अणुव्रत बने विश्व-आंदोलन

अणुव्रत आंदोलन मांसाहार और नशे का तो विरोध करता ही है, वह अहिंसा, जीवदया, ब्रह्मचर्य, पर्यावरण रक्षा, सत्याचरण, संयम और अपरिग्रह का भी आग्रह करता है।

Update:2021-03-02 10:01 IST
अणुव्रत आंदोलन पर डॉ. वेदप्रताप वैदिक का लेख (PC: social media)

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

लखनऊ: आज अणुव्रत आंदोलन का 73 वां जन्मदिन है। इसे प्रसिद्ध जैन मुनि आचार्य तुलसी ने 1949 की 1 मार्च को शुरु किया था। गांधीजी की हत्या के सवा साल के अंदर ही इस आंदोलन की शुरुआत इसी दृष्टि से हुई थी कि देश में सर्वधर्म समभाव सर्वत्र फैले। वह भाव सर्व-स्वीकार्य हो। वह सर्वेषां अविरोधेन याने वह किसी का भी विरोधी न हो। इस आंदोलन के जो 11 सूत्र हैं, उनका भारत में तो क्या सारी दुनिया में कोई भी विरोध क्यों करेगा ? सभी देशों, सभी धर्मों, सभी जातियों, सभी वंशों और सभी वर्गों को यह स्वीकार होगा।

ये भी पढ़ें:Good News: पेट्रोल-डीजल जल्द होगा सस्ता, सरकार ले सकती है ये बड़ा फैसला

इसके दो सूत्रों पर कुछ विवाद हो सकता है

इसके दो सूत्रों पर कुछ विवाद हो सकता है। एक तो शाकाहार और दूसरा नशाबंदी। जहां तक मांसाहार का सवाल है, मुसलमानों की कुरान शरीफ में, ईसाइयों की बाइबिल में, पारसियों के जिन्दावस्ता में, सिखों के गुरु ग्रंथ साहब में और हिंदुओं के वेदों और उपनिषदों में यह कहीं नहीं लिखा है कि जो मांस नहीं खाएगा, उसकी धार्मिकता में कोई कमी हो जाएगी। जहां तक बलि और कुर्बानी का सवाल है, बाइबिल के पैगंबर इब्राहिम ने जब अपने बेटे इज़हाक की बलि चढ़ाने की कोशिश की तो यहोवा परमेश्वर ने उन्हें रोका और कहा कि तुम्हारी आस्था की परीक्षा में तुम सफल हो गए। अब बेटे की जगह तुम एक भेड़ की कुर्बानी कर दो।

यह सांकेतिक कुर्बानी है

मैं कहता हूं कि यह सांकेतिक कुर्बानी है। यही करनी है तो किसी बकरे या भेड़ की जान लेने की बजाय हमारे हिंदू, मुसलमान, यहूदी और ईसाई भाई एक नारियल क्यों नहीं फोड़ देते ? मांसाहार से मुक्त होने के हजार फायदे हैं। इसी तरह से नशा छोड़ना तो इंसान बनना है। इंसान और जानवर में क्या फर्क है ? उसमें स्वविवेक नहीं होता। इंसान जब नशे में होता है तो उसका स्वविवेक स्थगित हो जाता है। इसलिए कई धर्मों में लोग अपने देवताओं को भी शराब पिला देते हैं ताकि उन पर कोई उंगली न उठा सके।

ये भी पढ़ें:बंगाल चुनाव: कांग्रेस के लिए मुसीबत बने पीरजादा, गठबंधन पर पार्टी में छिड़ी जंग

अणुव्रत आंदोलन मांसाहार और नशे का तो विरोध करता ही है, वह अहिंसा, जीवदया, ब्रह्मचर्य, पर्यावरण रक्षा, सत्याचरण, संयम और अपरिग्रह का भी आग्रह करता है। यदि दुनिया के लोग अणुव्रत का पालन करने लगें तो अदालतों, पुलिस और फौजों का नामो-निशान ही मिट जाए। यह विश्व का सबसे प्रभावशाली नैतिक आंदोलन बन सकता है। मैं तो कहता हूं कि संयुक्तराष्ट्र संघ को अपना एक नया घोषणा-पत्र (चार्टर) तैयार करना चाहिए, जिसमें दो-तीन नए मुद्दे जड़ने से यह अणुव्रत आंदोलन विश्व-व्यापी बन सकता है।

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Tags:    

Similar News