PM Modi Focuse On Natural Agriculture: लोकभारती वाराणसी में करने जा रही है राष्ट्रीय कार्यशाला, प्राकृतिक खेती से जुड़े किसानों व वैज्ञानिकों का होगा जमावड़ा

PM Modi Focuse On Natural Agriculture: श्रीकृष्ण चौधरी ने कहा कि मोदी सरकार ने निरंतर रसायनमुक्त प्राकृतिक कृषि (chemical free natural farming) को बढ़ावा देने का प्रयास किया है।

Published By :  Shashi kant gautam
Update:2021-11-21 19:05 IST

PM Modi Focuse On Natural Agriculture: प्रधानमंत्री (PM Narendra Modi) के राष्ट्र के नाम नवीनतम संबोधन के उपरांत सर्वाधिक चर्चा तीनों कृषि कानूनों की वापसी (withdrawal of all three agricultural laws) पर केंद्रित है, परन्तु देश की कृषि एवं किसानें की समस्याओं के स्थाई एवं दीर्घकालिक निदान में उपरोक्त संबोधन का महत्व इसलिए अधिक है कि इसके माध्यम से प्रधानमंत्री ने डॉ. सुभाष पालेकर (Dr. Subhash Palekar) द्वारा प्रतिपादित जीरो बजट प्राकृतिक कृषि पद्धति यानी गाय आधारित प्राकृतिक कृषि (natural farming) को बढ़ावा देने और इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए एक उच्चस्तरीय समिति के गठन का भी ऐलान किया है।

इसके अलावा आगामी दिनों में कई ऐसे महत्वपूर्ण आयोजन होने जा रहे हैं, जिनका लक्ष्य प्राकृतिक खेती (natural farming) को बढ़ावा देना और इस हेतु जागरूकता का विस्तार करना है। रासायनिक खेती (chemical farming) से उपजे संकटों से अवगत होकर किसान, पर्यावरण मृदा व मानव स्वास्थ्य और संपूर्ण समाज को इसके दुष्प्रभावों से बचाने एवं इसके विकल्प के रूप में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने (promote natural farming) में 11 वर्षों से संलग्न लोक भारती के लिए यह अत्यंत उत्साहवर्धक घटनाक्रम है। प्रधानमंत्री की ताजा घोषणा से निश्चित रूप से प्राकृतिक खेती के विस्तार अभियान को व्यापक गति मिलेगी।

14 दिसंबर को वाराणसी में लोक भारती (Lok Bharti) कर रहा राष्ट्रीय कार्यशाला

यह जानकारी देते हुए लोक भारती के सम्पर्क प्रमुख एवं किसान समृद्धि आयोग के सदस्य श्रीकृष्ण चौधरी (Shree Krishan Choudhary) ने बताया कि इसी क्रम में 14 दिसंबर को वाराणसी में लोक भारती एवं प्रदेश सरकार द्वारा प्राकृतिक कृषि पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है। इस कार्यक्रम में देश भर के लगभग 2 हजार प्राकृतिक किसान और कृषि वैज्ञानिक सहभागिता करेंगे। उक्त कार्यक्रम में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उपस्थित रहेंगे।

इस दौरान प्रधानमंत्री (PM Narendra modi) देश के कृषि संकट के स्थाई समाधान के इन प्राकृतिक किसानों के अनुभवों से अवगत होने के साथ-साथ उन्हें मार्गदर्शन भी प्रदान करेंगे। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल (Uttar Pradesh Governor Anandiben Patel) और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) के साथ-साथ राज्यपाल के रूप में पहले हिमाचल प्रदेश और अब गुजरात को प्राकृतिक कृषि का केंद्र बनाने हेतु प्रयासरत आचार्य देवव्रत भी उपस्थित रहेंगे।

