Ram Mandir: पड़ाव कई हैं, मंजिल दूर है
Ayodhya Ram Mandir: सदियों का सपना पूरा हुआ है। अयोध्या में भगवान श्री राम का भव्य मंदिर सामने है। कितना इंतज़ार करना पड़ा, कितने संघर्ष करने पड़े, क्या क्या नहीं हुआ। भगवान के जन्म स्थल पर मंदिर के लिए इतना लंबा इंतजार तो दुनिया में शायद ही कहीं हुआ होगा। लेकिन क्या इंतज़ार वाकई में खत्म हो गया है? क्या सचमुच हमारा स्वप्न साकार हुआ है?
Ayodhya Ram Mandir: सदियों का सपना पूरा हुआ है। अयोध्या में भगवान श्री राम का भव्य मंदिर सामने है। कितना इंतज़ार करना पड़ा, कितने संघर्ष करने पड़े, क्या क्या नहीं हुआ। भगवान के जन्म स्थल पर मंदिर के लिए इतना लंबा इंतजार तो दुनिया में शायद ही कहीं हुआ होगा। लेकिन क्या इंतज़ार वाकई में खत्म हो गया है? क्या सचमुच हमारा स्वप्न साकार हुआ है? क्या अब चैन से भगवत स्मरण करने का समय है? क्या अयोध्या ही हमारे सफर का अंत है?
जवाब है - शायद नहीं।
क्योंकि हम हजारों साल पूर्व के उस मूल स्वरूप वाले भारत से अब भी बहुत दूर हैं। जिसमें विश्वगुरु थे। सोने की चिड़िया कहे जाते थे। बीते हजारों वर्षों में न जाने कितने अयोध्या अपना स्वरूप बदल चुके, खो चुके और नष्ट हो चुके हैं। उनके संघर्ष आज भी जारी हैं। भोलेनाथ की नगरी काशी, बांके बिहारी की नगरी मथुरा- ये तो सिर्फ दो बानगियाँ हैं। ऐसे न जाने कितने स्थल होंगे जिनके बारे में जानते तो बहुत हैं लेकिन चर्चा कोई नहीं करता। क्या ये हमारे स्वप्न नहीं हैं? अयोध्या तो हमारी यात्रा का पहला पड़ाव है, मंजिल अभी बहुत बहुत दूर है। रास्ता दुष्कर, कठिन और जटिल है। बहुतेरे पड़ावों के बारे में तो पता ही नहीं है। जो कुछ कहीं लिखा है वो पुराने इतिहासकारों, यात्रियों और विद्वानों के लेखन में ही समाया हुआ है। मिसाल के तौर पर ‘इस्लामी अहद में हिंदुस्तान’ नामक पुस्तक में इडलामी इतिहास के विशेषज्ञ मौलाना अब्दुल हई ने दिल्ली, जौनपुर, कन्नौज, इटावा की कुछ मस्जिदों का जिक्र किया है कि ये निर्माण किस के ऊपर किये गए थे।
वहीं तमाम ऐसे मंदिर हैं जो कभी नष्ट किये गए और आज तक अपनी पुरानी भव्यता को वापस नहीं पा सके। जैसे कि कश्मीर का मार्तंड सूर्य मंदिर। अनंतनाग जिले में स्थित मंदिर अब खंडहर है। यह कार्कोट साम्राज्य का हिस्सा था । इसे राजा ललितादित्य ने 5वीं शताब्दी के आसपास बनवाया था और इसे मुस्लिम शासक सिकंदर बुतशिकन ने नष्ट कर दिया था। ऐसा माना जाता है कि इसे इतनी मजबूती से बनाया गया था कि इसे नष्ट होने में कई दिन लग गए।
ऐसा ही है गुजरात स्थित मोढेरा का सूर्य मंदिर जिसका निर्माण 10वीं शताब्दी के आसपास सोलंकियों के शासनकाल में हुआ था। सोलंकी सूर्य के उपासक थे क्योंकि वे स्वयं को सूर्यवानिशी या सूर्य भगवान के वंशज कहते थे। 11वीं शताब्दी में राजा भीमदेव ने सूर्य को समर्पित करते हुए इस मंदिर का निर्माण कराया था। किंवदंतियों के अनुसार मोढेरा की कहानी रामायण से मिलती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ऋषि वशिष्ठ की सलाह पर ब्रह्म-हत्या करने के अपने पापों को धोने के लिए यहां पहुंचे थे । क्योंकि उन्होंने जन्म से एक ब्राह्मण रावण को मार डाला था। वह एक यज्ञ करने के लिए मोढेरक नामक गाँव में आये और इसे सीतापुर कहा। पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र को धर्मारण्य कहा जाता था और यह गांव बाद में मोढेरा के नाम से जाना जाने लगा। इस मंदिर को महमूद गजनवी ने लूट लिया था और सोने में ढली हुई मूल मूर्ति ले गया था, जिसे बाद में सोने के सिक्कों से ढके एक गहरे गड्ढे में रख दिया गया था। इस मंदिर को अंततः अलाउद्दीन खिलजी ने नष्ट कर दिया था। उस मंदिर का अब जा कर जीर्णोद्धार हुआ है।
