रेडियो का भी था पासपोर्ट
यह वही रेडियो है जो सिलोन पर अमीन साहनी की बिनाका गीतमाला भारतीयों में ही नहीं विदेशों में भी लोगों को प्रोग्राम सुनने का हर बुधवार शाम ८ बजे गीतमाला का इंतजार रहता था ।
राजीव गुप्ता जनस्नेही
लखनऊ: आज हम ऐसे आविष्कार के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके आविष्कार की नीव भारत के स्व जगदीश चंद वसु ने 120 वर्ष पूर्व रखी थी ।यह वही रेडियो है जिसने देश दुनिया की ना केवल खबरें दी बल्कि मनोरंजन का भी साधन सिद्ध हुआ| एक समय ऐसा था जैसे आज के समय पर हम मोबाइल के बिना अधूरा महसूस करते हैं उसी प्रकार से हम रेडियो के बिना अधूरा महसूस करते थे | जी हां आज 13 फरवरी 2021 विश्व रेडियो दिवस पर हम उसी रेडियो की बात कर रहे हैं जिसे लोग कान से लगा कर क्रिकेट की कामंटेरी सुनते थे,सड़कों पर स्कोर पूछने के लिए जाम लग जाते थे |
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एक समय ऐसा था जब यह रेडियो हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करता था
यह वही रेडियो है जो सिलोन पर अमीन साहनी की बिनाका गीतमाला भारतीयों में ही नहीं विदेशों में भी लोगों को प्रोग्राम सुनने का हर बुधवार शाम ८ बजे गीतमाला का इंतजार रहता था । एक समय ऐसा था जब यह रेडियो हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करता था| दुनिया भर में सूचना के आदान-प्रदान और लोगों को शिक्षित और संचार करने में रेडियो की अहम भूमिका थी जो ना केवल आम आदमियों को बल्कि सैन्य जगत का महतपूर्ण हथियार था ।साठ से सत्तर के दशक में पार्क और सार्वजनिक स्थानों पर लाउडस्पीकर लगाकर लोगों को रेडियों सुनाया जाता था। हमारे जमाने मे जन्मे लोगो को याद होगा रेडियो सुनने के लिए लाइसेंस भारतीय डाक विभाग भारतीय तार अधिनियम 1885 के अंतर्गत जारी करता था |
बिना लाइसेंस के रेडियो कार्यक्रमों को सुनना कानूनी अपराध माना जाता था
घरेलू रेडियो के लिए 15 और कमर्शियल रेडियो के लिए २५ रुपए प्रतिवर्ष लाइसेंस शुल्क लगता था।हर साल डाक विभाग में शुल्क देकर पास्पोर्ट की तरह किताब का नवीनीकरण करना होता था । उस दौर में बिना लाइसेंस के रेडियो कार्यक्रमों को सुनना कानूनी अपराध माना जाता था। जिसमें आरोपी को वायरलेस टेलीग्राफी एक्ट 1933 के अंतर्गत दंडित किए जाने का प्रावधान था।समय चक्र के साथ इसका प्रचलन भी और प्रभाव को पहले टीवी ने अब मोबाइलों ने कम कर दिया है | प्रतिवर्ष लगने वाले लाइसेंस शुल्क 80 दशक में ख़त्म कर दिया गया । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात से एक बार फिर पूरे देश में रेडियो की ना केवल अहमियत बढ़ाई है बल्कि एक गति प्रदान कर दी है |
विज्ञापन की दुनिया ने इसकी पकड़ देखते हुए इसको विज्ञापन का हथियार बनाया
आपको जानकर आश्चर्य होगा जिस रेडियो को सदियों पुराना माध्यम मानते हैं उस रेडियो पर मन की बात सुनने के लिए संचार के इस माध्यम का करोड़ों लोग रेडियो का उपयोग करते हैं| विज्ञापन की दुनिया ने इसकी पकड़ देखते हुए इसको विज्ञापन का हथियार बनाया। आइए इस दिन की शुरुआत कैसे हुई और इसका क्या इतिहास है उसके बारे में जानते हैं।स्पेन रेडियो एकेडमी ने वर्ष 2010 में पहली बार इसका प्रस्ताव यूनेस्को की सामने रखा ।यूनेस्को की महासभा के 36 वें सत्र में 29 सितंबर 2011 को यह फैसला हुआ दुनिया 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस बनाएगी।
