Pension Scheme Controversy: पेंशन के खेल में माननीयों पर भरोसा!

Pension Scheme Controversy: पर पुरानी और नई पेंशन स्कीम को लेकर काफी विवाद और राजनीति चल रही है। सरकारी कर्मचारी पूरा जोर लगाए हैं कि पुरानी स्कीम फिर लागू कर दी जाए। वहीं कांग्रेस और आप जैसे दल, पेंशन के दम पर सरकार बनाने पर आमादा हैं।

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2023-01-10 12:51 IST

old pension scheme and new pension scheme controversy (Image: Nwwstrack)

Pension Scheme Controversy: हम बहुत सुंदर सुंदर स्लोगन गढ़ने के आदि हैं। पर जब अमली जामा पहनाना होता है तो लोगों के सामने अपनी ज़रूरतें और अपने हित के सवाल ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं। यह इन दिनों पेंशन को लेकर की जा रही शरारत में उजागर होता है। 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के काल में पुरानी पेंशन बंद कर दी गई। इसके बाद केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार दस साल चली। फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बीते 2014 से चल रही है।

पर राज्यों के चुनावों में कांग्रेस और विपक्षी दलों ने भाजपा को घेरने के लिए पुरानी पेंशन बहाली को एजेंडा बनाना शुरू कर दिया है। हालाँकि नीति आयोग का मानना है कि राजनीतिक दलों को अनुशासन का पालन करना चाहिए। क्योंकि हम सभी भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि के साझा लक्ष्य के लिए काम कर रहे हैं। ताकि भारत एक विकसित अर्थव्यवस्था बन सके।दीर्घकालिक लक्ष्यों के लिए अल्पकालिक लक्ष्यों को संतुलित करना आवश्यक है।

पुरानी और नई पेंशन स्कीम को लेकर विवाद 

पर पुरानी और नई पेंशन स्कीम को लेकर काफी विवाद और राजनीति चल रही है। सरकारी कर्मचारी पूरा जोर लगाए हैं कि पुरानी स्कीम फिर लागू कर दी जाए। वहीं कांग्रेस और आप जैसे दल, पेंशन के दम पर सरकार बनाने पर आमादा हैं। इस मुद्दे पर गुत्थम गुत्था देखकर तो लगता है कि अगले लोकसभा चुनाव में यह महत्वपूर्ण मुद्दा बन कर उभर सकता है। लोगों की नाराज़गी की वजह केवल नई व पुरानी पेंशन नहीं बल्कि हमारे जन प्रतिनिधियों को मिलने वाली पेंशन भी है। वह भी तब जब वे एक दिन भी किसी सदन के सदस्य रहे हों। जबकि सरकारी कर्मचारी के संबंध में यह काल खंड दस साल का होना ज़रूरी है। यही नहीं, सरकारी कर्मचारी की लड़ाई एक पेंशन की है। पर हमारे मान्यवर कई कई पेंशन पा रहे हैं। ऐसे में जब हमारे माननीय सदनों में बैठकर देश की आर्थिक स्थिति पर चिंता जताते हुए पेंशन बंद करने का फ़ैसला लेते होंभरोसा करने लायक़ नही होता। वह भी तब जब कि पेंशन पाते समय सरकारी कर्मचारी और हमारे जनप्रतिनिधि का कोई योगदान नहीं होता है। उलटे लोगों से वसूले गये करों से यह धनराशि देनी पड़ती है।

आरटीआई से मिली एक जानकारी के अनुसार 2020-21 में पूर्व सांसदों को पेंशन के रूप में 100 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। पेंशन पाने वाले 2679 पूर्व सांसदों के नामों की सूची में देश के बड़े-बड़े उद्योगपति, वर्तमान में राज्यपाल, मंत्री, सिने जगत के अभिनेता सभी शामिल हैं। वरिष्ठ नागरिकों को रेल किराए में रियायत बंद है । लेकिन पूर्व सांसद/ विधायक को फर्स्ट एसी, सेकेंड एसी में किसी के भी साथ मुफ्त यात्रा की सहूलियत है।

कुछ राज्यों का उदाहरण लेते हैं। मध्य प्रदेश विधानसभा की धारा 6ए के तहत पूर्व विधायक को हर महीने 20 हजार रुपये पेंशन मिलती है, चाहे उन्होंने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया हो या नहीं। छत्तीसगढ़ में 35,000 रुपये और मणिपुर में 70,000 रुपये हर महीने मिलते हैं। पूर्व विधायक की मृत्यु की तिथि से उनकी पत्नी या आश्रित को 18 हजार रुपये प्रतिमाह पारिवारिक पेंशन मिलती है। इसमें हर साल 500 रुपए जुड़ते हैं, हर महीने 15000 का मेडिकल अलाउंस भी मिलता है।

Pension Scheme Controversy (photo: social media )

केंद्र और राज्यों के लिए पेंशन देनदारियां कई गुना बढ़ा 

पिछले तीन दशकों में केंद्र और राज्यों के लिए पेंशन देनदारियां कई गुना बढ़ गई हैं। 1990-91 में केंद्र का पेंशन बिल 3,272 करोड़ रुपये था। जबकि सभी राज्यों का 3,131 करोड़ रुपये था। 2020-21 तक केंद्र का बिल 58 गुना बढ़कर 1,90,886 करोड़ रुपये हो गया। राज्यों के लिए यह 125 गुना बढ़कर 3,86,001 करोड़ रुपये हो गया।

