Congress free India: कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार करते राहुल गांधी

Congress free India: पिछले लगभग दो-तीन वर्षों से कांग्रेस लगभग नेतृत्व विहीन सा होकर रह गया है। कहना न होगा कि इसके लिए राहुल गांधी ही जिम्मेदार हैं।

Written By :  RK Sinha
Update:2022-08-26 22:07 IST

पीएम नरेंद्र मोदी -राहुल गांधी: Photo- Social Media

Congress free India: कांग्रेस से देश को यह उम्मीद थी कि यूपीए सरकार (UPA Government) के सन 2014 में सत्ता से मुक्त होने के बाद वह अब एक सशक्त विपक्ष की भूमिका को सही तरह से निभायेगी । वह केन्द्र में एनडीए सरकार (NDA government) के कामकाज पर पैनी नजर रखते हुये उसकी कमियों पर उसे घेरेगी भी और उपलब्धियों पर कभी-कभार उसकी पीठ भी थपथपा देगी। यही तो लोकतंत्र है। पर यह हो न सका। राहुल गांधी (Rahul Gandhi ) ने कांग्रेस को एक नकारा और थकी हुई पार्टी बनाकर रख दिया है।

कांग्रेस में गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा (Anand Sharma) जैसे पुराने नेता आलाकमान के फैसलों से निराश हैं। गुलाम नबी आजाद और आनन्द शर्मा के चुनाव समितियों के अध्यक्ष पदों से दिए गए इस्तीफों ने यह दर्शा दिया है कि पार्टी में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। दशकों से पार्टी की सेवा करने वाले आजाद और शर्मा जैसे नेताओं को भी अब कांग्रेस में घुटन महसूस हो रही है।

कांग्रेस लगभग नेतृत्व विहीन

पिछले लगभग दो-तीन वर्षों से कांग्रेस लगभग नेतृत्व विहीन सा होकर रह गया है। कहना न होगा कि इसके लिए राहुल गांधी ही जिम्मेदार हैं। राहुल गांधी किसी दूसरे को अध्यक्ष बनने नहीं देना चाहते और नाटकबाजी कर रहे हैं। वे न तो स्वयं कांग्रेस को नेतृत्व देने में सक्षम हैं, न ही किसी भी सक्षम नेता को कांग्रेस का नेतृत्व सौपनें को तैयार हैं।

क्या राहुल गांधी कर रहे नरेन्द्र मोदी के सपने को साकार?

राहुल गांधी कांग्रेस विहीन भारत के नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) के सपने को जाने-अनजाने खुद ही साकार कर रहे हैं। कांग्रेस के बाकी नेताओं को अब गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए कि किस तरह से कांग्रेस को फिर से एक जुझारू पार्टी बनाया जा सकता है। कांग्रेस बिखराव की स्थिति से गुजर रही है। उसके पास समझदार नेताओं की भारी कमी है। ए.के. एंटनी जैसे तपे हुये नेता रिटायर हो गये हैं। वे वापस अपने गृह प्रदेश केरल चले गये हैं।

कांग्रेस निरंतर अपना जनाधार खोती ही चली जा रही है। यह न केवल उसके लिये बल्कि देश की लोकतांत्रिक राजनीति के लिये भी शुभ संकेत नहीं है। उसे विपक्ष की मजबूत और स्वस्थ भूमिका का निर्वाह करना चाहिये था। उसे जनता के मुद्दों पर सड़कों पर आना चाहिये था। पर ताजा हालात यह हैं कि उसके पास जमीनी नेताओं का घोर अभाव है। याद कीजिये कि कब कांग्रेस के नेता पिछली बार जनता के सवालों पर सड़कों पर आये।

कांग्रेस पार्टी को 24 घण्टे, सातों दिन और 12 महीने सक्रिय रहने वाला अध्यक्ष चाहिये

बेशक, कांग्रेस के लिये यह बहुत ही शोचनीय स्थिति है कि वह एक वृद्ध और बीमार अंतरिम अध्यक्ष के माध्यम से संचालित हो रही है। सोनिया गांधी जब स्वस्थ थीं तब उन्होंने पार्टी को कुल मिलाकर अपने तरीके से एक नेतृत्व दिया था। लेकिन, अब उनमें वह क्षमता और सक्रियता सम्भव नहीं है। कांग्रेस पार्टी को राहुल गांधी नहीं एक 24 घण्टे, सातों दिन और 12 महीने सक्रिय रहने वाला अध्यक्ष चाहिये जैसे कि अमित शाह थे और जेपी नड्डा हैं। ये दोनों दिन रात पार्टी को मजबूती देने के लिये काम करते रहे और कर रहे हैं। राहुल गांधी को पार्टी के सर्वोच्च नेता के रूप में लोकसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका निभाना चाहिये। पर वे इस दायित्व तक को भी नहीं लेते।

यह बहुत ही दुःखद स्थिति है कि आजादी के आंदोलन का नेतृत्व करने वाली, आजादी के बाद पचपन साल तक देश का नेतृत्व करने वाली देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी अपने लिये एक सक्षम अध्यक्ष तक नहीं तलाश कर पा रही है। ऐसा ही चलता रहा तो सन 2024 के आम चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी देश की राजनीति में पूरी तरह अप्रासंगिक होकर और अपना जनाधार खोकर इतिहास की वस्तु बन कर रह जायेगी। कांग्रेस को डुबोने का पूरा कलंक राहुल गांधी के मस्तक पर ही लगेगा जो पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं से सार्थक या सक्रिय संवाद तक कायम नहीं कर पा रहे हैं।

