मन बड़ा व्याकुल है। किस पर लिखूं। उत्तराखंड के उस कारोबारी पर लिखूं जिसने व्यवस्था से तंग आकर जहर खाकर जान दे दी या उससे उपजी उस तंगदिल, अवसरवादी राजनीति पर जो अक्सर बेगुनाह की मौत पर जिंदा हो जाती है। सबको अपने अपने हिस्से का कार्य मिल गया है। मूर्छित विपक्ष इस दुखद त्रासदी से संजीवनी तलाश रहा है तो सरकार इस जांच परख में है कि उस व्यापारी का जीएसटी में रजिस्ट्रेशन था या नहीं। कानूनी बाराकियों को समझने समझाने में पूरा तंत्र जुट गया है। परिस्थितियों को सुधारने में किसी की कोई रुचि नहीं है।
जाल तू जलाल तू आई बला को टाल तू के अंदाज में रस्मी टोटके बाजी से समाधान की खोज नहीं बंदर की बला तबेले के सर मढऩे की मुहिम शिखर पर है। शरीर छोडऩे वाला इंसान मदारी का तमाशा बन गया है जिसे हर मदारी अपने अपने अंदाज से भुनाने में लगा है लेकिन आज इस प्रकरण पर सरकारी मशीनरी, नेताओं के आदर्श व्यवहार पर चर्चा करके समय को नष्ट नहीं करेंगे। उन लाखों करोड़ों लोगों को सम्मान से सजदा करेंगे जिन्होंने इससे भी ज्यादा विपरीत स्थितियों में जिंदगी से पलायन नहीं संघर्ष करने की ठानी है। हम आँख उठाकर देखें इससे भी खराब और चुनौतीपूर्ण स्थिति में लोग जिंदगी जीने को विवश हैं। लड़ रहे..जूझ रहे हैं..खून के आँसू बहा रहे हैं..सलाम है उनकी हिम्मत को।
जिंदा रहते चीखते चिल्लाते कराहते इंसान को कुछ न मिलना जितना दुखद है उससे भी अधिक दुखद है उसकी मौत के बाद मिलने वाला आर्थिक उपहार। जाने अनजाने में ये लोगों को प्रोत्साहित करता है कि आओ मरो और मरने के बाद अपने परिवार को संकटों से उबारने का मार्ग प्रशस्त करो।
ट्रांसपोर्टर प्रकाश पांडे की दुखद मौत की घटना के बाद इस अंश के लिखे जाने तक छह लोग सरकार को आत्मोत्सर्ग की धमकी दे चुके हैं। जिसमें कि एक महाशय को पुलिस गिरफ्तार भी कर चुकी है। वाह क्या वातावरण बन रहा है। ये बहुत ही चिंताजनक अवस्था है। इसे गंभीरता से लेना होगा। ये लिखने में अब कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि प्लीज पर समस्या के निदान के लिए सरकार और नेताओं की ओर देखना बंद करो हमें खुद अपने लिए अपनी कठिनाइयों से लडऩे का मार्ग खोजना होगा। सत्ता आश्रित होने के बजाय आत्मनिर्भर होने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। हमें नजर उठाकर अपने चारों तरफ देखना ही होगा कि कितने कम साधनों में लोग खुद को ढाल रहे हैं और जिंदा हैं।
मौजूदा तंत्र सिर्फ बेहतर नारे गढ़ सकता है। युग चाहे किसी दल का हो। हमारे भाग्य में केवल नारे ही लिखें हैं और वह हमारे हिस्से आएंगे। अंत्योदय में अंतत: इस राजनैतिक घरानों और तंत्र से जुड़े तांत्रिकों का ही उदय होगा। जो कि आप पिछले तमाम दशकों से देखते भी आ रहे हैं। अगर नहीं समझे हैं तो अंत्योदय में सबकुछ साफ हो जाएगा। क्योंकि देवभूमि में व्यवस्था का फैसला अभी देवताओं का हाथ में नहीं आया है। यह पुजारियों के हाथ में हाथ में है जिन्हें आप अच्छी तरह जान व पहचान नहीं पा रहे हैं तो कोई बात नहीं अच्छे दिन जल्द आ जाएंगे..।
(संपादक उत्तराखंड संस्करण)