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2019-20 में केंद्र का कुल प्रतिबद्ध व्यय 9.78 लाख करोड़ रुपये था, जिसमें 'वेतन और मजदूरी' पर 1.39 लाख करोड़ रुपये, पेंशन पर 1.83 लाख करोड़ रुपये और 'ब्याज भुगतान व कर्ज चुकाने' पर 6.55 लाख करोड़ रुपये शामिल थे।कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र का 19 प्रतिशत खर्चा पेंशन में और 14 फीसदी वेतन और मजदूरी पर जाता है। यानी पेंशन पर खर्च वेतन और मजदूरी से अधिक है।

2019-20 में गुजरात में पेंशन बिल 17,663 करोड़ रुपये, वेतन और मजदूरी 11,126 करोड़ रुपये था। कर्नाटक का पेंशन बिल 18,404 करोड़ रुपये जबकि वेतन और मजदूरी पर 14,573 करोड़ रुपये खर्च का होता है। पश्चिम बंगाल में पेंशन बिल 17,462 करोड़ रुपये जबकि वेतन और मजदूरी पर 16,915 करोड़ रुपये खर्च होते है। 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का संयुक्त पेंशन बिल, 2019-20 में 3.38 लाख करोड़ रुपये रहा, जो वेतन पर उनके संयुक्त व्यय 5.47 लाख करोड़ रुपये का 61.82 प्रतिशत था। पांच राज्यों - उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और ओडिशा - में पेंशन बिल वेतन और मजदूरी पर उनके खर्च का दो-तिहाई से अधिक है।

2019-20 के दौरान, सभी राज्यों का कुल प्रतिबद्ध व्यय 12.38 लाख करोड़ रुपये था-वेतन और मजदूरी पर 5.47 लाख करोड़ रुपये; ब्याज और कर्ज भुगतान पर 3.52 लाख करोड़ रुपये और पेंशन पर 3.38 लाख करोड़ रुपये। जो 27.41 लाख करोड़ रुपये के उनके संयुक्त राजस्व व्यय का लगभग आधा – 45 प्रतिशत था। राजस्थान में पेंशन पर खर्च – जहां कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने ओपीएस लागू करने का फैसला किया है – 2019-20 में 20,761 करोड़ रुपये था। यह वेतन और मजदूरी पर उसके खर्च 48,577 करोड़ रुपए का करीब 42.7 फीसदी है। इसी तरह, छत्तीसगढ़ का पेंशन बिल 6,638 करोड़ रुपये राज्य के वेतन और मजदूरी व्यय 21,672 करोड़ रुपये का 30.62 प्रतिशत था। हिमाचल प्रदेश में, जहां हाल ही में चुनाव संपन्न हुए, पेंशन बिल 5,490 करोड़ रुपये जबकि 11,477 करोड़ रुपये के वेतन और वेतन व्यय का 47 प्रतिशत था।

हैंडबुक ऑफ स्टैटिस्टिक्स ऑन इंडियन (फोटो: सोशल मीडिया )

हैंडबुक ऑफ स्टैटिस्टिक्स ऑन इंडियन स्टेट्स के नवीनतम संस्करण 

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 19 नवंबर को जारी हैंडबुक ऑफ स्टैटिस्टिक्स ऑन इंडियन स्टेट्स के नवीनतम संस्करण से पता चलता है कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का संयुक्त पेंशन खर्च 2013-14 में 1.63 लाख करोड़ रुपये से 2020-21 में बढ़कर 3.68 लाख करोड़ रुपये हो गया।

यही नहीं, 2012-13 और 2022-23 के बीच रक्षा पेंशन पर व्यय 10.7 प्रतिशत की वार्षिक औसत दर से बढ़ा है। यह रक्षा बजट की औसत वार्षिक वृद्धि 8.6 प्रतिशत से अधिक है। रक्षा बजट में पेंशन की हिस्सेदारी 2012-13 के 19 प्रतिशत से बढ़कर 2019-20 में 26 प्रतिशत हो गई। तब से यह 2021-22 और 2022-23 में 23 प्रतिशत तक गिर गया है। 2022-23 के बजट में रक्षा पेंशन पर 1,19,696 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है जो 2021-22 के संशोधित अनुमान 1,16,878 करोड़ रुपये से 2 प्रतिशत अधिक है। सेना में पेंशन के दबाव को कम करने के लिए ही अग्निवीर योजना लाई गई। जिसके ख़िलाफ़ युवा सड़कों पर उतरे। मोदी सरकार को इस फ़ैसले को लेकर बड़ी आलोचनाएँ झेलनी पड़ीं। भाजपा सांसद वरुण गांधी ने 'अग्निवीरों' के समर्थन में पेंशन छोड़ने की बात कही थी। वहीं, केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र तोमर ने वरुण की टिप्पणी को निजी राय बताया है। ऐसे में पेंशन को लेकर पक्ष- विपक्ष जो कुछ कह और कर रहा है।सब में सियासत की चाशनी लिपटी है। क्योंकि कल्याणकारी राज्य की संकल्पना के बाद भी पेंशन की जो सरकारी योजनाएँ हैं, उनकी धनराशि इतनी कम है कि उसके भरोसे एक हफ़्ता भी नहीं गुज़ारा जा सकता है। माननीयों की पेंशन ख़त्म करने के बाद सरकारी कर्मचारियों की पेंशन बंद करने का फ़ैसला होना चाहिए था। पर हो उल्टा गया। देखना है इसे सीधा करने की ताक़त कौन राजनेता और कौन सरकार दिखाती है।

( लेखक पत्रकार हैं/ दैनिक पूर्वोदय से साभार ।)

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