एकाकी महिला, रात का सफर... घात में हैं भेड़िये
आजकल लड़के-लड़कियां सभी घर से बाहर निकल रहे हैं। लड़कों के लिए तो कोई खास संकट नहीं होता लेकिन जब घर की चहारदीवारी के भीतर अपनों के बीच रहने वाली की लड़की घर से बाहर निकलती है तो उसे समाज में विभिन्न अंजान लोगों से रूबरू होना पड़ता है।
पंडित रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ : आजकल लड़के-लड़कियां सभी घर से बाहर निकल रहे हैं। लड़कों के लिए तो कोई खास संकट नहीं होता लेकिन जब घर की चहारदीवारी के भीतर अपनों के बीच रहने वाली की लड़की घर से बाहर निकलती है तो उसे समाज में विभिन्न अंजान लोगों से रूबरू होना पड़ता है। कभी वह पढ़ने जा रही होती है तो कभी नौकरी के लिए। अपने शहर के भीतर दिन ही दिन का आना जाना हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन जब रात बिरात का यह सफर हो तो दिल में एक घबड़ाहट रहती है।
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इन लड़कियों और महिलाओं के चेहरे देखकर सरकार की सुरक्षा के सारे दावे उसे फेल होते दिखते हैं। रात गहराने के साथ उनके मानसिक तनाव की स्थिति चरम पर पहुंचने लगती है। मुंह सूखने लगता है फिर भी वह खुद को संयत दिखाने का भरसक प्रयास करती है।
लेकिन कई बार इन महिलाओं या लड़कियों की ये मंजिल किसी दूरदराज के दूसरे शहर में खत्म होती है। जहां से वह अंजान होती है। या फिर अपने शहर में वापसी में देर रात हो चुकी हो तो एक दबाव हावी होने लगता है।
कई बार परिवहन के साधन के रूप में रात के सन्नाटे में रिक्शा या फिर ऑटो रिक्शा से ये सफर पूरा होता है तो कई बार ट्रेन के किसी कूपे से ये सफर होता है तो कभी रोडवेज या प्राइवेट बसों से। बस ड्राइवर और कंडक्टर के भी कई बार वारदातों में शामिल होने की खबरों से इन महिलाओं या लड़कियों की दहशत बस में या ट्रेन में सवारियां कम होने के साथ बढ़ती जाती है।
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सड़क पर सन्नाटा छा गया
मैं ऐसी ही एक घटना का जिक्र करना चाहता हूं, जो मेरे एक मित्र ने सुनाई। जिसमें लड़की रोडवेज की बस में दिल्ली जाने के लिए सवार होती है। दिन में बस में सवार हुई लड़की बार-बार कंडक्टर से सवाल करती जाती है कि भैया कितने बजे तक बस पहुंचेगी।
रात गहराने के साथ उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें गहराती जाती हैं। आखिर में रात 11 बजे से 12 बजे के बीच जब वह अपने घर के निकटतम चौराहे पर पहुंचती है उस समय तक सड़क पर सन्नाटा छा चुका होता है सड़क पर सिर्फ कुछ पुलिस वाले खड़े दिखते हैं और एक पुलिस की गाड़ी।
बस रुकती है वह लड़की कुछ असमंजस के हालात में बस से उतरती है जैसे वह भारी अनिच्छा से एक भयानक द्वंद्व के बीच बहुत मजबूर होकर वहां उतर रही हो। बस उसे उतारकर आगे बढ़ जाती है कुछ आगे निकल जाने पर कंडक्टर और ड्राइवर को अहसास होता है कि एकाकी लड़की को सन्नाटे चौराहे पर पुलिस वालों के बीच उतारकर कुछ गलती हो गई।
दोनो के चेहरे सफेद हो जाते हैं। अब ये दोनो जितना सोचते हैं उतना बेचैन होते जाते हैं। कुछ सोच कर बस को घुमाकर दोनों फिर वापस उस चौराहे पर पहुंचते हैं पर वह लड़की कहीं नहीं दिखती। वापस चलते हैं लेकिन दिमाग में वह डरी सहमी लड़की हॉवी होती है।
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कंडक्टर ने किया निवेदन
