केवल नीति से नहीं नीयत से भी काम करें

प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल 'द लांसेट' ने देश में व्याप्त मौजूदा कोरोना संकट के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहराया है। हालाँकि राज्य सरकारें भी कम ज़िम्मेदार नहीं हैं।

Written By :  Yogesh Mishra
Published By :  Vidushi Mishra
Update:2021-05-12 15:06 IST

कल तक जब हमारे देश और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर वैश्विक मीडिया में सकारात्मक छपता था। तब हम इतराते थे। हम फूले नहीं समाते थे। लेकिन आज कोविड की दूसरी लहर ने वैश्विक मीडिया में जब हमारी पोल खोल कर रख दी है। तब हमें वैश्विक मीडिया को भारत विरोधी, मोदी विरोधी नज़रिये से केवल देख कर नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।

भारतीय मीडिया के गोदी व मोदी के खाँचों में बंट जाने के चलते ही वैश्विक मीडिया को यह स्पेस हासिल हुआ है।आज़ादी की लड़ाई से लेकर आज तक शायद ही कोई ऐसा नेता हो जिसे मीडिया से शिकायत न रही हो। शायद की कोई ऐसा नेता या राजनीतिक दल हो जो गोदी मीडिया बनाना न चाहता हो।

पर यह पहली मर्तबा है कि मीडिया से जनता का विश्वास उठ रहा है। इसकी बानगी कोरोना काल में हुई रिपोर्टिंग में दिखती है।भारत में कोरोना की दूसरी व संघातिक लहर को लेकर लासेंट जर्नल ने जो कुछ लिखा है वह ग़लत नहीं है।

उसने चौंकाने वाले खुलासे किये हैं। हालाँकि यह भी सच है कि जो कुछ भी लासेंट में कहा गया है उसका अहसास भारत के तमाम लोगों को है। तभी तो सोशल मीडिया लासेंट जर्नल से मिली जुली प्रतिक्रियाओं से पटा पड़ा है।

चुनाव आयोग के ख़िलाफ़ हत्या का मुक़दमा

प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल 'द लांसेट' ने देश में व्याप्त मौजूदा कोरोना संकट के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहराया है। हालाँकि राज्य सरकारें भी कम ज़िम्मेदार नहीं हैं। क्योंकि केंद्र व राज्य सरकारों ने न केवल कुंभ जैसे धार्मिक आयोजन की अनुमति दी बल्कि विधानसभा व पंचायत चुनाव भी कराये। सरकारी मशीनरी के चुनाव में फँसे रहने के चलते एक तो वैक्सीनेशन का कैंपेन भी धीमा पड़ा। दूसरे, कोविड-19 की रोकथाम से जुड़े नियमों को पूरी तरह ताक पर रख दिया गया।

सरकारों का काम माफ़ करने लायक़ नहीं है तभी तो देश की एक हाईकोर्ट को यहाँ तक कहना पड़ा कि चुनाव आयोग के ख़िलाफ़ क्यों न हत्या का मुक़दमा चलाया जाये। पिछले साल देश ने कोरोना महामारी पर सफल नियंत्रण हासिल किया था । मगर दूसरी लहर से निपटने में गलतियां की गईं।

चुनाव आयोग (फोटो-सोशल मीडिया)

सरकार ने राज्यों के साथ चर्चा किए बिना टीकाकरण नीति में फेरबदल किया। इसी का नतीजा है कि अभी तक सिर्फ दो फ़ीसदी लोगों का ही टीकाकरण किया जा सका है।राज्यों से विचार विमर्श किये बगैर अचानक नीति बदल दी गयी।

टीकाकरण का दायरा 18 वर्ष से ज्यादा उम्र वालों के लिए बढ़ा दिया गया। इससे सप्लाई बेपटरी हो गई, व्यापक कंफ्यूज़न पैदा हो गया। वैक्सीनों का एक ऐसा बाजार बन गया जिसमें राज्य और अस्पतालों के सिस्टम आपस में ही प्रतिस्पर्धा में उलझ गए।

मार्च में दूसरी लहर के कारण कोरोना के केस बढ़ने से पहले ही स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने भारत में महामारी के अंत की घोषणा कर डाली।आंकड़ों के मॉडल पर यह गलत कहा गया कि भारत में हर्ड इम्यूनिटी आ गई है। इससे निश्चिंतता को बढ़ावा मिला। जबकि सच्चाई यह थी कि जनवरी में इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के एक सीरो सर्वे से पता चला था कि सिर्फ 21 फीसदी आबादी में कोरोना वायरस के खिलाफ एन्टीबॉडी है।

