Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: अजातशत्रु थे हमारे ‘अटल जी’

Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: अपनी पार्टी का नेता हो या विरोधी पार्टी का, सबको साथ लेकर चलने की खूबी पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी को दूसरे नेताओं से अलग करती थी।

Written By :  Alok Awasthi
Update:2024-12-25 09:05 IST

Atal Bihari Vajpayee (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary:

'बाधाएं आती हैं आएं,

घिरें प्रलय की घोर घटाएं,

पांवों के नीचे अंगारे,

सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,

निज हाथों में हंसते-हंसते,

आग लगाकर जलना होगा,

कदम मिलाकर चलना होगा।'

अपनी इन्हीं पंक्तियों की तरह थे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee)। अपनी पार्टी का नेता हो या विरोधी पार्टी का, सबको साथ लेकर चलने की खूबी उन्हें दूसरे नेताओं से अलग करती थी। यही कारण था कि उन्हें अजातशत्रु (Ajatashatru) भी कहा जाता था।

मैं विद्यार्थी परिषद का कार्यकर्ता था। 1985 में विद्यांत डिग्री कालेज छात्र संघ का अध्यक्ष बनकर राजनीतिक जीवन शुरू किया था। भगवती शुक्ला जी उस समय लखनऊ महानगर के अध्यक्ष थे, वे मुझे भाजपा में मेरी प्रतिभा देखते हुए ले आये। 1991 में श्रद्धेय अटल जी लखनऊ से लोकसभा का चुनाव लड़े।मैं भी पार्टी की योजना से लगाया गया। श्रद्धेय अटल जी के राजनैतिक सलाहकार, उनके मित्र, शिवकुमार पारिक जी जो स्वयं भी विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता थे, उन्होंने अटल जी के साथ कार्य करने के लिये मुझे चुना। इस तरह से मैं अटल जी का सहयोगी बन सका।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

1996 की घटना है। उस समय श्रद्धेय अटल जी 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने थे। उनका भाव पूर्ण भाषण लोकसभा में चल रहा था, मैं उस समय उनके सहयोगी के रुप में उनके लोकसभा क्षेत्र में काम करता था। उस दिन दिल्ली में था और भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय में अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एजाज रिजवी जी के साथ अटल जी का भावपूर्ण भाषण टेलीविजन में हम दोनों लोग सुन रहे थे। दोनों में से कोई भी एक दूसरे से बात नहीं कर रहा था। मन में भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा था। भाषण समाप्त होता है और हम दोनों ने एक दूसरे को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा देखते ही फूट-फूट कर रोने लगे। अटल जी के भाषण का जिक्र करते जाएं और रोते जाएं। फिर तय हुआ कि चलो अटल जी को मिलकर आते हैं। हम दोनों लोग अटल जी के निवास 6 रायसीना रोड पहुंचे।

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अटलजी भी अपना इस्तीफा देकर घर पहुंचे ही थे। उनको सूचना मिली। उन्होंने अपनी स्टडी में हमें बुलाया। हम रुआंसे उनके सामने गए। लेकिन हम अवाक् रह गए अटलजी तो ठहाका लगा कर बोले अरे जयप्रकाश लाओ लड्डू खिलाओ आलोक को और एजाज साहब को। हम देखकर दंग रह गए कि जो व्यक्ति देश की सत्ता को अभी-अभी छोड़कर आया हो वह ऐसे कैसे मुस्कुरा सकता है। अटल जी हमारे मन के भाव को समझ गए तुरंत बोले लड्डू खाओ और काम पर जाओ। यह एक पड़ाव है मंजिल नहीं भारत माता को विश्व गौरव बनाना है जाओ काम करो। अटल जी को खाने का बहुत शौक था, चौक की मलाई और चाट, राम आसरे की मलाई गिलौरी, कचौरी और रिट्ज के मोतीचूर के लड्डू उन्हें बेहद पसंद थे।

