ईरानः भारत की भूमिका ?

सुलेमानी ईरान के सिर्फ बड़े सैनिक अफसर भर ही नहीं थे। वे सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खुमनेई के बाद ईरान के सबसे लोकप्रिय व्यक्ति थे। पूरे पश्चिम एशिया में, खास तौर से इराक, सीरिया, यमन और लेबनान में, ईरानी प्रभाव को बढ़ाने में सुलेमानी का बड़ा योगदान रहा है।

Update: 2020-01-05 11:11 GMT

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

लखनऊ: ईरानी सेनापति कासिम सुलेमानी की हत्या को डोनाल्ड ट्रंप कितना ही जरुरी और सही ठहराएं लेकिन यह काम एक अघोषित युद्ध की तरह ही है। सुलेमानी ईरान के सिर्फ बड़े सैनिक अफसर भर ही नहीं थे। वे सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खुमनेई के बाद ईरान के सबसे लोकप्रिय व्यक्ति थे। पूरे पश्चिम एशिया में, खास तौर से इराक, सीरिया, यमन और लेबनान में, ईरानी प्रभाव को बढ़ाने में सुलेमानी का बड़ा योगदान रहा है। सुलेमानी की तुलना उसामा बिन लादेन या बगदादी से नहीं की जा सकती।

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...जैसा कि तेहरान में सातवें दशक में घेरा गया था

उनकी हत्या पर ट्रंप ने बहुत खुशी जाहिर की है और कहा है कि इस फौजी ने लाखों लोगों को मौत के घाट उतारा है। उसका बदला उन्हें लेना ही था। उनकी हत्या इसलिए की गई कि वे बगदाद में थे और कहा गया कि उन्हीं के उकसावे पर बगदाद के अमेरिकी राजदूतावास को घेर लिया गया था, जैसा कि तेहरान में सातवें दशक में घेरा गया था। इसके पहले 27 दिसंबर को एक राकेट हमले में एक अमेरिकी ठेकेदार की मौत हो गई थी। कुछ सप्ताह पहले सउदी अरब के एक तेल-क्षेत्र पर भी जबर्दस्त हमला हुआ था। उसके लिए ईरान को गुनाहगार ठहराया गया था।

ईरान का मिजाज़ जैसा है...बदला लिये बिना नहीं रहेगा

इन सब कारणों के बावजूद इस अमेरिकी कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय कानून की नजर में ठीक नहीं ठहराया जा सकता। ट्रंप को चुनाव जीतना है। यह काम उन्हें अमेरिकियों की नज़र में महानायक बना देगा लेकिन चीन, रुस और फ्रांस जैसे सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों ने गहरी चिंता व्यक्त की है। अमेरिका के डेमोक्रेट भी इसकी निंदा कर रहे हैं। ईरान का मिजाज़ जैसा है, उसके आधार पर माना जा सकता है कि वह इसका बदला लिये बिना नहीं रहेगा। कोई आश्चर्य नहीं कि पश्चिम एशिया छोटे-मोटे युद्ध की चपेट में आ जाए।

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तेल के दाम भी आसमान छुएंगे

इस घटना कांड से भारत की चिंता बढ़ गई है, क्योंकि अमेरिका और ईरान, दोनों से भारत के संबंध अच्छे हैं। ईरान के चाहबहार बंदरगाह पर भारत का काफी पैसा लगा है। पता नहीं, उसका अब क्या होगा ? तेल के दाम भी आसमान छुएंगे। भारत की लड़खड़ाती अर्थ-व्यवस्था पर उसका काफी बुरा असर पड़ेगा। भारत के लगभग 80 लाख लोग खाड़ी के देशों में सक्रिय हैं।

वे बड़े पैमान पर विदेशी मुद्रा भारत भेजते हैं। यदि वहां युद्ध छिड़ गया तो भारत की मुसीबतें कई गुना बढ़ जाएंगी। इस समय भारत की तटस्थता आश्चर्यजनक है। अमेरिका और ईरान दोनों के मित्र होने के नाते उसकी भूमिका, इस मौके पर, बहुत रचनात्मक हो सकती है।

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