गुजरात में ही है रुद्र महालय मंदिर है। यह परिसर पाटन जिले के सिद्धपुर में स्थित है। सिद्धपुर सरस्वती नदी के तट पर स्थित एक प्राचीन पवित्र शहर है। गुजरात के शासक सिद्धराज जयसिंह ने 12वीं शताब्दी ईस्वी में एक भव्य रुद्र महालय मंदिर का निर्माण कराया था। इस मंदिर को 1410-1444 के दौरान अलाउद्दीन खिलजी द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था और बाद में अहमद शाह प्रथम ने भी मंदिर को नष्ट कर इसके कुछ हिस्से को संयुक्त मस्जिद में बदल दिया।
ऐसे बहुत से उदाहरण होंगे। इसे पलटें , देखें तो हरि कथा अनंता की तरह ख़त्म होने का नाम नहीं लेने वाला है। लखनऊ को ही देखें। यहां भी विवाद रहे हैं। दिवंगत लालजी टंडन की एक किताब में जिक्र भी है। दिल्ली में भूमिगत मेट्रो निर्माण के वक्त मंदिर के अवशेष पाए जाने की खबरें आईं थीं।
अब कहाँ कहाँ के पड़ाव ढूंढे जाएं। पूरा उत्तर, पश्चिम और पूर्वी भारत इन्हीं कहानियों से भरा पड़ा है। वहीं, आज भी अधिकांश बड़े और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक हिंदू मंदिर दक्षिणी भारत या उड़ीसा में पूर्वी तट पर पाए जाते हैं। ये क्षेत्र अपने अधिकांश इतिहास में इस्लामी शासन से बाहर रहे। गंगा नदी घाटी यानी आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार के साथ-साथ पंजाब और सिंध हिंदू धर्म का पारंपरिक गढ़ होते हुए भी कोई भी बड़ा हिंदू मंदिर नहीं है। क्यों? जवाब आसान है - अधिकांश को आक्रांता मूर्तिभंजकों द्वारा नष्ट कर दिया गया था, जिनमें से अधिकांश प्रारंभिक मुस्लिम काल यानी 1000-1300 ई.पू. तक हुए थे।
कई इतिहासकार बताते हैं कि प्रमुख मंदिरों को मुख्य रूप से हिंदुओं पर प्रभाव डालने के लिए नष्ट किया गया था। अयोध्या, कन्नौज, मथुरा, मुल्तान, वृन्दावन, वाराणसी, थानेसर और प्रयाग में शायद इसीलिए दक्षिण भारत जैसा कोई विशाल और भव्य ऐतिहासिक मंदिर इन क्षेत्रों में मौजूद नहीं रहा।
विश्वास और आस्था - अपनी संस्कृति, अपने इतिहास, अपने धर्म और अपनी पहचान में रहना और रखना ही सबसे बड़ी बात है। यह न तो कट्टर धार्मिकता की बात है न राष्ट्रवाद की। यह बेहद सामान्य और सुलझी हुई बात है। पड़ाव बहुत हैं, यात्रा कठिन है । लेकिन मंजिल पाना भी जरूरी है। बात सिर्फ एक स्ट्रक्चर की नहीं होती। यह एहसास की बात है। आस्था की बात है।यह विरासत की बात है जिसे हम भूले बैठे हैं। खुद से झुठलाए हुए हैं। लेकिन क्या सच को झुठलाया जा सकता है? भला अपनी विरासत को कोई कैसे भूल सकता है? सवाल अपने से पूछियेगा। जवाब वहीं है।
(अर्थशास्त्र में डी.फिल.करने के बाद लेखक ने पत्रकारिता को प्रोफ़ेशन के तौर पर इसलिए चुना क्योंकि मिशन वाली पत्रकारिता का दौर ख़त्म हो गया था। तीस सालों में विभिन्न समाचार समूहों में हर पद पर काम कर चुके हैं। पत्रकारिता के हर टेक्सट व फ़ार्म- डेली अख़बार, पत्रिका, रेडियो, टीवी, ऑन लाइन मीडिया में काम का अनुभव। कविता की दो, अंग्रेज़ी भाषा की एक और पाँच अन्य पुस्तकें प्रकाशित । हिंदी संस्थान के मधुलिमए पुरस्कार से सम्मानित । mishrayogesh5@gmail.com )