विदेश नीतिः दोनों से दोस्ती, रामाय स्वास्ति और रावणाय स्वास्ति भी!

Foreign Policy: आतंकवाद और सरकारी भ्रष्टाचार को रोकने पर दो अलग-अलग बैठकों में विस्तार से चर्चा हुई लेकिन उसका नतीजा क्या निकला? शायद कुछ नहीं।

Written By :  Dr. Ved Pratap Vaidik
Update: 2023-03-05 08:09 GMT

पीएम नरेंद्र मोदी (Pic: Social Media)

Foreign Policy: जी-20 और क्वाड के सम्मेलन भारत में संपन्न हुए। इनसे हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत की छवि तो खूब चमकी और भारत के कई राष्ट्रों के साथ आपसी संबंध भी बेहतर हुए लेकिन जी-20 ने कोई खास फैसले किए हों, ऐसा नहीं लगता। वह रूस-यूक्रेन युद्ध रूकवाने में सफल नहीं हो सका। आतंकवाद और सरकारी भ्रष्टाचार को रोकने पर दो अलग-अलग बैठकों में विस्तार से चर्चा हुई लेकिन उसका नतीजा क्या निकला? शायद कुछ नहीं।

सभी देशों के वित्तमंत्रियों और विदेश मंत्रियों ने दोनों मुद्दों पर जमकर भाषण झाड़े लेकिन उन्होंने क्या कोई ऐसी ठोस पहल की, जिससे आतंकवाद और भ्रष्टाचार खत्म हो सके या उन पर कुछ काबू पाया जा सके? इन दोनों मुद्दों पर रटी-रटाई इबारत फिर से पढ़ दी गई। क्या दुनिया के किसी देश में ऐसी सरकार हैं, जिसके नेता ये दावा कर सकें कि वे सत्ता में आने और बने रहने के लिए साम, दाम, दंड, भेद का सहारा नहीं लेते? तानाशाही और फौजी सरकारें इस मामले में निरंकुश तो होती ही हैं, लोकतांत्रिक सरकारें भी कम नहीं होतीं। चुनाव लोकतंत्र की श्वास नली है। इस श्वास नली को चालू रखने के लिए असीम धनराशि की जरूरत होती है। वह भ्रष्टाचार के बिना कैसे इकट्ठा की जा सकती है? दुनिया के दर्जनों राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री आखिर जेल में बंद क्यों किए जाते हैं? वे बेईमानी करते हैं तो उनके इस अभियान में उनके नौकरशाह और पूंजीपति उनका पूरा साथ देते हैं। इस जी-20 सम्मेलन में इस तरह की बेइमानियों से बचने के अचूक उपायों पर क्या कोई ठोस सुझाव सामने आए?

इसी तरह आतंकवाद के खिलाफ जिन राष्ट्रों ने आग उगली, वे खुद ही आतंकवाद के संरक्षक रहे हैं। अपने राष्ट्रहितों की रक्षा के लिए वे आतंकवाद क्या, किसी भी बुरे से बुरे हथकंडे का इस्तेमाल कर सकते हैं। जी-20 और चौगुटे (अमेरिका, भारत, जापान, आस्ट्रेलिया) के सम्मेलनों में यूक्रेन का मसला सबसे महत्वपूर्ण बना रहा। रूसी और अमेरिकी विदेश मंत्री दिल्ली में मिले लेकिन वे कोई हल की तरफ नहीं बढ़ सके। इस मामले में भारत की नीति काफी लचीली और व्यावहारिक रही। उसने रूस के साथ भी मधुर संबंध बनाए रखने की पूरी कोशिश की और अमेरिका के साथ भी। नेहरू की गुट निरपेक्षता के मुकाबले वर्तमान भारत की नीति गुट-सापेक्षता की हो गई है। वह दोनों तरफ हाँ में हाँ मिलाता है। रामाय स्वास्ति और रावणाय स्वास्ति भी! राम और रावण दोनों की जय! चीन के साथ भी दोस्ती और दुश्मनी, दोनों तरह के तेवर बनाए रखने की उस्तादी भी आजकल भारत जमकर दिखा रहा है।

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