कार्यक्रम के आयोजन की तैयारी के लिए लखनऊ (Lucknow News) में 24 नवम्बर को एक उच्चस्तरीय बैठक निर्धारित की गई है जिसमें अपर मुख्य सचिव कृषि, कृषि विभाग के अनेक उच्चाधिकारियों के साथ-साथ प्रदेश के समस्त कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपति या उनके नामित प्रतिनिधि उपस्थित रहेंगे। इसी क्रम में 23 नवम्बर को वाराणसी के सेवापुरी में भी जिला प्रशासन द्वारा प्राकृतिक कृषि के विस्तार और राष्ट्रीय कार्यशाला के आयोजन की तैयारियों की समीक्षा की जाएगी।

मोदी ने समयानुकूल बदलाव के लिए कहा

श्रीकृष्ण चौधरी ने कहा कि मोदी सरकार ने निरंतर रसायनमुक्त प्राकृतिक कृषि (chemical free natural farming) को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। प्रधानमंत्री ने अनेक अवसरों पर खेती में रसायनों के उपयोग से उत्पन्न समस्याओं को रेखांकित करते हुए किसानों से कृषि पद्धति में समयानुकूल बदलाव लाने को प्रेरित किया है।

2019 के केंद्रीय बजट में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने किसानों की आय दोगुनी करने के लिए जीरो बजट प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की घोषणा की थी। तदोपरांत नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार द्वारा कई ऐसे प्रयास किए गए, जिनके परिणामस्वरूप पूरे देश में प्राकृतिक खेती का रकबा और इस पद्धति से खेती करने वाले किसानों की संख्या में बहुत तेज गति से वृद्धि हुई है। ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा अब उच्चस्तरीय समिति के गठन का निर्णय देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है।

कृषि क्षेत्र की आत्मनिर्भरता जरूरी

लोक भारती के सम्पर्क प्रमुख एवं किसान समृद्धि आयोग के सदस्य श्रीकृष्ण चौधरी का कहना है कि भारत तब तक आत्मनिर्भर नहीं बन सकता जब तक कि हमारे किसान और हमारा कृषि क्षेत्र आत्मनिर्भरता का सामर्थ्य प्राप्त नहीं कर लेते। प्राकृतिक कृषि की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह किसान को बाजार पर और उसके खेत को हाईब्रिड बीज, रासायनिक खाद-कीटनाशक पर निर्भर नहीं बनाती।

लोक भारती के सम्पर्क प्रमुख ने कहा वर्तमान में जहां रासायनिक किसान यूरिया-डीएपी के आपूर्ति संकट से समस्या अनुभव कर रहे हैं, वहीं देश में लाखों प्राकृतिक किसान ऐसे भी हैं जिन्हें यदि निशुल्क भी यूरिया-डीएपी आदि प्रदान कर दी जाए, तो वे उन्हें अपने खेत में डालने को कदापि तैयार नहीं होंगे। इसका कारण यह है कि ऐसे किसान जान चुके हैं कि प्राकृतिक कृषि के माध्यम से अपनी लागत में व्यापक कमी लाने के बाद भी अधिक कृषि उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

कृषि के गलत माडल ने किसान को तबाह किया

हरित क्रांति (Green revolution) के सूत्रपात के पश्चात हमने जिस कृषि मॉडल को अंगीकार किया, वह खेत में रासायनिक खाद-कीटनाशकों को उड़ेलकर अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त करने पर केंद्रित रहा है। इससे शुरुआती कुछ दशकों में कुछेक खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाने में सफलता जरूर मिली, लेकिन अब उसमें ठहराव या गिरावट की स्थिति देखने को मिल रही है। उन्होंने कहा कि अधिसंख्य किसानों के लिए भी रासायनिक खेती घाटे का सौदा ही साबित हुई है। लगातार बढ़ती कृषि लागत ने किसानों को कर्ज के दुष्चक्र में फंसाने का काम किया है और किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हुए हैं।

