Samudri Saibal: समुद्री शैवाल: अवसरों का सागर

Samudri Saibal Ke Bare Me Jankari: समुद्री शैवाल समुद्र के एक अद्भुत पौधे के रूप में वैश्विक मान्यता प्राप्त कर रहा है। प्रजनन और खाद्य के रूप में यह समुद्री जैव विविधता के लिए सहायक होता है।

Written By :  Neetu Prasad
Update:2024-01-29 19:00 IST

Samudri Saibal Ke Bare Me Jankari in Hindi 

Samudri Saibal Ke Bare Me Jankari: समुद्री शैवाल पौधों को अवांछनीय, अनाकर्षक या परेशानी देने वाला माना जाता है, विशेष रूप से वे  पौधे जो वहां उग जाते  हैं  जहां उनकी  आवश्यकता नहीं होती है और अक्सर बढ़ते  जाते  हैं  या तेजी से फैलते  हैं  या वांछित पौधों का स्थान ले लेते  हैं  । तो, जब आप समुद्री शैवाल शब्द सुनते हैं तो आपके दिमाग में क्या आता है? हममें से अधिकांश के लिए वह समुद्री जलकुंभी का प्रकार है जो भारतीय तालाबों को अवरुद्ध कर नौवहन के लिए  बाधा उत्पन्न करते हैं ।  समुद्री शैवाल की अद्भुत आर्थिक क्षमता के बारे में बहुत कम जानकारी है ।

समुद्री शैवाल समुद्र के एक अद्भुत पौधे के रूप में वैश्विक मान्यता प्राप्त कर रहा है। प्रजनन और खाद्य के रूप में यह समुद्री जैव विविधता  के लिए सहायक होता है । यह कार्बन को एबसोर्ब  करता है, समुद्र को अम्लीकृत होने से बचाता  है और उन अतिरिक्त पोषक तत्वों को सोख लेता है जो हानिकारक एल्गे  के पनपने का कारण बनते हैं । यह तटीय समुदायों के लिए एक संसाधन भी हो सकता है, जो उन्हें जलवायु परिवर्तन के कारण उतार-चढ़ाव से प्रभावित होने वाले मात्स्यिकी बाजारों की तुलना में अधिक स्थिर आय प्रदान कर सकता है ।  ऐसा अनुमान है कि एक टन समुद्री शैवाल 120 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2), दो किलोग्राम नाइट्रोजन, (एन) और ढाई किलोग्राम फॉस्फोरस (पी) को एब्सोर्ब  कर सकता है ।  इसके अलावा, इसके लिए व्यावहारिक रूप से ताजे पानी की कोई आवश्यकता नहीं होती है ।  इस प्रकार, यह नीली अर्थव्यवस्था और हरित कृषि पद्धतियों के लिए बहुत बड़ा गुणक हो सकता है। अपने मूल गुणों के कारण, समुद्री शैवाल को भोजन, दवाओं, उर्वरकों, सौंदर्य प्रसाधनों, बायोमटेरियल्स आदि में एक प्राकृतिक घटक के रूप में महत्व दिया जाता है और वर्तमान इसका वैश्विक बाजार 17 बिलियन डॉलर का है।


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

आरंभिक लिखित अभिलेखों के अनुसार समुद्री शैवाल का सेवन सबसे पहले जापान में कम से कम 1500 वर्ष पहले किया गया था । मध्य युग तक, केवल जंगली समुद्री शैवाल ही थे। अत: खाद्य स्रोत के रूप में इसकी भूमिका सीमित थी ।

टोकुगावा युग (1600-1800 ईस्वी) के दौरान, समुद्री शैवाल की खेती का जन्म तब हुआ जब मछुआरों ने एक अपतटीय बाड़ का निर्माण किया और राजा को प्रतिदिन ताजी मछली की आपूर्ति करने के लिए एक मत्स्य फार्म शुरू किया ।  उन्होंने यह भी पाया कि समुद्री शैवाल इस बाड़ पर उग जाते थे ।


