जातीय जन-गणनाः सोया भूत जगाया

बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने अपनी विधानसभा में नागरिकता के संबंध में सर्वसम्मति से जो प्रस्ताव पारित करवाया, उसकी मैंने भरपूर तारीफ की थी लेकिन मुझे बड़ा अफसोस है कि इसी विधानसभा ने कल जनसंख्या-गणना के सवाल पर शीर्षासन कर दिया।

Update: 2020-02-29 05:28 GMT
फ़ाइल फोटो

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने अपनी विधानसभा में नागरिकता के संबंध में सर्वसम्मति से जो प्रस्ताव पारित करवाया, उसकी मैंने भरपूर तारीफ की थी लेकिन मुझे बड़ा अफसोस है कि इसी विधानसभा ने कल जनसंख्या-गणना के सवाल पर शीर्षासन कर दिया। उसके अनुसार बिहार की जन-गणना में अब जातिवार जन-गणना भी होगी। 2010 में मैंने जातीय जन-गणना के खिलाफ दिल्ली में आंदोलन चलाया था। इस आंदोलन में देश के कई दलों के नेता, पूर्व मंत्री, सांसद, बुद्धिजीवी, कलाकार और पत्रकार शामिल थे। मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार ने अपनी भूल स्वीकार की और जातीय जन-गणना बीच में ही रुकवा दी।

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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसमें विशेष रुचि ली थी। नरेंद्र मोदी उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे। वे हमसे सहमत थे। उन्होंने हमारा साथ दिया था। प्रधानमंत्री बनने पर उन्होंने, जातीय जन-गणना के आंकड़े जितने भी इकट्ठे हुए थे, उन्हें प्रकाशित नहीं होने दिया लेकिन नीतिश कुमार ने ऐसा तुरुप का पत्ता मारा है कि उसने भाजपा और कांग्रेस दोनों को चित कर दिया है। दोनों पार्टियों, बल्कि सभी पार्टियों ने बिहार विधानसभा में घुटने टेक दिए हैं। यह ठीक है कि बिहार जातिवाद का गढ़ है और वहां जाति की सीढ़ी पर चढ़े बिना चुनाव जीतना असंभव है लेकिन जातीय जन-गणना के दूरगामी दुष्परिणाम इतने भयावह होंगे कि भारत कई सदियों पीछे चला जाएगा।

जातीय जन-गणना अंग्रेज ने 1861 में शुरु करवायी थी, 1857 की क्रांति के चार साल बाद ताकि भारत जातियों के चक्र-व्यूह में फंस जाए, उसकी एकता भंग हो जाए और वह ब्रिटिश साम्राज्य के लिए चुनौती न बन सके। इस जातीय जन-गणना का किस-किसने विरोध नहीं किया ? गांधीजी, आंबेडकर, सुभाष बाबू, सावरकर, गोलवलकर, श्रीपाद डांगे, पीसी जोशी, डाॅ. लोहिया किस-किसके नाम गिनाऊं ? कांग्रेस ने जातीय जन-गणना के विरुद्ध बाकायदा प्रस्ताव पारित किया और 11 जनवरी 1931 को ‘जन-गणना बहिष्कार दिवस’ मनाया। अंग्रेज ‘सेंसस कमिश्नर’ जे.एच. हट्टन ने भी इस जातीय जन-गणना का विरोध स्वतः ही शुरु कर दिया था।

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उन्होंने इसे अवैज्ञानिक, फर्जी और भ्रष्टाचार की जनक बताया था। अंग्रेज सरकार ने इस जातीय गणना को बंद करवा दिया था और मनमोहन सिंह सरकार ने हमारे आग्रह पर इसे अधर में लटकवा दिया था लेकिन यदि देश के कुछ प्रांतों में यह शुरु हो गई तो सभी प्रांतों में शुरु हो जाएगी। नीतिशकुमार मेरे प्रिय मित्र हैं। उन्होंने कई लोक-कल्याणकारी साहसिक कार्य किए हैं। मैं उनसे आशा करता हूं कि वे आरक्षण और जातीय-जनगणना के बारे में पुनर्विचार करेंगे और ऐसी नीति पर नहीं चलेंगे, जिससे वे तो जीत जाएं लेकिन अपना देश हार जाए। जिस भूत को मनमोहन और मोदी ने सुला दिया था, उसे नीतिश क्यों जगाएं ?

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