Nathuram Godse News: गोड्से था नरपिशाच ! आज ही फांसी पर चढ़ा था !!
Nathuram Godse News: आज (15 नवम्बर 2024) निर्मम हत्यारे नाथूराम गोड्से को फांसी दी गई थी। वर्ष 75 हुये। उसका चित्रण यह पेश है।
Nathuram Godse News: रायटर संवाद समिति के रिपोर्टर पी.आर. राय को उसके ब्यूरो प्रमुख डून कैम्पबेल ने बिडला हाउस भेजा था क्योंकि महात्मा गांधी अपनी प्रार्थना सभा में घोषणा कर सकते थे कि हिन्दु-मुस्लिम सौहार्द हेतु वे फिर अनशन करेंगे। "फोन करना यदि कुछ गरम खबर हो तो, "उन्होंने निर्देश दिये। राय ने फोन किया मगर केवल पांच शब्द ही बोल पाया: "चार गोलियां बापू पर चली। "आवाज थरथरा रही थी, अस्पष्ट थी। समय थाः शाम के 5.13 (30 जनवरी 1948) और तभी कैम्पबेल ने फ्लैश भेजा" डबल अर्जन्ट, गांधी शाट फोर टाइम्स पॉइंट-ब्लैंक रेंज वर्स्ट फियोर्ड। "कैम्पबैल दौड़ा अलबुकर रोड (आज तीस जनवरी मार्ग) की ओर। विस्तार में रपट बाद में आई जिसमें गौरतलब बात थी कि गोली लगते ही गांधी जी अपनी पौत्री आभा के कंधों पर गिरे। आभा ने कहा तब बापू "राम, रा....." कहते कहते अचेत हो गये। दूसरा कंधा पौत्रवधु मनु का था जिसने बापू को संभाला। दोनों की सफेद खादी की साड़ियां रक्तरंजित हो गई।
अफवाह थी कि हत्यारा मुसलमान था। सरदार वल्लभभाई पटेल ने रेडियो से घोषणा कराई कि मारनेवाला हिन्दु था। दंगे नहीं हुये। दुनिया तबतक जान गई कि एक मतिभ्रम हिन्दू उग्रवादी ने बापू को मार डाला।
आखिर कैसा, कौन और क्या था नाथूराम विनायक गोड्से? क्या वह चिन्तक था, ख्यातिप्राप्त राजनेता था, हिन्दू महासभा का निर्वाचित पदाधिकारी था, स्वतंत्रता सेनानी था? इतनी ऊंचाईयों के दूर-दूर तक भी नाथूराम गोड्से कभी पहुंच नहीं पाया था। पुणे शहर के उसके पुराने मोहल्ले के बाहर उसे कोई नहीं जानता था, जबकि वह चालीस की आयु के समीप था।
कौन था नाथूराम
नाथूराम स्कूल से भागा हुआ छात्र था। नूतन मराठी विद्यालय में मिडिल की परीक्षा में फेल हो जाने पर उसने पढ़ाई छोड़ दी थी। उसका मराठी भाषा का ज्ञान बडे़ निचले स्तर का था। अंग्रेजी का ज्ञान तो था ही नहीं। जीविका हेतु उसने सांगली शहर में दर्जी की दुकान खोल ली थी। उसके पिता विनायक गोड्से डाकखाने में बाबू थे, मासिक आय पांच रुपये थी। नाथूराम अपने पिता का लाड़ला था क्योंकि उसके पहले जन्मी सारी संताने मर गयी थीं। नाथूराम के बाद तीन और पैदा हुए थे जिनमें था गोपाल, जो नाथूराम के साथ सह-अभियुक्त था। गोपाल ने लिखा था कि अग्रज विनायक अजीब सा तांत्रिक अनुष्ठान करता था। एक तांबे की प्लेट ऊपर काजल पोतकर, दो दिये जलाकर नाथूराम पास जमा भीड़ से सवाल पूछने को कहता था। फिर उस प्लेट को देखता था मानो कोई पारलौकिक शक्ति उत्तर लिख रही हो। उसके आसपास जमा भीड़ उसके द्वारा पढ़ी गयी बातों पर भरोसा करती थी। उसे सर्वज्ञ मानती थी।
नाथूराम और स्वाधीनता संग्राम
