Say No to Marriage: आज की युवा पीढ़ी का शादी से परहेज क्यों

Say No to Marriage: आजकल पूरे देश में एक नया ट्रेंड युवा पीढ़ी के बीच चालू हो गया है 'से नो टू मैरिज' और यह संक्रमण के रूप में सभी समाजों और सभी वर्गों में प्रवेश कर चुका है।

Written By :  Anshu Sarda Anvi
Update: 2024-06-06 14:32 GMT

'से नो टू मैरिज' आज की युवा पीढ़ी का शादी से परहेज क्यों: Photo- Social Media

Say No to Marriage: यह लगभग 1 महीने पुरानी बात है जब पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी सम्मेलन के प्रांतीय अधिवेशन के मंच से 'आज की युवा पीढ़ी का शादी से परहेज क्यों' पर अपनी बात रखी थी। बदलते परिदृश्य में युवा पीढ़ी विशेषकर लड़कियों द्वारा शादी से इनकार कर दिया जा रहा है। आखिर क्या कारण है इसके? देश के निर्माण की सबसे छोटी इकाई परिवार के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण संस्कार है विवाह संस्कार, वह इस समय अनेक चुनौतियों के बीच में घिरा है। एक तरफ जहां तलाक जो कि हमारे हिंदू विवाह में कहीं भी प्रश्रय नहीं पाता, तेज गति से बढ़ रहा है तो दूसरी ओर शादी के आडम्बरी खर्चों का सुरसा के समान मुंह फैलता ही जा रहा है। इसके बीच में यह एक अलग ही समस्या हम सबके सामने आने लगी है जिसे फिलहाल भविष्यमूलक समस्या कहा जाना ज्यादा ठीक है। आजकल पूरे देश में एक नया ट्रेंड युवा पीढ़ी के बीच चालू हो गया है 'से नो टू मैरिज' और यह संक्रमण के रूप में सभी समाजों और सभी वर्गों में प्रवेश कर चुका है। आज हम इस बात को स्वीकार करें या न करें लेकिन तलाक आदि जैसी समस्याओं के साथ-साथ यह भी आने वाले समय में हम सबके सामने एक चुनौती बन जाएगा। बात यह है कि नई पीढ़ी शादी से इंकार क्यों कर रही है और अगर शादी करती भी है तो अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने में इतना समय निकाल देती है कि शादी के योग्य उम्र ही निकल जाती है, जिससे शादी के सही मायने खत्म होने लग जाते हैं। इसके लिए युवा पीढ़ी के दृष्टिकोण को समझना भी होगा और उन्हें सुनना भी होगा।

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नई पीढ़ी की लड़कियों का शादी से इनकार

युवा पीढ़ी, विशेष कर लड़कियों के द्वारा शादी से इनकार करने के क्या कारण हो सकते हैं, हो रहे हैं? सबसे पहले किसी भी रिश्ते में आवश्यक होता है एक दूसरे के प्रति कमिटमेंट, आपसी विश्वास और आज वैवाहिक रिश्ते में सबसे ज्यादा जो कमी आ रही है वह है आपसी विश्वास की, पारस्परिक विश्वास की। पहले के समय में जब पुरुष घर से बाहर जाता था और महिलाएं घर को संभालने के लिए पीछे रह जाती थी तो उनमें एक आपसी विश्वास जो होता था वह उस डोर को बांधे भी रखता था और उसे रिश्ते को जोड़े रखता था। आज भले ही हम मोबाइल और अन्य तकनीकों को अपना चुके हैं और अपनी अभिव्यक्ति के लिए हम नए-नए माध्यम अपने सामने चुनते जा रहे हैं, वैसे-वैसे हमारे रिश्तों में आपसी विश्वास खत्म होता जा रहा है। दूसरा सबसे बड़ा कारण है कि आज की युवा पीढ़ी करियर के प्रति अधिक सजग हो गई हैं। पहले महिलाएं अपने करियर को लेकर उतनी सजग नहीं थीं। वे अपने परिवार और अपने बच्चों के लिए समझौते की जिंदगी जी लेती थी। वे सामंजस्य बिठाती थी , वह भले ही अपनी इच्छा से या अनिच्छापूर्वक हो लेकिन वे सब कर लेती थीं क्योंकि वे अपने करियर को लेकर या तो सजग नहीं थी या फिर उसके उतने लायक भी न थीं। लेकिन जब इस तरह की बातें आज की युवा पीढ़ी सुनती है तो उसे लगता है कि वह अधिक शिक्षित भी है और इन सब को लेकर जागरूक भी है तो वह क्यों अपने करियर को शादी करके बलि दे। क्योंकि हमारे देश में एक पितृसत्तात्मक व्यवस्था प्रचलित है जिसमें पुरुष हमेशा महिला से एक पायदान ऊपर ही माना जाता है ऐसे में समझौता करना महिलाओं के हिस्से में ही अधिक आता है और आज की पीढ़ी इस समझौते को करने से इनकार कर देती है। क्योंकि जिस तरह से नए-नए स्टार्टअप्स आ रहे हैं, जिस तरह से वे अपनी आपको शिक्षित कर अपनी पढ़ाई- लिखाई कर अपने लिए एक नया करियर ऑप्शन चुनती है जिसे आज के समय में बनाए रखना एक आसान काम नहीं होता, ऐसे में वे करियर के ऊपर शादी को तिलांजलि दे देती हैं। आज की युवा पीढ़ी की शादी की उम्र निकल चुकी है पर फिर भी वे शादी को निभाने के प्रति इतने अधिक परिपक्व नहीं हुए हैं। पहले के समय में लड़के-लड़कियों में एक लक्ष्मण रेखा जैसी खींची हुई रहती थी और उन दोनों में से कोई भी अपनी-अपनी रेखाओं को पार करने का अधिक साहस नहीं करता था और अगर कर भी लेता था तो उसको बहुत अधिक आगे नहीं खींच पाता था। लेकिन आज सह शिक्षा के दौर में लड़के -लड़कियां जब साथ पढ़ते हैं तो अपने कॉलेज तक आते-आते वह इतने सारे ब्रेकअप्स को झेल लेते हैं कि आगे इन रिश्तों को निभाना ही नहीं चाहते हैं, जहां पर उन्हें फिर किसी ब्रेकअप का सामना करना पड़े।