दूसरी लहर में सरकार ने बड़ी गलतियां करके देश को नये संकट की ओर धकेल दिया। तभी तो आईसीएमआर के महामारी विज्ञान विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ ललित कांत ने लांसेट में छपे संपादकीय से सहमति जताई है। लांसेट ने इंस्टिट्यूट फ़ॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के अनुमान का हवाला देते हुए कहा है कि एक अगस्त तक भारत में कोरोना से मौतों की संख्या दस लाख पहुंच सकती हैं।

बड़ी तैयारी की आवश्यकता

ऐसे में सरकार को वायरस के जीनोम सिक्वेंसिंग का विस्तार करना चाहिए । ताकि नए वेरिएंट को समझ कर उन्हें नियंत्रित किया जा सके। सरकार को राष्ट्रीय लॉकडाउन लगाने पर विचार करना चाहिए। इसके बिना सरकार कोरोना के संक्रमण को रोक नहीं सकती। वैक्सीनों की सप्लाई और वितरण सिस्टम दुरुस्त किया जाना चाहिए।

कोरोना वैक्सीन (फोटो-सोशल मीडिया)

ऐसा वितरण सिस्टम बनाया जाना चाहिए जिसमें ग्रामीण इलाके और गरीब लोग भी कवर किये जायें। इनके पास चिकित्सा और देखभाल की कोई सहूलियत नहीं है।क्योंकि पोलियो टीकाकरण व उसकी सफलता यहाँ के लोगों ने देखा है। भारत में पोलियो टीकाकरण अभियान 1978 में शुरू हुआ और 6 साल में 40 फीसदी शिशुओं को कवर किया गया।

इसे पीक पर पहुँचने में 33 साल लग गए। पर भारत में वर्ष 2011 में दो बार राष्ट्रीय पोलियो टीकाकरण दिवस आयोजित किये गए। जिनमें सर्वाधिक काम हुआ।हर दिवस में 22 करोड़ 50 लाख खुराकें 17 करोड़ 20 लाख बच्चों को दी गयी।इस काम में 25 लाख वेक्सीनेटर लगाए गए।इनके पास 20 लाख वैक्सीन करियर बैग्स थे।

भारत में प्रत्येक टीकाकरण अभियान में 7 लाख टीकाकरण बूथ बनाये गए। एक नेशनल पोलियो राउंड में वेक्सीनेटर 20 करोड़ घरों में गए।पोलियो वैक्सीनेशन के राष्ट्रीय अभियान के लिए बिल गेट्स फाउंडेशन ने 355 मिलियन डालर और रोटरी इंटरनेशनल ने 200 मिलियन डालर से ज्यादा की फंडिंग की।

पोलियो वैक्सीनेशन अभियान में डब्लूएचओ और यूनिसेफ के कर्मचारी भी लगे. अलग अलग देशों से रोटरी इंटरनेशनल के स्वयंसेवक भी आये थे।2015 में 17 करोड़ 40 लाख बच्चों को खुराक दी गयी। ऐसे में कोरोनावायरस से लड़ने के लिए भी हमें बड़ी तैयारी करने की आवश्यकता है।

ऑस्ट्रेलियाई मीडिया में कोरोना के लिए चीन को ही जिम्मेदार बताया गया है। 'द वीकेंड' ऑस्ट्रेलियन ने अपनी सनसनीखेज रिपोर्ट में दावा किया है कि कोरोना वायरस अचानक नहीं आया । बल्कि चीन 2015 से ही इसकी तैयारी कर रहा था।

चीन की सेना 6 साल पहले से ही कोविड-19 वायरस को जैविक हथियार के तरह इस्तेमाल करने की साजिश रच रही थी।भारत में इजरायल के राजदूत रॉन माल्का ने भी चीन की तरफ इशारा करते हुए इस वायरस को बेहद संदिग्ध करार दिया है।

चीन के एक रिसर्च पेपर के आधार पर सनसनीखेज रहस्योद्घाटन किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन 6 साल पहले से सार्स वायरस की मदद से जैविक हथियार बनाने की कोशिश में जुटा हुआ था।

रिपोर्ट में बताया गया है कि चीनी वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विभाग से जुड़े अफसर 2015 में ही कोरोना के अलग-अलग स्ट्रेन पर चर्चा कर रहे थे। चीनी वैज्ञानिकों का कहना था कि तीसरे विश्वयुद्ध के दौरान इस वायरस को जैविक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाएगा।

चीनी वैज्ञानिकों के बीच इस बात पर भी चर्चा हुई थी कि इस वायरस में हेरफेर करके इसे महामारी के तौर पर किस तरह बदला जा सकता है। चीन पूरी दुनिया को संकट में डालने वाली साजिश का बड़ा गुनहगार है।

