Lal Krishna Advani: राम मंदिर आंदोलन के आधार स्तम्भ- भारतरत्न लालकृष्ण आडवाणी

Lal Krishna Advani: “जहाँ राम का जन्म हुआ था, मंदिर वहीँ बनायेंगे”- संकल्प की सिद्धि के अजेय योद्धा।

Written By :  Mrityunjay Dixit
Update:2024-02-04 11:12 IST

Lal Krishna Advani (Photo: Social Media)

Lal Krishna Advani: भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक नेता, श्री राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन के महानायक तथा अपनी रथ यात्राओं के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी को देश के सबसे बड़े राजनैतिक दल के रूप में प्रतिस्थापित करने में अहम भूमिका निभाने वाले महारथी लालकृष्ण आडवाणी जी को भारत रत्न का सम्मान करोड़ों रामभक्तों का भी सम्मान है।

आज संपूर्ण भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में सनातन संस्कृति की जो लहर चल रही है, उसके आधार स्तम्भ भी कहीं न कहीं आडवाणी जी ही हैं। भारतरत्न लालकृष्ण आडवाणी का राजनैतिक जीवन अत्यंत शुचितापूर्ण रहा है जिसे एक बार सुषमा स्वराज ने सदन में “ राजनैतिक जीवन में शुचिता की पराकाष्ठा” कहकर व्याख्यायित किया था। विरोधियों द्वारा अपने ऊपर छल पूर्वक हवाला रैकेट में सम्मिलित होने का आरोप लगाए जाने पर उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र देते हुए घोषणा की कि जब तक इन अरोपों से बरी नहीं हो जाता तब तक मैं सक्रिय राजनीति में नहीं रहूँगा। उन्होंने अपनी इस घोषणा पर अमल भी किया ।

भारतरत्न आडवाणी जी का राजनैतिक जीवन 60 वर्ष से भी अधिक समय का है। 8 नवंबर, 1927 को पाकिस्तान के करांची में जन्मे आडवाणी जी की आरंभिक शिक्षा लाहौर में हुई थी। बाद में भारत आकर उन्होंने स्नातक की शिक्षा पूर्ण की । वह 14 वर्ष की आयु में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड गये। देश विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया था। उन्होंने लगभग 17 वर्ष तक दिल्ली तथा मुम्बई के जनरल पोस्ट आफिस में कार्य भी किया।

आडवणी जी के राजनैतिक जीवन का आरम्भ कानून की पढ़ाई के दौरान बंबई विश्वविद्यालय से हुआ। 1951 में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की और आडवाणी जी को राजस्थान इकाई का सचिव बनाया गया। 1970 से 1989 तक वह राज्यसभा सदस्य रहे।1973 में उन्हें भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया। वह 1977 तक इस पद पर बने रहे।आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनावों में तत्कालीन पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय मोराजी देसाई की जनता पार्टी सरकार में वह सूचना प्रसारण मंत्री बनाये गये। उन्होंने अपने कार्यकाल में कई प्रेस सुधार किये और प्रसार भारती विधेयक भी प्रस्तुत किया।



कुछ अनिश्चित राजनैतिक वातावरण के कारण मोराजी देसाई की सरकार का पतन हो गया और जनता पार्टी का भी विभाजन भी हो गया। जनता पार्टी के विभाजन के बाद पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न अटल बिहारी बाजपेयी के साथ मिलकर आडवाणी जी ने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की। ये आडवाणी जी के राजनैतिक कौशल के विस्तार लेने की यात्रा थी। मुस्लिम और जातिवादी तुष्टीकरण के अंधेयुग में आडवाणी ने पहली बार इससे ऊपर उठकर एक बड़ी रेखा बनाने का प्रयास किया और संतों द्वारा अयोध्या में रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिये चलाये जा रहे आंदोलन को राजनैतिक समर्थन देने का निर्णय किया । आडवाणी जी रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिये 25 सितंबर 1990 को रामरथ यात्रा पर निकल पड़े। इसी समय से भारतीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी के उत्कर्ष की यात्रा भी आरम्भ हो गई ।

अयोध्या में प्रभु श्री राम की जन्मस्थली पर बने भव्य मंदिर के गर्भ गृह में प्रभु श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर एक पत्रिका में प्रकाशित लेख में उन्होंने बताया कि उन्होंने किस प्रकार एक पत्रकार वर्ता में 25 सितंबर से एक 10,000 किमी लंबी रामरथ यात्रा करने के निर्णय की घोषणा की। यात्रा 25 सितंबर को सोमनाथ से आरंभ होकर 30 अक्तूबर को अयोध्या पहुंचने वाली थी। जहां आंदोलन से जुडे संतों के साथ कारसेवा की जाने वाली थी। जयश्रीराम व “सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनायेंगे” जैसे नारे की गूँज रामरथ यात्रा में ही सुनायी दी। राम रथ यात्रा को संपूर्ण भारत में अपार जनसमर्थन प्राप्त हो रहा था। हर जगह राम नाम की गूंज सुनायी दे रही थी। हिंदू समाज लालकृष्ण आडवाणी सहित बीजेपी के अन्य नेताओं के भाषण सुनने के लिए हजारों नहीं लाखों की संख्या में आता था । जगह -जगह लोग तोरणद्वार बनाकर और पुष्पवर्षा करके रथ का स्वागत करते थे। आडवणी जी की रथयात्रा राम मंदिर आंदोलन के लिए ही नही अपितु भारतीय जनता पार्टी के लिए भी संजीवनी सिद्ध हुई। रामरथ यात्रा ने हिंदू समाज की सोई चेतना को झकझोर के जगा दिया।