उपभोक्ताओं के लिए भी खतरनाक है रासायनिक खेती की उपज

श्री चौधरी के अनुसार उपभोक्ताओं के लिए भी इस कृषि माडल ने खतरनाक स्थिति उत्पन्न कर दी है। अनाज हो, सब्जी या फल, रसायनों का प्रयोग करके उगाए गए इन उत्पादों ने मानव शरीर को पोषण और आरोग्य देने के स्थान पर अनेक गंभीर बीमारियों का शिकार बना दिया है। खेती के इस तरीके ने मिट्टी, जल और हवा को भी प्रदूषित बना दिया है। सिंचाई के लिए जल की जरूरत पूरी करने के प्रयास में भूजल स्तर पाताल तक पहुंच गया है।

कृषि नीतियों पर पुनरावलोकन (Agriculture Policies Review) का सही समय

कोरोना संकट की भयावह पृष्ठभूमि में हमें अवसर प्राप्त हुआ है ऐसे प्राकृतिक कृषि माडल, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य की दशा-दिशा पर विचार करने का, इनसे संबंधित सामाजिक सोच और जागरुकता के स्तर पर ध्यान देने का और संबंधित सरकारी नीतियों का पुनरावलोकन करने का।

अब यह अनिवार्य हो गया है कि हम प्रकृति के साथ अपने संबंधों को पुनः परिभाषित करें। अपने खानपान, खाद्य श्रृंखला और कृषि के प्रचलित तौरतरीकों पर भी व्यापक रूप से पुनर्विचार करें। मानव सभ्यता को कोरोना जैसे आगामी संकटों से बचाने के लिये जरूरी है कि हमारी जीवनशैली, खाद्य-शैली और प्राकृतिक परिवेश ऐसा हो जो देश की आर्थिकी एवं मानव शरीर को इतना सक्षम बनाए रखे कि ऐसे संकटों का सामना करने के लिए सदैव तैयार रह सकें।

photo - social media

गौ आधारित प्राकृति कृषि सर्वोत्तम विकल्प

इन स्थितियों में डा. सुभाष पालेकर द्वारा विकसित और प्रवर्तित गौ आधारित प्राकृतिक कृषि सर्वोत्तम विकल्प के रूप में दिखाई देती है। एक देशी गाय से 30 एकड़ क्षेत्र में खेती करने में सक्षम यह विधि किसान, उपभोक्ता, पर्यावरण और सरकार सभी के लिए लाभकारी है। इस विधि के अंतर्गत किसान को बाजार से कोई खाद या कीटनाशक नहीं खरीदना पड़ता। सिंचाई और जुताई की आवश्यकता भी बहुत कम रह जाती है। लेकिन इसके बावजूद कृषि उत्पादन पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। उपभोक्ता को रसायनमुक्त खाद्य सामग्री सुलभ होती है जो उसका पेट भरने के साथ-साथ उसके शरीर को समुचित पोषण और रोग-प्रतिरोधक क्षमता उपलब्ध कराने में समर्थ होती है।

आहार का काम पेट भरना नहीं

कोरोना संकट (corona crisis) ने हमें अहसास कराया है कि आहार का काम महज पेट भरना नहीं है, वरन शरीर को रोगाणुओं-विषाणुओं से लड़ने के लिए तैयार भी करना है। ऐसे में जरूरत है कि रासायनिक कृषि पद्धति से पल्ला छुड़ाते हुए और बेहद महंगी और जटिल जैविक खेती के स्थान पर प्राकृतिक विधि से खेती को बढ़ावा दिया जाए। प्राकृतिक फसल पूर्णतः प्रकृति के नियमों और मिट्टी की नैसर्गिक उर्वरक क्षमता के जरिए उपजाई जाती है। यह बार-बार प्रमाणित हो चुका है कि चाहे सूखा पड़े या पाला, ओला या फिर अतिवर्षा, इन प्राकृतियों आपदाओं का मुकाबला करने में प्राकृतिक फसल अधिक सक्षम है।