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खुली आजाद जिंदगी जीने की चाह

आज लड़के और लड़कियां दोनों ही अपने रिश्तों में समझौता नहीं करना चाहते हैं जो कि किसी भी रिश्ते का मूलभूत आधार होता है। अब लड़के और लड़कियों के लिए समाज में बहुत सारे विकल्प सामने तैयार हैं, ड्रग्स, अल्कोहल और दोस्त अब उनको शादी के बंधन में बंधने की जगह अपनी खुली आजाद जिंदगी जीने के लिए सहारा लगते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि लड़कियां जितनी ज्यादा पढ़ रही हैं, उतना ज्यादा ही वे शादी से इनकार कर रही हैं। लेकिन क्या आज का समय ऐसा है कि लड़कियों को उनकी पढ़ाई से, उनके प्रोफेशन से हम उन्हें वंचित कर दें, हम उन्हें रोक दें। कोई भी माता-पिता यह नहीं चाहेगा कि उनकी लड़की को पढ़ाई करने से रोका जाए या अपना करियर बनाने से रोका जाए या फिर शादी के बाद में आर्थिक रूप से उसे किसी और का मुंह देखना पड़े। हमारे समाज में पहले ऐसा होता था कि शादी के बाद लड़कियों को अपने माता-पिता और अपने मायके के प्रति झुकाव को खत्म कर देना पड़ता था या समेट लेना पड़ता था, वह व्यक्त नहीं कर पाती थी कि उन्हें अपने माता-पिता की देखभाल भी करनी है पर अब वे खुलकर चाहती हैं, बोलती भी हैं कि वे दोनों माता-पिता की देखभाल में दोनों की भागीदारी चाहती हैं, केवल अपने पति के माता-पिता की ही नहीं। और वे दोनों की जिम्मेदारी को लेकर बड़े फैसलों में खुद को भी शामिल करना चाहती हैं। यह बात अधिक पुरानी भी नहीं है जब लड़की देखने जाते वक्त बिना भाई की इकलौती बेटी या सिर्फ बहनों वाली लड़की को शादी के लिए देखने को कम प्राथमिकता दी जाती थी कारण कि लड़की अपने माता-पिता का पर अधिक ध्यान देगी या माता-पिता का ध्यान सिर्फ अपनी बेटी की गृहस्थी पर ही रहेगा।

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शादी के बाद बराबर जिम्मेदारी चाहती हैं महिलाएं

