India Nutrition Policy: भारत की राष्ट्रीय पोषण नीति और पोषण 2.0 में रणनीतिक बदलाव

India National Nutrition Policy: तीसरा, पोषण 2.0 में लक्षित लाभार्थियों के पोषण मानकों पर नज़र रखने और अंतिम छोर तक महत्वपूर्ण आंगनवाड़ी सेवाओं की आपूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली प्रौद्योगिकी की परिकल्पना की गई है।

Written By :  Dr. Ananya Awasthi
Update:2024-03-08 15:12 IST

India National Nutrition Policy

India National Nutrition Policy: भारत में और वैश्विक मंच, दोनों स्थानों पर पोषण पर बहस तेज़ हो गई है। पोषण एजेंडा अब हाशिए पर नहीं है। वह दुनिया भर की सरकारों और विकास भागीदारों के लिए प्राथमिकता बन गया है। पोषण पर वैश्विक साक्ष्य के विकास से प्रेरित पोषण संबंधी परिणाम कई तत्वों से प्रभावित होते हैं। इस प्रकार कुपोषण के बोझ को दूर करने के लिए एक बहु-आयामी और समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता को बल मिलता है। इस पृष्ठभूमि में भारत, जहां बच्चों और किशोरों की सबसे बड़ी आबादी रहती है, वहां की राष्ट्रीय पोषण नीति में रणनीतिक बदलाव को समझना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। यह नीति न केवल पोषण मिशन के लिए राष्ट्रीय एजेंडे को परिभाषित करती है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के बड़े वैश्विक एजेंडे को आकार देने की भी क्षमता रखती है।

पोषण और बदलाव

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भारत की पोषण नीति ढांचे को संचालित करने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य कर रहा है। यह "पोषण अभियान" से "सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0" दिशानिर्देशों को अपनाने की दिशा में विकास का प्रतीक है, जिसे पोषण 2.0 के रूप में भी जाना जाता है। एक एकीकृत पोषण सहायता कार्यक्रम के रूप में परिभाषित, पोषण 2.0 आंगनवाड़ी सेवाओं और पोषण अभियान को एक कार्यक्रम में पुनर्गठित करने के लिए कार्यरत है, जिसका उद्देश्य लक्षित पोषण परिणामों के लिए बहु-क्षेत्रीय समन्वय को बढ़ावा देना है। पोषण 2.0 संतुलित आहार को बढ़ावा देने, पारंपरिक ज्ञान का लाभ उठाने, अंतिम-छोर तक पोषण सेवाओं की पहुंच निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने तथा मैदानी स्तर पर कुपोषण के खिलाफ सामूहिक लड़ाई में लोगों की भागीदारी को प्राथमिकता देने के वास्ते एक व्यापक और बहु-क्षेत्रीय रणनीति उपलब्ध करता है।

पोषण में नवाचार, वोकल फ़ॉर लोकल

अब एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है: पोषण 2.0 भारत की राष्ट्रीय पोषण नीति में एक रणनीतिक बदलाव को कैसे चिह्नित करता है? सबसे पहले, पोषण 2.0 कुपोषण के बोझ को समग्र रूप से दूर करने के लिए आहार-आधारित समाधानों की ओर कदम बढ़ाना है। दिशानिर्देश सतत स्वास्थ्य व पोषण संबंधी परिणामों के लिए प्रमुख रणनीतियों के रूप में आहार विविधता, खान-पान की अच्छी आदतों और हरित इको-सिस्टम के विकास की पहचान करते हैं। जैसे ही हम इन रणनीतियों को अमली-जामा पहनाते हैं, तो यह फलों व सब्जियों जैसे ताजा और स्थानीय खाद्य उत्पादों की खपत, स्थानीय कृषि-जलवायु फसल पैटर्न के अनुकूल मोटे अनाज या पोषक अनाज जैसी देशी फसलों की खेती, क्षेत्रीय भोजन को बढ़ावा देने में बदल जाता है। इसमें सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक और पौष्टिक खाद्य व्यंजनों को अपनाना शामिल है। इस रणनीति में एक नवाचार, जो सामने आया है, वह है आंगनवाड़ी केंद्रों, सरकारी स्कूलों और पंचायत भूमि पर पोषण वाटिका या पोषक उद्यान की स्थापना करना। 'आत्मनिर्भर भारत' और 'वोकल फॉर लोकल' की परिकल्पना के अनुरूप 2023 तक आंगनवाड़ी केंद्रों पर स्थानीय उपभोग के लिए ताजे फल और सब्जियों की आपूर्ति के उद्देश्य से पूरे भारत में 6.42 लाख से अधिक पोषण वाटिकाएं स्थापित की गई हैं।

