बल्लभगढ़ से यूरोप तक फैले इस्लामिक जेहादी
किसी इंसान की हत्या या मासूमों को मजहब के नाम पर मार देना सामान्य सी बात मानी जाती है। निकिता के साथ यही तो हुआ। चूंकि उसने लफंगे तौफीक से शादी करने से मना किया, उसे सरे राह पहले खींचकर अपहरण करने की कोशिश की गई और जब वह तैयार नहीं हुई तो गोली मार दिया गया।
आर.के. सिन्हा
किसी युवक-युवती में प्रेम होना या एकतरफा प्रेम होना सदियों का चली आ रही सामान्य बातें हैं। यह भी होता है कि अनेकों बार एक-दूसरे के चाहने वालों में कई कारणों से विवाह भी न हो। इसकी तमाम वजहें हो सकती हैं जिसकी चर्चा करके आपका समय व्यर्थ नहीं करना चाहता । पर किसी कन्या से एक तरफा प्रेम करना और फिर उस पर अपना धर्म बदल कर इस्लाम धर्म स्वीकार करके शादी करने की जिद्द करने वाले इंसान को आप क्या कहेंगे। बेशक वह तो मानसिक रूप से विक्षिप्त ही होगा। इसे जेहादी और कट्टरपंथी मानसिकता भी कहा जा सकता है।
ऐसा विक्षिप्त इंसान कितना भयानक कदम उठा सकता है, यह बीते दिनों पूरे देश ने हरियाणा के औद्योगिक शहर बल्लभगढ़ शहर में देखा। यह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के करीब ही है। वहां पर बीकॉम की पढ़ाई कर रही 21 वर्षीय मेधावी छात्रा निकिता तोमर की एक सिरफिरे कट्टरपंथी विक्षिप्त नवयुवक ने अपने एक मित्र की मदद से दिनदहाड़े हत्या् कर दी गई।
उसे 21 साल के तौसीफ नाम के इंसान ने मात्र इसलिये गोलियों से भून डाला कि वह निकिता से एक तरफा प्यार कर रहा था और उसपर साथ भागकर और धर्म परिवर्तन करके शादी करने का दबाव बना रहा था जिसमें असफल होने पर उसने इस अपराध को अंजाम दिया। पुलिस की शुरूआती तफ्तीश और निकिता की मां के बयानों से साफ है कि तौसीफ और उसकी मां भी लगातार निकिता पर दबाव डाल रहे थे कि वह इस्लाम धर्म को स्वीकार करके उनकी बहू बन जाये । उसने यह सब नहीं किया तो उसकी जान ही ले ली गई। इससे पहले निकिता का अपहरण भी किया गया था।
तौसीफ जैसों को बना रहा जेहादी
पर ताज्जुब तो यह हो रहा है कि इतनी भयावह घटना के बाद भी वे सारे लोग चुप है, जो हाथरस में एक दलित कन्या के बलात्कार और हत्या की घटना को लेकर सोशल मीडिया से लेकर सड़कों पर उतर आए थे। क्या वे सब अपनी चुप्पी की वजह का जरा खुलासा भी करेंगे? क्या कोई यह भी बताएगा कि भारत में वे कौन से तत्व हैं जो तौसीफ जैसों नौजवानों को जेहादी बना रहे हैं? जिस उम्र में तौसीफ को अपनी पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देना चाहिए था, उस उम्र में वह एक युवती पर धर्म परिवर्त्तन का दबाव बना रहा था।
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आरोपी तौसीफ का संबंध हरियाणा के संपन्न कांग्रेसी राजनीतिक परिवार से है। उसके दादा कबीर अहमद विधायक रहे हैं। उसके चाचा खुर्शीद अहमद हरियाणा के पूर्व मंत्री थे। नूंह से कांग्रेस विधायक आफताब अहमद उसके चचेरे भाई हैं। क्या जो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी हाथरस की घटना पर सड़कों पर उतरे थे, वे अपनी पार्टी के विधायक के भतीजे पर खिलाफ भी तत्काल कठोर कार्रवाई की मांग करेंगे और निकिता के घर जाकर उसके घरवालों को भी सांत्वना देंगे? फिलहाल उनके अल्पसंख्यक प्रेम के पूर्व इतिहास के कारण यह लगता तो नहीं है।
बल्लभगढ़ की घटना के तीन दिन बाद तक गांधी परिवार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया तक नहीं आई थी। फिलहाल तौसीफ और उसके साथी रेहान को तो हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। पर एक निर्दोष बच्ची की तो जान चली ही गई। निर्भया,हाथरस और अब बल्लभगढ़ की घटना में हिंसा का बर्बर अतिरेक है। यह भी विचार करना होगा कि तौसीफ जैसे अपराधी कैसे और क्यों बनते है ? इस बिन्दु पर अपराधशास्त्रियों को और राजनेताओं को भी गंभीरता से सोचना होगा।
काबू पाओ जेहादी मानसिकता पर