जब बात बन गई हेडलाइन

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

एक घटना और याद आती है 2004 का लोकसभा का चुनाव था, अटल जी राजभवन में बैठे थे। मुझको बुलाया गया। मैं उस समय अटल जी की लोकसभा की जो चुनाव संचालन समिति बनी थी, उसमें प्रचार और मीडिया विभाग का प्रमुख था। एक दिन पहले ही कुछ पत्रकारों से बात करते हुए ऐसी चर्चा हो गई थी टाइम्स ऑफ इंडिया ने उसको हेडलाइन देकर छाप दिया था। प्रश्न यह था कि अटल जी के क्षेत्र में आडवाणी जी की सभा क्यों नहीं हो रही है? मैंने स्वाभाविक रूप से उत्तर दिया था कि अटल जी को अपने चुनाव क्षेत्र में जीतने के लिए किसी भी सभा की आवश्यकता नहीं है। हां, अटल जी की सभा और लोकसभा क्षेत्रों में हो इसकी सभी को आवश्यकता है। इसी बात पर यही हेड लाइन ले लिया अखबार ने। अटल के क्षेत्र में आडवाणी की आवश्यकता नहीं।

मेरी पेशी हो गई मैं तो समझा कि आज जो है मुझे बहुत डांट पड़ेगी और मेरा राजनीतिक जीवन यहीं समाप्त हो जाएगा। वहां प्रमोद महाजन थे, अटल जी के भांजे अनूप मिश्रा जी थे, शिवकुमार जी थे और आदरणीय टंडन जी थे उन्होंने मुझसे कहा कि तुम यह क्या बोल दिए हो, अडवाणी जी के बारे में। मैं सहम गया आदरणीय प्रमोद जी ने मेरा बचाव करते हुए कहा बाप जी, आलोक ने गलत क्या कहा, ठीक ही तो कहा है आपको अपने चुनाव क्षेत्र में किसी की क्या आवश्यकता है । अटल जी अपने चिरपरिचित अंदाज में बोले इस बात को दूसरे ढंग से भी कहा जा सकता था और मेरे को बोले ध्यान रखो चुनाव है बात का बतंगड़ जल्दी बनता है संयम से काम करो।

ये भी किस्सा रहेगा याद

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

एक और महत्वपूर्ण घटना आदरणीय अटल जी के साथ रहते हुए घटी थी। आदरणीय कल्याण सिंह जी किन्हीं कारण वश पार्टी छोड़ कर चले गए थे। उन्होंने आदरणीय अटल जी के लिये ऐसी भाषा का प्रयोग किया था जो कि अटल जी के बारे में नहीं किया जाना चाहिए था। अटल जी के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर लखनऊ में टंडन जी के निवास पर एक सहभोज का कार्यक्रम रखा गया था, उसमें सभी लखनऊ के गणमान्य नागरिकों को और सभी कार्यकर्ताओं को वार्ड स्तर तक के बुलाया गया था। उस दिन सुबह-सुबह शिवकुमार जी ने अटल जी से कहा कल्याण सिंह जी आपको मिलना चाहते हैं, टंडन जी से उन्होंने संपर्क किया है।

अटल जी ने पूछा कौन मिलना चाहता है। शिवकुमार जी बोले हैं वह कल्याण सिंह जी समय मांग रहे हैं मिलने का। अटल जी ने एक क्षण में ही कह दिया कि उनको शाम के सार्वजनिक सहभोज कार्यक्रम में बुलाओ और शाम को कल्याण सिंह जी वहां पहुंच गए। अटल जी जैसे ही आए कल्याण सिंह जी ने उनका अभिवादन किया। अटल जी उनको लेकर के सभी कार्यकर्ताओं के सामने आ गए और नारे लगने लगे। कल्याण सिंह जी ने मिठाई के डिब्बे से मलाई गिलौरी निकाल कर उन्हें खिलाने का प्रयास किया।

अटल जी ने संकेत से ही पूछा क्या कल्याण सिंह जी मैं यह गिलोरी खा लूं? कल्याण सिंह जी बोले अटल जी आप खा लीजिए। अटल जी ने दोबारा पूछा खा लूँ? कल्याण सिंह जी बिल्कुल ही द्रवित अभिभूत हो गए थे। उन्होंने कहा अटल जी आप खा लीजिए। आप देखिए एक महामानव का सांकेतिक रूप से ही समर्पण और स्वीकार्यता उन्होंने जनता के सामने ही कर लिया। कल्याण सिंह जी ने बहुत सारी बातें कही थी। लेकिन पार्टी हित में अटल जी ने निर्णय लिया। अटल जी जैसे महा मानव दुनिया में बिरले ही होंगे। उनकी कमी हमेशा खलेगी।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ

लौट कर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ...

हमें आप बहुत याद आते हैं अटल जी।

(लेखक भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं।)

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