Native Languages​: हिरण पर क्यों लादें घांस? स्वभाषाओं की रक्षा पर एक खास रिपोर्ट, दूर कर देगी आपका वहम्

Native Languages​: हमारे राजस्थान और उत्तरप्रदेश में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की बाढ़ आ रही है लेकिन ज़रा रूस की तरफ देखें।

Written By :  Dr. Ved Pratap Vaidik
Update:2023-03-03 10:58 IST
इंग्लिश मीडियम स्कूल के बच्चे (Pic: Social Media)

Native Languages: हमारे राजस्थान और उत्तरप्रदेश में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की बाढ़ आ रही है लेकिन ज़रा रूस की तरफ देखें। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन ने कल एक राजाज्ञा पर दस्तखत किए हैं, जिसके अनुसार अब रूस के सरकारी कामकाज में कोई भी रूसी अफसर अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल नहीं करेगा। इस राजाज्ञा में यह भी कहा गया है कि अंग्रेजी मुहावरों का प्रयोग भी वर्जित है। लेकिन जिन विदेशी भाषा के शब्दों का कोई रूसी पर्याय ही उपलब्ध नहीं है, उनका मजबूरन उपयोग किया जा सकता है। 

रूस ही नहीं, चीन, जर्मनी, फ्रांस, और जापान जैसे देशों में स्वभाषाओं की रक्षा के कई बड़े अभियान चल पड़े हैं। आजकल दुनिया काफी सिकुड़ गई है। सभी देशों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार, कूटनीति, आवागमन आदि काफी बढ़ गया है। इसीलिए इन क्षेत्रों से जुड़े लोगों को विदेशी भाषाओं का ज्ञान जरूरी है लेकिन भारत-जैसे अंग्रेजों के पूर्व गुलाम राष्ट्रों में अंग्रेजी का वर्चस्व इतना बढ़ गया है कि स्वभाषाएं अब दिवंगत होती जा रही हैं। हमारे नेताओं का बौद्धिक स्तर इतना सतही है कि वे इस स्वभाषा-पतन के दूरगामी खतरों से अनभिज्ञ हैं।

क्या भाजपाई, क्या कांग्रेसी, क्या समाजवादी और क्या साम्यवादी नेता सभी अंग्रेजी की फिसलपट्टी पर फिसल रहे हैं। उन्हें पता ही नहीं है कि भाषा को खत्म करके आप अपनी संस्कृति और परंपरा को बचा ही नहीं सकते। भाषा बदलने से आदमी का सोच बदलने लगता है, रिश्ते बदलने लगते हैं, मौलिकता समाप्त हो जाती है। जो देश पिछले दो-तीन सौ साल में महाशक्ति और महासंपन्न बने हैं, वे अपनी भाषाओं के जरिए ही बने हैं। मैं दुनिया के पांचों महाशक्ति राष्ट्रों में रहकर उनकी भाषा नीति को निकट से देख चुका हूं। उनमें से किसी भी राष्ट्र की पाठशालाओं में विदेशी भाषा अनिवार्य रूप से नहीं पढ़ाई जाती है। हमारे बच्चों पर सिर्फ अंग्रेजी नहीं लादी जाए। उन्हें बड़े होकर कई विदेशी भाषाएं सीखने की छूट हो लेकिन यदि प्राथमिक कक्षाओं में उन पर अंग्रेजी थोपी गई तो यह हिरण पर घांस लादनेवाली बात हो गई। इसे सीखने में वे रट्टू तोते बन जाते हैं और उनमें हीनता ग्रंथि पनपने लगती है।

महात्मा गांधी और डाॅ. राममनोहर लोहिया ने इस बात को काफी अच्छी तरह समझा था। लेकिन कैसा दुर्भाग्य है कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है और अशोक गहलोत जैसे संस्कारवान नेता उसके मुख्यमंत्री हैं और उन्होंने उन अंग्रेजी स्कूलों का नाम ‘महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल’ रख दिया है। अशोक गहलोत जो कि कांग्रेसी नेता हैं और उ.प्र. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो कि भाजपा के नेता हैं, दोनों ज़रा महात्मा गांधी और गुरू गोलवलकर के इन कथनों पर ध्यान देंः - ‘‘यदि मैं तानाशाह होता तो आज ही विदेशी भाषा में शिक्षा देना बंद कर देता। सारे अध्यापकों को स्वदेशी भाषाएं अपनाने को मजबूर कर देता। जो आनाकानी करते, उन्हें बर्खास्त कर देता।’’ गुरू गोलवलकर, ‘‘आज देश की दुर्दशा यह है कि अंग्रेजी प्रमुख भाषा बन बैठी है और सब भाषाएं गौण बन गई हैं। यदि हम स्वतंत्र राष्ट्र हैं तो हमें अंग्रेजी के स्थान पर स्वभाषा लानी होगी।’’

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