कई बार छोटे छोटे फ़ैसले बड़ी ताक़त देते हैं, ऐसों का बहिष्कार होना ही चाहिए
हम सबकी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि जिन भी लोगों ने आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों का साथ दिया हो, मुखबिरी की हो, उनके वंशजों का बहिष्कार जारी रखें। कई बार छोटे छोटे फ़ैसले बड़ी ताक़त देते हैं।
योगेश मिश्र
कभी कभी छोटे छोटे फ़ैसले आदमी को बड़ी ताक़त देते हैं । यही नहीं , ये छोटे छोटे फ़ैसले देशको आज़ाद कराने और हमारा गौरवपूर्ण इतिहास बनाने वालों के प्रति हमारी एक सच्ची और विनम्र श्रद्धांजलि भी बन जाते हैं। बहुत साल पहले जब मेरा दिल्ली आना जाना शुरू हो गया था तब की घटना आज अचानक याद आ गई । क्योंकि मैं लॉकडाउन के इन दिनों में पुराने कागज साफ़ कर रहा हूँ । उन्हें देख रहा हूँ, आजकी तारीख़ में उनकी अहमियत आंक रहा हूँ, उन्हें साफ़ कर रहा हूँ या फिर उन्हें कबाड़ी के लिए बाहर निकालकर रख दे रहा हूँ । मेरे हाथ एक बहुत पुरानी इलस्ट्रेटेड विकली नाम की पत्रिका लग गई है ।कभी इस पत्रिका के संपादक अंग्रेज़ी के जाने माने पत्रकार कहे जाने वाले खुशवंत सिंह अंग्रेज़ी की दुनिया के लिए नामचीन चेहरे थे । खुशवंत सिंह अपनी ज़िंदगी की छोटी बड़ी घटनाओं को लेकर शोहरत कमा लेने वाले साहित्यकार रहे हैं, पार्टियों में जाना और पार्टीज़ करना उनका शौक़ था। वह बडे सोशलाइट थे।
उन्होंने अपनी प्रेम कथाएँ भी ख़ूब रंग रोगन लगा के लिखीं और ख़ूब ‘नाम’ कमाया। यह भी कहा जाता है कि एक बार अमृता प्रीतम ने अपनी किताब उन्हें चेक करने के लिए दी। खुशवंत सिंह अंग्रेज़ी के अलावा दूसरी भाषाओं को पढ़ना तौहीन समझते थे। अमृता प्रीतम की किताब पर उनकी टिप्पणी बेहद ख़राब थी। उन्होंने अमृता प्रीतम को कहा यह रसीदी टिकट लायक भी नहीं है। बाद में अमृता प्रीतम ने अपनी आत्मकथा इसी रसीदी टिकट नाम से छापी जो बहुत लोकप्रिय भी हुई।
बहरी सरकार को आवाज सुनाने की कोशिश
खुशवंत सिंह को मैं पढ़ाई के दिनों में ही पढ़ना छोड़ चुका था, उन दिनों ‘मेनस्ट्रीम’ ‘इकनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली’, ‘इलस्ट्रेटेड वीकली’ पत्रिकाएं पढ़ना हर कॉम्पिटिशन की तैयारी करने वाले बच्चे के लिए ज़रूरी था।
इस लिहाज़ से इन्हें मैं भी पढ़ लिया करता था। लेकिन जब मुझे पता चला कि शहीद भगत सिंह की फाँसी के लिए के लिए अंग्रेजों को जब कोई गवाह नहीं मिल रहा था, भगत सिंह ने असेंबली में जो बम फेंका था, उससे कोई मर नहीं सकता था, वो सिर्फ़ आवाज़ करने वाला था, इससे साफ़ था कि उनका लक्ष्य किसी को मारना नहीं बल्कि बहरी ब्रितानी सरकार को जनता की आवाज सुनाना था।
शादी लाल और शोभा सिंह
यह बताना था कि भारत के क्रान्तिकारी जब भी चाहेंगे सरकार की सुरक्षा को धता बता सकते हैं। महज़ इसी मंशा से बम असेंबली में फेंका गया गया था । इस बम की विशेषता यह थी कि दो फ़ीट की दूरी पर बैठे पी. आर. राव, शंकर राव और सर जार्ज शुस्टर को बिल्कुल ही चोटें नहीं आईं। क़ानून और अदालत प्रमाण माँगती हैं। गवाही चाहती है । अंग्रेजों को जब कोई गवाह नहीं मिला तो उनके हाथ पता नहीं कहाँ से शादी लाल और शोभा सिंह लग गये।
