टाटा जैसे लोग ही हैं वास्तव में भारत के ‘रत्न’

रतन टाटा को भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग ने जोर पकड़ा तो रतन टाटा को खुद ही कहना पड़ा कि ‘वे अपने प्रशंसकों की भावनाओं की कद्र करते हैं लेकिन ऐसे कैंपेन को बंद किया जाना चाहिए। मैं भारतीय होने और भारत की ग्रोथ और समृद्धि में योगदान कर सकने पर खुद को भाग्यशाली मानता हूं।’

Update:2021-02-11 14:42 IST
टाटा जैसे लोग ही हैं ही वास्तव में भारत के ‘रत्न’

आर.के. सिन्हा

रतन टाटा को “भारत-रत्न देने की हाल में सोशल मीडिया में चली कैंपेन अपने आप में वैसे तो कतई गलत नहीं थी। पर जो देश भर का रत्न हो उसे भारत रत्न या कोई अन्य पुरस्कार मिले या ना मिले, इससे क्या फर्क पड़ता है। वे तो सारे देश के नायक पहले से ही हैं। उन्हें आप नायकों का नायक कह सकते हैं।

रतन टाटा को भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग

जब रतन टाटा को भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग ने जोर पकड़ा तो रतन टाटा को खुद ही कहना पड़ा कि ‘वे अपने प्रशंसकों की भावनाओं की कद्र करते हैं लेकिन ऐसे कैंपेन को बंद किया जाना चाहिए। मैं भारतीय होने और भारत की ग्रोथ और समृद्धि में योगदान कर सकने पर खुद को भाग्यशाली मानता हूं।’ जाहिर है, इस तरह की बात कोई शिखर शख्सियत ही कर सकती है। सामान्य कद का इंसान तो रतन टाटा की तरह का स्टैंड तो नहीं ही लेगा। कौन नहीं जानता कि बहुत सी सफदेपोश हस्तियां भी पद्म पुरस्कार पाने के लिए भी अनेकों तरह की लाबिंग और कई समझौते करती हैं।

रतन सारे संसार के सबसे आदरणीय कॉरपोरेट लीडर

टाटा समूह के पुराण पुरुष जे.आर.डी. टाटा के 1993 में निधन के बाद रतन टाटा ने नमक से लेकर स्टील और कारों से लेकर ट्रक और इधर हाल के बरसों में आई टी सेक्टर से भी जुड़े टाटा समूह को एक शानदार और अनुकरणीय नेतृत्व दिया है। रतन टाटा को भारत ही नहीं बल्कि सारे संसार के सबसे आदरणीय कॉरपोरेट लीडरों में से एक माना जाता है। जेआरडी टाटा के संसार से विदा होने के बाद शंकाएं और आंशकाएं जाहिर की जा रही थी कि क्या वे जेआरडी की तरह का उच्चकोटि का नेतृत्व अपने समूह को देने में सफल रहेंगे? यह सब शंकाएं वाजिब भी थीं, क्योंकि जेआरडी टाटा का व्यक्तित्व सच में बहुत बड़ा था। लेकिन यह तो कहना होगा कि रतन टाटा ने अपने आप को सिद्ध करके दिखाया।

बिजनेस वैंचर का पहला लक्ष्य लाभ कमाना

देखिए वैसे तो सभी बिजनेस वैंचर का पहला लक्ष्य लाभ कमाना ही होता है। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। पर टाटा समूह का लाभ कमाने के साथ-साथ एक लक्ष्य सामाजिक परोपकार और देश के निर्माण में लगे रहना भी है। इस मोर्चे पर कम से कम भारत का तो कोई भी बिजनेस घराना टाटा समूह के आगे पानी भरता है।

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प्रतिभा को पहचानने की कमाल की कला

टाटा समूह का सारा देश इसलिए ही आदर करता है कि वहां पर लाभ कमाना ही लक्ष्य नहीं रहता। रतन टाटा तो अब टाटा समूह के चेयरमेन भी नहीं हैं। उन्होंने चेयरमेन का पद टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस (टीसीएस) के चेयरमेन एन. चंद्रशेखरन को सौंप दिया है। उनमें प्रतिभा को पहचानने की कमाल की कला है। वे सही पेशेवरों को सही जगह काम पर लगाते हैं। उसके उन्हें अभूतपूर्व नतीजे भी मिलते हैं। रतन टाटा ने एन. चंद्रशेखरन को बड़ी जिम्मेदारी देते हुए यह नहीं देखा कि वे किसी नामवर अंग्रेजी माध्यम के स्कूल या कॉलेज में नहीं पढ़े हैं।

