Crime Against Women Poem: कई बार टूटने के बाद भी लिखा जाता है अनूठा अध्याय
Crime Against Women Poem: 'थी.. हूं ..रहूंगी' यह उस एक किताब का शीर्षक है, जिसमें वर्तिका नंदा द्वारा लिखित महिला अपराध केंद्रित कविताएं हैं, जिसे मेरे एक मित्र ने मुझे भेंट की।
Crime Against Women Poem: इस समय हज़ारों किलोमीटर दूर चीन में चल रहे एशियाई खेलों में भारत के गाँवों का डंका बज रहा है। यह पहली बार है जब एशियाई खेलों में भारतीय खिलाड़ी 100 मेडल जीतने का आंकड़ा पार करने जा रहे हैं और इस तरह से भारत पदक तालिका में चौथे नंबर पर पहुँच गया है। इस कामयाबी में बड़ा हाथ अपने देश के गाँवों से वहाँ पहुँचे उन एथलीटों का भी है, जिनके संघर्ष की हर कहानी एक मिसाल है, निश्चय ही वे बधाई के पात्र हैं। इसके विपरीत देश की एक भयावह स्थिति यह भी है कि देश में अपराध तेजी से बढ़ते ही जा रहें हैं।
'थी.. हूं ..रहूंगी' यह उस एक किताब का शीर्षक है, जिसमें वर्तिका नंदा द्वारा लिखित महिला अपराध केंद्रित कविताएं हैं, जिसे मेरे एक मित्र ने मुझे भेंट की। किताब की पहली कविता ही महिलाओं पर होते अपराध का कड़वा घूंट पिला देती है। फिर भी यह महिलाएं पता नहीं किस मिट्टी की बनी है जो हर बार उठ खड़ी होती हैं हर घटना के बाद भी।
'यह लोग
दिल्ली के नानकपुरा थाने के बाहर अक्सर दिखते हैं
महिला अपराध शाखा के बाहर बेंच पर बैठे
सिलवटों में सिमटी अपनी हथेलियां को देखते
न्याय पाने की मरी उम्मीद अपने फटे दुपट्टे से बांधी बैठी इन औरतों को जिस दिन करीब से देखेंगे
सुन लेंगे
उनसे उनकी आंखों से टपकती किसी तरह रिसती और सिसकती कहानी
आप सो नहीं पाएंगें'
एक पीड़ा नत्थी हो जाती है पढ़ने वाले के साथ जब वह इन कविताओं को पढ़ता है। शायद इन्हें कविता कहना उनके साथ नाइंसाफी होगी, वैसे ही जैसे इसके मूल पात्रों के साथ होती रही है। हां, तो इन्हें कविता कहना नाइंसाफी इसलिए क्योंकि इनमें किसी भी प्रकार की साहित्यिक नियमावली नहीं लागू है। यह तो वे दस्तावेज जैसी हैं जो अकेले ही रोती हैं, अकेले ही लड़ती हैं, अकेले ही चलती हैं फिर भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ती हैं ये मरजानियां। डॉ वर्तिका नंदा ने बलात्कार और प्रिंट मीडिया की रिपोर्टिंग पर शोध पर अपनी पीएचडी की और अलग-अलग न्यूज़ चैनलों में अपराध बीट पर प्रमुखता से काम किया है। वह अपनी कविता में कहती हैं-
' पर सरकार कहती है
महिला के खिलाफ अपराध
घट रहे हैं
अपराधी हाथ न आए न मिल पाए उसे सजा
तो अपराध घटा ही न!'
