यारों ऐसा एक इंसान चुनो!

बीते दिनों की बात करें तो जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद रहे, इन्होंने महात्मा गांधी को गंदगी बताया। अदाकार कंगना रनौत ने गांधी के अहिंसा का मजाक उड़ाते हुए कहा कि दूसरा गाल आगे करने से 'भीख' मिलती है न कि आजादी। उन्हें सत्ता का भूखा और चालाक बताया था।

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2022-01-27 17:47 IST

राजनीति का धर्म

हमारे यहाँ राजनीति का धर्म होता है। राजनीति के धर्म का उदाहरण इसलिए देना पड़ रहा है क्योंकि राजनीति व प्रेम में सब कुछ जायज़ है कि लोकोक्ति प्राय: कही जाती है। राजनीति के अलावा व्यक्ति, समाज, परिवार, भाई, पति, पत्नी, माँ, पिता, बहन, गुरू सहित हर समूह व कार्य के लिए धर्म निर्धारित किये गये हैं। जो लोग निर्धारित धर्म का पालन नहीं करते वे पतित माने जाते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि समाज के हर तबके में पतितों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। यही नहीं, पतितों को सुर्ख़ियाँ भी हासिल होती जा रही हैं।

ऐसे लोग जो संज्ञा से ऊपर उठ ही नहीं पा रहे हों, उठ ही न पाये हों, वे लोग विशेषण बन चुके लोगों पर तंज कसने से नहीं चूकते हैं। कई लोगों के लिए यही धर्म है। इसी के मार्फ़त सुर्ख़ियाँ बटोरते हैं। इन लोगों की मानसिकता में बदनाम होने पर भी नाम होने की होती है। हाल फ़िलहाल इसमें कालीचरण का नाम जुड़ा है।

महात्मा गांधी को गंदगी बताया

बीते दिनों की बात करें तो जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद रहे, इन्होंने महात्मा गांधी को गंदगी बताया। अदाकार कंगना रनौत ने गांधी के अहिंसा का मजाक उड़ाते हुए कहा कि दूसरा गाल आगे करने से 'भीख' मिलती है न कि आजादी। उन्हें सत्ता का भूखा और चालाक बताया था।

हरियाणा के मंत्री अनिल विज ने कहा था कि गांधीजी ने कोई खादी का ट्रेडमार्क तो करा नहीं रखा है। नरेंद्र मोदी खादी के लिए महात्मा गांधी से बड़े ब्रांड हैं।उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि गांधी जी कम कपड़े पहनते थे, वह सिर्फ एक धोती लपेटते थे और देश उन्हें बापू कहता था। अगर कोई व्यक्ति कम कपड़े पहन कर बड़ा बन सकता है, तो राखी सावंत महात्मा गांधी से बड़ी हो जाती।" अनंत हेगड़े ने कहा था कि महात्मा गांधी के सत्याग्रह नाटक थे। भारत को आज़ादी भूख हड़ताल और सत्याग्रह से नहीं मिली है।

ये तो चंद नज़ीरें हैं। गांधी की गोडसे ने तो केवल एक बार हत्या की। जिसकी सजा उसे मिली। पर ये लोग पता नहीं कब से और कितनी बार गांधी की हत्या करते चले आ रहे हैं। इन्हें सजा भी नहीं मिल पा रही हैं। इनमें से किसी से कहा जाये कि एक दिन गांधी की तरह जी लें। सत्य व अंहिसा का एक दिन पालन कर लें। बस इसी से पता चल जायेगा कि गांधी पर टिप्पणी करने के वे कितने काबिल हैं। गांधी पर मुँह खोलने से पहले क्या क्या चाहिए? गांधी पर उपदेश कुशल बहुतेरे नहीं थे।

उन्होंने दूसरा गाल आगे करके देखा था भीख नहीं मिलती। दिखाया था आजादी मिलती है।सत्ता की भूख गांधी को कितनी थी यह कंगना रानौत जैसे अदाकारा को नहीं समझाया जा सकता क्योंकि उन्हें हो सकता है कभी सत्ता वाले गांधी की कोई भूमिका की हो या करनी पड़े। कंगना रानौत सत्ता से रिश्ते बनाने के लिए कितनी भूखी हैं। यह बीते दिनों के उनके कार्यकालों से साफ़ हो चुका है।

गांधी का क्या दोष

अनिल विज व्यापार के नज़रिये से जीवन को देखते हैं। इसलिए पेटेंट व ट्रेडमार्क से ऊपर सोच पाना उनके लिए संभव नहीं है। सपा, बसपा, भाजपा जैसे दलों की बैसाखी पर चढ़ कर विधायक ,मंत्री व विधानसभा अध्यक्ष जैसी कुर्सियों पर क़ाबिज़ होने वाले हृदय नारायण दीक्षित को कपड़ों से ऊपर गांधी में कुछ नहीं देख पाते तो इसमें गांधी का क्या दोष है?