कारण है कि रेडियो से कहीं पर भी आसानी से इसके प्रसारण का लाभ ले सकते हैं
विश्व रेडियो दिवस के तौर पर यूनेस्को की घोषणा को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने के 67 वें अधिवेशन में 14 जनवरी 2013 को मंजूरी दी।यह दिन इसलिए चुना गया क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र ने रेडियो 1946 में 13 फरवरी को बनाया गया था परंतु औपचारिक रूप से पहला विश्व रेडियो दिवस 13 फरवरी वर्ष 2012 से हर वर्ष यूनेस्को दुनिया भर के ब्रॉडकास्टर्स ,संगठनों ,और समुदायों के साथ मिलकर रेडियो दिवस के अवसर पर कई तरह के कार्यक्रम आयोजन करता है| अंतर्राष्ट्रीय अकादमी पुरस्कार दिया जाता है। इस दिन संचार के माध्यम के तौर पर रेडियो की अहमियत के बारे में ना केवल चर्चा की जाती है बल्कि जागरूकता भी बढ़ाई जाती है । कारण है कि रेडियो से कहीं पर भी आसानी से इसके प्रसारण का लाभ ले सकते हैं।
आज भी रेडियो की अहमियत अन्य आविष्कार के आने से कम नहीं हुई है
आज के दिन क्या बच्चे क्या बूढ़े क्या जवान सभी लोग अपने अपने तरीके से इस आयोजन को करने का लुफ्त उठाते हैं और सोशल मीडिया पर बढ़-चढ़कर बधाई देने का कार्यक्रम करते हैं | आज भी रेडियो की अहमियत अन्य आविष्कार के आने से कम नहीं हुई है तमाम टैक्सी ड्राइवर ,स्टूडेंट कॉर्पोरेट ,प्रोफेशनल, समेत करोड़ों आम लोग आज रेडियो ,एफएम रेडियो के माध्यम से अपने आप को शिक्षित और मनोरंजन करते हैं |
रेडियो में समाचार और शिक्षाप्रद के कार्यक्रमों से युवाओं के चरित्र निर्माण में बहुत अहम हिस्सा है
आज भी रेडियो में समाचार और शिक्षाप्रद के कार्यक्रमों से युवाओं के चरित्र निर्माण में बहुत अहम हिस्सा है| इसी के माध्यम से प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं के दौरान लोगों की जान बचाने में ना केवल मदद मिलती है बल्कि लोगों को आने वाली विपत्ति का सामना करने के लिए सचेत व जागरूक किया जाता है ।यह पत्रकारों ,गीतकार ,ग़ज़लकार,संगीतकार किसी विशेष विषय के विशेषज्ञ इसी के माध्यम से अपनी बात या संगीत या कहानी गीत लोगों तक पहुंचाते हैं ।
मौजूदा समय में यह सूचना फैलाने का सबसे शक्तिशाली एवं सस्ता माध्यम है
मौजूदा समय में यह सूचना फैलाने का सबसे शक्तिशाली एवं सस्ता माध्यम है हालांकि रेडियो सदियों पुराना माध्यम हो गया है लेकिन अब भी संचार के लिए इसका इस्तेमाल होता है । रेडीओ का सफ़र कुछ इस तरह रहा रेडियो तरंगों के अस्तित्व और रेडियो प्रसारण की व्यवहार्यता की भविष्यवाणी स्कॉटिश वैज्ञानिक जेम्स क्लार्क मैक्सवेल ने 1860 के दशक में की थी।बाद में जिसकी शुरुआत भारत के जगदीश चंद्र बसु ने तथा गुल्येल्मो मार्कोनी ने सन 1895-1900 में ही कर दी थी। वसु को आज पूरी दुनिया मार्कोनी के साथ बेतार संचार के पथप्रर्दशक कार्य के लिए रेडियो का सह-आविष्कारक मानती है।
रेडियो का प्रयोग केवल नौसेना तक ही सीमित था