इसे पढ़ते ही दिमाग का हर हिस्सा झनझना उठता है। अभी पिछले ही हफ्ते मध्य प्रदेश में महाकाल की नगरी उज्जैन में एक 12 वर्षीय नाबालिग के साथ हुई अमानवीय घटना ने एक बार फिर देश को शर्मसार किया और इस सप्ताह उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में मनचलों की छेड़खानी ने इंटरमीडिएट की एक छात्रा की जान ले ली। यह उसी उत्तर प्रदेश की कहानी है जिसके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अभी हाल ही में कानपुर में यह कहा था कि अब एक अपराधी या असामाजिक तत्व एक चौराहे पर किसी बहन या बेटी को छेड़ता हो, दूसरे चौराहे पर डकैती डालने का दुस्साहस करता हो, वह अब नहीं कर पाएगा। सीसीटीवी कैमरा उनकी गतिविधियों को कैद करेगा और अगले किसी चौराहे से आगे भागने से पहले ही पुलिस उसे ढेर कर चुकी होगी। इतने सख्त बयान के बावजूद उन शोहदों की हिम्मत तो देखिए जो उत्तर प्रदेश को अपराधमुक्त बनाने के मुख्यमंत्री के सपने में सेंध डालते हुए उस किशोरी के गले का दुपट्टा खींच लेते हैं सरे राह, जिससे हड़बड़ा कर, अनियंत्रित हो वह लड़की अपनी साइकिल से नीचे, बीच सड़क पर गिर जाती है और पीछे से आई उन मनचलों के साथी की बाइक उसके चेहरे और सिर को कुचलकर आगे बढ़ जाती है। मनचलो की अपने सुख के लिए की जा रही इस तरह की छेड़छाड़ एक परिवार से उसकी बेटी को छीन ले गया, एक देश से, एक समाज से भविष्य की एक नई आशा की किरण को छीन ले गया। उस खबर को पढ़ते ही एक झटके में आज से 28 साल पहले की एक घटना आंखों में आ गई या यूं कहें कि गले को दबा गई। अपनी कॉलेज की शिक्षा के दौरान साइकिल से जाते हुए कुर्ते पर डाला दुपट्टा एक तरफ से सरक कर मेरी ही साइकिल के पीछे वाले पहिए में घूमता और फंसता चला गया। पर दूसरी तरफ से पिन लगी होने के कारण वहां से नहीं निकल पाया और वह गुलाबी दुपट्टा मेरे ही गले में फंदे के जैसे बन मेरी ही सांसों को रोकने लगा , दम घुटने लगा। महसूस कर सकती हूं उस लड़की की स्थिति को जिसके गले से दुपट्टा खींचने पर , उसके गिरने पर वह कितनी बुरी तरह घबराई होगी, शायद वह कुछ उतना समझ ही नहीं पाई होगी कि उसके पहले ही बाइक के दोनों पहियों ने उसके चेहरे और सिर को कुचल दिया होगा।क्योंकि वह जानती है औरत होने की भी एक कीमत होती है जो उसे अपने जीवन में कभी न कभी, किसी न किसी रूप में चुकानी ही पड़ती है। वे मनचले गिरफ्तारी के बाद कोर्ट से जमानत लेकर छूट जाएंगे, फिर किसी और लड़की को अपना निशाना बनाने क्योंकि यह भी एक तरह की मानसिक विकृति है जो कि इस तरह के लोगों को असीम सुख देती है किसी को सताने में, डराने में, परेशान करने में।
सड़कों पर अपराध और दुर्घटनाएं
यह कल शाम की ही बात है सड़क पूरी तरह जाम थी और ट्रैफिक बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ता- रूकता था। एक मिनी ट्रक का ड्राइवर अपने से आगे चल रहे दो पहिए वाहन को बार-बार पीछे की तरफ से, एक साइड से टक्कर मारता और मुस्कुराता था। उसे शायद यह एक अपने मनोरंजन के लिए खेले जाने वाले एक खेल के समान लग रहा होगा पर उस दोपहिए चालक का इस कारण से बार-बार बैलेंस बिगड़ रहा था और वह जरूर परेशान भी हो रहा होगा। इस तरह से अनेक बार देखा जाता है कि बड़े वाहन विशेषकर जो ड्राइवर द्वारा चलाए जाते हैं, वे अपने से आगे किसी भी दो पहिया वाहन यानी छोटे वाहनों को निकलने नहीं देना चाहते हैं या बगैर उनकी उपस्थिति की परवाह किए भारी ट्रैफिक में भी आगे बढ़ते जाते हैं चाहे उससे किसी को भी कोई नुकसान क्यों न पहुंचे। सड़कों पर अपराध और दुर्घटनाएं हमारे देश में इतनी आम बात है कि हम उसे सिर्फ एक खबर के रूप में पढ़कर छोड़ देते हैं या वह भी नहीं पढ़ते हैं क्योंकि हम यह कहकर मुंह बिचका लेते हैं । क्या इन हादसों की वजह से सड़क पर निकलना छोड़ दे। इसी उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के खंडोली में गैंगस्टरों के वीडियो से