पर याद रखिए कि बल्लभगढ़ की घटना एकतरफा प्रेम तक ही सीमित नहीं है। इसका एक बड़ा आयाम जेहादी मानसिकता भी है, जो सारी दुनिया में तेजी से फैल रही है। अब जरा देखिए कि यूरोप के जिन देशों ने दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम शरणार्थियों को शरण दीउन्हें बदले में मिला क्या? सीरिया, अफगानिस्तान, रोहिंग्या के शरणार्थियों को सबसे ज्यादा शरण फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया ने ही दी। जर्मनी ने सीरिया में गृह युद्ध के दौरान 1लाख शरणार्थियों को अपने देश में शरण दी। फ्रांस भी शरणार्थियों को शरण देने वाला खास देश रहा। गौर करें कि किसी भी मुस्लिम मुल्क ने तो उपर्युक्त देशों के शरणार्थियों को अपने यहां नहीं बुलाया। क्यों ? क्या सभी पचास से ज्यादा इस्लामिक राष्ट्र जिहादियों का मूक समर्थन कर रहे थे।
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बीते कुछ समय पहले स्वीडन में जो कुछ घटा उसे दुनिया ने देखा। करीब एक दशक पहले स्कैंडिनेवियायी देशों जैसे स्वीडन, फिनलैंड, डेनमार्क में इस्लाम की उपस्थिति नाममात्र की ही थी, पर सीरियाई अरब शरणार्थियों को खुले दिल से स्वीकार करने की उदारता के कारण ही आजकल वहाँ जिहादी जमकर बवाल काट रहे हैं । कारण यह बताया जा रहा है कि वहां पर कुछ शरारती तत्वों ने कुरान के साथ अनादर किया।
स्वीडिश जनता को तो अपने काम और मौज-मस्ती से भरपूर जिंदगी के अलावा और किसी शरारतपूर्ण कार्य से कभी कोई मतलब ही नहीं रहा । फिर भी अफवाह फैलने के बाद वहां पर तगड़ा बवाल काटा गया। उन्ही शरणार्थी मुसलमानों की भीड़ सड़कों पर उतर आई जिसे स्वीडन ने सीरियाई कत्लेआम से बचाकर अपने देश में शरण दी थी। इस पूरी हिंसा के पीछे वे शरणार्थी ही थे जिन्हें स्वीडन की सरकार ने मानवता के आधार पर अपने देश में शरण दी थी। यह है इन जिहादी मानसिकता वालों की उनकी एहसान फरामोशी।
बोलोगे तो मार दिये जाओगे
मतलब बल्लभगढ़ से लेकर स्वीडन तक एक ही प्रकार के कट्टर जेहादी मानसिकता साफ तौर पर नजर आ रही है। इसने सारे संसार में उथल-पुथल मचा कर रखी हुई है। इस मानसिकता में लोकतांत्रिक तरीके से बहस के लिए कोई जगह ही नहीं है। बोलोगे तो मार दिये जाओगे। इसमें किसी इंसान की हत्या या मासूमों को मजहब के नाम पर मार देना सामान्य सी बात मानी जाती है। निकिता के साथ यही तो हुआ। चूंकि उसने लफंगे तौफीक से शादी करने से मना किया, उसे सरे राह पहले खींचकर अपहरण करने की कोशिश की गई और जब वह तैयार नहीं हुई तो गोली मार दिया गया।
यह मत भूलिए कि इन्हीं जेहादियों ने अपने देश के बैंगलुरू जैसे आधुनिक महानगर में कुछ समय पहले ही जमकर आगजनी की थी । इसकी वजह यह बताई गई थी कि बेंगलुरु में कांग्रेस के एक विधायक के एक कथित रिश्तेदार ने पैगंबर मोहम्मद को लेकर सोशल मीडिया पर कोई अपमानजनक पोस्ट कर दिया था, जिसकी प्रतिक्रिया में यह सुनियोजित व्यापक हिंसा हुई।
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अब सवाल यह है कि क्या विरोध जताने के लिए हिंसा का ही सहारा लिया जाएगा? आखिर मुस्लिम समाज के जेहादी तत्व कानून को अपने हाथ में क्यों लेते जा रहे हैं? यह हम बल्लभगढ़, बैंगलूरू, यूरोप वगैरह सभी जगह देख रहे हैं। ऐसा करके ये जेहादी इस्लाम को ही तो बदनाम कर रहे है। इन्हें शांति से रहना आता ही नहीं है।
ये लोग चाहते क्या हैं?
पड़ोसी पाकिस्तान में ये जेहादी ही शियाओं और अहमदियों को मारते रहते हैं। उनकी मस्जिदों पर बम विस्फोट करते हैं। यह समझ में नहीं आता कि दरअसल ये लोग चाहते क्या हैं? फिलहाल तो सारी दुनिया के सामने कोविड-19 और इस्लामिक चरमपंथी दो बड़ी चुनौती के रूप में सामने आए है। कोविड़-19 की तो वैक्सीन मिल ही जाएगी पर तौफीक जैसे जालिम जेहादियों का दुनिया कैसे मुकाबला करेगी? इस विषय पर सारी दुनिया को विशेषकर इस्लामिक राष्ट्रों को खासकर इस्लामिक धर्म गुरुओं को तो तत्काल सोचना होगा। कहीं ऐसा न हो कि इस कुकृत्यों की व्यापक प्रतिक्रिया से भारी नुकसान हो जाये I ऐसी स्थिति से सबको बचना चाहिये I
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)