फिर कुछ सोचकर वह फोन करके उस स्टेशन पर बात करते हैं जहां से लड़की ने टिकट बुक किया होता है। उस लड़की का नंबर मिल जाता है। आनन-फानन में उस लड़की का नंबर मिलाया जाता है। उधर एक लड़का फोन उठाता है।
कंडक्टर के पूछने पर वह कहता है कि हां ये नंबर मेरी बहन का है वह पास में एक कार्यक्रम में गई है। कंडक्टर निवेदन करता है आप उससे एक बार बात करा दीजिए वह लड़का अपनी बहन को बुलाता है वह लड़की आकर कहती है कि हां भैया मै घर पहुंच गई। तब कंडक्टर ड्राइवर की जान में जान आती है।
समाज में अच्छे बुरे हर तरह के लोग होते हैं। संयोग से इसी तरह की एक अन्य घटना के प्रत्यक्षदर्शी या साझीदार मेरे मित्र थे। इस घटना में एक दूसरी महिला को सफर में दोनों तरह के अनुभव हुए।
दूसरी घटना
यह महिला गुड़गांव जा रही थी। इस महिला को भी एसी बस से रवाना होना था। फैजाबाद से लखनऊ आई इस महिला को बस में बैठाने के लिए इसका कोई पूर्व परिचित आया था। संयोग से बस लेट होती जा रही थी।
खीझ कर पहले इस महिला के मन में आया कि वह यात्रा कैंसिल कर दे। वह बस से उतर गई। लेकिन एक फोन काल रिसीव करने के बाद अर्जेंसी को देखकर वह कुछ मिनट के अंतराल में पुनः बस में बैठ गई। रास्ते में उसका टिकट भी बन गया। कुछ समय तक तो सब ठीक रहा।
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खुद के शरीर पर काबू नहीं रख पाई
फिर उसकी स्थिति कुछ अजीब से होने लगी खुद को संभालते हुए बिना किसी पर कुछ जाहिर किये वह एक यात्री से अनुरोध कर विंडो सीट पर बैठ गई और सोने की कोशिश करने लगी। लेकिन वह खुद के शरीर पर काबू नहीं रख पा रही थी।
उसके बगल की सीट पर जो व्यक्ति थे पहले तो उन्हें लगा कि यह कोई बाजारू औरत है लेकिन वेशभूषा और पहनावे से कहीं कुछ ऐसा नहीं लग रहा था। दो ढाई घंटे बाद जब वह कुछ सामान्य हुई तो उसने बताया कि वह जयपुर में अध्ययन कर रही है। दिल्ली कुछ किताबें खरीदने जा रही है।
उसके ससुराल में पति, देवर, जेठ सभी अधिकारी हैं। मायके में पिता काफी रसूखदार हैं। दिल्ली पहुंचने पर चूंकि रात हो चुकी थी उसने साथी सह यात्री से कहा कि वह उसे ऑटो करवा दें। उसके सहयात्री जो बस में उस महिला की हरकतों से काफी भन्नाए हुए थे।
सब कुछ काफी अजीब था
उन्होंने खुद पर काबू कर उस महिला को ऑटो करवाया लेकिन साथ में ऑटो के नंबर व ऑटो वाले की फोटो खींच ली। जाते जाते उस महिला ने उनका फोन नंबर मांगा और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया। सब कुछ काफी अजीब था।
लेकिन अगले दिन दोपहर बाद उस महिला का फोन आया और उसने अपने बर्ताव के लिए माफी मांगते हुए कहा कि आपके नाते मैं आज सुरक्षित हूं। कल यदि आप जैसा भला व्यक्ति न मिलता तो आज मै किसी को मुंह दिखाने के काबिल न बचती। मेरे परिवार की प्रतिष्ठा भी मिट्टी में मिल जाती।
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तब उस महिला ने बताया कि जब मैने यात्रा कैंसिल करने की सोची तो मुझे बस में बैठाने आए व्यक्ति ने कुछ खाने पीने का आग्रह किया और मना करते करते मैं जूस पीने को राजी हो गई लेकिन उस जूस में क्या था मुझे नहीं पता। वह तो किस्मत अच्छी थी कि मुझे तुरंत आने को कहा गया और मैं जिद करके उसी बस में दोबारा आ गई।
ये दो घटनाएं जहां लड़कियों को सबक देती हैं कि हर किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए वहीं यह भी दर्शाती हैं कि आज भी समाज में अच्छे लोग हैं। जिनके दम पर इंसानियत जिंदा है।