कांग्रेस का बंटाधार करने में कुछ होनहार सलाहकारों का योगदान

कांग्रेस का बंटाधार कराने में ऐसे कुछ होनहार सलाहकारों का अमूल्य योगदान है। क्या ऐसे ही कुछ होनहार सलाहकारों' के कहने पर राहुल अपने को कांग्रेस अध्यक्ष की रेस से अलग रखने का कथित संकेत दे रहे हैं? फिर उन्हें स्वयं इस सवाल पर गंभीर मंथन करना चाहिए।

अगर यह उनका अपना सुविचारित फैसला है तो उन्हें नये कांग्रेस अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया में पूरी सक्रियता से जुट जाना चाहिए। अब राहुल गांधी अपने घर को सही किये बगैर माँ और बहन को लेकर विदेश यात्रा पर निकल रहे हैं। वे कन्याकुमारी से कश्मीर तक की 'भारत जोड़ो यात्रा' करने की बात कर रहे थे, पर जा रहे हैं विदेश ? कन्याकुमारी से सात सितंबर को शुरू होने वाली पदयात्रा को उन्होंने जनयात्रा बनाने का आह्वान किया था और कहा कि यह उनके लिए तपस्या है क्योंकि पूरे देश को जोड़ने में लंबा वक्त लगेगा। यदि यह तपस्या ही थी तो अपनी माता जी के मेडिकल चेक अप के नाम पर अपनी बहन के साथ अनिश्चित काल के लिये उनकी विदेश यात्रा जरुरी है ?

बेशक, उन्हें अपनी आगामी देश भर की यात्रा से भारत को करीब से जानने में मदद ही मिलेगी। यदि वे विदेश यात्रा के बजाय भारत यात्रा करेंगे । लेकिन, राहुल गाँधी तो अपनी भारत यात्रा में एन.जी.ओ. को भी साथ लेकर चलने की बात कर रहे हैं। ऐसा क्यों ? कारण दो ही हो सकते हैं । पहला कि उन्हें कांग्रेस के संगठन या कार्यकर्ताओं पर भरोसा नहीं है । दूसरा यह कि तीस्ता सीतलवाड़ किस्म के जो एन.जी.ओ. भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा में चंदा इकठ्ठा कर राष्ट्र विरोधी कार्यों में संलग्न रहकर अपने आकाओं को खुश रखकर पैसे बटोरते थे और देश में अस्थिरता उत्पन्न करते थे, उनसे राहुल गाँधी की अंदरखाने कोई साठगांठ हो गई है। पर क्या उन्हें कांग्रेस शासित राजस्थान के जालौर में नहीं जाना जाना चाहिये था जहां पर एक बेशर्म शिक्षक की पिटाई से दलित छात्र की मौत हो गई? इतनी जघन्य घटना पर राहुल गांधी ने गहरा दुख जताते हुये ट्वीट कर कहा-'जालोर में निर्दयी शिक्षक द्वारा एक मासूम दलित बच्चे को बुरी तरह पीटे जाने के बाद उसकी मृत्यु की घटना बेहद दुखद है। मैं इस क्रूर कृत्य की भर्त्सना करता हूं। पीड़ित परिवार के प्रति मेरी संवेदनाएं।

राहुल गांधी बात-बात पर भाजपा सरकारों की निंदा करते हैं

राहुल गांधी ने कहा कि आरोपी को कठोर धाराओं के तहत गिरफ्तार किया जा चुका है। उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।' क्या यह करना मात्र पर्याप्त है? क्या उन्हें या उनकी बहन और कांग्रेस की नेता प्रिंयका गांधी को जालौर नहीं जाना चाहिये था दलित छात्र के परिजनों से मिलने के लिये? कांग्रेस शासित राजस्थान में ही कन्हैया नाम के दर्जी का सिर काट डाला गया था? राहुल गांधी बात-बात पर भाजपा सरकारों की निंदा करते हैं, पर कभी अपनी गिरेबान में क्यों नहीं झांकते।

कांग्रेस के साथ एक बड़ी दिक्कत यह भी हो रही है कि वह बड़े अहम सवालों पर भी एक राय तक नहीं बना पाती। अब 'अग्निपथ' योजना को ही लें। इस योजना की कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी पैरवी कर रहे थे। वे कह रहे थे कि सेना में भर्ती की यह नयी योजना "राष्ट्रीय हित में है। उन्होंने अपने एक लेख में कहा था कि 'अग्निपथ' रक्षा सुधारों और आधुनिकीकरण की व्यापक प्रक्रिया का हिस्सा है।

'अग्निपथ' योजना

उनके विपरीत कांग्रेस आला कमान की 'अग्निपथ' योजना ('Agneepath' scheme) के खिलाफ था। यानी कहीं भी तालमेल तक नहीं है। देखिये, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधान सभा चुनावों में कांग्रेस को मतदाताओं ने सिरे से खारिज कर दिया था। इन नतीजों के बाद किसी को शक नहीं रहना चाहिए कि यदि गांधी परिवार से कांग्रेस का पीछा नहीं छुड़ाया गया तो सन 2024 तक इसकी हालत और पतली होगी। कांग्रेस सारे देश में सिकुड़ रही है। पर मजाल है कि राहुल गांधी या बाकी कांग्रेसी जागे।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

Tags:    

Similar News