चंद्रशेखरन की सरपरस्ती में टीएसएस ने छू रही बुलंदियां

रतन टाटा ने यह देखा कि चंद्रशेखरन की सरपरस्ती में टीएसएस लगातार बुलंदियों को छू रही है। इसलिए उन्होंने टाटा समूह के इतिहास में पहली बार टाटा समूह का चेयरमेन एक गैर-टाटा परिवार से जुड़े गैर-पारसी व्यक्ति को बनाया। इस तरह का फैसला कोई दूरदृष्टि रखने वाला शख्स ही कर सकता है। चंद्रशेखरन ने अपनी स्कूली शिक्षा अपनी मातृभाषा तमिल में ग्रहण की थी। उन्होंने स्कूल के बाद इंजीनियरिंग की डिग्री रीजनल इंजीनयरिंग कालेज (आरईसी), त्रिचि से हासिल किया । चंद्रशेखरन के टाटा समूह के चेयरमेन बनने से यह भी साफ हो गया कि तमिल या किसी भारतीय भाषा से स्कूली शिक्षा लेने वाले विद्यार्थी भी आगे चलकर कॉरपोरेट संसार के शिखर पर जा सकता है। वे भी अपने हिस्से का आसमान छू सकता है।

भारत का आईटी सेक्टर 190 अरब डॉलर तक पहुंची

अगर आज भारत को सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दुनिया सबसे खास शक्तियों में से एक मानती है और भारत का आईटी सेक्टर 190 अरब डॉलर तक पहुंच गया है तो इसका श्रेय़ कुछ हद तक तो आपको रतन टाटा को भी देना होगा। रतन टाटा में यह गुण तो अदभुत है कि वे अपने किसी भी कम्पनी के सीईओ के काम में दखल नहीं देते। उन्हें पूरी आजादी देते हैं कि वे अपनी कंपनी को अपने बुद्धि और विवेक से आगे लेकर जाएं। वे अपने सीईओज को छूट देते हैं काम करने की। हालांकि उन पर पैनी नजर भी रखते थे। उन्हें समय-समय पर सलाह-मशविरा भी देते रहते थे। इन पॉजिटिव स्थितियों में ही उनके समूह की कंपनियां औरों से आगे निकलती है।

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रतन टाटा पर भी ईश्वरीय कृपा

आप कह सकते हैं कि जेआरडी टाटा की तरह रतन टाटा पर भी ईश्वरीय कृपा रही कि वे चुन-चुनकर एक से बढ़कर एक मैनेजरों को अपने साथ जोड़ सके। इसलिए ही टाटा समूह से एन. चंद्रशेखरन( टीसीएस), अजित केरकर (ताज होटल), ननी पालकीवाला (एसीसी सीमेंट), रूसी मोदी (टाटा स्टील) वगैरह जुड़े। ये सब अपने आप में बड़े ब्रांड थे। रतन टाटा के पास अगर प्रमोटर की दूरदृष्टि नहीं रही होती और वह अपने सीईओ पर भरोसा नहीं करते तो फिर बड़ी सफलता की उम्मीद करना ही व्यर्थ था । टाटा अपने सीईओज को अपना विजन बता देते हैं। फिर काम होता है सीईओ का कि वह उस विजन को अमली जामा पहनाए और उससे भी आगे जाने की सोचे।

रतन टाटा का सम्मान करता हैं सारा देश

देखिए अगर रतन टाटा का सम्मान सारा देश करता है तो इसके पीछे उनकी बेदाग शख्सियत है। याद करें पिछले साल जनवरी में मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में रतन टाटा के इंफोसिस समूह के फाउंडर एम. नारायणमूर्ति चरण स्पर्श करते हुए आशीवार्द ले रहे थे। रतन टाटा और नारायणमूर्ति के बीच 9 साल का अंतर है। मूर्ति टाटा से 9 साल छोटे हैं, लेकिन नारायणमूर्ति भी मानते हैं कि उपलब्धियों के स्तर पर रतन टाटा उनसे बहुत आगे हैं।

बिल गेट्स या टाटा जैसे कॉरपोरेट लीडर रोज-रोज नहीं होते

दरअसल रतन टाटा का संबंध भारत के उस परिवार से हैं, जिसने आधुनिक भारत में औद्योगीकरण की नींव रखी थी। यह मान लीजिए कि बिल गेट्स या रतन टाटा जैसे कॉरपोरेट लीडर रोज-रोज नहीं होते। ये किसी भी सम्मान या पुरस्कार के मोहताज नहीं है। इनसे पीढ़ियां प्रेरित होती हैं। इनके सामने कोई भी पुरस्कार या सम्मान बौना है। यह सच में भारत का सौभाग्य है कि रतन टाटा हमारे हैं और हमारे बीच में अभी भी सक्रिय हैं। उनका हमारे बीच होना ही बहुत सुकून देता है।

(लेखक वरिष्ठ स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

Note- ये लेखक के निजी विचार हैं।

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