Caste Census: जातिगत जनगणना से बीजेपी को कितनी चुनौती? क्या 2024 में बनेगा मुद्दा?
Caste Census: कहा जाता रहा कि नब्बे के दशक में मंडल आयोग की रिपोर्ट को काउंटर करने के लिए ही भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में हिन्दुत्व का एजेंडा आगे किया।
Caste Census: सन 1980 में बी. पी. मंडल की अध्यक्षता में एक रिपोर्ट हुई, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण देने का सुझाव था। इस रिपोर्ट के बाद उत्तर भारत मसलन बिहार और उत्तर प्रदेश के ओबीसी नेताओं ने केंद्र से इसे लागु करने के लिए मांग तेज की। नतीजतन, 1990 में वी पी सिंह ने इसे लागू किया। इसके बाद भारतीय राजनीति में मंडल पॉलिटिक्स की शुरुआत हुई। लेकिन इस दौरान बीजेपी पर इसकी काट के लिए कमंडल पॉलिटिक्स के आरोप लगते रहे। कहा जाता रहा कि नब्बे के दशक में मंडल आयोग की रिपोर्ट को काउंटर करने के लिए ही भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में हिन्दुत्व का एजेंडा आगे किया। लेकिन एक सच ये भी है कि इसी दौरान बीजेपी ने राज्यों में ओबीसी नेताओं को भी आगे बढ़ाना शुरू कर दिया था। इस रणनीति को पार्टी महासचिव रहते हुए के. एन. गोविंदाचार्य अंजाम दे रहे थे। उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह, मध्य प्रदेश में उमा भारती, झारखंड में रघुवर दास आदि जैसे नेताओं को आगे बढ़ाया जा रहा था। इसलिए बीजेपी के दृष्टिकोण से देखे तो वह भी ओबीसी पॉलिटिक्स (जिसे पार्टी सोशल इंजीनियरिंग कहती है) लम्बे समय से करती आ रही है।
पीएम मोदी की चुप्पी लेकिन राहुल मुखर, इसके क्या मायने?
इस मुद्दे पर पीएम मोदी अपने पूर्ववर्ती के तर्ज पर ही दिखाई पड़ते है। आजादी के बाद से किसी भी पार्टी की केंद्र में सरकार रही हो लेकिन किसी ने आकड़ें जारी करने की हिम्मत नहीं दिखाई। आज राहुल गांधी भले इसे लेकर मुखर हो, लेकिन लम्बे समय तक सत्ता में काबिज रही कांग्रेस ने भी कभी इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई। पूर्व पीएम राजीव गांधी ने तो बाकायदा 1990 में विपक्ष के नेता के तौर पर लोकसभा में मंडल कमीशन की रिपोर्ट का विरोध किया था। तब राजीव गांधी ने जाति की जगह योग्यता को तरहीज देने की वकालत की थी। इसलिए कांग्रेस को इस मुद्दे से बहुत फायदा मिलने वाला है, ये कहना कठिन है। वहीं, पीएम मोदी इस बात को बेहतर समझ रहे हैं कि विपक्ष राहुल के जरिये ओबीसी के मसले पर नहीं पछाड़ सकता। इसका कारण ये है कि नरेंद्र मोदी एक लम्बे समय से अपनी ओबीसी पहचान को आगे करते रहे है, जबकि राहुल गांधी ने इसे अचानक से पकड़ लिया है। राहुल के साथ एक समस्या ये है कि ओबीसी के नाम पर कोई काम या फिर पार्टी या सरकर में इसकी भागीदारी बताने का कोई अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है।
जातिगत जनगणना बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग पॉलिटिक्स का विस्तार
