Girls Education: अपनी शिक्षा के लिए संभावनाओं की तलाश है मुझे
Girls Education: लड़कियों को शिक्षा का अवसर उनकी मर्ज़ी के अनुसार मिलना चाहिए। नहीं तो, लड़कियों का यह सवाल अनुत्तरित ही रह जाएगा कि क्या वे शादी से पहले अपने करियर को बना सकती हैं। अन्यथा अपनी पढ़ाई , अपने करियर को लेकर उनकी इच्छाओं का कोई अर्थ ही नहीं रह जाएगा।
Girls Education: एक कॉलेज की हिंदी विभाग की छात्राओं के साथ एक परिसंवाद में उनके द्वारा पूछे गए प्रश्नों में एक प्रश्न यह भी आया कि मैं 20 साल की हो चुकी हूं और परिवार वाले आगे और पढ़ाने की जगह ज्यादा से ज्यादा 5-6 साल में मेरी शादी कर देंगे। क्या ऐसा कोई रास्ता है कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर जितनी जल्दी हो सके हिंदी के क्षेत्र में एक करियर को बना सकूं? यह उस अकेली छात्रा की ही व्यक्तिगत समस्या नहीं थी बल्कि हमारे देश की छात्राओं के एक बड़े प्रतिशत का यह सवाल है। कुछ वर्षों पहले तक यही स्थिति थी कि लड़कियों की 12वीं या स्नातक की पढ़ाई पूरी होने के साथ-साथ उनकी शादी कर दी जाती थी। कारण कि शिक्षित लड़कियों से अधिक भरोसा घरेलू जिम्मेदारियों को निभाने वाली लड़की पर किया जाता था। लड़कियों में आगे पढ़ाई की इच्छा है या नहीं, यह कोई नहीं पूछता था। लड़कियां पराया धन है, दूसरे के घर जाना है जैसी बातें उनके दिमाग में पहले से ही घुट्टी के जैसे घोंट कर पिला दी जाती थी। यदि किसी लड़की का भाग्य और दिमाग तेज हुआ और घर वालें भी थोड़े अधिक मॉडर्न हुए तो लड़कियों को मेडिकल या बी एड जैसे प्रोफेशनल कोर्स की पढ़ाई करने को भी मिल जाती थी। उन्हें भी यह पता होता था कि उनकी पढ़ाई का फल उन्हें आगे मिलेगा या नहीं यह उनकी अपनी काबिलियत पर नहीं बल्कि उनके पति और ससुराल वालों की मर्जी पर निर्भर करेगा।
महिलाओं की साक्षरता दर
चूंकि उस समय की वे लड़कियां शिक्षित तो थीं ही पर आगे उसको करियर बनाने का अवसर नहीं मिलने के कारण वे अपने घरेलू जिम्मेदारियां में ही व्यस्त थीं। लेकिन पिछले एक दशक के समय में महिलाओं की स्थिति में इतने परिवर्तन आए हैं कि जो महिलाएं 20- 25 साल पहले अपने शिक्षा पूरी कर चुकी थीं, वे पिछले एक दशक में रोजगार के क्षेत्र में, व्यवसाय के क्षेत्र में अधिक निकलकर आ रही हैं। अब जबकि महिलाओं की शैक्षिक स्थिति में बहुत बदलाव आया है। 2011 की जनगणना बताती है कि भारत की कुल साक्षरता दर 74.04 फीसदी थी जबकि महिलाओं की साक्षरता दर 65.46 फीसदी थी, जो की 2001 की जनगणना में 53.67 फीसदी यानि महिलाओं की साक्षरता दर में 8.86 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। भारत में स्कूलों की संख्या 2011 में 15 लाख 7 हजार 708 थी और 1043 विश्वविद्यालय और 42343 विश्व महाविद्यालय थे। वह रिपोर्ट यह भी बताती है कि राष्ट्रीय स्तर पर साक्षरता में लिंग भेद का अंतर भी पहले के मुकाबले कम हुआ है और महिला साक्षरता हर दशक में अब बढ़ रही है। अब चूंकि लड़के और लड़कियों की संख्या के बीच का यह अंतर आज का नहीं है बल्कि वर्षों से जारी रहा है जो कि अब जाकर कुछ कम हुआ है।