यदि राखी सावंत के भी वस्त्र तक ही उनकी नज़र जा कर ठहर जाती है तब भी गांधी को दोषी क्यों ठहराया जाना चाहिए ।खुद को लेखन में स्थापित करने के लिए 'हिंद स्वराज्य का पुनर्पाठ' किताब लिखनी पड़ रही हो। अपनी रचनावली का विमोचन अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में करवा कर अमर होने का काम करना पड़ता हो। फिर गांधी व कंगना के कपड़ों में साम्यता देखने का अधिकार उन्हें कहाँ से मिल जाता है। रही बात अनंत हेगड़े की तो उन्हें विवादित बयानों के लिए ही जाना जाता है।

उन्होंने कहा कि वह भारत के युवाओं में कौशल विकसित करने की अपनी प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ेंगे और भौंकने वाले आवारा कुत्तों के बारे में परेशान नहीं होंगे। उन्होंने धर्मनिरपेक्ष शब्द की आलोचना की और कहा कि प्रस्तावना से शब्द को हटाने के लिए भाजपा सरकार "संविधान में संशोधन" करेगी। केपीसीसी अध्यक्ष दिनेश गुंडू राव द्वारा केंद्रीय मंत्री के रूप में उनकी उपलब्धियों पर सवाल उठाने के बाद, हेगड़े ने राव को "एक मुस्लिम महिला के पीछे दौड़ने वाला लड़का" कहा।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को "हाइब्रिड उत्पाद कहा । जो केवल कांग्रेस प्रयोगशाला में पाया जा सकता है।" हेगड़े और बिज ने ग्रेजुएट की पढ़ाई की है। कंगना रानौत ने केमेस्ट्री में इंटर में फेल होने के बाद औपचारिक शिक्षा से खुद को अलग कर लिया। गांधी ने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से बैरिस्टर की तालीम पाई थी।

दुख का विषय है कि धर्म संसद विवादित बयानों का प्लेटफ़ार्म बनायी जा रही है। तभी तो हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद में विवादित बयानों से जुड़ा विवाद थम पाता कि रायपुर की धर्म संसद में कालीचरण महाराज विष वमन करते हुए सुने गये। इस महाराज ने महात्मा गांधी के लिए अभद्र शब्दों का इस्तेमाल किया। जबकि नाथूँ राम गोड़से की तारीफ़ की।

कालीचरण ने क़िस्मत आज़माई

हद तक यह है कि धर्म संसद में कालीचरण के इस बयान ने तालियाँ भी बटोरीं। जानना ज़रूरी हो जाता है कि कौन हैं कालीचरण। संन्यास से पहले का नाम अभिजीत सारग हैं। महाराष्ट्र के अकेला जनपद के निवासी हैं। इसी ज़िले के शिवाजी नगर के भंवरसिंह पंचबंगला इलाक़े में इनकी रिहायश थी। कालीचरण ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि उन्हें स्कूल जाने में कभी कोई दिलचस्पी नहीं रही है। इसी वजह से वह औपचारिक पढ़ाई केवल आठवीं तक ही कर पाये।

इंदौर के भय्यू जी महाराज के साथ रहे। भय्यूजी महाराज ने आत्महत्या कर ली थी। कालीचरण ने 2017 में अकोला नगर निगम के चुनाव में क़िस्मत आज़माई। पर जीत नहीं पाये। कालीचरण बताते हैं कि वे पंद्रह साल की उम्र में महर्षि अगस्त्य से दीक्षित हुए। वह खुद को माँ काली का पुत्र बताते हैं।

उनके मुताबिक़ एक दुर्घटना में पाँव में चोट लगने से टूट चुकी हड्डी को माँ काली ने ही ठीक किया। मां काली उन्हें दर्शन दे चुकी हैं। साल 2020 में एक वीडियो में वह शिव तांडव का पाठ करते नज़र आये थे। इसी वीडियो के वायरल होने के बाद बाबा को सुर्ख़ियाँ हासिल हुई थी।

पर गांधी के इन आलोचकों को नहीं पता कि गाँधी जी पर देश विदेश में अलग अलग भाषाओँ में 300 से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं।

महात्मा गांधी के सम्मान में सौ से ज्यादा देश डाक टिकट जारी कर चुके हैं। गांधी जी की 150 वीं जयंती पर 2019 में फ्रांस, उज्बेकिस्तान, टर्की, फिलिस्तीन और मोनाको समेत 69 देशों ने डाक टिकट जारी किए थे। महात्मा गांधी की प्रतिमाएँ भारत ही नहीं बल्कि 70 से ज्यादा देशों में स्थापित हैं।

यही नहीं, जो गांधी के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने वाले लोग हैं, वे अपने को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा बताते हैं। पर सारे के सारे ऐसे लोगों का विश्वास पढ़ने लिखने में हैं ही नहीं। वे गांधी के बारे में कुछ नहीं जानते। न ही जानना चाहते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि संघ आधुनिक भारत के निर्माता महापुरुषों के रूप में स्वीकार करता है। इसलिए प्रातः स्मरण में उनका नाम लेता है।

रामकृष्णो दयानंदो रवींद्रो राममोहनः

रामतीर्थोऽरविंदश्च विवेकानंद उद्यशः ।।

दादाभाई गोपबंधुः टिळको गांधी रादृताः

रमणो मालवीयश्च श्री सुब्रमण्य भारती ॥

यह तो ये लोग जानते ही होंगे कि हेडगेवार जी ने संघ की स्थापना की थी। हेडगेवार जी पहले बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़े थे। मध्य प्रदेश में क्रांतिकारियों का बड़ा सम्मेलन किया था। बाद में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो जेल गये। यदि गांधी से उनकी असहमति होती तो आख़िर संघ की प्रार्थना, जिसे एकात्मता स्तोत्र कहते हैं, में गांधी नहीं होते। हेडगेवार जी असहयोग आंदोलन में शरीक नहीं होते।

( लेखक पत्रकार हैं।) 

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