बंगाल में असोल परिवर्तन के लिए अभी करना होगा और इंतज़ार ?
बंगाल विधानसभा 2021 के चुनाव परिणाम कई मायनों में ऐतिहासिक रहे हैं और देश की भविष्य की राजनीति को भी कई संदेश व संकेत देने वाले हैं।
लखनऊ: बंगाल विधानसभा 2021 के चुनाव परिणाम कई मायनों में ऐतिहासिक रहे हैं और देश की भविष्य की राजनीति को भी कई संदेश व संकेत देने वाले हैं। बंगाल के विधानसभा चुनाव परिणाम इसलिए ऐतिहासिक व आश्चर्यचकित करने वाले माने जायेंगे क्योंकि तृणमूल कांग्रेस की नेता व राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी नंदीग्राम सीट तो हार गयीं लेकिन पूरे बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को 2016 की अपेक्षा चार सीटें अधिक मिल गयीं । वहीं दूसरी बड़ी बात यह रही कि बंगाल की भद्रलोक की राजनीति में कांग्रेस व लेफ्ट पार्टियों का अस्तित्व ही समाप्त हो गया जबकि अन्य छोटी क्षेत्रीय पार्टियों का भी कोई वजूद वहां पर नहीं बचा।
अब भारतीय जनता पार्टी ही 2026 विधानसभा चुनावों तक ममता बनर्जी की विचारधारा व वहां के गुंडों से असली मुकाबला करती दिखलायी पड़ेगी। अभी फिलहाल बंगाल में ममता बनर्जी की जीत से पीएम मोदी व बीजेपी विरोधी ताकतों को खुशियां मनाने का अवसर मिला है। देश के मीडिया का एक बहुत बड़ा वर्ग भी परोक्ष रूप से बंगाल में ममता बनर्जी के लिए ही काम करता दिखलायी पड़ रहा था।
मीडिया का एक बड़ा वर्ग अपने चुनावी कार्यक्रमों में ममता बनर्जी के प्रति सहानुभुति को ही दिखा रहा था और वह केवल मुस्लिम राजनीति पर ही अपना प्रचार -प्रसार केंद्रित कर रहा था। चाहे जो हो लोकतंत्र में जनता का निर्णय सर्वोपरि होता है यह एक कटु सत्य है कि अब बंगाल में ममता दीदी को एक बार फिर जनता ने पांच साल के सत्ता की बागडोर सौंप दी है तथा अभी बीजेपी वहां पर पांच साल के मजबूत विपक्ष की भूमिका अदा करेगी। 215 सीटें आने के बावजूद अब विपक्ष के 75 से अधिक विधायक ममता दीदी पर कुछ न कुछ लगाम तो अवश्य ही लगायेंगे।
अब ममता दीदी व बीजेपी के लिए आत्मचिंतन का समय है। बंगाल में ममता दीदी के सामने सबसे पहले यह समस्या है कि अब वह वहां की जनता को कोरोना महामारी के प्रकोप से बचायें, अस्पतालों में आक्सीजन की व्यवस्था करें, दवाओं की व्यवस्था करवाएं तथा आम जनता व कार्यकर्ताओं से कोविड की गाइडलाइन का पालन करवायें। ममता दीदी ने चुनाव जीतने के तुरंत बाद ही लोगों से मास्क पहनने व राज्य में सभी को फ्री वैक्सीन लगवाने का ऐलान कर ही दिया है। प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने कोरोना के खिलाफ जंग में राज्य को पूरी सहायता देने की बात कही है।
राज्य में सबसे प्रमुख आत्मचिंतन यदि करना है तो वह बीजेपी को करना है। यह बात पूरी तरह सही और सत्य है कि बंगाल में 70 साल के इतिहास में पहली बार बीजेपी ने पूरे दम-खम के साथ चुनाव लड़ा था। एक समय वह भी था जब वामपंथी दलों के शासनकाल में राज्य में कोई और दल अपने पैर नहीं जमा सकता था। आज वहीं वामपंथी पूरी तरह से साफ हो चुके हैं। 2001 , 2006 और 2011 में बीजेपी का एक भी विधायक नहीं था जबकि 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमति शाह के प्रयासों से बीजेपी ने अपनी पैठ मजबूत करनी शुरू की और 2019 के लोकसभा चुनावों में पहली बार 18 लोकसाभा सीटें जीतने में सफल रही थी।