नरेंद्र मोदी भले ही केंद्र से जातिगत जनगणना के आकड़े जारी नहीं करें, लेकिन उनकी पार्टी राज्यों में इसका विरोध नहीं करेगी। बिहार में 2 अक्टूबर को जाति जनगणना की रिपोर्ट जारी हुई है, उसे विपक्ष के नजरिये से देखें तो यह बीजेपी के खिलाफ एक मास्टरस्ट्रोक है। लेकिन, अगर आप बीजेपी की वर्तमान राजनीति को समझें तो ये आकड़े उसके लिए राज्य में मददगार हो सकते हैं। आज विपक्ष जिसे मंडल 2.0 कह रहा है और बीजेपी के लिए चुनौती बता रहा है, वह यहीं कल को पिछड़ता दिखेगा। बीजेपी ने 2014 के बाद जो सोशल इंजीनियरिंग की है उसमें दो स्तंभ है। एक नरेंद्र मोदी जो खुद ओबीसी हैं, दूसरा ये कि बीजेपी ने राज्यों में डोमिनेंट ओबीसी के खिलाफ ओबीसी में ही ध्रवीकरण किया है। मसलन यूपी में गैर-यादव ओबीसी को बीजेपी के पक्ष में एक करना सबसे बड़ा प्रयोग दिखाई पड़ता है। इसलिए बिहार में ये कहना कि बीजेपी जाति जनगणना से बैकफुट पर होगी, यह सही नहीं हैं। बीजेपी राज्य में 14% यादव संख्या दिखाकर अन्य छोटी जातियों को लामबंद करेगी। इसमें कुशवाहा, मुसहर, वाल्मीकि, मल्लाह आदि जैसे वर्ग शामिल होंगे। खासकर बीजेपी 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) को फोकस करेगी।
विपक्ष ने 2024 से पहले जातिगत जनगणना को क्यों चुना?
विपक्ष इस बात को बेहतर समझ रहा है कि बीजेपी के लिए ओबीसी वर्ग में स्वीकार्यता तेजी से बढ़ी है। लोकसभा 2024 में अगर यहां सेंध नहीं लगाई गयी तो फिर सत्ता में वापसी मुश्किल है। सीएसडीएस के आकड़ों को भी देखे तो पता चलता है कि 2009 में बीजेपी को ओबीसी का 22% वोट मिला था। वहीं, नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में उभार के बाद यह आकड़ा 2019 में 44% पहुंच गया। जबकि इस दौरान क्षेत्रीय पार्टियों का ओबीसी वोट शेयर 42% घटकर 27% रह गया। बीजेपी के इस बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए जातिगत जनगणना और उसमें भी ओबीसी को केंद्र बनाना कारगर साबित हो सकता है। क्योंकि इस मुद्दे पर बीजेपी ओबीसी के साथ अन्य वर्गों का वोट तो चाहती है, लेकिन इसके बीच फॉरवर्ड क्लास का समर्थन भी नहीं खोना चाहती। इसलिए बीजेपी उतना मुखर नहीं होगी जितना अन्य क्षेत्रीय दल दिखाई पड़ते हैं।
इंडी अलायन्स के नेताओं का आकलन है कि अगर पिछड़े वर्ग का 10% मतदाता उनकी तरफ शिफ्ट हो गया तो बड़ा उलटफेर किया जा सकता है। साथ ही यूपी और बिहार जैसे बीजेपी के मजबूत किले में बड़ी सेंध लगाई जा सकती है। इसमें एक नजरिया और समझें तो ये है कि अगले वर्ष राम मंदिर के उद्घाटन होना है। विपक्ष इस बात को समझ रहा ही कि इसका एक बड़ा प्रभाव लोकसभा चुनाव में दिखाई पड़ सकता है। इसलिए बीजेपी के हिंदुत्व को चुनौती जातिगत जनगणना से दी जा सकती है।
(लेखक एनआईटी राउरकेला में शोधार्थी और उभरते हुए युवा चिंतक है। अर्थव्यवस्था एवं राजनीति के ज्वलंत मुद्दों पर नियमित लिखते रहते हैं। व्यक्त किए गए विचार निजी हैं।)