एक बात और आज की युवा पीढ़ी विशेषकर लड़कियां विवाह को इसलिए भी नहीं स्वीकार कर रही हैं कि वह शादी के बाद बच्चे को जन्म देती हैं या उनके ऊपर में बच्चे को जन्म देने का दबाव डाला जाता है, तो वह जानती हैं कि यह उनकी ही जिम्मेदारी होगी बच्चे का पालन-पोषण करना और उनका करियर इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा। इससे उनकी कार्यक्षमता में भी कमी आएगी और कैरियर से भी ब्रेक लेना होगा। महिलाएं ऐसे वैवाहिक रिश्ते में रहना पसंद करती हैं जिसमें पुरुष भी उनके साथ दैनिक घरेलू कामों को संभाले पर क्या हमारे भारतीय पुरुषों की मानसिकता इस तरह की है? आमतौर पर भारतीय वैवाहिक रिश्तों में देखा जाता है कि या यूं कहें कि एक प्रकार का पारस्परिक समझौता होता है कि शादी के बाद घर का प्रबंधन और बच्चों की परवरिश व घर के सदस्यों की देखभाल की पारंपरिक भूमिका विभाजन महिलाओं पर ही आता है और इस पर खर्च के बारे में उनसे अधिक सवाल भी नहीं किए जाते हैं, तो उन्हें लगता है कि वह वित्त संबंधी जरूरतों में आजाद है। इसके साथ ही अगर गहनों के खरीदारी जैसे बड़े खर्चों में भी पुरुष अगर रोक-टोक नहीं करते हैं तो वह अपने आप को सशक्त मानती हैं । जबकि आज की युवा पीढ़ी की महिलाएं अपने कमाए हुए धन पर खुद का नियंत्रण चाहती हैं न कि वे अपने साथी के दिए हुए धन पर ही अपना अधिकार चाहती हैं। वे जानती हैं और उन्होंने देखा भी है कि किस तरह से परिवार के पुरुष वित्त को लेकर अपने घर की महिलाओं को दोयम स्थान पर रखते हैं और उन्हें दुर्व्यवहार बर्दाश्त करते भी देखा है। वे अपने वित्त संबंधी सभी कामों को खुद करने के योग्य हैं, वे सिर्फ खर्च के निर्णय में ही नहीं बल्कि कमाने और उसके प्रबंधन के निर्णय में भी खुद की उपस्थिति चाहती हैं। वे जानती हैं कि अगर वह आर्थिक रूप से सक्षम हैं तो वैवाहिक रिश्ते में उनकी बातों को प्राथमिकता दी जाएगी और उन्हें यह भी पता हो कि उनके पास क्या संपत्ति है और उनके क्या वित्तीय अधिकार हैं। महिलाएं यह भी जानती हैं और कई केसेस में यह होता भी है कि वे घर में सिर्फ कमाऊ पर शक्तिहीन बनकर रह जाती हैं। वे घर वालों के लिए सिर्फ पैसा कमाने की मशीन भर हैं जबकि उनके पैसे पर उनके घर के पुरुष ही अधिक अधिकार रखते हैं , ऐसे में भी वह पुरुषों पर विश्वास नहीं कर पातीं और उन्हें अपने जीवन में शोषक अधिक समझती हैं।

हमारे अपने धार्मिक व सामाजिक रीति-रिवाज भी कुछ इस तरह से डिजाइन किए हुए हैं कि वह पुरुषों को महिलाओं के सुरक्षा कवच या रक्षक के तौर पर स्वीकार करते हैं, मान्यता देते हैं। अब जबकि पितृसत्तात्मक प्रणाली को महिलाएं अस्वीकार करने लगी हैं, संयुक्त परिवार प्रणाली धीरे-धीरे छिन्न भिन्न होती जा रही है,महिलाएं इस तरह से शक्तिहीन बनकर बोझ तले दबकर किसी पुरुष पर आश्रित रहना पसंद नहीं करती बल्कि वह अपने खुद के लिए खुद को खड़े होना स्वीकार करती हैं, इसलिए भी वे विवाह से इनकार कर दे रही हैं। महिलाओं की सुरक्षा के लिए इतने सारे कानून बना दिए गए हैं कि वे उसका दुरुपयोग भी करने लगी हैं, इस डर से भी आजकल के लड़के शादी से इनकार कर दे रहे हैं कि शादी के बाद पता नहीं किस तरह की लड़की उन्हें मिलेगी जो कि उनके लिए एक मानसिक और आर्थिक शोषण का कारण बन जाए।

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युवा पीढ़ी को विवाह के प्रति आकर्षित किया जाए

सर्वे बताते हैं कि शादी की औसत आयु एक महिला की शैक्षणिक योग्यता के साथ बढ़ती है, 25-29 वर्ष की आयु की महिलाओं में विवाह की औसत आयु, जिन्होंने 12 या उससे अधिक वर्षों की शिक्षा पूरी कर ली है, 2019-21 के दौरान बिना स्कूली शिक्षा वाली महिलाओं की औसत आयु से 5.5 वर्ष अधिक है। वहीं दूसरी ओर युवाओं में शादी के प्रति कम होता आकर्षण भी चिंता का विषय है। सर्वे का दावा है कि 23 प्रतिशत युवा विवाह में रुचि नहीं रखते हैं। पहले यह आंकड़ा 17.2 प्रतिशत था। अंत में इस विवाह संस्था को किस तरह से बचाया जाए, किस तरह से आज की युवा पीढ़ी को फिर से विवाह के प्रति आकर्षित किया जाए, इसके लिए प्रत्येक समाज और प्रत्येक समाज के वर्ग द्वारा विवाह की क्या अच्छाइयां हैं, विवाह संस्था के अपने क्या महत्व है उन पर वर्कशॉप आयोजित की जानी चाहिए और युवा पीढ़ी को इससे जोड़ना चाहिए। इसके नकारात्मक की जगह सकारात्मक पहलुओं से उनको रूबरू करना चाहिए। हमें अपने परिवारों में इस तरह के अच्छे उदाहरण स्थापित करने चाहिए कि हमारे बच्चे, हमारी युवा पीढ़ी विवाह संस्था के प्रति नकारात्मक सोच न रखें बल्कि सकारात्मक सोच बनाएं।

(अंशु सारडा अन्वि)

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