चीन (फोटो-सोशल मीडिया)

ऑस्ट्रेलियाई साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञ रॉबर्ट पॉटर इस वायरस के किसी चमगादड़ के मार्केट से फैलने की थ्योरी को गलत मानते हैं। पूरी दुनिया को बहकाने के लिए ही इस तरह की थ्योरी को जन्म दिया गया । मगर यह वायरस किसी चमगादड़ के मार्केट से नहीं फैल सकता।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान कई बार कोरोना को चीनी वायरस की संज्ञा दी थी। उन्होंने साफ तौर पर यह भी कहा था कि यह वायरस चीन की लैब में ही तैयार किया गया है। उनका यह भी कहना था कि इस वायरस ने कई देशों की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया।

ट्र॔प ने तो अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के पास इस बात के पुख्ता सबूत होने का भी दावा किया था। उनका कहना था कि वक्त आने पर दुनिया के सामने ये सबूत रखे जाएंगे। ट्रंप के अलावा दुनिया के कई अन्य देश भी कोरोना वायरस को लेकर चीन को घेरते रहे हैं। उसकी भूमिका पर सवाल खड़े करते रहे हैं।

अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बाद अब इजराइल ने भी बिना नाम लिए हुए इस वायरस के लिए चीन की तरफ ही इशारा किया है। भारत में इजराइल के राजदूत रॉन माल्का ने कहा कि कोरोना वायरस बेहद संदिग्ध किस्म का है।यह हमें बार-बार अलग-अलग रूप में आकर चौका देता है।

जनता ने आंख बंद करके दिया मोदी का साथ

गांवों में फैला कोरोना (फोटो-सोशल मीडिया)

मौजूदा समय में कोरोना का सबसे ज्यादा कहर भारत और ब्राजील में देखा जा रहा है। भारत में रोजाना चार लाख से अधिक नए केस दर्ज किए जा रहे हैं। मौतों की संख्या में भी लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है। पिछले एक दिन के दौरान दुनिया भर में कोरोना के करीब 7.83 लाख नए केस दर्ज किए गए।

इस वायरस की वजह से 13,022 लोगों की मौत हुई। यह खतरनाक वायरस अभी तक दुनिया के 15.83 करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी गिरफ्त में ले चुका है।इस वायरस की वजह से करीब 33 लाख लोगों की मौत हुई है। पर जब कुछ दूसरे देशों से सकारात्मक खबरें आ रहीं हैं।

इज़रायल व स्पेन अपने यहाँ मास्क पहनने व सोशल डिस्टेंसिंग की ज़रूरत को पीछे छोड़ आये हैं। तब भारत में उम्मीद का जगना अस्वाभाविक नहीं है। क्योंकि हम तो विश्वगुरु वाली सरकार की छतरी के नीचे हैं। नोट बंदी जैसे फ़ैसले पर जनता ने नरेंद्र मोदी का आँख बंद करके साथ दिया था।

ऐसे में जनता को यह उम्मीद होना बेमानी नहीं है कि संकट की इस घड़ी में उसके प्रिय नेता आँख बंद करके उसका साथ देंगे। बिना ना नुकूर किये। बिना जनता पर तोहमत लगाये। क्योंकि अब तो कोरोना ने गाँवों में भी पैर पसार लिया है। इसके लिए जनता नहीं सरकार ज़िम्मेदार है। जो भी संसाधन उपलब्ध हैं , सरकार उसे लेकर हाज़िर हो।

देश के सबसे अधिक राज्यों में भाजपा की सरकार है। देश के सबसे बड़े राज्य में भी भाजपा की सरकार है। पर खेद का विषय है कि ये सरकारें ग़लत आँकड़ों व ग़लत बयानबाज़ी के मार्फ़त जनता को झूठे दिलासे में रखना चाहती हैं। यह रुख जले पर नमक छिड़कने जैसा है।

यह समय आँकड़ों के पेट भरने का नहीं है।यह समय साथ खड़े होने, खड़े दिखने का है। यह कर पाने में सरकारें सफल नहीं हो रहीं हैं। कोरोना काल में परेशान, हताश व निराश जनता ही किसी के चीर जीवी बने रहने का प्रमाण देगी। यही जनता व यही कालखंड तय करेगा कि इतिहास आपका मूल्यांकन कैसे करे।

यह केवल वर्तमान का प्रश्न नहीं है। यह प्रश्न अतीत व भविष्य का भी है। इस लिए इसे सिर्फ़ नीतियों से नहीं नीयत से भी हल करें। केवल दिमाग़ से नहीं, दिल से भी हल करें। केवल तंत्र से ही नहीं लोक से भी मिलकर हल करें।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)

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