Election 2024 : भाजपा का कार्यकर्ता इतना निराश क्यों ?

Election 2024 : प्रारम्भ से ही भाजपा के अधिकांश कार्यकर्ता संस्कारवान्, निष्ठावान एवं संस्था के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले रहे हैं। परन्तु वर्तमान समय में भाजपा के कार्यकर्ताओं की ऊर्जा में शिथिलता दृष्टिगोचर हो रही है। यह एक अत्यधिक आश्चर्यजनक तथ्य है।

Written By :  Yogesh Mohan
Update:2024-05-04 22:13 IST

Election 2024 : भारतीय जनता पार्टी विश्व का सर्वाधिक वृहद राजनैतिक दल है। इस दल की प्रगति का यदि हम आंकलन करें तो इसके राजनीतिज्ञों का पार्टी के प्रति समर्पण, निष्ठा व त्याग का भाव स्पष्ट होता है, जिनमें प्रमुखतया अटल जी जैसे महान व्यक्तित्व हैं जिन्होंने इस दल के पौधे का रोपण किया, आडवाणी तथा मुरली मनोहर जोशी जी के कुशल नेतृत्व ने इस पौधे को सींचा और मोदी जी जैसे विराट व्यक्तित्व ने इसे विगत 15 वर्षों से पल्लवित व पुष्पित किया। इसका सुखद परिणाम यह हुआ कि वर्ष 1984 में मात्र 2 सीटों पर विजयी भाजपा, वर्ष 2019 तक 303 सीटों पर पहुँचने में सफल हो गई।

प्रारम्भ से ही भाजपा के अधिकांश कार्यकर्ता संस्कारवान्, निष्ठावान एवं संस्था के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले रहे हैं। परन्तु वर्तमान समय में भाजपा के कार्यकर्ताओं की ऊर्जा में शिथिलता दृष्टिगोचर हो रही है। यह एक अत्यधिक आश्चर्यजनक तथ्य है। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों के दो चरण व्यतीत हो चुके हैं। चुनावों से पूर्व जो सम्भावित दृश्य दिखाई दे रहे थे, चुनावी प्रक्रिया के आगामी चरणों के साथ-साथ उसमें शनै-शनै आंशिक धूमिलता प्रतीत हो रही है। ऐसी परिस्थिति की सत्तापक्ष और विपक्ष में से किसी को भी आशा नहीं थी।

ठाकुर समुदाय जो भाजपा के कट्टर समर्थक थे, उनका चुनावों के प्रथम चरण में ही पार्टी से अलगाव होना अत्यधिक गम्भीर विषय है। इस स्थिति को यदि भाजपा ने अतिशीघ्र नियन्त्रित नहीं किया तो उसके लिए अत्यधिक भयावह परिणाम हो सकते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ठाकुरों की नाराजगी को दूर करने के लिए भाजपा ने अत्यधिक प्रयास किया, परन्तु प्रथम बार उनके प्रयास असफल हुए और ठाकुरों ने शीर्ष नेतृत्व के निर्देश तथा आग्रह तक को अस्वीकार कर दिया। किसी भी प्रकार का विद्रोह अचानक उत्पन्न नहीं होता है, अपितु वह शनै-शनै सुलगता है, यदि उस विद्रोह को प्रारम्भ में नहीं रोका जाता है तो वह समय परिवर्तन के साथ-साथ सुलगते हुए दावानल में परिवर्तित हो जाता है। ऐसी ही परिस्थिति भाजपा के लिए ठाकुर समुदाय की ओर से उत्पन्न हो गई है।


लोकसभा की चुनाव प्रक्रिया के अन्तराल में इस प्रकार की परिस्थिति का उत्पन्न होना भाजपा के लिए अत्यधिक गम्भीर विषय है, जिसकी उसके शीर्ष नेतृत्व को कदापि आशा नहीं थी। इस गंभीर विषय पर यदि भाजपा के नेतृत्व ने शीघ्र मंथन नहीं किया तो संस्कारवान दल अर्थात् भाजपा को अत्यधिक क्षति सहन करनी पड़ सकती है।

वर्तमान में संचालित चुनावी प्रक्रिया में भाजपा की समस्या पर चिंतन करने से पूर्व हमें कांग्रेस के पतन के कारणों का चिंतन करना होगा। यह एक यक्ष प्रश्न है कि जो कांग्रेस कभी लोकसभा की 400 जीती थी, उसका पतन क्यों हुआ? इसका सम्भावित कारण यह था कि उस समय कांग्रेस पार्टी ने अपनी सत्ता के मद में जनता की अपेक्षाओं को पूर्ण नहीं किया। साथ ही पार्टी में सम्मिलित अन्य दलों के नेताओं को अपने कार्यकर्ताओं के समकक्ष महत्व नहीं देना, पार्टी के नेताओं के द्वारा अपने निष्ठावान कार्यकर्ताओं की अवहेलना करना, उनको सहयोग नहीं देना तथा उनको भ्रष्टाचार के दल-दल में लिप्त कर देना आदि अन्य प्रमुख कारण थे। इन सब घटनाओं से त्रस्त होकर कांग्रेस के समर्पित कार्यकर्ताओं ने स्वयं को चुनावी प्रक्रिया से विरत कर लिया जोकि पार्टी के लिए अत्यधिक हानिकारक सिद्ध हुआ। कांग्रेस एक समर्पित कार्यकर्ताओं की पार्टी थी परन्तु नेताओं के असहयोगात्मक व्यवहार ने पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं को सदैव के लिए रूष्ट कर दिया परिणामस्वरूप कांग्रेस पार्टी पतन आरम्भ हो गया।

एक निष्ठावान कार्यकर्ता को पार्टी के हित से जुड़े सिद्धान्तों को क्रियान्वित करने में सहयोग न मिलने पर वह नेताओं के पास भटकता रहता है, अन्ततः दुख के साथ पार्टी से विरत होना उसकी विवशता होती है। इसके विपरीत चापलूस कार्यकर्ता बिना किसी प्रयास के केवल मात्र चापलूसी से निरन्तर धनवान होता जाता है।

भाजपा नेतृत्व को अपनी पार्टी के स्थायी अस्तित्व के लिए गंभीर चिन्तन करने की आवश्यकता है, क्योंकि आज भाजपा, कांग्रेस से आए भ्रष्ट नेताओं की पार्टी बनती जा रही है, जोकि उसके समर्पित कार्यकर्ताओं एवं जनता को कष्टप्रद है। भाजपा नेतृत्व को यह समझना होगा कि पार्टी के लिए कार्यकर्ता ईश्वर स्वरूप होता है, उसका सम्मान पार्टी के स्थायित्व के लिए अवश्य ही चुनाव प्रतिशत में वृद्धि करता है, इसके विपरीत उसकी उदासीनता चुनाव प्रतिशत को पतन की ओर अग्रसर करती है। परिणामस्वरूप पार्टी के सशक्त नेतागण भी उससे विरत होने प्रारम्भ हो जाते हैं। जब पार्टी के वरिष्ठ नेतागण अधीनस्थ कार्यकर्ताओं से ही पार्टी के उत्थान की अपेक्षा करना प्रारम्भ कर देगें तो पार्टी अवश्य ही दिशा निर्देशक की अनुपस्थिति में दिशा विहीन हो जाएगी।

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