Maharana Pratap Singh: वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप को खुला खत
Maharana Pratap Singh Motivational Story: यदि अकबर और आपका युद्ध धर्म युद्ध होता तो आपके और हकीम खान के विरुद्ध जो लश्कर खड़ा था उसकी अगुवाई राजा मान सिंह के हाथों में न होती ।;
Maharana Pratap Singh Motivational Story in Hindi: परम आदरणीय राणा प्रतापजी, महोदय आज की तिथि में निःसंदेह आप भारतीय शौर्य के प्रतीक पुरुष हैं जिनसे सदियां सदियों तक वीरता और आत्म सम्मान की रक्षा के लिए तकलीफ सहने की प्रेरणा पीढ़ियां लेती रहेंगी । मुझे यह कहने में जरा भी हिचक नहीं कि आप भारतीय लोकमानस में किंवदंती किरदार की तरह स्थापित हैं । आप की गाथाएं भारत की धरोहर हैं , इन कहानियों को सुनाकर हम पूरी दुनिया में भारतीय शौर्य का कीर्ति पताका लहराते हैं किंतु हमारे ही कुछ साथी आपके नाम पर देश में विभाजन के बीज बो रहे हैं जिन्होंने आप को पढ़ा नहीं , जो आपकी मानसिकता से अवगत नहीं है । कुछ लोग आपको केवल एक पंथ और कुछ लोग तो मात्र एक जाति तक आपको समेटना चाहते हैं।
आप सहअस्तित्व की महान भारतीय परंपरा के नायक हैं। आप अकबर की हड़पने की नीति से लड़े । आप की और अकबर की लड़ाई का धर्म से कोई वास्ता नहीं था । हल्दी घाटी का युद्ध कोई धर्म युद्ध नहीं था । यदि वह धर्म युद्ध होता तो उस लड़ाई में आपके सेनापति हकीम खान सूर नहीं होते । आप यदि मुस्लिम विरोधी होते तो एक मुसलमान को अपना सेनाध्यक्ष न बनाते और वो आप की रक्षा के लिए शहादत न देते । आप और हकीम खान की दोस्ती हमारे देश की विरासत है जिसे पंडित रामप्रसाद और अशफाक जैसी जोड़ी ने परंपरा बना दिया है । यदि अकबर और आपका युद्ध धर्म युद्ध होता तो आपके और हकीम खान के विरुद्ध जो लश्कर खड़ा था उसकी अगुवाई राजा मान सिंह के हाथों में न होती ।
पहले आपको हिन्दू - मुस्लिम खेमे में बांटा गया, अब तो आपको एक जाति में सीमित किया जा रहा है । आपको क्षत्रिय शिरोमणि बनाकर ब्राह्मण विरोध के तीर चलाए जा रहे हैं । आप पर सबसे प्रामाणिक साहित्य की रचना आप की ही अलौकिक प्रेरणा से पंडित श्याम नारायण पांडे ने लिखी है । मैं भी आपको यह पत्र आपकी प्रेरणा से लिख रहा हूं जो आपने माल्यार्पण करते हुए दिया था । आप भारत के नायक हैं, किसी पंथ, कबीले, जाति आदि तक आपको सीमित करना हम भारतीयों को अच्छा नहीं लगता ।
हे वीर !हमें शक्ति दें कि इन विभाजनकारी साम्प्रदायिक जातिवादी सोच से आप की भांति हम लड़ सकें,
जीत और हार मुकद्दर की बात है,
आपका कृत्य अनुयायी
(लेखक समाजवादी चिंतक हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं।)