पेगासस जासूसीः सरकार की किरकिरी
जब से यह खबर प्रकट हुई कि मोदी सरकार (Modi government) ने इस्राइल से जासूसी का पेगासस (Pegasus case) नामक उपकरण खरीदा है।
Pegasus Spyware Case: सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने आज भारत सरकार की खूब खबर ले ली है। पिछले दो साल से चल रहे जासूसी के पेगासस (Pegasus spyware case) नामक मामले में अदालत ने सरकार के सारे तर्कों, बहानों और टालमटोलों को रद्द कर दिया है। उसने कई व्यक्तियों, संगठनों और प्रमुख पत्रकारों की याचिका स्वीकार करते हुए जासूसी के इस मामले की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए हैं। यह जांच अब सर्वोच्च न्यायालय के एक सेवा-निवृत्त न्यायाधीश आर.वी. रविंद्रन की अध्यक्षता में होगी। उसकी रपट वे अगले दो माह में अदालत के सामने पेश करेंगे।
'सरकार उन नामों को अदालत से क्यों छिपा रही है?'
जब से यह खबर प्रकट हुई कि मोदी सरकार (Modi government) ने इस्राइल से जासूसी का पेगासस (Pegasus case) नामक उपकरण खरीदा है। वह भारत के सैकड़ों नेताओं, पत्रकारों, उद्योगपतियों, अफसरों आदि के कंप्यूटरों और फोन पर उस उपकरण से अपनी नज़र रखता है, एक हंगामा-सा खड़ा हो गया। जब यह मामला अदालत में आया तो सरकार हकलाने लगी। वह ऐसी दिखी, जैसे कि चिलमन से लगी बैठी है। न साफ़ छुपती है और न ही सामने आती है। 500 करोड़ रु. के इस कीमती उपकरण का इस्तेमाल कर सरकार कहती है कि वह आतंकवादियों, तस्करों, ठगों और अपराधियों को पकड़ने के लिए करती है। यदि ऐसा है तो यह स्वाभाविक है। इसमें कोई बुराई नहीं है । लेकिन फिर सरकार उन नामों को अदालत से भी क्यों छिपा रही है?
कोर्ट ने लगाई फटकार
सरकार कहती है कि ऐसा वह राष्ट्रहित में कर रही है। लेकिन क्या यह काम लोकतंत्र-विरोधी नहीं है? अपने विरोधियों, यहां तक कि अपनी पार्टी के नेताओं और अपने ही अफसरों के विरुद्ध आप जासूसी कर रहे हैं। आप अदालत से यह तथ्य भी छिपा रहे हैं कि आप उस इस्राइल जासूसी यंत्र-तंत्र का इस्तेमाल कर रहे या नहीं? जैसे किसी ज़माने में औरतें अपने पति का नाम बोलने में हिचकिचाती थीं, वैसे ही पेगासस (Pegasus case in india) को लेकर हमारी सरकार की घिग्घी बंधी हुई है। अदालत ने सरकारी रवैए की कड़ी भर्त्सना करते हुए कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर उसे कुछ भी उटपटांग काम करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। उसने सरकार के इस सुझाव को भी रद्द कर दिया है कि इस मामले की जांच विशेषज्ञों के एक दल से करवाई जाए। विशेषज्ञों को तो कोई भी सरकार प्रभावित कर सकती है। इसीलिए अब एक न्यायाधीश ही इस मामले की जांच करेंगे। यह मामला सिर्फ नेताओं और पत्रकारों की जासूसी का ही नहीं है, यह प्रत्येक नागरिक के मानवीय अधिकारों की सुरक्षा का है। सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला न्यायपालिका की इज्जत में तो चार चांद लगा ही रहा है, साथ ही सरकार की मुश्किलें भी बढ़ा रहा है। हम उम्मीद करते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) अपनी रपट पेश करते हुए पूरी सावधानी बरतेगा ताकि अपराधियों को सतर्क हो जाने का मौका न मिल जाए। इस मामले ने जब तूल पकड़ा, तब मैंने सुझाव दिया था कि सरकार थोड़ी हिम्मत करती तो यह मामला आसानी से सुलझ सकता था। सरकार उन निर्दोष नेताओं, पत्रकारों और अन्य व्यक्तियों से माफी मांग लेती, जो निर्दोष थे और अब ऐसा इंतजाम कर सकती थी कि कोई भी सरकार वैसी गलती न कर सके।