इतिहास इस बात की गवाही देता है कि इन्हीं दोनों लोगों की गवाही पर शहीद-ए-आज़म भगतसिंह और उनके दो साथियों -सुखदेव व राजगुरू को फाँसी हुई थी। इनकी फाँसी २३ मार्च, १९३१ कोसुबह ७.३३ मिनट पर लाहौर सेंट्रल जेल में हुई थी। आज सेंट्रल जेल की जगह रिहायशी कालोनी बन गई है। जबकि फाँसी घर की जगह चौराहा बन गया है।
मुझे ज्यों ही इस बात की इत्तिला हुई त्यों ही मैंने यह फ़ैसला कर लिया कि आने वाले दिनों में भी मैं खुशवंत सिंह को नहीं पढूंगा । तब से आज तक मैंने कभी खुशवंत सिंह को नहीं पढा। आज जब उनकी दौर की इलस्ट्रेटेड विकली मेरे हाथ लगी है, तब भी मुझे उसे पढ़ाना,पलटकर देखना अच्छा नहीं लग लग रहा है ।
भगत सिंह व उनके दो साथियों के कातिल
ख़ुशवंत सिंह के पिता शोभा सिंह को मैं भगत सिंह और दो उनके अन्य साथियों का कातिल मानता हूँ । शादी लाल और शोभा सिंह गवाही न दिये होते तो भगत सिंह की फाँसी का अंग्रेज़ों को आधार नहीं मिलता। शोभा सिंह और शादी लाल को अंग्रेजों ने सर की उपाधि से नवाज़ा था। शोभासिंह को दिल्ली में करोड़ों की दौलत और सरकारी ठेके हासिल हुए। उन्हें दिल्ली में बेशक़ीमती ज़मीन मिली। आज के खान मार्केट के पास सुजान सिंह पार्क है। दिल्ली के बारहखंभा रोड पर जो मार्डन स्कूल है, वह शोभा सिंह की ज़मीन पर ही है।
कभी इसे सर शोभा सिंह स्कूल के नाम सेजाना जाता था। ख़ुशवंत सिंह ने अपने पिता को देश भक्त बनाने के लिए बड़े जतन किये। उनके नाम से सर शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर सीरिज़ शुरू की। यह साबित करने में जुटे रहे कि उनके पिता शोभा सिंह ८ अप्रैल,१९२९ को उस समय सेंट्रल असेंबली में मौजूद थे। जहां भगत सिंह औरउनके साथियों ने धुंए वाला बम फेंका था।
मनमोहन का उपकार
ख़ुशवंत सिंह ता उम्र यह भी साबित करते रहे कि उनके पिता शोभा सिंह की गवाही की वजह से भगत सिंह और उनके साथियों को फाँसी नहीं हुई थी। ख़ुशवंत सिंह के रिश्ते कांग्रेस से बेहद करीबी रहे। कांग्रेस में मनमोहन सिंह के प्रभावशाली होने के बाद तो ख़ुशवंत की पौ बारह हो गयी। मनमोहन सिंह ने दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को पत्र लिख कर कहा था कि कनाट प्लेस के पास विंडसर प्लेस नाम के चौराहे का पुन: नामकरण करके शोभा सिंह के नाम कर दिया जाये।
शादी लाल को बागपत के नज़दीक बेशुमार दौलत अंग्रेज़ों ने दी। शामी में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब का कारख़ाना है। शादी लाल को गाँव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उनके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफ़न का कपड़ा तक नहीं दिया। शादी लाल के लिए कफ़न का कपड़ा दिल्ली से ख़रीद कर आया। हम सबकी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि जिन भी लोगों ने आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों का साथ दिया हो, मुखबिरी की हो, उनके वंशजों का बहिष्कार जारी रखें। कई बार छोटे छोटे फ़ैसले बड़ी ताक़त देते हैं।