भारत में, समुद्री शैवाल की खेती केन्द्रीय नमक व  समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (सीएसएमसीआरआई) के तत्वावधान में शुरू हुई और 1980 के दशक के दौरान फिलीपींस से भारत में प्रायोगिक उद्देश्यों के लिए कप्पाफाइकस अल्वारेज़िल को लाया गया ।  इस समुद्री शैवाल को प्रायोगिक खेतों से व्यावसायिक खेतों तक पहुँचने में अधिक समय नहीं लगा। सीएसएमसीआरआई की मदद से, पेप्सी कंपनी ने 2000 की शुरुआत में तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों में समुद्री शैवाल की व्यावसायिक खेती शुरू की ।  कप्पाफाइकस अल्वारेज़िल,  कैरेजेनन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों में किया जाता है, जैसे डेयरी उत्पादों में एक स्टेबिलाईज़िंग एजेंट के रूप में तथा इस जेल्ली जैसे पदार्थ  का उपयोग औद्योगिक उत्पाद जैसे चॉकलेट, आइसक्रीम, पैकेज्ड फूड, टूथपेस्ट और यहां तक कि दवाओं में भी किया जाता है ।


इसने तमिलनाडु के स्थानीय लोगों, विशेषकर महिलाओं को रोजगार का एक नया अवसर दिया । 2008 में, पेप्सी कंपनी ने यह  व्यवसाय समाप्त कर दिया । पेप्सी के एक पूर्व कर्मचारी, अभिराम सेठ ने इस व्यवसाय को ले लिया और एक्वाग्री नामक कंपनी की स्थापना की । तब से, कई समुद्री शैवाल कंपनियों  और स्टार्टअपस्स ने  समुद्री शैवाल के व्यावसायिक उपयोग को एक्सप्लोर किया है ।

प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी द्वारा वर्ष 2020 में शुरू की गई थी, जो न केवल मात्स्यिकी  क्षेत्र में इनफ्रास्ट्रक्चर और वैल्यू चेन को मजबूत करने के लिए है, बल्कि भारतीय मात्स्यिकी क्षेत्र में नई नई गतिविधियों की आधारशिला भी बन गया है। पीएमएमएसवाई की परिकल्पना है कि आर्टिफिशियल रीफ़्स और  सी रेंचिंग के साथ साथ  सी वीड एक टिकाऊ, जलवायु अनुकूल  और लाभदायक मॉडल प्रदान करेगा जो न केवल मछुआरों की आय में सुधार करने में मदद करेगा, तटीय महिलाओं को आजीविका प्रदान करेगा बल्कि यह हमारे फिश स्टॉक्स  को ससटेनेबल रूप से मेनेज करने का एक उत्तम  तरीका भी होगा ।

भारत 8000 किमी से अधिक लंबी तटरेखा से संपन्न है और तमिलनाडु, गुजरात, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, ओडिशा और महाराष्ट्र में  प्राकृतिक रूप से समुद्री शैवाल की विभिन्न प्रजातियाँ  उगती  है। मुंबई, रत्नागिरी , गोवा, कारवार, उरकला, विजिञ्जम,  पुलिकट , रामेश्वरम और ओडिशा में चिल्का के आसपास समृद्ध समुद्री शैवाल  के क्षेत्र पाए जाते हैं ।

वर्तमान परिदृश्य

पीएमएमएसवाई के तहत, समुद्री शैवाल की खेती और संबंधित गतिविधियों के लिए 99 करोड़ रुपये की केंद्रीय हिस्सेदारी के साथ कुल 193.80 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए थे । तटीय राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और अनुसंधान संस्थानों को 46,095 राफ्ट, 65,330 मोनो-लाइनों की स्थापना के लिए तथा  तमिलनाडु में 127.7 करोड़ रुपये का  सी वीड पार्क विकसित करने के लिए धनराशि आवंटित की गई है ।


इस समुद्री शैवाल पार्क का उद्देश्य शोधकर्ताओं, उद्यमियों, स्टार्टअप और एसएचसी महिलाओं के लिए एक सक्षम ईको सिस्टम प्रदान करना है ।  इसका शिलान्यास पिछले वर्ष माननीय केन्द्रीय मंत्री परशोत्तम  रूपाला जी द्वारा किया गया था और काम तेज गति से चल रहा है ।  

