आलोक शर्मा महराजगंज
धरम पंथ उ जाति नइखे,
घोर घनेरी राति नइखे!
मानव जिये मानव खातिर,
अइसन कवनो बाति नइखे!!
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घरे रामायण गीता नइखे,
चोटी, गजरा,फीता नइखे!
राम कहीं ना बंचले जग में,
यही कारन केहु सीता नइखे!!
सालिक ग्राम उ देवता नइखे,
हरदी वाला नेवता नइखे!
खउलत दूध उतारे दुलहिन,
चउका में उ सेवता नइखे!!
एक जगह परिवार नइखे,
बड़का घर दुआर नइखे!
लेंन-देंन में बाति न बिगड़े,
अइसन कहीं उधार नइखे!!
बाबा के उ खादी नइखे
घर में बुढ़िया दादी नइखे
जवन सवाद बानर न जाने,
सब्जी में उ आदी नइखे!
मुनुओ के घर गांती नइखे,
मंगरु अइसन नाती नइखे!
घूमि-घूमि तेतरी बंचवाये,
प्रियतम के उ पाती नइखे!!
सासु से कवनो डर नइखे,
बिना दहेज के वर नइखे!
भसुर जहां न गारी सूने,
अइसन कवनो घर नइखे!!
कालानमक का चाउर नइखे,
कवनो गीति अब बाउर नइखे!
जायीं रहीं अनाथालय में,
रउरे घर अब राउर नइखे!!
हर जुआठा फार नइखे,
पहिले नियर कुदार नइखे!
चूल्हा खातिर चइला फारे,
टांगी में उ धार नइखे!!
टटिहर घर में टाटी नइखे,
कोरो,छप्पर बाती नइखे!
दुअरा पर गोहरा, भउरी,
उ भंटा चोखा बाटी नइखे!!
घरमे पतुकी नदिया नइखे
डोकिया कठवत मचिया नइखे
दादा सूति दवाई मांगे,
दुअरा अइसन खटिया नइखे!!
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ढिलही ककही जुआं नइखे
ढील हेरे बदे, फुआ नइखे!
रसरी गगरा झम-झम बाजे,
गांव में कवनो कुआं नइखे!!
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