ईरान में चीन की चुनौती

ईरान के साथ चीन ने इतना बड़ा सौदा कर लिया है, जिसकी भारत कल्पना भी नहीं कर सकता। 400 बिलियन डाॅलर चीन खर्च करेगा, ईरान में! काहे के लिए? सामरिक सहयोग के लिए।

Update: 2021-03-30 06:01 GMT
photo — social media

डॉ. वेदप्रताप वैदिक (Dr. Vedapratap Vedic)

ईरान के साथ चीन ने इतना बड़ा सौदा कर लिया है, जिसकी भारत कल्पना भी नहीं कर सकता। 400 बिलियन डाॅलर चीन खर्च करेगा, ईरान में! काहे के लिए? सामरिक सहयोग के लिए। इसमें आर्थिक, फौजी और राजनीतिक— ये तीनों सहयोग शामिल हैं। भारत वहां चाहबहार का बंदरगाह बनाने और उससे जाहिदान तक रेल-लाइन डालने की कोशिश कर रहा है। इस पर वह मुश्किल से सिर्फ 2 बिलियन डाॅलर खर्च करने की सोच रहा है। भारत ने अफगानिस्तान में जरंज-दिलाराम सड़क तैयार तो करवा दी है लेकिन अभी भी उसके पास मध्य एशिया के पांचों राष्ट्रों तक जाने के लिए थल-मार्ग की सुविधा नहीं है। अफगानिस्तान तक अपना माल पहुंचाने के लिए उसे फारस की खाड़ी का चक्कर काटना पड़ता है, क्योंकि पाकिस्तान उसे अपनी जमीन में से रास्ता नहीं देता है। चीन ने इस पच्चीस वर्षीय योजना के जरिए पूरे पश्चिम एशिया में अपनी जड़ें जमाना शुरू कर दी हैं।

चीनी विदेश मंत्री आजकल ईरान के बाद अब सउदी अरब, तुर्की, यूएई, ओमान और बहरीन की यात्रा कर रहे हैं। यह यात्रा उस वक्त हो रही है, जबकि अमेरिका का बाइडन-प्रशासन ईरान के प्रति ट्रंप की नीति को उलटने के संकेत दे रहा है। ट्रंप ने 2018 में ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को रद्द करके उस पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे। अब चीन के साथ हुए इस सामरिक समझौते का दबाव अमेरिका पर जरूर पड़ेगा। चीन, रुस और यूरोपीय राष्ट्रों ने अमेरिका से अपील की है कि वह ओबामा-काल में हुए इस बहुराष्ट्रीय समझौते को पुनर्जीविति करे। 2016 में चीनी राष्ट्रपति शी चिन फिंग की तेहरान-यात्रा के दौरान वर्तमान समझौते की बात उठी थी। उस समय तक चीन ईरानी तेल का सबसे बड़ा खरीददार था। अब चीन उससे इतना तेल खरीदेगा कि अमेरिकी प्रतिबंध लगभग निरर्थक हो जाएंगे लेकिन इस चीन-ईरान समझौते के सबसे अधिक परिणाम भारत को झेलने पड़ेंगे।

इसे भी पढ़ें: UP में कोरोना का संक्रमण हुआ तेज, पत्रकारों से एहतियात बरतने की अपील

हो सकता है कि अब उसे मध्य एशिया तक का थल मार्ग मिलना कठिन हो जाए। इसके अलावा चीन चाहेगा कि अफगान-समस्या के हल में पाकिस्तान और ईरान की भूमिका बढ़ जाए और भारत की भूमिका गौण हो जाए। भारत और अमेरिका की बढ़ती हुई निकटता चीन की आंख की किरकिरी बन गई है। ‘खाड़ी सहयोग परिषद’ के साथ चीन का मुक्त व्यापार समझौता हो गया तो मध्य एशिया और अरब राष्ट्रों के साथ मिलकर चीन अमेरिका के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। भारतीय विदेश नीति निर्माताओं को भारत के दूरगामी राष्ट्रहितों के बारे में सोचने का यह सही समय है। भारत के पास ‘प्राचीन आर्यावर्त’ (म्यांमार से ईरान व मध्य एशिया) को जोड़ने के लिए कोई जन-दक्षेस-जैसी योजना क्यों नहीं है?

इसे भी पढ़ें: 15 दिन बंद रहेंगे बैंक: अप्रैल में जल्द निपटाने हो बैंक के काम, तो देखें ये लिस्ट

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

Tags:    

Similar News