श्रीराम मंदिर : आत्म चिंतन
Shri Ram Temple - Self-reflection : लोकतांत्रिक शासन में चुनावों के परिणाम विजय अथवा पराजय दो ही रूपों में परिलक्षित होते हैं। एक श्रेष्ठ नेता का गुण यह होता है कि वह आत्मावलोकन करके अपनी जीत अथवा पराजय पर मंथन अवश्य करें।
Shri Ram Temple - Self-reflection : लोकतांत्रिक शासन में चुनावों के परिणाम विजय अथवा पराजय दो ही रूपों में परिलक्षित होते हैं। एक श्रेष्ठ नेता का गुण यह होता है कि वह आत्मावलोकन करके अपनी जीत अथवा पराजय पर मंथन अवश्य करें। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों के सम्पन्न होने के पश्चात जो भी चुनावी परिणाम आए हैं, वे जनता के द्वारा नीर-क्षीर विवेक से लिया गया निर्णय है, जनता के निर्णय की सदैव ही प्रशंसा की जाती है। परन्तु 18वीं लोकसभा के अयोध्या/फैजाबाद तथा वाराणसी के चुनावी परिणामों पर प्रत्येक भारतीय को विशेष चिंतन-मनन करने की अति आवश्यकता है।
अयोध्या में भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा का किया जाना निश्चित एक महान कार्य था। किसी भी महान कार्य को यदि निष्छल भाव से तथा विधि विधान के साथ किया जाता है तो उसके परिणाम सकरात्मक, शुभ व फलदायी होते हैं। भगवान श्रीराम का मानव स्वरूप में अवतरण लिया जाना एक आशीर्वाद स्वरूप था। अयोध्या, रामटेक, चित्रकूट, नासिक और रामेश्वरम् ऐसे प्रमुख स्थल हैं जो श्रीराम के जीवन से अत्यधिक जुड़े हैं और इन्हीं प्रमुख स्थलों पर लोकसभा के चुनावी परिणाम का विपरीत आना निःसन्देह अत्यधिक हतप्रभ करने वाला है।
गहन चिंतन और मंथन का विषय
मोदी जी एक श्रेष्ठ कूटनीतिज्ञ, बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न तथा कुशल नेतृत्वकर्ता रहे हैं। उन्होंने विगत 10 वर्षों के कार्यकाल में देश के उत्थान हेतु अत्यधिक गौरवपूर्ण कार्य किए हैं। वाराणसी की जनता ने वर्ष 2014 तथा वर्ष 2019 के चुनावों में उनको सहृदयता के साथ समर्थन दिया तथा उन्हें विगत चुनावों में 5 लाख के विशाल अंतर से विजयश्री दिलाई, परन्तु ऐसे कर्मठ नेतृत्व को वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में मात्र 1 लाख 52 हजार वोटों से ही विजयश्री का मिलना, वास्तव में एक गहन चिंता तथा मंथन का विषय है।
फैजाबाद/अयोध्या में मोदी जी के उम्मीदवार की पराजय होना वास्तव में अचम्भित करने वाली घटना है। लेखक ने कुछ धार्मिक गुरूओं से विचार विमर्श किया तथा एक धार्मिक, रामभक्त, राजनीतिज्ञ कूटनीतिज्ञ तथा कुशल नेतृत्व के गुणों से युक्त मोदी जी के उपरोक्त स्थल पर विपरीत परिणाम आने पर कुछ मुख्य बिन्दुओं को इंगित करने का प्रयास किया है, जोकि निम्नवत हैं -
1. श्री राम जी के अंतिम समय में जब यमराज उन्हें लेने के लिए पृथ्वी पर आये तो भगवान श्री राम ने उनके साथ जाने से पूर्व अयोध्या के राजा के रूप में हनुमान जी का राज्याभिषेक किया और उनको अमृत्व का वरदान दिया। आज भी अयोध्या के राजा अंजनीपुत्र हनुमान जी ही हैं। परन्तु मोदी जी के द्वारा जब श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कराई जा रही थी तो उस समय वहाँ के मठाधीशों के द्वारा रामभक्त श्री हनुमान जी की अवहेलना इस रूप में की गई कि मंदिर में श्रीराम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व श्री हनुमान जी की मूर्ति की प्राण करके हनुमान जी को निमन्त्रण तथा भोग लगाया जाना चाहिए था, जोकि नहीं किया गया, इसके अभाव में ही मूर्ति स्थापित की गई। इतना ही नहीं जानकारों के अनुसार, यह एक खंडित मूर्ति थी और खंडित मूर्ति कभी भी अपने ईश भगवान श्री राम को ना तो निमन्त्रण दे सकती है और ना ही उनका स्वागत व सत्कार कर सकती है। क्योंकि निमन्त्रण और स्वागत दोनों ही अयोध्या के राजा हनुमान जी के द्वारा किया जाना था।
2. अयोध्या में स्थापित भगवान श्री राम की मूर्ति काले पत्थर से निर्मित है, जबकि उनका प्रिय रंग श्वेत है। अतः उनकी मूर्ति भी उसी श्वेत रंग में निर्मित होनी चाहिए थी।
3. किसी भी राजा के भवन में प्रवेश करने से पूर्व भवन पर उस राजा का ध्वज स्थापित होता है, परन्तु अयोध्या में भगवान श्री राम के मंदिर की गुम्बद का निर्माण भी नहीं किया गया तो ध्वज की स्थापना कैसे सम्भव थी, यह एक वृहद दोष था।
4. हिन्दू संस्कृति में मठाधीश शंकराचार्य जी की पदवी अत्यधिक श्रेष्ठ व पवित्र मानी जाती है और उनका ईश्वर सदृश आदर किया जाता है, परन्तु अयोध्या में चारों शंकराचार्यों की अवहेलना क्यों की गई, अज्ञानतावश अथवा किसी अन्य कारण से, यह चिंतन का विषय है।
5. अयोध्या मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का संकल्प लेने वाले युगल दम्पति का 6 दिन तक सतत् रूप से पूजा में उपस्थित रहने के पश्चात भी भगवान श्री राम के चक्षु पर से पट्टी का अनावरण करते समय उपस्थित न होना भी एक जिज्ञासापूर्ण प्रश्न है।
6. अखण्ड ज्योति में प्राण प्रतिष्ठा की पूर्व संध्या में आग लगना एक बहुत बड़ा अपशकुन माना जाता है, वह भी सम्भवतया मंदिर समिति की लापरवाही के कारण हुआ।
उपरोक्त समस्त त्रुटियों को श्रीराम मंदिर कमेटी के सदस्यों, विद्वतजनों तथा पुजारियों के द्वारा क्यों नहीं दूर किया गया, यह चिंतन का विषय है। अयोध्या एवं श्रीराम से संबंधित सम्पूर्ण संसदीय क्षेत्रों में मोदी जी के संसदीय उम्मीदवारों की पराजय क्या श्रीराम जी के प्रकोप का परिणाम तो नहीं है? यदि है तो उस प्रकोप के निवारण हेतु मन्दिर समिति के द्वारा क्या व्यवस्था, उपाय तथा चिंतन किया जा रहा है, यह जानना रामभक्तों के द्वारा अति आवश्यक हो गया है।