बीजेपी ने लोकसभा चुनावों में मिली बढ़त को आधार मानकर 200 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा जरूर था लेकिन वास्तव में जमीनी धरातल पर बीजेपी के लिए यह राह बहुत आसान भी नहीं थी। यह बात बीजेपी का नेतृत्व भी अच्छी तरह से समझ रहा था। यह बीजेपी के लिए बहुत ही गर्व की बात है कि इस बार ममता दीदी के मुकाबले किसी लोकप्रिय नेता के अभाव में चुनाव मैदान में उतरी और पहली बार 75 से अधिक विधायक विधानसभा में पहुंचने में कामयाब रहे।
बंगाल में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी समस्या एक लोकप्रिय नेता का न होना रही। जब बंगाल की जनता में लोकप्रिय क्रिकेट खिलाड़ी व भारतीय क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष सौरव गांगुली ने बीजेपी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने से मना कर दिया और फिर फिल्म अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती को भी एकदम आखिरी क्षणों में ही बीजेपी मे शामिल करवाया गया। जब बंगाल में बीजेपी की सौरव गांगुली से बात चल रही थी उसी समय उन्हें दो बार हार्ट अटैक आया और गृहमंत्री अमित षाह पर आरोप लगा कि वह सौरव गांगुली पर राजनीति में आने के लिए दबाव बना रहे हैं। बंगाल में कम से कम सौ सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता चुनाव परिणामों पर सीधा असर डालते हैं।
ऐसी सीटों पर बीजेपी के पास कोई जीताऊ उम्मीदवार नहीं थे। कई सीटों पर उम्मीदवार नहीं होने कारण ही बीजेपी के पांच में से तीन सांसद चुनाव हार गये। लोकसभा सांसद बाबुल सुप्रियों व महिला सांसद लाकेट चटर्जी ने चुनाव जरूर लड़ा लेकिन राज्य की दूसरी सीटों पर चुनाव प्रचार करने के कारण यह लोग अपनी सीट भी गंवा बैठे। बीजेपी विधानसभा चुनावों में हारी जरूर है लेकिन लगभग सभी सीटों पर वह दूसरे नंबर की पार्टी अवश्य बन गयी है। कई सीटों पर हजार और दो हजार मतों से ही हार जीत हुई है।
बीजेपी की पराजय के कई अन्य कारण भी रहे। देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर का आना बीजेपी के लिए परेषानी का सबब बन गया। चैथे व पंाचवे चरण में बीजेपी को रोकने के लिए टीएमसी के गुंडों ने अपना खेला शुरू कर दिया था। बीजेपी उम्मीदवारो व कार्यकर्ताओं पर हमले किये गये। पांचवे, छठे , सांतवे और आंठवे चरण में बीजेपी का चुनाव प्रचार कुछ हद तक काफी ठंडा पड़ गया। पीएम मोदी की अंतिम चरण में रैलियां रदद हो गयीं, मत प्रतिशत कम हो गया जिस कारण बीजेपी को जितना बढ़ना चाहिए था वह हो नहीं सका।
कांग्रेस व लेफ्ट दलों का अंतिम समय में कोरोना के बहाने अपनी रैलियां रदद कर देना व ममता दीदी को जिताने के लिए अपने सारे वोट ममता दीदी को समर्पित कर देने से भी बीजेपी की पराजय का मूल कारण रहे हैं। अंतिम चरण में मुस्लिम बहुल इलाकों में चुनाव था वहां पर सीतलकुची की घटना ने अपना असर दिखलाया और मुसलमानों ने ममता दीदी की अपील को हाथोंहाथ लिया और अपना एक मुश्त वोट ममता दीदी को डाल दिया। एक प्रकार से बीजेपी शुरूआत से ही केवल 150 सीटों पर ही मजबूती से लड़ती दिखलायी पड़ रही थी।
वहीं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पैर के फ्रैक्चर को सहानूभुति का नजरिया बनाया और व्हीलचेयर पर बैठकर चुनाव प्रचार किया। उन्होंने बंगाल के मुसलामनों से खुलेआम वोट मांगा और फिर उदार हिंदुत्व का चेहरा दिखाने के लिए मंच पर चंडीपाठ कर दिया और अपने आपको पहली बार ब्राहमण बताते हुए अपना शांडिल्य गोत्र भी बता दिया।
