Chandrayaan-3: चंद्रयान का असर रोमांस और अपराध पर कितना पड़ेगा ?

Chandrayaan-3: यूं चंद्र उपग्रह हैं, मगर उसे ज्योतिष में पूर्णग्रह माना जाता है। संतोषजनक रहा कि यह यान चांद पर विशाखा नक्षत्र में स्थापित हुआ था, जो सर्वाधिक शुभ माना जाता है।

Update:2023-08-31 17:16 IST
Chandrayaan-3 (photo: social media )

Chandrayaan-3: चंद्रयान-3 के सफल प्रक्षेपण से अब विशद शोध शुरू हो कि आमजन के जीवन पर इसका प्रभाव कैसा, क्या और कितना पड़ेगा ? हालांकि यह कुदरती खगोलीय घटना क्रम है। यूं चंद्र उपग्रह हैं, मगर उसे ज्योतिष में पूर्णग्रह माना जाता है। संतोषजनक रहा कि यह यान चांद पर विशाखा नक्षत्र में स्थापित हुआ था, जो सर्वाधिक शुभ माना जाता है। चंद्रमा तो मन का कारक भी है। यह शोध इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होगा क्योंकि यूपी के पुलिस महानिदेशक विजय कुमारजी (IPS-1988) ने गत सप्ताह (21 अगस्त 2023) ने चंद्रकलाओं के आधार पर पुलिस की तैनाती का उल्लेख किया था। पंचांग के महत्व को उकेरा था। उनके शब्दों में : “अधीनस्थ अधिकारियों को हिंदू पंचांग के आधार पर चंद्रमा की गतिविधि के हिसाब से तैनाती का आदेश दिया है। साथ ही लोगों को भी इसी आधार पर सतर्क रहने की सलाह दी है।”

चंद्रमा के प्रभाव की चर्चा पहले इस्लाम और चांद पर कर लें। रेडियो खबर के अनुसार यूपी के सभी विद्यालयों को निर्देश था कि चंद्रयान को छात्रों को दिखाया जाए। उनका ज्ञान वर्धन हो सके। इसमें करीब दस हजार मदरसा के तालिबे-इल्म भी शरीक थे। आम धारणा यह है कि इन मदरसों से ज्यादा ध्यान मजहबी शिक्षा को दी जाती है। अतः उन सबको चांद के भिन्न आकारों का भी सम्यक ज्ञान भी मिले। मसलन हिलाल अर्थात धनुषाकार चंद्र। इस्लाम के अनुसार चंद्रमा को पैगंबर ने विभाजित किया था। इस पर भी अन्य नए सिलेबस में विस्तार से अध्ययन हो। हिंदू छात्र को चंद्रयान पर खास विश्लेषण करना होगा। चंद्रयान ने नया आयाम ही जोड़ दिया। अर्थात ग्रहण कब, कैसे और क्यों पड़ता है ? इस पर अधिक अध्ययन हो। अब केवल चांद पर झण्डा गाड़ने अथवा झंडे पर चांद फहराने मात्र से अध्ययन खत्म नहीं होगा।

कृष्ण पक्ष में दौरान कोई भी शुभ कार्य करना उचित नहीं

पंडितों को तो खास कर तार्किकता सिद्ध करनी ही है कि चंद्रमा नहीं दिखता है (कृष्ण पक्ष)। अतः उस दौरान कोई भी शुभ कार्य करना उचित क्यों नहीं होता है। दरअसल इसके पीछे ज्योतिष में चंद्रमा की घटती हुई कलाएं होती है। इसी भांति शुक्ल पक्ष है जो अमावस्या और पूर्णिमा के दरम्यान आता है। चांद तब चमकने लगता है। पूर्णिमा के दिन बहुत बड़ा होता है। बलशाली होकर अपने पूरे आकार में रहता है। यही कारण है कि शुभ काम करने के लिए इस पक्ष को उपयुक्त माना जाता है।