पोषक तत्वों से भरपूर राशन

दूसरा, पोषण 2.0 बच्चों (6 महीने से 3 वर्ष), गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं और किशोर लड़कियों (पूर्वोत्तर राज्यों और आकांक्षी जिलों के संबंध में) के लिए उच्च गुणवत्ता और पोषक तत्वों से भरपूर टेक होम राशन (टीएचआर) की प्रभावी आपूर्ति तथा उसे प्राप्त करने पर प्रमुख जोर देता है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के पूरक पोषण कार्यक्रम के तहत 1.4 मिलियन आंगनवाड़ी केंद्रों की अवसंरचना के माध्यम से वितरित, पोषण 2.0 स्पष्ट रूप से टीएचआर को कच्चे राशन से अलग करता है। वह निर्दिष्ट करता है कि टीएचआर कार्यक्रम के तहत केवल कच्चे चावल या गेहूं वितरित करने के विपरीत, टीएचआर के लिए व्यंजनों को कैलोरी, प्रोटीन और आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों के लिए निर्धारित पोषण मानदंडों के अनुरूप होना चाहिए। इसके तहत मोटे अनाज, फोर्टिफाइड चावल, नट्स, तिलहन, गुड़ और स्थानीय स्वाद के अनुकूल तथा सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त ताजा खाद्य उत्पादों को शामिल करने को मजबूती से प्रोत्साहित किया जाता है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के स्वामित्व वाली या अधिकृत प्रयोगशालाओं के माध्यम से नमूनों के औचक प्रयोगशाला परीक्षण के प्रावधान के साथ राज्यों द्वारा खरीदी जा रही टीएचआर की गुणवत्ता पर समान ध्यान दिया गया है। जनवरी 2024 तक, आंगनवाड़ी सेवाएं 31.5 मिलियन से अधिक लाभार्थियों को महीने में कम से कम 21 दिनों के लिए टेक होम राशन प्रदान कर रही हैं। इस संबंध में पोषण 2.0 दिशानिर्देशों का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू देश भर में प्रति वर्ष 40,000 की दर से दो लाख आंगनवाड़ी केंद्रों (एडब्ल्यूसी) को 'सक्षम आंगनवाड़ी' के रूप में मजबूत, उन्नत और पुनर्जीवित करने की योजना है। सक्षम आंगनवाड़ियों का ध्यान शिक्षा विकास कार्यक्रमों के साथ समन्वय, इंटरनेट कनेक्टिविटी, एलईडी स्क्रीन, जल शोधक और प्रारंभिक बचपन की देखभाल और स्मार्ट शिक्षण सहायता, ऑडियो-विजुअल सहायता, बच्चों के अनुकूल शिक्षण उपकरण और शैक्षिक कलाकृति जैसी सुविधाओं से लैस अवसंरचना को बढ़ाने पर है। 

पोषण ट्रैकर और उसके लाभ

तीसरा, पोषण 2.0 में लक्षित लाभार्थियों के पोषण मानकों पर नज़र रखने और अंतिम छोर तक महत्वपूर्ण आंगनवाड़ी सेवाओं की आपूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली प्रौद्योगिकी की परिकल्पना की गई है। पोषण ट्रैकर एक ऐसा मोबाइल-आधारित निगरानी टूल है, जो वास्तविक समय में निगरानी करता है। यह दुनिया की सबसे बड़ी पोषण निगरानी प्रणालियों में से एक है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया यह टूल देश भर में दस लाख से अधिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को बच्चों के विकास मापदंडों, टेक-होम राशन की आपूर्ति, पात्र लाभार्थियों की ट्रैकिंग और आंगनवाड़ी केंद्रों के समग्र कामकाज पर वास्तविक समय डेटा साझा करने में सक्षम बनाता है। जनवरी 2024 तक, पोषण ट्रैकर 99 मिलियन से अधिक लाभार्थियों को प्रमुख आंगनवाड़ी सेवाओं की आपूर्ति की निगरानी कर रहा है, जिसमें गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं, छह साल तक के बच्चे और पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा आकांक्षी जिलों की किशोरियां शामिल हैं।