स्त्री शिक्षा की स्थिति में आया सुधार
महिला शिक्षा को लेकर जो काम किए जाने चाहिए, वे सरकारी तौर पर तो आवश्यक हैं हीं, उनसे अधिक जरूरी है कि उन्हें सामाजिक तौर पर भी अपनाया जाए। लड़कियों के लिए शिक्षा संबंधी सुविधाओं का दायरा बढ़ाया जाए, उनके लिए व्यवसायिक शिक्षा की व्यवस्था की जाए। गरीबी, सामाजिक परंपराएं महिला साक्षरता को बाधित करती हैं। लिंग आधारित असमानताएं एवं रूढ़िवादी सोच, सामाजिक भेदभाव एवं आर्थिक शोषण, घरेलू कामों में बालिकाओं की आवश्यकता आदि ऐसी कारक है जो लड़कियों की शिक्षा में बाधक होते हैं। हालांकि देश में अब स्त्री शिक्षा की स्थिति में बहुत सुधार आया है। उनकी पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक स्थिति में भी परिवर्तन आए हैं लेकिन महिलाओं के लिए शिक्षा के बाद रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की भी आवश्यकता है। स्कूल, कॉलेजों में पढ़ाई का उचित माहौल तैयार किया जाना चाहिए विशेष कर लड़कियों की शिक्षा के अनुकूल माहौल तैयार किया जाना जरूरी है। स्कूल और कॉलेजों की इमारतें व कक्षाएं स्तरीय होनी चाहिए। लड़कियों के लिए उचित सैनिटाइजेशन की व्यवस्था बहुत जरूरी है। शिक्षकों की कमी से हमारे देश के शिक्षण संस्थान आज भी जूझ रहे हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रही लड़कियां
एक सर्वे के अनुसार साथ अंडरग्रैजुएट कोर्सेज में 7 में से 5 में अब लड़कियों का प्रतिशत लड़कों से ज्यादा है और साथ ही मेडिकल की पढ़ाई में भी लड़कियों ने लड़कों को पीछे छोड़ दिया है। लड़कियां अधिक लगन से पढ़ती हैं और उससे भी अधिक बेहतर तरीके से वे रोजगार भी कर सकती हैं। कुछ लड़कियां के लिए कॉलेज घरेलू जिम्मेदारियों और काम से मुक्ति और घर की बंदिशें से आजाद होने का माध्यम है। कई लड़कियां घर के कामों में हाथ बंटाने के बावजूद अपनी पढ़ाई के लिए समय निकालती हैं। कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल फोन के जरिए वे शेष दुनिया से जुड़ती हैं और नए-नए विषयों और विकल्पों को जानना चाहती हैं। यह बड़ी बात है की लड़कियां बहुत सारी परेशानियों का सामना करके भी शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, जो की एक नई क्रांति की ओर संकेत करता है।
लड़कियों को शिक्षा का अवसर मिले
लड़कियों को शिक्षा का अवसर उनकी मर्ज़ी के अनुसार मिलना चाहिए। नहीं तो, लड़कियों का यह सवाल अनुत्तरित ही रह जाएगा कि क्या वे शादी से पहले अपने करियर को बना सकती हैं। अन्यथा अपनी पढ़ाई , अपने करियर को लेकर उनकी इच्छाओं का कोई अर्थ ही नहीं रह जाएगा। उन्हें भी यह अवसर जरूर मिलना चाहिए कि वे अपनी इच्छा से अपनी पढ़ाई कर सके और करियर चुन सकें। उनके मन से इस डर को बाहर निकालना बहुत जरूरी है कि शादी के बाद उनके लिए पढ़ाई और करियर का ऑप्शन बिल्कुल बंद होने वाला है।
(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)