Election Result 2024: किन नवनिर्वाचित सांसदों पर देश की रहेगी नजर

Election Result 2024: कट्टरपंथी प्रचारक अमृतपाल सिंह ने खडूर साहिब से और इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह के बेटे सरबजीत सिंह ने फरीदकोट से जीत हासिल की है।

Written By :  RK Sinha
Update: 2024-06-08 06:23 GMT

Sarabjit Singh, Amritpal Singh, Abdul Rashid (फोटो: सोशल मीडिया )

Election Result 2024: लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद उनका गहन विश्लेषण भी हो रहा है, पर इस प्रक्रिया के दौरान उन तीन नतीजों पर भी देश को गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा जहां से देश के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले तीन उम्मीदवार जीत गए हैं।

पंजाब की खडूर साहिब और फरीदकोट लोकसभा सीटों के चुनाव परिणाम सिख राजनीतिक क्षेत्र में बड़े बदलाव और पंथिक राजनीति के पुनरुत्थान का संकेत देते हैं। कट्टरपंथी प्रचारक अमृतपाल सिंह ने खडूर साहिब से और इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह के बेटे सरबजीत सिंह ने फरीदकोट से जीत हासिल की है, दोनों ही निर्दलीय प्रत्याशी थे। अमृतपाल सिंह खालिस्तान के पक्ष में बोलते रहे हैं। इसी तरह से जम्मू-कश्मीर की बारामूला सीट से इंजीनियर राशिद का राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमेर अब्दुल्ला को हराना अपने आप में सामान्य घटना नहीं हैं। राशिद पाकिस्तान परस्त रहे हैं और फिलहाल दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं।

अमृतपाल सिंह की जीत

पर पहले बात कर लें अमृतपाल सिंह की। उन्हें पिछले साल राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर असम के डिब्रूगढ़ में जेल में रखा गया था। सरबजीत सिंह की जीत ने भी साबित कर दिया है कि सिख अभी तक ऑपरेशन ब्लूस्टार और उन भयानक सिख विरोधी दंगों को भूले नहीं हैं। सच में फरीदकोट ने बड़ा आश्चर्यजनक नतीजा दिया जब सरबजीत सिंह ने हसौड़ लोकप्रिय अभिनेता करमजीत अनमोल को हरा दिया, जबकि उनका फरीदकोट में कोई बड़ा नेटवर्क नहीं था।


सरबजीत सिंह भी जीते 

जब इंदिरा गांधी की हत्या में शामिल के कारण सरबजीत सिंह के पिता को गिरफ्तार किया गया था, वे तब मात्र 6 साल के थे। उन्होंने बारहवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। वे पहले भी कई चुनावों में किस्मत आजमा चुके हैं। उन्होंने 2007 में बरनाला जिले के भदौर से पंजाब विधानसभा का चुनाव लड़ा और उन्हें केवल 15,702 वोट मिले। उन्होंने 2004 में बठिंडा लोकसभा सीट से लोकसभा चुनाव भी लड़ा और असफल रहे। उन्हें 1,13,490 वोट मिले। 2009 और 2014 में उन्होंने फिर से क्रमशः बठिंडा और फतेहगढ़ साहिब (आरक्षित) निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ा। सरबजीत सिंह की मां, बिमल कौर और उनके दादा, सुच्चा सिंह पूर्व में लोकसभा के लिए चुने गए थे। सरबजीत सिंह इस बार तो चुनाव लड़ने के मूड में नहीं थे। उनसे जब बहुत लोगों ने चुनाव लड़ने की गुजारिश की तो वे चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुए। वे अपनी कैंपेन में सिखों के मसलों के अलावा फरीदकोट में नशे की बढ़ती समस्या से लड़ने का वादा कर भी रहे थे। फरीदकोट के लिए कहा जाता है कि यह जिला नशाखोरी की चपेट में पूरी तरह से आ चुका है।

अमृतपाल सिंह ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के कुलबीर सिंह जीरा को आसानी से मात दे दी। यह लोकसभा सीट पंजाब में भारत-पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित है। उनकी गैरमौजूदगी में उनके माता-पिता उनके लिए प्रचार कर रहे थे।खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र में अमृतसर-तरन तारन-पट्टी के क्षेत्र शामिल हैं, जो जरनैल सिंह भिंडरावाले का प्रभाव वाला क्षेत्र रहा है। यह सीट सिखों का गढ़ मानी जानी जाती है।

