तालिबान ने अफगानिस्तान पर बनाई Games Of Thrones! साम्राज्य के लिए जंग, धोखा-कत्ल और औरतों के साथ दरिंदगी

Nitendra Verma Ki Chikoti : देखते देखते तालिबान अफगानिस्तान में चढ़ बईठा । इतना जरूर है कि तलवार भालों की जगह AK 56 और रॉकेट लॉन्चर ने ले ली है तो घोड़े हाथियों की जगह बख्तरबंद गाड़ियों ने ले ली है ।

Written By :  Nitendra Verma
Published By :  Shivani
Update:2021-08-17 11:51 IST

Nitendra Verma Ki Chikoti : कभी कभी अईसा मालूम पड़ता है कि हम टाइम मशीन में घुसे हैं । लोग चुटकी काटते हैं तब पता चलता है कि ये इक्कीसवीं सदी है । बिलकुल वईसे महसूस हो रहा हो जईसे हुकूमतों का दौर हो । हर तरफ बस जमीन की जंग चल रही है ।

अफगानिस्तान पर चढ़ बैठे तालिबानी

अब देखिये ना देखते देखते तालिबान अफगानिस्तान में चढ़ बईठा । इतना जरूर है कि तलवार भालों की जगह AK 56 और रॉकेट लॉन्चर ने ले ली है तो घोड़े हाथियों की जगह बख्तरबंद गाड़ियों ने ले ली है । मतलब भैया तकनीक ने तो खूब तरक्की कर ली है । इधर अमेरिका वाले अपना बोरिया बिस्तर समेट के घर पहुंचे कि तालिबान वाले एकदम लाव लश्कर ले के निकल पड़े ।

विश्व के देशों ने साध रखी है चुप्पी

फिर जो युद्ध छिड़ा है कि मुर्दा और जिन्दा लाशों की गिनती करने वाले गिनती भूल जाएं । बचपन में किताबों में पढ़ा करते थे कि तमाम अंतराष्ट्रीय यानी इंटेरनेशनल संस्थाएं हैं जिनका काम दुनिया भर में शांति और व्यवस्था बनाए रखना है । लेकिन बड़े बुजुर्ग बता गये हैं कि किताबी ज्ञान तो किताबी ही होता है । भैया सही बताएं तो आज विश्वास हो गया । मतलब मजाल है कि किसी देश या संस्था ने चूँ मूँ तक की हो ।


तालिबान का समर्थन कर रहे कई देश

कुछ देशों का तो ख़ुशी के मारे क्षेत्रफल बढ़ गया । चीन तो पहले ही तालिबान को बहुत बड़ी सैन्य और राजनीतिक ताकत घोषित कर चुका है । वहीँ इमरान खान से खुद का देश भले न सम्भल रहा हो लेकिन तालिबानी कब्जे से फूल के कुप्पा हैं ।

अफगानी तालिबान को डर कर भागे

अमेरिका को लोग दुनिया का ठेकेदार माना करते थे लेकिन भैया ये भी अब इतिहास है । जब तक मतलब था तब तक खूब निचोड़ा । लगता था जैसे अफगानिस्तान इनके सैनिकों का ट्रेनिंग ग्राउंड हो । अफ़ग़ानिस्तान ने भी भर भर के अमेरिका से हथियार खरीदे । लेकिन भैया केवल हथियारों से युद्ध जीते जाते तो जंग भी हथियार ही लड़ते । जवान, जज्बा, जोश और जूनून ये शब्द शायद अफगानों ने भुला दिए ।

काबुल एयरपोर्ट का नजारा भयानक

अब अफगानी भाग रहे हैं । हवाई अड्डों पर रेलमपेल मची है । लोग जहाजों पर चढ़ने के लिए एक दूसरे की जान के दुश्मन बने जा रहे हैं । तमाम तो डैनों पर तो कुछ पहियों पर लटके जा रहे हैं । लोग उड़ते जहाज से नीचे गिर रहे हैं । दूसरों की क्या कहें जनता को बीच मंझधार में छोड़ राष्ट्रपति महोदय खुद निकल लिए ।


अफगानी औरतों की दुर्दशा

अब यहां हर तरफ बस शांति, सुकून, प्रेम और सदभाव होगा । कदम कदम पर गालियाँ और गोलियाँ होंगी । महिलाओं के सम्मान में बुर्ज खलीफा भी सिर झुकायेगा । तालिबानी गिद्धों के सामने तश्तरियों में सजाकर अफगानी औरतें, लड़कियां परोसी जायेंगीं । लेकिन हमाये ब्लूटूथ वाले इयरफोन लगे कानों में उनकी चीखें नहीं घुस पाएंगी ।

आज का जागरूक, विकसित, अत्याधुनिक हो चुका समाज पूरे चाव से चुप्पी साधे सब देखता रहेगा । हम नहीं बोलेंगे क्योंकि ये 21वीं सदी है...क्योंकि ये 21वीं सदी है...

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