Dharmantaran: कौन करवाता है योजनाबद्ध धर्मांतरण
Dharmantaran Kise Kahte Hai: एक बात बहुत साफ है कि किसी को लालच देकर या जोर जबरदस्ती धर्मांतरण करवाना तो कतई सही नहीं माना जा सकता है।
Dharmantaran Kise Kahte Hai: भारत के प्रत्येक नागरिक को किसी धर्म को मानने या ना मानने या फिर किसी भी धर्म से जुड़ने का अधिकार संविधान देता है, पर किसी प्रलोभन या ग़लतफ़हमी में योजनाबद्ध रूप से किसी तरह के धर्मांतरण को अपराध माना गया है ।
इस आलोक में उत्तर प्रदेश की एक विशेष अदालत द्वारा हाल ही में अवैध धर्म परिवर्तन के मामले में दोषी करार दिये गये 12 लोगों को उम्रकैद और चार अन्य दोषियों को 10-10 वर्ष कैद की सजा सुनाना महत्वपूर्ण है। अदालत ने सभी आरोपियों को दोषी करार दिया।
अदालत की तरफ से जारी आदेश के मुताबिक, धर्मांतरण करवाने के धंधे से जुड़े शातिर लोगों को भारतीय दंड संहिता की धारा 121 ए (राष्ट्रद्रोह) के तहत सजा सुनायी गई। विशेष लोक अभियोजक एमके सिंह के मुताबिक, उमर गौतम और मामले के अन्य अभियुक्त एक साजिश के तहत धार्मिक उन्माद, वैमनस्य और नफरत फैलाकर देशभर में अवैध धर्मांतरण का गिरोह चला रहे थे। उनके तार कई दूसरे देशों से भी जुड़े थे। इसके लिए आरोपी हवाला के जरिए विदेशों से धन भेजे जाने के मामले में भी लिप्त थे। वे आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं और दिव्यांगों को लालच देकर और उन पर अनुचित दबाव बनाकर बड़े पैमाने पर उनका धर्म परिवर्तन करा रहे थे।
धर्मांतरण का अवैध धंधा
उमर गौतम को मुफ्ती काजी जहांगीर आलम कासमी के साथ 20 जून, 2021 को दिल्ली के जामिया नगर से गिरफ्तार किया गया था।
वह एक ऐसे अवैध संगठन का संचालन कर रहा था जो उत्तर प्रदेश में मूक- बधिर छात्रों और गरीब लोगों को इस्लाम में धर्मांतरित कराने में शामिल था ।
इस बात की पुरज़ोर आशंका जताई जा रही है कि इसके लिए उसे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से धन मिलता था। उमर गौतम पहले हिंदू था । लेकिन , उसने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया और धर्मांतरण कराने के अवैध धंधे में सक्रिय हो गया। उसने करीब एक हजार गैर मुस्लिम लोगों को इस्लाम में धर्मांतरित कराया और उनकी मुस्लिमों से दूसरी या तीसरी शादी कराई है।
देखिए, भारत में धर्म परिवर्तन को लेकर बहस तो होती रही है , होनी भी चाहिये। भारतीय संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जिसमें स्वेच्छा या स्वविवेक से धर्म बदलने का अधिकार भी शामिल है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में धार्मिक स्वतंत्रता और धर्म बदलने के अधिकार की बात तो कही गई है। पर उमर गौतम और उनके साथी तो गरीब-गुरुबा लोगों को लालच और जोर-जबरदस्ती से धर्मांतरण करवा रहे थे। गौतम और उनका गिरोह भूल गया था कि धर्म परिवर्तन सामाजिक एकता को कमजोर कर सकता है और समाज में भयंकर नफरत पैदा कर सकता है। भारत में धर्म परिवर्तन एक संवेदनशील मुद्दा है , जिसमें कानूनी, धार्मिक और सामाजिक सभी पहलू शामिल हैं।
केरल में हिंदू धर्म अपनाने वाले पहले इंसान
कुछ साल पहले केरल के प्रतिष्ठित फ़िल्म निर्माता निर्देशक अली अकबर और उनकी ईसाई पत्नी लूसीअम्मा ने आर्य समाज में हवन के ज़रिए हिन्दू धर्म अंगीकार कर लिया था। आर्य समाज के स्वामी जी द्वारा उनका नया नामकरण भी कर दिया गया है।
अली अकबर को नया नाम मिला था राम सिम्हन। हिन्दू धर्म ही क्यों ? यह प्रश्न पूछे जाने पर अली अकबर ने कहा था, 'क्योंकि हिंदू धर्म कोई धर्म नहीं बल्कि एक संस्कृति है। यहां नर्क में जाने का डर नहीं है। आप एक इंसान की तरह जी सकते हैं क्योंकि भगवान आपके अंदर हैं। अपने भीतर ईश्वर को देखना एक महान विचार है।' कहते हैं कि राम सिम्हन केरल में हिंदू धर्म अपनाने वाले पहले मुसलमान थे।लेकिन , यह राम सिम्हन के स्वविवेकेपूर्ण निर्णय को दर्शाता है । इसपर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये!