उत्तम  भविष्य

समुद्र के एक अद्भुत पौधे के रूप में, समुद्री शैवाल तेजी से बढ़ सकता है और 45 से 60 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाता है। मत्स्यपालन विभाग का लक्ष्य प्राकृतिक रूप से  और जलीय कृषि  के माध्यम से सालाना लगभग 11 लाख टन समुद्री शैवाल का उत्पादन करना है ।  बढ़ती जागरूकता के साथ, समुद्री शैवाल की घरेलू मांग कई गुना बढ़ गई है और हम अपनी आवश्यकताओं का लगभग 70 प्रतिशत आयात कर रहे हैं। इस प्रवृत्ति को पलटने, आत्मनिर्भरता हासिल करने और सम्पूर्ण रूप से  निर्यातक बनने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने अत्यावश्यक है। इस दिशा में निम्नलिखित कार्य किये जा सकते हैं-

➢ राज्यों, अनुसंधान संस्थानों (सीएमएफआरआई, सीएसएमसीआरआई, एनआईओटी) और निजी उद्यमों/स्टार्टअप के बीच मजबूत सहयोग करना ।

➢तटीय राज्यों द्वारा समुद्री शैवाल की खेती के लिए संभावित क्षेत्रों/क्षेत्रों की विस्तृत मैपिंग और पहचान की जा सकती है जो मत्स्यन क्षेत्रों, पर्यटन गतिविधियों और व्यापार मार्गों से मुक्त है ।

➢ संगठित विकास और राज्यों द्वारा बेहतर विनियमन के लिए जल पट्टा नीति का निर्माण महत्वपूर्ण है।

➢ राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन योजना के अभिसरण के माध्यम से महिला एसएचजी समूहों की भागीदारी और उनके कौशल को उन्नत करना।

> बीज की उपलब्धता सबसे बड़ा मुद्दा है। इसलिए अनुसंधान एवं विकास संस्थानों द्वारा अपने स्वयं के स्रोत और पीएमएमएसवाई से वित्त पोषण के साथ उच्च उपज वाली बीज सामग्री का विकास और विस्तार किया जाना है ।

➢ निजी क्षेत्र और उद्यमियों को योजनाओं (पीएमएमएसवाई, एफआईडीएफ) और स्वयं के संसाधनों के तहत बड़े पैमाने पर उत्पादन करना होगा।

➢ सरकार को निजी क्षेत्र द्वारा उच्च उपज वाली रोपण सामग्री के आयात की अनुमति देने के लिए नीतिगत उपाय करने चाहिए। वर्तमान में समुद्री शैवाल के निर्यात और आयात में कुछ तकनीकी समस्याएं मौजूद हैं।

➢ अनुसंधान संस्थानों को समुद्री शैवाल की विभिन्न प्रजातियों की उच्च उपज वाली रोपण सामग्री उगाने के लिए निजी भागीदारों के साथ सहयोग करना चाहिए ताकि किसी विशिष्ट प्रजाति पर निर्भरता को दूर किया जा सके। इसी तरह, फसल कटाई के बाद की तकनीकों और खेती की उन्नत तकनीक को अपनाना होगा।

➢ एक उचित एकीकृत इको-सिस्टम स्थापित करने के लिए, तमिलनाडु में समुद्री शैवाल पार्क की तर्ज पर सभी तटीय राज्यों में पीएमएमएसवाई के तहत अधिक समुद्री शैवाल पार्कों को मंजूरी दी जा सकती है।

➢  समुद्र  तट पर समुद्री शैवाल के बीज बैंक बनाए जा सकते हैं ।

खेती के तरीके को परिवर्तित करने  की समुद्री शैवाल की क्षमता को पहचानते हुए, प्रधान मंत्री ने स्व सहायता समूह (एसएचजी) की महिलाओं और किसानों को औषधीय पोषण और अन्य मूल्यों के लिए समुद्री शैवाल की खेती करने को  प्रोत्साहित किया है। दार्शनिक गूथ ने कहा था, “आप जो भी करते हैं, या सपना देखते हैं कि आप कर सकते हैं, उसे शुरू करें। साहस में प्रतिभा, शक्ति और जादू होता है।” विश्व में भारत को समुद्री शैवाल उत्पादन में अग्रणी बनाने का हमारा प्रयास वर्तमान में एक सपना हो सकता है, लेकिन माननीय प्रधान मंत्री के शक्तिशाली नेतृत्व में, साहसिक उपायों और पहलों के साथ, ये शुरुआत जादुई परिवर्तन ला सकती है।

( लेखक समुद्री मात्स्यिकी, मत्स्य पालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार के तहत संयुक्त सचिव हैं।)

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