था मैंने, छोड़ दिया था माटी को,
दिवा -स्वप्न में चला कमाने, कागज वाली थाती को!
सम्पूर्ण कमाई, जीवन भर, परिवार लिए दर-दर भटका,
बस एक तमन्ना, मां देखे, इस बेटे-बहू व नाती को!
बप्पा, गोतिया, गांव, नगर ने गिन-2 कर मुझे टोका था,
जिंदा थी, "तब दादी भी",उसने भी उस दिन रोका था!
बहुत दिनों तक मां रोई थी, मेरे इस नादानी पर!
गांव छुड़ाके शहर में शायद, काल ने मुझको झोंका था!
जहां सजाई "दुनिया अब", नहीं ठांव दिखाई देता है!
वृक्ष लगाया "जहां-वहां", नहि छांव दिखाई देता है!
पत्थर के इन महलों में अब, दिखती नहीं है मानवता,
सच पूछो तो, अब मुझको, मेरा गांव दिखाई देता है!
जिस "धरती पर" प्रेम बरसता, होते कड़वे बोल नहीं!
सुख दुख में सहयोग भावका, करता मानव तोल नहीं,
धरा-धन्य है, निज माटी का, कीमत लाखों जान गये,
सबने कहा, "गांव का अपने", दुनिया में कोई मोल नहीं!
हक़ीकत का आइना
ऐ बड़े शहर, तेरे शीश महल की, किस-किस प्रभुता को गाऊं,
या बन्द दिलों, और दरवाजों पर, भूखे नंगे सो जाऊं!
जीवन भर के खून-पसीने, ने तुझको यह शोहरत दी,
मैं इतना नहीं कमा पाया कि इक्कीस दिन तक खा पाऊं
छोड़ के अपनी स्वर्ण धरा यहां पत्थर तक काटा हमने,
"अंश, "कोख", "सिंदूर" के रिश्तों, से तोड़ा नाता हमने!
मेरे मेहनत के बलपर तू, हलवा खाया दूध पिया!
भीषण भूख में अल्प निवाला, अंगुली तक चाटा हमने!
संपर्क सूत्र— कवि आलोक शर्मा, महराजगंज, (यूपी) मो. 9935748233