Ram Mandir Pran Pratishtha: नये युग की शुरुआत
Ram Mandir Pran Pratishtha: भारतीय मन हर स्थिति में राम को साक्षी बनाने का आदी है। दुःख में-हे राम।पीड़ा में-ओह राम।लज्जा में-हाय राम।अशुभ में-अरे राम राम।
Ram Mandir Pran Pratishtha: जन्म हमार सुफल भा आजू। आज हर भारतीय के मन में मानस की यह चौपाई उमड़ घुमड़ रही होगी। याद आ रही होगी। हर भारतीय इसलिए क्योंकि राम किसी धर्म, किसी संप्रदाय के नहीं हैं। राम केवल संज्ञा नही हैं। राम विशेषण हैं। ऐसे विशेषण जो सरहदों की सीमाओं में नहीं बंध सकता। ऐसे विशेषण जो धर्म की सीमाओं से परे है। असीम है। क्योंकि केवल सनातनियों ने ही नहीं, ग़ैर सनातनियों ने भी राम के विशेषण को मान्यता दी है।
अल्लामा इकबाल ने कहा था कि, ‘राम के वजूद पे है हिन्दोस्तां को नाज।’ इस इमामे हिन्द पर शायर सागर निजामी ने लिखा, “दिल का त्यागी, रूह का रसिया, खुद राजा, खुद प्रजा।“ मुगल सरदार रहीम और युवराज दारा शिकोह तो राम के मुरीद थे ही। राममनोहर लोहिया ने कहा था कि ”राम का असर करोड़ों लोगों के दिमाग पर इसलिये नहीं है कि वे धर्म से जुड़े हैं, बल्कि इसलिए कि जिन्दगी के हरेक पहलू और हरेक कामकाज के सिलसिले में मिसाल की तरह राम आते हैं।” गांधी के जीवन में बचपन से मृत्यु तक राम रहे। वह सत्य को राम नाम से पहचानते थे।
भारतीय मन हर स्थिति में राम को साक्षी बनाने का आदी है। दुःख में-हे राम।पीड़ा में-ओह राम।लज्जा में-हाय राम।अशुभ में-अरे राम राम।अभिवादन में-राम राम। शपथ में-राम दुहाई। अज्ञानता में-राम जाने। अनिश्चितता में-राम भरोसे। अचूकता के लिए-रामबाण। सुशासन के लिए-रामराज्य।मृत्यु के समय-राम नाम सत्य। देश के कई इलाक़ों में नमक को राम रस कहने का भी चलन है। रसोई में नमक की अहमियत बताने की ज़रूरत नहीं है। यह सब अनुभूतियाँ व अभिव्यक्तियां हर भारतीय मन के साथ पग-पग पर राम को खड़ा करती हैं। वह भी इतने सरल हैं कि हर जगह खड़े हो जाते हैं। जिसका कोई नहीं। उसके राम हैं। कहा जाता है-निर्बल के बल हैं राम। हमारे हर पर्व से हर परंपराओं में राम समाये है। राम भारत की चेतना हैं।राम चिंतन हैं। मानस ने राम को जन जन तक पहुंचा दिया। वे कण कण में व्याप्त माने गए। जन्म में गाए जाने वाले सोहर राम के जन्म के गीत हैं। जीवन भर उनके नाम का अवलंब साथ है। दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों के नाम में राम है।
’रम्' धातु का अर्थ रमण-निवास
‘रम्' धातु में 'घञ्' प्रत्यय के योग से 'राम' शब्द निष्पन्न होता है।’रम्' धातु का अर्थ रमण-निवास, विहार करने से है। वे प्राणीमात्र के हृदय में 'रमण' यानी निवास करते हैं। इसलिए 'राम' हैं । भक्तजन उनमें 'रमण' करते ध्याननिष्ठ होते हैं। इसलिए भी वे 'राम' हैं - "रमते कणे कणे इति रामः"। विष्णुसहस्रनाम पर लिखित अपने भाष्य में आद्य शंकराचार्य ने पद्मपुराण का उदाहरण देते हुए कहा है कि नित्यानन्दस्वरूप भगवान् में योगिजन रमण करते हैं, इसलिए वे राम हैं।
रामलला का मंदिर निर्माण एक तपश्चर्या से कम नहीं रहा। भले ही रामजन्मभूमि को लेकर मीर बाक़ी द्वारा किये गये विध्वंस की जंग तकरीबन साढ़े पांच सौ साल चली। लेकिन इस बीच 1984 का काल आया। 30 अक्तूबर, 1990 आया। 2 नवंबर, 1990 आया। 6 दिसंबर, 1992 आया।30 सितंबर, 2010 आया। 9 नवंबर, 2019 आया। 5 अगस्त, 2020 आया। हमारे संविधान की पहली प्रति में श्रीराम का चित्र है। फिर भी साढ़े पाँच सौ साल लग गये भगवान राम को अपनी जगह पाने में। ऐसा नहीं कि इस दौरान ऐसे पड़ाव नहीं आये जब सब एक रस होकर राम को स्वीकारने, जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए तैयार न हो गये हों।बात 1855 से 1885 के बीच की है। दो नामचीन स्वतंत्रता सेनानी- आमिर अली और राम चरण दास ने अपने अपने समुदाय से बात करके तय कर लिया था कि हिंदू वहाँ मंदिर बना लें। कहीं और मस्जिद बन जाये। दोनों की अपने-अपने जमात पर बडी धाक थी। पर अंग्रेजों को यह रास आना नहीं था। सो, इन दोनों को दूसरे आरोपों में फाँसी पर लटका दिया। इस काम में भी नाथ संप्रदाय के ब्रह्म नाथ जी का ही योगदान था। जिनके शिष्य परंपरा के योगी आदित्य नाथ आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री है।