सनातनी हिन्दू तो प्रत्येक खगोलीय घटना का पौराणिक कारण खोज लेता है। जैसे कृष्ण और शुक्ल पक्ष क्यों पड़ते हैं ? एक कथा के अनुसार उन आदित्य वर्ग के देवता दक्ष प्रजापति के बारे में स्वयं पुराण में एक प्रसंग है। उनकी 27 बेटियां थीं। इन सभी का विवाह चंद्रमा से किया गया। ये वास्तव में 27 नक्षत्र थी। चंद्रमा सभी में सबसे ज्यादा रोहिणी से प्रेम करते थे। बाकी सभी से हमेशा रुखा हुआ व्यवहार करते थे। ऐसे में बाकी सभी ने चंद्रमा की शिकायत अपने पिता से की। राजा दक्ष ने चंद्रमा को डांटा और कहा कि सभी के साथ समान व्यवहार करें। इसके बाद भी चंद्रमा का रोहिणी के प्रति प्यार कम नहीं हुआ। इस बात को लेकर दक्ष प्रजापति गुस्से में आकर चंद्रमा को क्षय रोग का शाप दे देते हैं। इसी शाप के चलते चंद्रमा का तेज धीरे-धीरे मध्यम होता गया। तभी से कृष्ण पक्ष की शुरुआत मानी गई। दक्ष प्रजापति के शाप के कारण क्षय रोग से चंद्रमा का तेज कम होता गया और उनका अंत करीब आने लगा। तब चंद्रमा ने भगवान शिव की आराधना की और शिवजी प्रसन्न होकर चंद्रमा को अपनी जटा में धारण कर लिया। शिवजी के प्रताप से चंद्रमा का तेज फिर से लौटने लगा और उन्हें जीवनदान मिला। दक्ष के शाप को रोका नहीं जा सकता था। ऐसे में शाप में संशोधन करते हुए चंद्रमा को हर 15-15 दिनों में कृष्ण और शुक्ल पक्ष में जाना पड़ता है। इससे शुक्ल पक्ष की शुरुआत हुई।

समाजशास्त्रीय और अपराध-विज्ञान

सुरक्षा जगत में समाजशास्त्रीय और अपराध-विज्ञान की दृष्टि से चंद्रमा और फौजदारी वाले जुर्म के संबंध पर विचार करें। जैसे डीजीपी विजय कुमार ने पत्रकारों को बताया था कि पुलिस अधिकारियों को प्रेषित परिपत्र में उन्होंने कहा : “कैसे चंद्रमा की कलाओं के आधार पर तैनाती करें।” वे बोले : “चंद्रमा की कलाओं को जानने के लिए सबसे आसान तरीका हिंदू पंचांग है। इससे पता चलता है कि किस तारीख को चंद्रमा कितने बजे उगता और अस्त होता है। रात कब आंशिक रूप से और कब बिल्कुल अंधेरी होती है। लोगों को यह जानना चाहिए ताकि वे सतर्क रहें। पुलिस को भी यह जानना चाहिए ताकि वह उसे समय सबसे ज्यादा मुस्तैद रहें।”

इसी संदर्भ में नृशास्त्रीय अध्ययन से ज्ञात होता है कि पारदी तथा बावरिया गैंग पेशेवर अपराधी हैं, मगर ईशभक्त भी। जैसे बावरिया गिरोह के ये जनजातीय लुटेरे अमावस्या की रात में वारदातों को अंजाम देते हैं। पारदी गैंग भी हर डकैती के पूर्व देवालय जाते हैं। मंदिरों के निकट मुखबरी ठीक से हो तो उन्हें पकड़ा जा सकता है।

यूं भी बड़े अपराधी, खासकर डकैत लोग, तो बहुधा मुहूर्त देखकर काम करते हैं। एक खबर महाराष्ट्र से थी। पुणे जिले के बारामती में बदमाशों ने ज्योतिष सलाह के बाद एक करोड रुपए से अधिक की डकैती की। भविष्यवक्ता रामचंद्र चावा से उन्होंने शुभ समय की सलाह ली थी। पुलिस ने ज्योतिषी समेत छः आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। अर्थात ज्योतिष का दुतरफा उपयोग होता है। पुलिस भी यदि पारंगत होती तो कामयाब हो सकती है। डीजीपी विजय कुमार इंजीनियर (सिविल-बी.टेक) हैं, ज्ञानी हैं। अतः उनसे अपेक्षा है कि वैज्ञानिक आधार पर वे ज्योतिष का प्रयोग करेंगे।

फिलवक्त चंद्रमा पर ही सम्पूर्ण आस्था नहीं रख सकते जैसे कवि विलियम शेक्सपियर ने जूलियट से रोमियो को कहलवाया था : “चांद की कसम मत खाओ। वह हर पखवाड़े बदल जाता है।” अतः ज्योतिषीय आकलन भी गड़बड़ा सकता है।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

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