लेकिन एक से अधिक व्यक्तियों को एक साथ संदेश भेजने या ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत 1906 में फेसेंडेन के साथ हुई। उस समय रेडियो का प्रयोग केवल नौसेना तक ही सीमित था। इस को गति 1918 में ली द फोरेस्ट ने न्यूयॉर्क के हाईब्रिज इलाके में दुनिया का पहला रेडियो स्टेशन शुरु किया था जोकि बाद में किसी वजह से बंद हो गया। एक साल बाद 1919 में फोरेस्ट ने एक और रेडिया स्टेशन शुरू किया। हालांकि पहली बार रेडियो को कानूनी रूप से मान्यता 1920 में मिली, जब नौसेना के रेडियो विभाग में काम कर चुके फ्रैंक कॉनार्ड को रेडियो स्टेशन शुरु करने की अनुमति मिली।
भारत में 1930 में इंडिया ब्रॉडकास्ट कंपनी आईबीसी दिवालिया हो गई थी
आपको ज्ञात हो 1923 में भारत में रेडियो ब्रॉडकास्ट की शुरुआत हुई ऑर पहली बार रेडीओ में विज्ञापन की शुरुआत भी 1923 में ही हुई इसके बाद ब्रिटेन में बीबीसी और अमेरिका में सीबीएस और एनबीसी जैसे सरकारी रेडियो स्टेशनों की शुरुआत हुई | भारत में 1930 में इंडिया ब्रॉडकास्ट कंपनी आईबीसी दिवालिया हो गई थी और उसे बेचना पड़ा इसके बाद इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस को बनाया गया था ।
हमारे देश में रेडियो से पहला समाचार बुलेटिन 19 जनवरी 1936 को मुंबई से प्रसारित हुआ | भारत में सरकारी इंपीरियल रेडियो ऑफ इंडिया की शुरुआत से जो आजादी के बाद ऑल इंडिया रेडियो और आकाशवाणी बन गया। 1941 में सूचना प्रसारण विभाग बना। 1947 के पूर्व भारत में मात्र 9 रेडियो स्टेशन थे, जिनमें ढाका, लाहौर और पेशावर के भी केन्द्र शामिल थे।
भारत में 1930 में इंडिया ब्रॉडकास्ट कंपनी आईबीसी दिवालिया हो गई थी
विश्व रेडियो दिवस का 2021 की थीम न्यू वर्ल्ड न्यू रेडियो हैं जो 3 उप-विषयों पर आधारित है:विकास,इनोवेशन ,कनेक्शन आपको जानकर आश्चर्य होगा भारत में आकाशवाणी के 420 स्टेशन है जिनकी 92 परसेंट क्षेत्र में 99 पॉइंट 99 पर्सेंट आबादी तक पहुंचे हैं।आकाशवाणी से 23 भाषाओं में और 14 बोलियों में पूरे देश में प्रसारण होता है तथा देश में 214 सामुदायिक रेडियो प्रसारण ( कम्युनिटी रेडियो ) है ।आगरा के सभी पाठकों को मालूम होगा कि आगरा में भी आकाशवाणी व कम्युनिटी रेडियो के माध्यम से मंडल की तमाम प्रतिभाओं को बुलाकर उनकी वार्तालाप और टैलेंट को रूबरू कराया जाता है ।
अंत में रेडियो के सशक्त माध्यम को बताने के लिए मैं नेता जी स्व सुभाष चंद्र बोस कि उस भाषण का जिक्र करना चाहता हूं जिन्होंने रेडियो पर जर्मनी से भारत वासियों को संबोधित करके उनके अंदर खून का संचार कर दिया था ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार से आज आगरा विश्वविद्यालय अपने कम्युनिटी सेंटर के माध्यम से अपने विश्वविद्यालय के छात्रों को ज्ञानवर्धक वार्तालाप के साथ स्वस्थ जीवनशैली जीने के कार्यक्रम कम्युनिटी सर्विस हेड पूजा सक्सेना के माध्यम से आयोजन करके मंडल के छात्रों के चरित्र निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है|
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संचार और मनोरंजन के इस माध्यम रेडीओ से सभी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े सभी लोगों को हम अपनी तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं व बधाई देते हैं और आशा करते हैं भारत के हर नागरिक को शिक्षा , ज्ञानवर्धक ,चरित्र निर्माण के कार्यक्रम से आप एक सशक्त भारत का ना केवल निर्माण कर रहे हैं बल्कि भारत को विश्व गुरु बनाने की दिशा में आपका कदम निश्चित रूप से बहुत ही सराहनीय व वंदनीय होगा ।