राम की कहानी युगों से संवारने में उत्प्रेरक
इसके बाद यह आंदोलन किन किन पड़ावों से गुजरा यह जग ज़ाहिर है। पर राम की कहानी युगों से भारत को संवारने में उत्प्रेरक रही है।तभी तो रावण से शौर्य पूर्वक लड़ने वाले जटायु की राम अंत्येष्टि करते हैं। उन्हें वंचित सुग्रीव प्यारा होता है। निषाद राज गुह और भीलनी शबरी को न केवल तारते हैं। बल्कि उन्हें सहयात्री भी बनाते हैं। बालि के वध के मार्फ़त बताते हैं कि न्याय और अन्याय के बीच संघर्ष में तटस्थ रहना अमानवीय है। रामलीला हर भारतीय के लिए लोकोत्सव है। सब इसे देखते और राम कथा सुनते हैं। राम राज्य किसी भी सरकार का आदर्श है। राम राज्य में किसी भी प्रकार का ताप नहीं। किसी प्रकार का शोक नहीं। भला कौन मन शोक व ताप चाहेगा! इसीलिए राम भारतीय मन के प्रतीक हैं। पर्याय हैं। तभी तो कई भारतीय भाषाओं में रामायण की रचना हुई। देश में ही नहीं विदेशों में भी राम अपने अलग अलग रूपों में लोगों में रचे बसे हैं।
राम के रग रग में रमने की वजह से ही 22 जनवरी,2024 के दिन का अभिजीत मूहुर्त व मृगशिखा नक्षत्र हमारी सांस्कृतिक व आध्यात्मिक विरासत की पुर्नप्रतिष्ठा का काल साबित हुआ। यह हम सभी का सौभाग्य रहा कि हम अपने राष्ट्र के पुनरुत्थान के एक नये काल चक्र के शुभारम्भ के साक्षी रहे। इस ऐतिहासिक क्षण के मार्फ़त विरासत एवं संस्कृति को और समृद्ध करने में समर्थ दिखे। इस अवसर पर देशव्यापी उत्सवों की यात्रा में भारत की चिरंतन आत्मा की उन्मुक्त अभिव्यक्ति दिखाई दी। राम ने साहस, करुणा,सत्य, मर्यादा और अटूट कर्तव्य निष्ठा जैसे सार्वभौमिक मूल्यों की प्रतिष्ठा की है। तभी तो राम मंदिर को हम सदियों के धैर्य की धरोहर व नये कालचक्र का उद्गम कह सकते हैं। राममंदिर की स्थापना ने एक बार फिर यह जसाबित किया है कि संकल्प अगर लिया जाय तो सिद्धि जरुर होती है। 2014 के बाद से भारत का मानस इस देश में कुछ नहीं हो सकता है से निकल कर इस देश मे क्यों नहीं हो सकता तक पहुंच गया है। श्रीराम का अपना जीवन अनेक उतार चढ़ावों से भरा है। वैसी ही उतार चढ़ाव भरी इस मंदिर की निर्माण यात्रा भी रही है।
सर्व समावेशी समाज का प्रतिनिधित्व
राम की सेना और शिव की बारात का हमारे यहाँ बोलचाल में बहुत प्रयोग होता है। ये दोनों सर्व समावेशी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। लगता है यही आज से आगे के भारत का मूल मंत्र होगा। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने उद्बोधन में कह उठते हैं- “यह विजय का नही,विनय का क्षण है। राम के विचार मानस के साथ जनमानस में भी हों। राम भारत की आस्था हैं।राम भारत का आधार हैं। राम भारत का विचार हैं। राम भारत का विधान हैं। राम भारत की चेतना हैं। राम भारत का चिंतन हैं। राम भारत की प्रतिष्ठा हैं। राम भारत का प्रताप हैं। राम प्रभाव हैं। राम प्रवाह हैं। राम नेति हैं। राम नीति भी हैं। राम नित्यता हैं। राम निरंतरता हैं। राम व्यापक हैं, विश्व हैं। राम विवाद नहीं, समाधान हैं। राम आग नहीं, ऊर्जा हैं। इस गाँठ को इतने गंभीरता से खोला गया है कि निर्माण आग को नहीं ऊर्जा को जन्म दे रहा है।”
युगान्तकारी बदलाव उत्सव, उल्लास और उमंग के साथ बड़ी जिम्मेदारी भी आती है ताकि बदलाव को एक सकारात्मक रचनात्मक ऊंचाई तक ले जाया जा सके। राम को सिर्फ मंदिर तक सीमित करने की बजाए राष्ट्र चेतना में लाना होगा, राष्ट्र और सामाजिक निर्माण में ढालना होगा। भगवान श्री राम के दर्शन के साथ उनके आदर्शों, मर्यादाओं और सिद्धांतों के कुछ भी अंश हमें अपने भीतर उतारना होगा। हमें बदलाव का शिल्पी बनना होगा। हम उन आदर्शों से प्रेरणा लेकर उस राम राज्य के निर्माण के रास्ते पर चलना होगा। यही असली पूजा।