खुश्क खबर सरस हो जाती थी, नवनीत मिश्र का कंठ छूकर!

नवनीत मिश्र शब्दों में खाली समय में “फिलर” तैयार रखने की आवश्यकता बताते हैं। आखिर के दो अनुछेद तो पूरे पुस्तक की आत्मा और प्राण हैं। इनके शीर्षक हैं : “यह जानना भी जरूरी है।”

Update:2023-07-12 18:19 IST
K Vikram Rao article on Navneet Mishra book Vani Akashvani

article: कभी एक लोकोक्ति सुनी थी : “जिसने लाहौर नहीं देखा, उसने कुछ भी नहीं देखा।” इसी को तनिक फिराकर पेश करूं : जिस चैनल पत्रकार ने रिटायर्ड समाचार-प्रस्तोता (दिसंबर 1987) नवनीत मिश्र (फोन : 9450000094) की नायाब कृति : “वाणी आकाशवाणी” नहीं पढ़ी, उसने सूचना का खजाना गंवा दिया। उन न्यूज एंकरों का लंगर ज्यादा गहरा नहीं गड़ा होगा। किशोर नवनीत डॉक्टर (चिकित्सक) बनना चाहते थे। आवाज के बाजीगर बन गए। उनके प्रेरक रहे थे सुरति कुमार श्रीवास्तव (रामपुर केंद्र : 1967)। फिर नवनीत मिश्र लखनऊ आये। गोरखपुर केंद्र को भी संवारा। स्व. के.के. नय्यर का सानिध्य पाया। रेडियो को छोड़ा तो यादें देकर।

लेखक ने इस किताब में कई छोटी मगर अत्यावश्यक कदमों की कार्यवाहियों की लिस्ट पेश की है। मसलन समाचार क्या है ? वे लिखते हैं : “जो नया है वही समाचार है।” अर्थात कोई नेता कहे : “भारत कृषि प्रधान देश है”, तो यह कदापि प्रसारित नहीं होना चाहिए। फिर बुलेटिन के बीच में “अभी-अभी समाचार मिला।” इसे सही जगह, उचित ढंग से प्रसारित किए जाने की पहली जिम्मेदारी समाचार संपादक और टाइपिस्ट की ही होती है।

नवनीत मिश्र की रचना के दूसरे अध्याय में वाचन के गुण दोषों का जिक्र है। ये छः त्रुटियां वाचन को भ्रष्ट कर देती हैं। उनका सदैव निवारण करना चाहिए। वे हैं : गीति : गाकर पढ़ने वाला। शीघ्री : जल्दी-जल्दी पढ़ने वाला। शिरः-कंपी : सिर हिला-हिलाकर पढ़ने वाला। यथालिखित पाठक : जैसा लिखा है वैसा ही पढ़ने वाला। अनर्थज्ञो : अर्थ को समझे बिना पढ़ने वाला। अल्पकण्ठश्च : रुक-रुक कर और पूरी आवाज के साथ पढ़ने वाला। फिर नवनीत मिश्र सार तत्व बताते हैं : “लिखना-पढ़ना और बोलना-सुनना अन्योन्याश्रित हैं। इसे और सहज ढंग से कहा जाए तो, लिखने की सार्थकता पढ़ने में और बोलने की सार्थकता सुनने में है। मगर मनुष्य का मनुष्य से जोड़ने का एक अपरिहार्य सेतु है : “बोलना”।

नवनीतजी ने समाचार वाचन के बीच में “ साउंड बाइट” के बारे में बड़े सलीके से बताया है : “समाचार बुलेटिन के दौरान कभी-कभी किसी अत्यंत महत्वपूर्ण व्यक्ति के कथन के अंश भी प्रसारित किए जाते हैं। कथन का वह 40-50 सेकंड का अंश किसी टेप पर रिकॉर्ड किया हुआ होता है और समाचार बुलेटिन में निश्चित स्थल आने पर उस टेप को बजाया जाता है। इसमें समाचार की यथार्थता बढ़ जाती है। साक्षात्कार (इंटरव्यू) की विस्तृत चर्चा भी है : साक्षात्कार लेनेवाली के लिए एक अच्छा श्रोता होना पहली और अनिवार्य आवश्यकता है। किसी से पूछने के लिए प्रश्नावली पहले से तैयार कर रखी हो और आप एक के बाद दूसरा सवाल करते जाएं और अपना कार्यक्रम पूरा कर लें। लेकिन वह एक जीवंत साक्षात्कार नहीं होगा। पहला सवाल कर लेने के बाद मुहावरे में कहा जाए तो गेंद साक्षात्कार देने वाले के पाले में हो जाती है। जब साक्षात्कार देनेवाला बोल रहा हो उस समय आपको उसकी बात बहुत ध्यान से सुननी चाहिए। तभी आप उसकी कही हुई किसी बात के आधार पर कोई नया सवाल कर पाएंगे।