नाथूराम की युवावस्था किसी खास घटना अथवा विचार के लिए नहीं जानी जाती है। उस समय उसके हम उम्र के लोग भारत में क्रान्ति का अलख जगा रहे थे। शहीद हो रहे थे। इस स्वाधीनता संग्राम की हलचल से नाथूराम को तनिक भी सरोकार नहीं था। अपने नगर पुणे में वह रोजी-रोटी के ही जुगाड़ में लगा रहता था। पुणे में 1910 में जन्मे, नाथूराम के जीवन की पहली खास घटना थी अगस्त, 1944, में जब हिन्दू महासभा नेता एल.जी. थट्टे ने सेवाग्राम में धरना दिया था। तब महात्मा गांधी भारत के विभाजन को रोकने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना से वार्ता करने मुम्बई जा रहे थे। चैंतीस वर्षीय अधेड़ नाथूराम उन प्रदर्शनकारियों में शरीक था। उसके जीवन की दूसरी घटना थी एक वर्ष बाद, जब ब्रिटिश वायसराय ने भारत की स्वतंत्रता पर चर्चा के लिए राजनेताओं को शिमला आमंत्रित किया था तब नाथूराम पुणे के किसी अनजान पत्रिका के संवाददाता के रूप में वहां उपस्थित था।
जो लोग नाथूराम गोड्से को प्रशंसा का पात्र समझते हैं, उन्हें खासकर याद करना होगा कि गांधीजी की हत्या के बाद जब नाथूराम के पुणे आवास तथा मुम्बई के मित्रों के घर पर छापे पडे़ थे तो मारक अस्त्रों का भण्डार पकड़ा गया था जिसे उसने हैदराबाद के निजाम पर हमला करने के नाम पर बटोरा था। यह दीगर बात है कि इन असलहों का प्रयोग कभी नहीं किया गया। मुम्बई और पुणे के व्यापारियों से अपने हिन्दू राष्ट्र संगठन के नाम पर नाथूराम ने अकूत धन वसूला था जिसका कभी लेखा-जोखा तक नहीं दिया गया। बारीकी से परीक्षण करने पर निष्कर्ष यही निकलता है कि कतिपय हिन्दू उग्रवादियों द्वारा नाथूराम भाड़े पर रखा गया हत्यारा था। जेल में उसकी चिकित्सा रपटों से ज्ञात होता है कि उसका मस्तिष्क अधसीसी के रोग से ग्रस्त था। यह अड़तीस वर्षीय बेरोजगार, अविवाहित और दिमागी बीमारी से त्रस्त।
गांधी की हत्या का पहला प्रयास
नाथूराम किसी भी मायने में मामूली मन:स्थिति वाला व्यक्ति नहीं हो सकता। उसने गांधी की हत्या का पहला प्रयास जनवरी 20, 1948, को किया था। उसके सहअभियुक्त मदनलाल पाहवा से मिलकर नयी दिल्ली के बिडला भवन पर बम फेंका था, जहां गांधी जी प्रार्थना सभा कर रहे थे। बम का निशाना चूक गया। पाहवा पकड़ा गया, मगर नाथूराम भाग गया और मुम्बई में छिप गया। दस दिन बाद अपने अधूरे काम को पूरा वह दिल्ली आया था। तीस जनवरी की संध्या की एक घटना से साबित होता है कि नाथूराम कितना धर्मानिष्ठ हिन्दू था। हत्या के लिये तीन गोलियां दागने के पूर्व, वह गांधी जी की राह रोकर खड़ा हो गया था। पोती मनु ने नाथूराम को हटने के लिए आग्रह किया क्योंकि गांधी जी को प्रार्थना के लिए देरी हो गई थी। इस धक्का-मुक्की में मनु के हाथ से पूजावाली माला और आश्रम भजनावालि जमीन पर गिर गयीं। उसे रौंदता हुआ नाथूराम आगे बढ़ा पिछली सदी का घोरतम अपराध करने।
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के. विक्रम राव X ID (Twitter ) : @kvikramrao1