चौथा, पोषण को सामाजिक समस्या के रूप में पहचानने के लिए पोषण 2.0 लोगों को बड़े पैमाने पर एकजुट करने के एक उपकरण के रूप में काम करता है। इस प्रकार स्थानीय समुदायों के स्वास्थ्य और पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने की सुविधा देता है। अब तक, जन आंदोलन के एक हिस्से के रूप में देश भर में 900 मिलियन से अधिक जागरूकता बढ़ाने वाली गतिविधियां की जा चुकी हैं। एक कदम आगे बढ़ते हुए, पोषण 2.0 का उद्देश्य आंगनवाड़ी सेवाओं की पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार के लिए "जन भागीदारी" को शामिल करना है और उसे अभियान का रूप देना है। लाभार्थियों को मैदानी स्तर पर संगठित करने के दृष्टिकोण पर आधारित, दिशानिर्देशों में "पोषण पंचायतों" के लिए एक रूपरेखा की भी परिकल्पना की गई है। एक कार्योन्मुख सामुदायिक संवाद के रूप में परिभाषित, पोषण पंचायतें आंगनवाड़ी सेवाओं की निचले स्तर की जवाबदेही में सुधार के लिए एक तंत्र के रूप में "पीपुल्स ऑडिट" के उपयोग के वास्ते एक बड़ी भूमिका का भी आग्रह रखती हैं।

अंत में, पोषण 2.0 दिशानिर्देश असीमित संभावनाओं और पोषण-संवेदनशील खाद्य प्रणालियों को प्रोत्साहित करने, पारंपरिक तथा साथ ही अति पोषक खाद्य पदार्थों के लाभों को हासिल करने, सेवाओं की नीचे से ऊपर तक की जवाबदेही में सुधार जैसे दृष्टिकोणों के माध्यम से कुपोषण से निपटने की भारत की रणनीति में एक समग्र बदलाव का संकेत देते हैं। इसका लक्ष्य बहु-क्षेत्रीय समन्वय के लिए विभिन्न मंत्रालयों व सरकार के बीच वर्टिकल साइलो और स्वस्थ खान-पान की आदतों की दिशा में बुनियादी बदलाव लाना है। हालांकि, नीतिगत ढांचा स्थापित करना केवल पहला कदम है, पोषण 2.0 का प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि यह नीति मार्गदर्शन मैदानी स्तर पर कार्रवाई व निगरानी योग्य कार्यक्रमों में कितनी अच्छी तरह परिवर्तित होता है। जैसे-जैसे पोषण 2.0 दिशानिर्देश पूरे देश में सामाजिक रूप से अपनाए जा रहे हैं, प्रभावी कार्यान्वयन के लिए राज्यों की क्षमता, जिला स्तर पर पोषण कार्यक्रम के लिए समन्यव संरचना, आंगनवाड़ी के प्रशिक्षण और प्रोत्साहन पर ध्यान देने योग्य कुछ महत्वपूर्ण गेम चेंजर हैं। कार्यकर्ताओं को विस्तारित जनादेश लेना होगा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि "कुपोषण मुक्त भारत" हासिल करने के लिए राष्ट्रीय अभियान में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।

(लेखिका पब्लिक पॉलिसी प्रोफेशनल हैं। उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से ग्लोबल हेल्थ में प्रशिक्षण प्राप्त किया है। वे नीतिगत कार्यों के लिए वैज्ञानिक विषयों के अनुवाद से संबंधित ‘अनुवाद सॉल्यूशंस’ की संस्थापिका हैं)

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