Journalism In India: भारत में पत्रकारिता
Journalism In India: जिस देश में पत्रकारिता निष्पक्ष व सशक्त होती है, उस देश का भविष्य उज्ज्वल हो जाता है
Journalism In India: लोकतंत्रिक देशों में पत्रकारिता एक महत्वपूर्ण स्तम्भ स्वरूप होती है। इसके दर्पण में सभी की छवि निष्पक्ष रूप से प्रतिबिम्बित होनी चाहिए है। पत्रकारिता एक ऐसा वटवृक्ष है जिसके सानिध्य में लोकतंत्र पल्लवित व पुष्पित होता है और यही स्तम्भ देश की दिशा व दशा को निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाता है। यह वास्तविकता है कि जिस देश में पत्रकारिता निष्पक्ष व सशक्त होती है, उस देश का भविष्य उज्ज्वल हो जाता है। इसके विपरीत जिस देश की पत्रकारिता को जनता ‘गोदी मीडिया‘ अर्थात् चाटुकारिता से ओत-प्रोत पत्रकारिता के नाम से पुकारना आरम्भ कर दें, तो वह पत्रकारिता देश की छवि को धूमिल कर देती है।
स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व पत्रकारिता ने जनता में देशभक्ति के लिए अत्यधिक जोश, उल्लास व प्रेरणा प्रदान करने का कार्य किया। उस समय की पत्रकारिता इतनी सशक्त थी कि उसने देशभक्तों को अपना सर्वस्व न्यौछावर करने हेतु प्रेरित किया। उस समय की पत्रकारिता यदि निष्पक्ष व सशक्त नही होती तो आज देश की जनता का भविष्य अंधकारमय होने से कोई नहीं रोक सकता था। वर्तमान पत्रकारिता के संदर्भ में यह जानकर अत्यधिक दुःख की अनुभूति होती है कि कुछ पत्रकार अपनी पत्रकारिता के व्यापार को अवैध रूप से प्रगति देने हेतु राजनेताओं और अधिकारियों की दलाली करते हैं तथा व्यापारियों का शोषण करते हैं।
यदि हम वर्ष 1947 से पूर्व की पत्रकारिता के सन्दर्भ में भारत को देखें तो वर्ष 1924 में बहादुर शाह जफर ने हिन्दुस्तान टाइम्स की स्थापना की थी, जो उस समय के स्वतंत्रता आन्दोलन का पूर्ण विवरण प्रस्तुत करता था, साथ ही भारतीय युवाओं के हृदय में देश के प्रति नवीन चेतना तथा स्फूर्ति को उत्पन्न करता था।महात्मा गांधी की वैचारिक श्रृंखला के अन्तर्गत उनके द्वारा सृजित पत्र यथा - नवजीवन 1919, यंग इंडिया 1919, दी इंडियन ओपिनियन 1903, उपरोक्त तीनों पत्रों ने स्वतंत्रता आन्दोलन में एक मुख्य भूमिका निभाई थी।
इसी प्रकार अन्य देशभक्त विचारको के संचालित पत्र निम्नवत् हैं - वंदे मातरम् 1906 विपिन चन्द पाल, अमृत बाजार पत्रिका 1868 शिशिर कुमार घोष, टाइम्स ऑफ इंडिया 1838 रोबर्ट नाइट, ‘प्रतिनिधि‘ का प्रकाशन 1865 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, ‘आज‘ नामक पत्रिका 1923 राजेन्द्र प्रसाद और आचार्य नारेंद्र देव आदि। उस समय अंग्रेजों की दमनकारी नीति के होते हुए भी इन पत्रों ने निर्भिकता से अपने ज्वलंत विचारों को भारत की जनता के समक्ष प्रस्तुत किया और स्वतंत्रता की लौ को प्रज्ज्वलित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन प्रेरक समाचार पत्रों को प्राप्त करने हेतु जनता लालायित रहती थी तथा युवा इनकी प्रतियों का वितरण अंग्रेजो से छिपकर करते थे। इसके अतिरिक्त कुछ बहादुर, निर्धन पत्रकार ऐसे भी थे, जो हस्तलिखित अथवा टाईपराइटर से अंकन करके जनता को अंग्रेजो के अत्याचारों के विषय में तथा भारत माँ की रक्षा हेतु प्रोत्साहित करते थे।
आज स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्षो के पश्चात जनता में समाचार पत्रों तथा दूरदर्शन के प्रति अत्यधिक रूझान होना चाहिए था, परन्तु वास्तविकता यह है कि दूरदर्शन चैनलों की टीआरपी निरन्तर कम होती जा रही है और जनता का विश्वास इन संचार माध्यमों से निरन्तर क्षय होता जा रहा है। इन परम्परागत माध्यमों की अपेक्षा जनता का आकर्षण और विश्वास, यूट्यूब तथा फेसबुक चैनल की ओर होता जा रहा है और उनकी टीआरपी सतत रूप से बढ़ती जा रही है। पारम्परिक दूरदर्शन चैनलों एवं दैनिक समाचार पत्रों की स्थिति इतनी दयनीय हो गई है कि आज जनता ने इनको देखना तथा पढ़ना तक बंद कर दिया है। इसके विपरीत होना यह चाहिए था कि इन समाचार पत्र और दूरदर्शन चैनलों के प्रभावी प्रस्तुतिकरण से जनता के विश्वास में वृद्धि होती, तभी ये संचार माध्यम विश्व में सम्मान प्राप्त करते।
आज ये परम्परागत समाचार पत्र एवं दूरदर्शन के चैनल सरकारी विज्ञापनों पर पूर्णतया निर्भर हो चुके हैं। यदि उन्हें ये सरकारी विज्ञापन मिलने भी बंद हो जाए तो इनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। इन संचार माध्यमों की विश्वसनीयता तथा प्रतिष्ठा का अपक्षय ना केवल भारत अपितु विश्व में एक चिन्ता का विषय है। पत्रकारिता से सम्बन्धित महानुभावों को इस विषय पर गहन चिंतन करने की आवश्यकता है, जिससे ये जनता के पूर्ववत् विश्वास को प्राप्त कर सकें। भारत एक श्रेष्ठ संस्कृति से युक्त देश है जो सम्पूर्ण विश्व के समक्ष एक आदर्श स्वरूप है। एक निष्पक्ष, ईमानदार व स्वतंत्र पत्रकारिता ही भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों को अक्षुण्ण बनाए रखने में सक्षम हो सकती है।