रामरथ यात्रा की लोकप्रियता से घबराकार कर जातिवादी व मुस्लिम परस्त नेता लालू यादव ने उनको बिहार में गिरफ्तार करवा दिया जिसके बाद वह रथयात्रा समाप्त हो गई। यह रामरथ यात्रा का ही परिणाम था कि 1991 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को 120 सीटें मिली । आडवाणी जी के नेतृत्व में ही भाजपा ने चार और जनादेश यात्राएं भारत के चार भागों से निकालीं। उन्होंने कालेधन व भ्रष्टाचार के खिलाफ भी रथयात्रा निकाली। आडवाणी जी ने अपनी रथयात्राओं के माध्यम से कई राज्यों गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भाजपा को बहुत सशक्त बना दिया। आडवाणी जी की यात्राएँ इतनी लोकप्रिय हो गई थीं कि उन्हें भाजपा का रथयात्री भी कहा जाने लगा था।




प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आडवाणी जी को भारत रत्न देकर न केवल राष्ट्रनिर्माण में उनके योगदान को सम्मान दिया है । वरन उन लोगों भी एक कड़ा व सटीक जवाब दे दिया है जो नियमित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व लालकृष्ण आडवाणी के मध्य सम्बंधों को लेकर तरह- तरह की अफवाहें चलाया करते हैं। राम मंदिर पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आने के बाद भूमि पूजन समारोह से लेकर प्रभु श्रीराम की गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा से लेकर जितने भी समारोह हुए उन सभी में आडवाणी जी की उपस्थिति को लेकर विपक्ष लगातार तंज कसता रहा है। विपक्ष यह भी आरेप लगाता रहा है कि भाजपा ने अपने वयोवृद्ध नेता को दरकिनार कर दिया है । उनकी कोई सुध नहीं ले रहा है।टी वी चैनलों की बहसों में विपक्ष यह भी कह रहा था कि राम मंदिर का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी को नहीं अपितु आडवाणी जी से करवाया जाना चाहिए था किंतु अब मोदी जी ने उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देकर सभी विरोधियों को सही समय पर सटीक जवाब दे दिया है।आडवाणी जी को यह भारतरत्न सम्मान उनके “जहाँ राम का जन्म हुआ था, मंदिर वहीँ बनायेंगे” का संकल्प पूरा होने और उस मंदिर में श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के उपरांत दिया गया है जिसके कारण यह और भी आह्लादकारी हो गया है।

आडवाणी जी की आत्मकथा ”मेरा देश मेरा जीवन“ उन संस्मरणों से युक्त है जो उनके जीवन का सार हैं। भारतरत्न मिलने की घोषणा के बाद आडवाणी ने कहा कि यह न सिर्फ एक व्यक्ति के रूप में मेरे लिए सम्मान की बात है बल्कि उन आदर्शों और सिद्धांतों के लिए भी सम्मान है जिनकी मैने अपनी पूरी क्षमता से जीवन भर सेवा करने का प्रयास किया । उन्होंने कहाकि जिस चीज ने मेरे जीवन को प्रेरित किया है - “ इदं न मम” यह जीवन मेरा नहीं है, मेरा जीवन मेरे राष्ट्र के लिए है।“



लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न का सम्मान दिए जाने से भारत का वह हर नागरिक प्रसन्न है जो उनके विचारों के साथ जुड़ा, श्री राम जन्मभूमि की आस्था के साथ जुड़ा। उधर जो लोग मोदी जी व आडवाणी जी के मध्य मतभेद की मनगढ़ंत बातों को प्रचारित- प्रसारित करते रहते थे वो अब अपनी ही बातों में फंस चुके हैं । वो विरोध के नाम पर वह यह भूल गए थे कि यह वही मोदी जी हैं जो आडवाणी जी के रथ के सारथी रहे। 22 जनवरी 2024 को एक शिष्य के रूप में नरेंद्र मोदी ने प्रभु श्रीराम को गर्भगृह में विराजमान कराकर उन्हें संकल्प पूर्ति की अनुपम भेंट दी थीं । तब आडवाणी जी ने एक पत्र लिखकर कहा था कि “इस शुभकार्य के लिए नियति ने मोदी जी को ही चुना है।” अब दूसरी बड़ी भेंट आडवाणी जी को भारत रत्न के रूप मे मिली है।

आज जो भारत के घर घर पर रामजी का भगवा ध्वज फहराया जा रहा है और राम के आगमन पर जो दीपावली मनाई जा रही है तो उसका प्रथम श्रेय भारत रत्न लालकृष्ण आडवाणी को ही जाता है।

(लेखक स्तंभकार हैं।)

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