प्रलोभन से धर्मांतरण
एक बात बहुत साफ है कि किसी को लालच देकर या जोर जबरदस्ती धर्मांतरण करवाना तो कतई सही नहीं माना जा सकता है। समझ नहीं आता कि कुछ धर्मों से जुड़े लोग क्यों इसी फिराक में रहते हैं कि उनके धर्म से अन्य धर्मों को मानने वाले जुड़े जाएं। गुस्ताखी माफ, कई इस्लामिक और ईसाई संगठन इसी कोशिश में रहते हैं कि दूसरे धर्म को माननेवाले उनके मजहब का हिस्सा बन जाएं ? यह कोई बात हुई क्या ? फिर यदि बाकी धर्मों को मानने वाले लोग भी यही करने लगें , तो समाज में भाईचारा कहाँ और कैसे बचा रहेगा ।अगर कोई अपने मन से उस धर्म को त्याग देता है, जिसमें उसका जन्म हुआ है तब तो कोई बात नहीं है। उदाहरण के रूप में म्युजिक डायरेक्टर रहमान को ही लेते हैं। उन्होंने खुद ही हिन्दू धर्म को छोड़कर इस्लाम को स्वीकार कर लिया। उनके परिवार के बाकी सदस्यों ने भी इस्लाम अपना लिया। यहां तक तो सब ठीक है। पर कुछ तत्व सुदूर इलाकों में रहने वालों को अपना पाले में लाने की जुगाड़ में रहते हैं। इस सबकी तो हमारा संविधान अनुमति नहीं देता। जब गौतम जैसों पर एक्शन होता है तो कुछ कथित बुद्धजीवी अलाप करने लगते हैं। पिछले कई सालों से पंजाब से खबरें आ रही हैं कि राज्य में दलित सिखों को लालच देकर ईसाई धर्म से जोड़ा जा रहा है।
मेरे संज्ञान में एक एक सच्ची घटना है जो मैं शेयर कर रहा हूँ।। लगभग दस वर्ष पहले मुझे अपने एक स्कूल के खेल शिक्षक के बारे में पता चला कि उसने त्यागपत्र दे दिया है और अगले महीने से हमें एक खेल शिक्षक नियुक्त करना होगा । मैंने उसे बुलाया और पूछा कि तुम्हारी तकलीफ़ क्या है ? उसने बताया कि मुझे कोई तकलीफ़ नहीं है । पर आप जितना वेतन मुझे दे रहे हैं, उससे दस या बीस गुना कमाने का ज़रिया मुझे मिल गया है । मुझे घर मरम्मत के लिये पैसों की सख़्त ज़रूरत थी । मुझे पता चला कि मेरे इलाक़े में एक नया चर्च बना है उसके पादरी ज़रूरतमंदों की मदद करते हैं। मैं उनके पास गया । उन्होंने कहा कि मदद करूँगा । लेकिन , तुम्हें हर रविवार चर्च आकर प्रार्थना करनी होगी।मुझे तरीक़ा आसान सा लगा । उन्होंने मुझे सपरिवार( पति - पत्नी , मेरी विधवा माँ और दो बच्चों को ) ईसाई बनने के लिये बीस हज़ार प्रति व्यक्ति की दर से एक लाख रुपये दिये ।बाद में पता चला कि मेरे जिस पड़ोसी ने मुझे ईसाई बनने का लालच दिया और पादरी से मिलवाने ले गया उसे भी इतना ही पैसा मिला । तो मुझे लगा कि इस तरह धर्म प्रचार करके तो ज़्यादा कमाया जा सकता है तो मैंने इस्तीफ़ा दे दिया ।वह आज भी धड़ल्ले से गाँव - गाँव जाकर देवभूमि उत्तराखंड को ईसाई भूमि बनाने में लगा है । पहले हाफ़ पैंट और टीशर्ट पहनकर साइकिल से घूमता था । अब सलीक़े के सूट पहनकर चमचमाती कार में घूमता है । ऐसे एक नहीं अनेक धर्म भ्रष्ट लालची लोग आपको हर इलाक़े में मिल जाएँगे ।
धर्म पालन की स्वतंत्रता होनी चाहिए, धर्म प्रचार की नहीं
यह सवाल अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है कि क्या भारत में धर्म प्रचार की अनुमति जारी रहनी चाहिए? कभी कभी लगता है इस मसले पर देश में बहस हो ही जाए कि क्या भारत में धर्म प्रचार की स्वतंत्रता जारी रहे अथवा नहीं ? देखा जाए तो केवल धर्म पालन की स्वतंत्रता होनी चाहिये। धर्म के प्रचार- प्रसार की छूट की कोई आवश्यकता ही नहीं। धर्म कोई दुकान या व्यापार तो है नहीं जिसका प्रचार प्रसार करना जरूरी हो।
अगर हम इतिहास के पन्नों को खंगाले तो देखते हैं कि भारत के संविधान निर्माताओं ने सभी धार्मिक समुदायों को अपने धर्म के प्रचार की छूट दी थी। क्या इसकी कोई आवश्यकता थी? बेशक, भारत में ईसाई धर्म की तरफ से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में ठोस और ईमानदारी से काम किया गया है। पर कहने वाले कहते हैं कि उस सेवा की आड़ में धर्मांतरण का ही मुख्य लक्ष्य रहा है। उधर, इस्लाम का प्रचार करने वाले बिना कुछ किए ही धर्मांतरण करवाने के मौके खोजते हैं। हालांकि मुसलमानों की शिक्षण संस्था अंजुमन इस्लाम ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है। ये मुंबई में सक्रिय है। अब आप देखें कि आर्य समाज, सनातन धर्म और सिखों की तरफ से देश में सैकड़ों स्कूल, कॉलेज, अस्पताल वगैरह चल रहे हैं। पर इन्होंने किसी ईसाई या मुसलमान का धर्मांतरण का कभी प्रयास नहीं किया।
आपको अपने धर्म को मानने की तो अनुमति होनी चाहिए, पर अपने धर्म का प्रचार करने या धर्मांतरण करने की इजाजत तो नहीं दी जा सकती।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)