नवनीत मिश्र शब्दों में खाली समय में “फिलर” तैयार रखने की आवश्यकता बताते हैं। आखिर के दो अनुछेद तो पूरे पुस्तक की आत्मा और प्राण हैं। इनके शीर्षक हैं : “यह जानना भी जरूरी है।” तथा “यह जानना दिलचस्प होगा।” राजनीतिक समाचार पढ़ते समय नवनीत मिश्र मुनादी करने और ढिंढोरा पीटने वाले शब्दों और वाक्यों से दूर रहते थे। अर्थात उनकी रपट में बौद्धिक तथा विषय-संबंधी शिथिलता नहीं रहा करती थी। शब्द चयन सम्यक होता था, सावधानी से। गत दो दशकों से आकाशवाणी की सियासी खबरों में डुगडुगाना अधिक हो गया है। उस दौर में विशिष्ट, सुस्पष्ट, सुव्यक्त, सार्थक रचना हर खबर को अलहदा बनाती थी। अहसास होता था कि आदिम युग में अक्षरों द्वारा मंत्रोच्चारण में स्फूर्ति कैसे आती होगी।

चूंकि नवनीत मिश्र एक क्रियाशील खबरची भी रहें, अतः खबरों को लिखने, पढ़ने, संप्रेषण में वे प्राण फूंकते थे। शब्द-शिल्प के साथ ध्वनि की गूंज-अनुगूंज के भी निष्णात थे। उच्चारण में खासकर। वर्ना शरीफ को “सरीफ” कहना आसान है। दंत्य “स” हिंदी वर्णमाला का बत्तीसवां व्यंजन ऊष्म वर्ण का है। इसका उच्चारण स्थान दंत है। “श” हिंदी वर्णमाला में तीसवां वर्ण व्यंजन है इसका उच्चारण प्रधानतया तालु से होता है। बहुधा वाचक इन दोनों व्यंजनों में घालमेल कर देते हैं। नवनीतजी आगाह करते थे, इससे बचने के लिए। याद आया मेरे एक साथी थे “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” (मुंबई) में जो हर फिल्मी गाने को एक ही ट्यून में गाते थे। मन्नाडे, मुकेश, रफी, तलत, सभी को। अपने लहजे में।

आकाशवाणी-दूरदर्शन के समाचार विभाग तथा भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रियों का नातावास्ता किस किस्म का रहा इसके मेरे अपने अनुभव रहें हैं। उनका उल्लेख फिर कभी। ताकि कभी तो इन सरकारी संवाद माध्यमों में सुधार और स्वायतता आ सके। हालांकि यह मात्र सपना है। नवनीत मिश्र की 193-पृष्टीय यह रचना ऐसे सुधार के सुझावों से आप्लावित है। उन पर सत्तासीन लोगों को गौर करना चाहिए। नवनीत जी ने पुरानी ऑल इंडिया रेडियो में अहमदशाह बुखारी के योगदान की चर्चा की। यहां इतना जोड़ दूं कि पुराना सिगनेचर ट्यून रचने वाले थे जर्मनी में जन्मे यहूदी संगीतकार वाल्टर काफमैन। उस वक्त एडोल्फ हिटलर की नाजी पार्टी यहूदियों के संहार की साजिश रच रही थी। भारत उनका पनाहगार बना था। इसी तथ्य तथा परामर्श के कारण यह पठनीय किताब संग्रहणीय भी है। यह पुस्तक (भारत सरकार : प्रकाशन विभाग, सूचना भवन, लोदी रोड, नई दिल्ली) मीडिया में रुचि संजोनेवाले प्रत्येक व्यक्ति के निजी संग्रहालय की शोभा होगी।

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