प्रभावित होकर महज 17 और 19 साल की उम्र के 12वीं कक्षा के दो छात्रों ने ट्यूशन शिक्षक के बाएं पैर में गोली मार दी और बाइक से भाग गए। साथ ही साथ उन लोगों ने 26 सेकंड का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल किया जिसमें वे लोग उस शिक्षक को 39 और गोलियां मारने की धमकी दे रहे हैं और अपशब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। इस घटना का कारण यह बताया जाता है कि शिक्षक द्वारा 17 साल के लड़के के कोचिंग सेंटर की ही एक लड़की के साथ संबंध के बारे में उसके परिवार को जानकारी दी गई जिससे नाराज होकर उस लड़के ने यह किया।
स्कूल ड्राइवर ने 4 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म
मध्य प्रदेश के इंदौर में एक स्कूल ड्राइवर ने मात्र 4 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म किया। वह स्कूल ड्राइवर जिसके ऊपर विश्वास कर अभिभावक अपनी बच्चियों को शिक्षा लेने भेजते हैं वही दरिंदे बन जाते हैं। वह बच्ची जिसने अभी-अभी इस दुनिया में ककहरा सीखना शुरू किया है, वह अपनी आने वाली जिंदगी में इस दुनिया के प्रति क्या भावनाएं रखेगी अपने मन में। एक और घटना में एक युवक को सड़क पर ही बुरी तरह से मारा- पीटा गया। मारपीट करने वाले भाग निकले और 150- 200 लोगों की भीड़ उस युवक का वीडियो बनाती रही। उसे जब नजदीक के अस्पताल में ले जाया गया तब उसे एक से दूसरे अस्पताल भेजा जाता रहा जिसके कारण सिर से अधिक खून बहने से उसकी मौत हो गई। कौन होगा इन सब का जिम्मेदार? आखिर क्यों लोगों में अपने अंदर इतना गुस्सा है? कुत्सित भावनाएं बढ़ रही हैं कि वे किसी की भी जान लेने से नहीं डरते हैं। इस तरह की अनेक घटनाएं हम रोज पढ़ते हैं, आखिर हम इतने संवेदनाविहीन क्यों होते जा रहे हैं? क्या सोशल मीडिया हमें इतना संवेदनाविहीन कर रहा है? आखिर क्या कारण है जो हमें आंखें मूंदने और चुप्पी साधने को विवश कर रहा है?
देश में महिलाओं के खिलाफ बलात्कार चौथा सबसे आम अपराध है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2021 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार देश भर में 31,677 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए अर्थात प्रतिदिन औसतन 86 मामले, 2020 में 28,046 मामले, जबकि 2019 में 32,033 मामले दर्ज किये गये। कुल 31,677 बलात्कार मामलों में से 28,147 (लगभग 89%) बलात्कार पीड़िता के परिचित व्यक्तियों द्वारा किए गए थे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार भारत में अपराध दर (प्रति 100,000 जनसंख्या पर अपराध की घटना) 2020 में 487.8 से घटकर 2021 में 445.9 हो गई है। एनसीआरबी की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ की बच्चियों से दुष्कर्म के मामले मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा हैं। देशभर में पिछले एक साल में दुष्कर्म और बलात्कार के जो मामले दर्ज हुए उनमें 6462 महिलाएं और बच्चियों मध्य प्रदेश में रेप जैसी घटनाओं का शिकार हुई। फिर भी हम आशावादी हैं कि कभी न कभी यह स्थितियां कुछ सुधरेंगी, कुछ बदलेंगी पर कब, यह कोई नहीं जानता। सबसे बड़ी जरूरत है कि हम एक समाज के तौर पर खुद एकजुट होएं और संवेदनशील बने। यह कहना बहुत आसान होता है कि लड़कियों को ही या महिलाओं को ही या युवाओं को ही इन सबसे लड़ने के लिए आगे आना होगा पर यह कोई नहीं कहता कि क्या आप उनका साथ देंगे। डॉ वर्तिका नंदा की ही कविता की इन पंक्तियों के साथ इस लेख का समापन करती हूं-
' पीड़ित की कोई ताकत नहीं होती
पीड़ा का नहीं होता साया भी
पर तब भी यह मरजानिया कहां मानती हैं?
यह आएंगी हर बरस, हर महीने, हर हफ्ते
थोड़ी टूटी आएंगी और फिर पूरी टूट के जाएंगी
पर होता है ऐसा भी अक्सर
कि कई बार टूटने के बाद जब जुड़ता है कोई
तो कोई अनूठा अध्याय लिख जाता है।’
( लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं ।)