राष्ट्रीय शोक दिवस की शुरुआत कैसे हुई

भारत में सर्व प्रथम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की 30 जनवरी को हत्या के बाद राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया था। शुरुआती दौर में भारत में राष्ट्रीय शोक सिर्फ राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री के निधन पर घोषित होता था।

Update: 2021-01-30 07:17 GMT
भारत में राष्ट्रीय शोक पूरे राष्ट्र के दुख को व्यक्त करने का व सम्मान देने का एक तरीका है। यह राष्ट्रीय शोक किसी व्यक्ति की मृत्यु या पुण्य तिथि पर मनाया जाता है।

राजीव गुप्ता जनस्नेही

वैसे तो दुनिया के लगभग हर देश में अपनी अपनी तरह से शोक दिवस मनाया जाता है। इसे मनाने का कारण और प्रक्रिया भी लगभग एक सी ही होती है, मगर आज हम विशेष तौर पर भारत की राष्ट्रीय शोक दिवस की बात करेंगे। भारत में राष्ट्रीय शोक पूरे राष्ट्र के दुख को व्यक्त करने का व सम्मान देने का एक तरीका है। यह राष्ट्रीय शोक किसी व्यक्ति की मृत्यु या पुण्य तिथि पर मनाया जाता है।

भारत में सर्व प्रथम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की 30 जनवरी को हत्या के बाद राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया था। शुरुआती दौर में भारत में राष्ट्रीय शोक सिर्फ राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री के निधन पर घोषित होता था। कालांतर में समय के साथ इन नियमों में कई बदलाव किए गए अब अन्य गणमान्य व्यक्तियों के मामले में भी केंद्र विशेष निर्देश जारी करके राष्ट्रीय शोक का ऐलान कर सकता है।

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साथ ही देश में किसी बड़ी आपदा के वक्त भी राष्ट्रीय शोक घोषित किया जा सकता है। हमें यहां पर यह भी जानना चाहिए की फ्लैग कोड ऑफ इंडिया के अनुसार राष्ट्रीय शोक के दौरान राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुका के रखते हैं| कोई औपचारिक एवं सरकारी कार्य नहीं किया जाता है| इस अवधि के दौरान कोई अधिकारी कार्य भी नहीं होता है। समारोह और आधिकारिक मनोरंजन पर भी प्रतिबंध रहता है। दिवंगत व्यक्ति की राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि की जाती है।

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देश और विदेश में भारतीय दूतावास और उच्चायोग में राष्ट्रीय ध्वज आधे झुके रहते हैं। जैसा केंद्र सरकार के 1997 के नोटिफिकेशन में कहा गया कि राजकीय सेवा के दौरान कोई भी सर्वजनिक छुट्टी जरूरी नहीं है। इसके अनुसार अनिवार्य सार्वजनिक छुट्टी को राष्ट्रीय शोक के दौरान खत्म कर दिया गया है। जब किसी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की पद पर रहते हुए मौत हो जाती है लेकिन अक्सर पद पर ना रहने वाले गणमान्य लोगों की मृत्यु के बाद भी सार्वजनिक अवकाश घोषणा कर दी जाती है क्योंकि इसका अंतिम अधिकार राष्ट्रपति के हाथों में है।

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इसके अलावा राज्य को भी अपनी शोक दिवस को अब घोषित करने का अधिकार मिल गया है। लोग भृमित ना हो इसलिए यहाँ लिख रहे हैं 15 अक्टूबर 1920 में बंगाल विभाजन के दौरान शोक दिवस बनाया गया था। आज राष्ट्रीय शोक दिवस श्रृदांजलि और सम्मान का दिवस है। सभी स्वर्गीय गणमान्य व्यक्तियों को नमन।

(राजीव गुप्ता जनस्नेही, लोक स्वर आगरा)

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