मुंबई में रातों-रात तख्ता-पलट

जैसे कर्नाटक में कुमारस्वामी ने कुछ साल पहले अपने पिता देवगौड़ाजी को दे दिया था। देवेगौड़ाजी चाह रहे थे कि भाजपा से गठबंधन हो जाए। वे अटलजी और आडवाणीजी से बात कर ही रहे थे कि उनके बेटे ने बाजी मार ली।

Update: 2019-11-24 05:20 GMT

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

अभी मैं दुबई में हूं। जैसे ही सुबह नींद खुली, मैं धक से रह गया। चार-पांच दिन पहले मैंने लिखा था कि मुंबई में भाजपा और राकांपा की सरकार भी बन सकती है। सारे देश ने सुना कि देवेंद्र फडनवीस और अजित पवार ने मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री की शपथ सुबह 8 बजे ही ले ली। इतनी सुबह शपथ लेनेवाले ये देश के शायद पहले ही नेता हैं। मैंने सोचा कि यह शपथ पवार और मोदी की भेंट का परिणाम है लेकिन कुछ ही देर में पता चला कि शरद पवार को उनके भतीजे अजित पवार ने बिल्कुल वैसे ही गच्चा दे दिया|

कुमारस्वामी ने कुछ साल पहले अपने पिता देवगौड़ाजी को दे दिया था

जैसे कर्नाटक में कुमारस्वामी ने कुछ साल पहले अपने पिता देवगौड़ाजी को दे दिया था। देवेगौड़ाजी चाह रहे थे कि भाजपा से गठबंधन हो जाए। वे अटलजी और आडवाणीजी से बात कर ही रहे थे कि उनके बेटे ने बाजी मार ली। यही काम अजीत ने कर दिखाया। लेकिन शरद पवार ने अजित की कार्रवाई को पार्टी और परिवार-द्रोह घोषित कर दिया है। कांग्रेस भी कुपित है लेकिन सबसे ज्यादा बौखलाहट किसी को है तो वह शिवसेना को है। उसका नकली ताजमहल चकनाचूर हो गया है। उसकी सारी अकड़ ठिकाने लग गई है। रातों रात मुंबई में तख्ता-पलट हो गया है।

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अब भी आशा है कि अजित पवार के साथ काफी कम विधायक जाएंगे और वह विधानसभा में भाजपा-सरकार को गिरा देगी। यह असंभव नहीं है, क्योंकि शरद पवार और उनकी बेटी की पकड़ राकांपा में काफी मजबूत है लेकिन सत्ता के लालच के आगे सब नेता ढीले पड़ जाते हैं। मंत्रिपद और करोड़ों रु. का लालच अब जमकर अपना असर दिखाएगा। भाजपा अपनी सरकार बचाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल क्यों नहीं करेगी ? यों भी सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सत्तारुढ़ होने का नैतिक अधिकार उसे है ही। जहां तक राकांपा, शिवसेना और कांग्रेस के गठबंधन का सवाल है, वह पिछले एक माह से सौदेबाजी में ही लटका हुआ था।

काणी के ब्याह में सौ-सौ जोखिम

महाराष्ट्र की जनता की नज़र में उसकी कीमत बहुत घट रही थी। यदि वह बन भी जाता तो वह चलता कितने दिन ? ‘काणी के ब्याह में सौ-सौ जोखिम’। अब उम्मीद है कि महाराष्ट्र की राजनीति में थोड़ी स्थिरता आ जाएगी। यदि अब भी सौदेबाजी, दल-बदल या गठबंधन-बदल का नाटक चलता हो तो बेहतर होगा कि महाराष्ट्र में नए चुनाव करवाए जाएं, जैसे कि इस्राइल में एक ही साल में अब तीसरे चुनाव की नौबत आ गई है।

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