ममता बनर्जी ने हिंदुओं का वोट पाने के लिए मंदिरों का दर्शन शुरू कर दिया और इस बार उन्होंने उदार हिंदुत्व का प्रदर्षन करते हुए एक पोस्टर जारी करवाया था जिसमें वह तुलसी के पौधे पर जल चढ़ा रही थीं। ममता दीदी ने हिंदू वोट पाने के लिए दुर्गा पूजा कराने वाले पंडालों व समितियों को पचास हजार रूपये की आर्थिक सहायता देने का ऐलान भी किया। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाली बनाम बाहरी का मुद्दा जोर -शोर से उठाया जिसमें वह सफल भी रहीं। अंतिम पांचवे ,छठे , सातवें तथा आठवें चरण के चुनाव प्रचार में उन्होंने बीजेपी पर राज्य में कोरोना को फैलाने का आरोप भी लगा दिया।
बंगाल में ममता दीदी की एक मुश्त विजय का श्रेय राज्य के मुसलमानों को ही जाता है। मुस्लिम मतो का धु्रवीकरण तो पूरी तरह से हो गया लेकिन बीजेपी के पक्ष में मतुआ समुदाय , दलित व अनुसूचित जाति व जनजाति समाज का पूरी तरह से धु्रवीकरण नहीं हो पाया। बंगाल के नतीजो का त्वरित आंकलन से यह साफ पता चलता है कि बंगाल में ममता बनर्जी के गुंडों की धांघली और बेशर्म तुष्टिकरण ही आखिरकार उनके काम आया है। जिन सीटों पर भी मुस्लिम जनसंख्या प्रभव डालने वाली थी वहां पर टीएमसी की जोरदार जीत हुई है।
कांगेस व लेफ्ट का जिस तरह जोरदार सफाया हुआ है उस पर कोई बात ही करने को तैयार नहीं है। वामपंथी जहां 5 फीसदी वोटों और शून्य सीटों पर सिमट गये तो कांगेस को भी केवल तीन फीसदी वोट ही मिल सके हैं। हिंदू वोट हमेषा की तरह धु्रवीकृत नहीं हुए और उसका नुकसान बीजेपी को हुआ जबकि मुसलमानों ने हमेशा की तरह निगेटिव वोटिंग की और भाजपा को हराने के लिए एकजुट हो गये। ममता बनर्जी ने जब मुस्लिम वोटर्स का आहवान किया कि केवल उनको ही वोट दें तो उसका फायदा भी उनको ही मिलना था। यह अपने देश का विचित्र हाल है कि अगर आप मुस्लिम वोटों का सीधे बांट- बखरा करें तो आप सेकुलर हैं लेकिन हिंदुओं के अधिकार के लिए भी अगर किसी ने आवाज उठायी तो वह सांप्रदायिक है।
टीएमसी के गुंडों ने नतीजों के आते ही राज्य में कई जगह पर हिंसा की है तोड़फोड़ की है तथा बीजेपी कार्यलायों में आग लगा दी है व कई बीजेपी कार्यकर्ताओें के घरों व दुकानों में भी आगजनी की है। बंगाल में एक बार फिर हिंसा का नया दौर हो रहा है। कमीश नखोरी, तोालेबाजी, हरेक केंद्रीय योजनाओें में अडंगा अब बंगाल को नसीब होने वाला है। रोहिंग्या और अवैध बांग्ला देशी वहां हरेक दिन एक नया कश्मीर बनायेंगे। हालांकि, बीजेपी एक मजबूत विपक्ष के रूप में उभरी है पर हिंदुओं को वह कितना बचा पायेगी यह देखने वाली बात होगी क्योंकि फिलहाल अब वहां पर राष्ट्रपति शासन तो नहीं लगेगा और नहीं वहां पर राजनैतिक अस्थिरता इतनी जल्दी नहीं आने वाली।
बंगाल की जनता ने फिलहाल ममता दीदी को ही कबूल कर लिया है। अभी वहां की जनता को बहुत कुछ सहना और देखना है। बंगाल विधानसभ चुनाव परिणामों पर सोशल मीडिया यूजर्स भी लिख रहे हैं। फिल्म अभिनेत्री कंगना रानौत ने भी लिखाऔर एक यूजर्स ने लिखा कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों के दौरान जो बाइडेन के पैरों में फ्रैक्चर हुआ जबकि बंगाल विधानसभा चुनावों में ममता दीदी को फ्रैक्चर हुआ और दोनों लोग चुनावा जीतने में कामयाब रहे।
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