जब मोदी चुस्त तो विपक्ष वाले भैया तुम क्यों हो सुस्त!

Update: 2023-06-14 16:33 GMT

नवल कान्त सिन्हा

हनीमून बड़ा ही आकर्षक शब्द है और इस पर मैं क्या बताऊं, आपसे ज़्यादा कौन जानता होगा। लेकिन मैं उस हनीमून की बात नहीं कर रहा, मैं तो उसकी बात कर रहा हूं, जिसे सियासत में हनीमून पीरियड कहा जाता है। सियासी चलन ये है कि नयी सरकार बनने के बाद तकरीबन सौ दिन विपक्ष सरकार की गलतियों पर उंगली नहीं उठाता।

इसी परम्परा के चलते आदतन सरकारें बड़े निर्णय लेने के लिए समय लेती रही हैं। लेकिन इस बार मोदी सरकार ने इस चलन को बदल दिया। सरकार अपनी उपलब्धियों में अनुच्छेद-370, तीन तलाक, सडक़ सुरक्षा, आतंकवाद पर लगाम और बैंकों के विलय जैसे फैसलों का ढिंढोरा पीट रही है। ज़ाहिर है मोदी ने सियासत का अंदाज बदला है और साथ ही काम करने का अंदाज भी। नरेंद्र मोदी का अमेरिका दौरे को ही लीजिये। अमेरिका में इतना तो हुआ न कि मोदी को रिसीव करने के लिए रेड कारपेट बिछाई गयी। रिसीव करने के लिए अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय मामलों के निदेशक क्रिस्टोफर ओल्सन और अमेरिकी राजदूत केनिथ जस्टर मौजूद थे। जबकि पाक पीएम इमरान का स्वागत रेड मैट पर हुआ और रिसीव करने के लिए पाकिस्तानियों के अलावा कोई नहीं था। अगर मैं ये नहीं समझ पा रहा कि ये दौरा सफल था या असफल, तो इस दौरे को लेकर कांग्रेस की सोच भी नहीं समझ पा रहा हूं।

कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने किसी अन्य देश के चुनाव में हस्तक्षेप किया है, ये विदेश नीति का उल्लंघन है। दूसरी तरफ कांग्रेस के ही नेता मिलिंद देवड़ा ने पीएम की तारीफ की। अब बताइये जनता कन्फ्यूज होगी या नहीं। वैसे अनुच्छेद 370 पर भी कांग्रेस अब तक कन्फ्यूज है। माना जा सकता है कि कश्मीर के कुछ जिलों को छोडक़र पूरे देश को 370 हटाना सही लगा होगा। फिर ऐसे में उस कश्मीर में जहां कांग्रेस की जगह मुख्यधारा की पार्टी पीडीपी और नेशनल काफ्रेंस है, कांग्रेस का स्टैंड कहां तक सही है। कांग्रेस के ही जनार्दन द्विवेदी, रंजीता रंजन, दीपेंदर हुड्डा ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का समर्थन किया। अब बताइये जनता कांग्रेस के बारे में अपनी क्या राय कायम कर पायेगी। मुझे नहीं लगता कि तमाम बेहतरीन काम के बावजूद मोदी सरकार के खिलाफ मुद्दों की कमी है। लेकिन भैया ट्विटर और टीवी चैनल पर बाईट देकर आज के दौर की सियासी लड़ाई तो नहीं लड़ी जा सकती न।

जनता के मुद्दों की जगह चिदंबरम के मुद्दे को प्राथमिकता कांग्रेस को कितना फायदा पहुंचाएगा? ये जस्टिफाई है कि मनमोहन और सोनिया चिदंबरम से मिलने जेल जाएं और समर्थन करें, लेकिन चुनाव जीतने के लिए तो जनता के मुद्दे उठाने होंगे न। जरूरत तो ये है कि उन राज्यों पर विपक्ष ध्यान दे, जहां आने वाले दो-तीन साल में चुनाव हैं। चिदम्बरम की जगह चिन्मयानन्द की चिंता होती तो कांग्रेस को फायदा होता। चलो चिन्मयानन्द का मुद्दा यूपी का था लेकिन सपा-बसपा ने भी कहां कुछ किया। जिस तरह का मामला था, उसमें चिन्मयानन्द को जेल तो जाना ही था लेकिन अगर कोई दल चिन्मयानन्द के खिलाफ ढंग से खड़ा होता तो ये गिरफ्तारी उसके खाते में जाती। लेकिन सपा के नेता भी बयानबाजी तक सीमित रहे। सपा ने आन्दोलन किया तो आजम खां के पक्ष में।

मुलायम भी खड़े हुई और अखिलेश यादव भी। अब क्या ये जनता का मुद्दा था? राजधानी लखनऊ को ही ले लें। पिछले एक माह में यहां 10 से ज़्यादा गोलीकांड और कई हत्याएं हुर्इं, लेकिन विपक्ष की तरफ से बयानबाजी के सिवा कुछ नहीं हुआ। इन बड़े दलों से समझदार तो केजरीवाल हैं। पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे साल तक कभी वो ये कहते रहे कि एलजी काम नहीं करने दे रहे हैं। तो कभी कहते रहे कि नरेंद्र मोदी काम नहीं करने दे रहे हैं लेकिन पांचवे साल वो बस फ्री, मेट्रो फ्री, पानी फ्री, बिजली फ्री, फलाना फ्री, ढिकाना फ्री में लग गए ताकि जीत हासिल हो सके।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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