प्राकृतिक खेती अपरिहार्य

मानव शरीर को समुचित पोषण देना प्राकृतिक खेती का एक लाभ है। लेकिन इसके पर्यावरण पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव का यदि आंकलन किया जाए तो प्राकृतिक खेती अपरिहार्य प्रतीत होती है। उदाहरण के तौर पर प्राकृतिक खेती में सिंचाई हेतु रासायनिक खेती के मुकाबले महज एक चैथाई जल की जरूरत होती है। इसके चमत्कारिक प्रभाव तब और स्पष्ट रूप से नजर आते हैं जब प्राकृतिक किसान के खेत में पानी की कमी के कारण एक ओर दरारें दिखती हैं, वहीं दूसरी तरफ इसी खेत में पूर्णतः स्वस्थ फसल लहलहाती रहती है।

प्राकृतिक कृषि पद्धति को अंगीकार करने से उपलब्ध जल का संरक्षण (water conservation) तो होता ही है, सिंचाई में प्रयुक्त होने वाले ऊर्जा संसाधनों की बचत भी होती है। इसी तरह प्राकृतिक खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग बिल्कुल नहीं होता, ऐसे में हमारा जमीन और जल जहरीले रसायनों के दुष्प्रभाव से बच जाते हैं। पिछले दिनों एक सरकारी शोध से उद्घाटित हुआ कि रासायनिक खाद-उर्वरकों के प्रयोग के कारण हमारी भूमि ऊयर बंजर बनती जा रही है। ऐसे में रासायनिक खेती से जितना शीघ्र पीछा छुड़ा लिया जाए, वही हम सबके हित में है।

आर्थिक रूप से भी लाभकारी

प्राकृतिक कृषि, सरकार के लिए भी आर्थिक रूप से लाभकारी है क्योंकि प्राकृतिक किसान को सरकारी सब्सिडी वाली यूरिया, डीएपी आदि की जरूरत ही नहीं पड़ती। इससे सब्सिडी के रूप में खर्च होने वाले खरबों रूपये धन की प्रत्यक्ष बचत होने के साथ-साथ यूरिया आदि के निर्माण में प्राकृतिक गैस और बिजली पर होने वाले व्यय से भी मुक्ति मिल जाती है। कृषि क्षेत्र से संबंधित एक बड़ी समस्या पराली जलाना भी रही है। पराली जलाने की यह प्रथा वायुमंडल को बहुत नुकसान पहुंचाती है, साथ ही खेतों में मौजूद लाभदायक सूक्ष्म जीवों को भी। लेकिन प्राकृतिक कृषि में पराली जलाने जलाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। इसमें पराली को समस्या नहीं बल्कि समाधान माना जाता है और उसे जलाने के बजाए आच्छादन के रूप में उसका सदुपयोग किया जाता है।

इसके अतिरिक्त, प्राकृतिक खेती का आधार चूंकि देशी गौवंश होता है, जो देशी गाय के संरक्षण व सम्बर्धन में भी सहायक है। प्राकृतिक खेती को बड़े पैमाने पर अपनाए जाने के बाद देशी गाय की उपादेयता सिर्फ धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आर्थिक नजरिए से भी साबित हो रही है। पिछले दो वर्षों में पूरी दुनिया को कोरोना संकट के कड़वे अनुभवों से गुजरना पड़ा। अब ऐसे किसी संकट के लिए हमें सदैव तैयार रहते हुए भविष्य की रूपरेखा निर्धारित करनी चाहिए।

प्राकृतिक कृषि को अंगीकार करना इस दिशा में एक अहम उपाय है, जिसमें हमारी अनेक वर्तमान समस्याओं एवं भविष्यगत चुनौतियों का समाधान निहित है। लोक सम्मान पत्रिका एवं र्पोटल के माध्यम से भी प्राकृतिक कृषि अभियान को निरंतर गति देने का प्रयास किया गया है। हमारा यह 'प्राकृतिक कृषि विशेषांक' मुख्यतः उन किसानों को समर्पित है जिन्होंने प्राकृतिक कृषि को अपनाकर न केवल अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाया, बल्कि दूसरे किसानों के समक्ष एक प्रेरक उदाहरण के रूप में स्वयं को स्थापित करने में सफल रहे हैं।

लेखक- सम्पर्क प्रमुख लोक भारती एवं सदस्य, किसान समृद्धि आयोग

Tags:    

Similar News