लाशें बोल नहीं सकतीं

लाशें बोल नहीं सकतीं, पर बोलती हैं। तैरना नहीं जानतीं मगर तैरती हैं। ज़हर घोलने का काम तो ज़िंदा लोगों का है,

Written By :  Ritu Tomar
Published By :  Raghvendra Prasad Mishra
Update:2021-05-14 22:09 IST

फोटो— गंगा नदी (साभार— सोशल मीडिया)

लाशें बोल नहीं सकतीं

पर बोलती हैं।

तैरना नहीं जानतीं मगर तैरती हैं।

ज़हर घोलने का काम तो ज़िंदा लोगों का है

फिर क्यों ये ज़हर घोलती हैं?

वो मृत होती हैं

कोई साजिश करना नहीं जानतीं

फिर किसकी साजिश से किसकी पोल खोलती हैं?

ज़िंदा लोग बदलाव न ला सकेंगे

हम करेंगी मदद

जो बन पड़ेगा

ऐसा अपनी धुन में बहती लाशें

सोचती हैं।

बड़ी अजीब हैं

ये मुई लाशें ज़िंदा लोगों को बरगलाती, भड़काती हैं।

कोई मुक़दमा भी कायम नहीं हो सकता इन पर

न क़ानून की कोई धारा ही लगाई जा सकती।

इन्हें दफ़ना दो

जला दो फौरन

ताकि ये फिर कभी तैरने की ज़ुर्रत न करें।

आवारा लम्पट की तरह नदी में डोलती

ज़िंदा लोगों को डरा न सकें।

इससे पहले कि ये सदियों तक सुनाने वाली कहानियां बन जाएं

इन्हें ख़त्म करो!

जी जहाँपनाह!

कहते हैं कारिंदे

और फ़िर विरोध की आवाज़ बनती लाशें

चुनचुनकर

ख़त्म कर दी जाती है।

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