अमृतपाल सिंह के समर्थकों ने अपने कार्यालयों में भिंडरावाले के पोस्टर भी लगाए थे। उन्होंने भी ड्रग संस्कृति को समाप्त करने और बंदी सिखों को रिहा कराने का वादा किया।


उमर अब्दुल्ला निर्दलीय कैंडिडेट इंजीनियर अब्दुल राशिद शेख से हारे

दरअसल, लोकसभा चुनाव 2024 के रिजल्ट में कई उलटफेर देखने को मिले। ऐसी ही जम्मू कश्मीर की बारामूला सीट है। यहां राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को जेल में बंद निर्दलीय कैंडिडेट इंजीनियर अब्दुल राशिद शेख से हार का सामना करना पड़ा। इंजीनियर अब्दुल राशिद शेख फिलहाल उसी तिहाड़ जेल में बंद हैं, जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बंद हैं। राशिद शेख को साल 2019 में एनआईए ने टेरर फंडिंग के केस में गिरफ्तार किया था। अमृतपाल की तरह से उन्होंने भी जेल में रहते हुए चुनाव लड़ा। अब सवाल यह है कि इन संदिग्ध छवि वाले उम्मीदवारों के लोकसभा में पहुंचने से क्या संदेश गया? पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के कथित असर वाले पंजाब में अमृतपाल सिंह और सरबजीत सिंह की जीत से साफ है कि इनके नेताओं को यह जवाब तो देना ही होगा कि राज्य में देश विरोधी ताकते कैसे अपने पैर जमा रही हैं? पंजाब में आप की नीतियों को लेकर तो जनता में खासा गुस्सा दिखाई दिया। राज्य की जनता आप के नेता अरविंद केजरीवाल और राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत मान से नाराज है। आप ने पंजाब में सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। उसे उम्मीद थी कि राज्य में उसकी सरकार है, ऐसे में वह कम से कम राज्य की 13 सीटों में से 10 पर तो जीत हासिल करेगी। हालांकि, उसे तीन सीटों से ही संतोष करना पड़ा। होशियारपुर, आनंदपुर साहिब और संगरूर को छोड़कर बाकी की सभी 10 सीटों पर आप को हार का सामना करना पड़ा।


आप को मुंह की खानी पड़ी

आप को दिल्ली में भी मुंह की खानी पड़ी। आप ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, इसके तहत दक्षिणी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली और नई दिल्ली के तौर पर चार सीटें उसके खाते में आईं। यह सब सीटें आप हार गई। आप को 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में में भी एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी। इसी प्रकार कांग्रेस भी अपनी तीनों सीटें हार गई। इसमें “टुकड़े-टुकड़े गैंग” के कन्हैया कुमार की सीट थी। यह दिल्ली में केजरीवाल और कांग्रेस की अ-लोकप्रियता को दर्शाता है।


एक बार फिर इंजीनियर राशिद पर लौटते हैं। राशिद को वर्ष 2004 में श्रीनगर में आतंकवादियों का समर्थन करने के लिए गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद उसे तीन महीने और 17 दिनों के लिए जेल में रखा गया था। उस पर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाया गया था। बाद में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट श्रीनगर ने मानवीय आधार पर उनके खिलाफ सभी आरोप हटा दिए। उन्हें अगस्त 2019 में कश्मीर के सभी मुख्यधारा के राजनेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था। तब अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया गया था। राशिद लगातार देश और हिन्दू विरोधी हरकते कने से बाज नहीं आते। 8 अक्टूबर 2015 को इंजीनियर राशिद पर जम्मू-कश्मीर विधानसभा के अंदर भाजपा विधायकों द्वारा हमला किया गया था, क्योंकि उन्होंने सरकारी सर्किट हाउस के लॉन में गोमांस परोसने वाली एक पार्टी की मेजबानी की थी।


जाहिर है, उपर्युक्त तीनों नव निर्वाचित सांसदों की गतिविधियों पर देश को पैनी नजर रखनी होगी।

मेरी तो यही शुभकामना है कि ये देश की बदली परिस्थिति में अपना चाल-चरित्र और चेहरा बदलें वरना देश की राष्ट्रवादी सरकार की सख्त कार्यवाई को भुगतने को तैयार रहें।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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